दर-बदर भटकते हुए मंगरू अब हिम्मत हार चुका था ,उसके हाथ में कई बार मुड़ा और फटा कागज इस बात की गवाही दे रहा था कि वह कागज उसके पास कई दिनों से पड़ा हुआ था, उसमें किसी का नाम-पता लिखा था शायद। मंगरू जिसके भी सामने वो कागज खोलता, वो नाक सिकोड़ कर आगे बढ़ जाता, मतलब कोई भी उस पत्र को पढ़ने तक की भी जहमत नहीं उठाता था।
सुर्यदेव उग्र रूप धारण किए हुए थे,, गर्म हवा ने मंगरू के अंजर-पंजर ढीले कर दिए थे। मंगरू थका-मांदा था, उसने पेड़ के नीचे रखे मटके का पानी पीकर खुद को तरोताजा महसूस किया और वहीं पसर कर पलके बंद कर ली और सोचता रहा कि इस शहर को अच्छा कहुं या बुरा कहुं। पता तो कोई भी नहीं बताया मगर, ठंडा पानी की व्यवस्था हर जगह कर रखी है। और एक हमारा माखन तीवारी, पता नहीं कोन से बील मेंं रहता है कि कोई भी पता नहीं बता पा रहा है। मंगरू के मन में शंका उत्पन्न हुई कि कहीं वो गलत पता तो नहीं दे दिया है। अगले ही क्षण मंगरू के मन से आवाज आयी कि ऐसा मखना भला क्यों करेगा।
और मंगरू पुरानी यादों में खो गया। नदी किनारे टहलते-टहलते जब सांड़ ने मक्खन को दौड़ाया तो मैने ही सांड़ का ध्यान भटकाते हुए मक्खन से कहा ’’ तुमको कितनी बार कहा है कि पुरा लाल कपड़ा मत पहना कर। मैं तो कहता हूँ अभी भी बनियान उतार कर फेंक दे, घर पहूंचने में शर्म तो आएगी, मगर जान तो बच जाएगा। ’’
सांड़ के पुट्ठे पर पत्थर लगा था, सांड़ अब मंगरू को कहाँ छोड़ने वाला था। अब मंगरू आगे-आगे और सांड़ पीछे-पीछे। बस एक क्षण का ही फासला था कि मंगरू बरगद की लटकती हुई लत को पकड़ कर नाला फान गया। और सांड़़ लड़खड़ा कर नाला में गिर गया।
घर लौटने के कम्र में मंगरू ने ताना मारते हुए कहा ’’ मक्खन भाई, अगर सांड़ नहीं आता तो तुम्हारे चुस्त शरीर का पता कैसे चलता, आज पुरा गाँव तुम्हार शरीर देखेगा। ’’
मक्खन ने दांत किंचते हुए कहा ’’ तुमने तो मेरा नया बनियान भी फेंकवा दिया, पिताजी पुछेंगे तो क्या जवाब दुंगा। ’’
मंगरू ने मक्खन की पीठ पर एक हल्का चमाट लगाते हुए कहा ’’ ये जो तु दांत किंच रहा है न, सांड़ का एक जोरदार धक्का लगता तो तुम्हारा दांत भी सलामत नहीं रहता, और पिताजी को बताना भी नहीं पड़ता कि क्या हुआ है।
पेड़ के नीचे लेटे-लेटे मंगरू ने चैन की सांस ली और सोच की दुनिया से बाहर निकल आया लेकिन अभी भी वो सोच मक्खन के बारे में ही रहा था। उसने सोचा कि मक्खन का मैंने कई बार भला किया है तो क्या वो मेरे साथ बुरा कैसे कर सकता है, हमको धोखा दे सकता है ? अगर ऐसा हुआ तो दोस्ती पर से विश्वास ही उठ जाएगा। मंगरू ने फिर सोचा कि कलयुग है, कुछ भी हो सकता है।
मंगरू के कानों में लगातार घंटी की आवाज पड़ी , मंगरू ने बिना पीछे मुड़े ही कहा कि मैं कोई रास्ता रोके खड़ा हूं जो, तु साईकिल की घंटी टनटन मेरे कान में लगातार बजाए जा रहा है। ’’ फिर भी ऐसा होता रहा तो मंगरू ने कहा ’’ तु ऐसे नहीं मानेगा। ’’ मंगरू ने डांटने के उद्देश्य से पीछे मुड़ कर देखा तो वो मक्खन ही था।
थोड़ी शिकायतों के बाद मक्खन और मंगरू की मित्रता और भी बलवती हुई।
समाप्त