Pyar ka imtahan in Hindi Short Stories by Rajeev kumar books and stories PDF | प्यार का इम्तहान

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प्यार का इम्तहान

 

नज़रें इनायत हो रही थी, सारी बातें आँखों आँखों में ही हो रही थी। किसी को भी इश्क की भनक लगने की किसी भी प्रकार की गुंजाइश नहीं थी, ऐसा तो काव्या और गौरव समझ रहे थे। इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छीपता। आँखें अगर छुपा लेती हैं तो आँखें ब्यां भी करती है। अगले ही पल काव्या की आँखें बेसब्री के तीरों से भर आई थी, और इधर-उधर कुछ ढुंढ रही थी तो एक छोटी सी बच्ची ने कहा ’’ काव्या दीदी, गौरव भइया बाल्कनी में अपने दोस्तों से बातें कर रहे हेैं। ’’ काव्या उस छोटी बच्ची के मूंह से यह सब बात सून कर बड़ी जोर से शरमा गई और जल्दी से अपने प्लेट की मिठाई उस बच्ची के मंूह में डाल कर उस बच्ची का मूंह बंद करवाया और चैन की सांस ली।
चैन की सांस तो क्षणिक और बेचैनी अधिक ब्यां कर रही थी। इसको इश्क का तोहफा कह लें या इश्क का कर्ज़। जो हर सच्चा आशिक उठाता रहता है ताउम्र, उस बैचेनी का कर्ज चुकाता ही रहता है। इश्क करने वालों को बहार में मजा आता है तो सुनसान स्थान की भी उनको दरकार होती है।
सुर्यदेव अस्त हुए और सुनसान जगह में काव्या और गौरव लीपटा-लीपटी में व्यस्त हुई मगर व्यस्त होने से पहले काव्या ने घड़ी देख कर कहा ’’ मैं तुम्हारे साथ मात्र आधा घंटा हूं। ’’
गौरव ने भी कहा ’’ आधा घंटा तो बहूत है। दस मिनट में स्वर्ग के दर्शन करा दूंगा। ’’
प्यासे मन की तृप्ति के बाद दोनों अलग हुए और अपने घर उकी राह नापी। दस मिनट का सफर पौने घंटा में तय किया दोनों ने। चुपके-चुपके चोरी-चोरी दोनों का प्रेम संबंध बहूत दुर तक चला लेकिन पकड़े जाने का खौफ कभी खत्म नहीं हुआ और प्रेम संबंध टुट जाना, मर जाने से भी ज्यादा कष्टकारी प्रतीत हो रहा था। इस खौफ को भी तोड़ना था और और प्रेम संबंध को भी वैवाहिक बंधन में बांधना था।
दो लोगों की परस्पर हामी ने प्रेम संबंध को आगे बढ़ाया मगर अब तीसरे-चैथे लोग की भी हामी की जरूरत थी। काव्या ने गौरव से कहा ’’ तुम्हारे घर वाले मान तो जाएंगे न ? चलो अगर मान भी गए तो मेरा भरन-पोषण कैसे करोगे, पापा की दी हुई पाॅकेट मनी से ? ’’
गौरव ने थोड़ा गंभीर होकर कहा ’’ अरे स्यानी, डराती है क्या मेरे को ? ( कान में धीरे से कहा ) घर जमाई रह लुंगा। ’’
गौरव ने काव्या की तरफ देखा और उसका सिरियस चेहरा देखकर खुद सिरियस हो गया। सिरियस होकर दोनों सिरीयस रास्ता निकालते रहे मगर हर रास्ता बंद प्रतीत हुआ। काव्या के पिता गिरधारी लाल जीतने तुनकमिजाजी, गौरव के पिता घनश्याम दास उतने ही सख्त। दोनों ने एक दुसरे को अपने पिता के बारे में बताया था मगर दोनों ही अपने-अपने मन की बात अपने पिताजी को बताने में असमर्थता व्यक्त की। दोनों का दिल छल्ली हुआ।
काव्या को घर से भागना मंजूर नहीं था और गौरव अपने माता-पिता की इकलौती संतान, घर छोड़ कर जाना उसके लिए भी ठीक नहीं था। काव्या के पिता ने एक दिन काव्या से कहा ’’ मेरे एक जीगरी दोस्त पुरे परिवार के साथ आ रहा है, अच्छा खाना बनाना। ’’ काव्या ने हाँ में सिर हिलाया।
दरवाजा खोलते ही काव्या चैंक गई। गौरव को अपने माता-पिता के साथ आया देखकर। काव्या और गौरव एक दुसरे को देखते रहे।
दोनों को विश्वास हुआ कि दोनों जीगरी दोस्त हमारे प्यार को समझेंगे।
समाप्त