बचपन की आख़िरी चिट्ठी
(एक हिस्सा, पर पूरी कहानी)
हमारा पहला दिन था प्लेस्कूल का।
मैं नीली फ्रॉक में थी, नैना पीले में।
मैं रो रही थी क्योंकि मम्मी चली गई थीं, और नैना ने बिना कुछ कहे अपना छोटा-सा हाथ मेरे गाल पर रख दिया।
“रो मत, मैं हूँ ना,” उसने कहा था।
उस दिन से हम दो नहीं, एक हो गए थे।
अंशिका और नैना।
दो नाम, एक साँस।
हम साथ-साथ बड़े हुए।
एक ही बेंच, एक ही टिफिन, एक ही पानी की बोतल।
अगर मेरे पास चॉकलेट थी तो आधी नैना की, अगर उसके पास आम का अचार था तो पूरा मेरा।
टीचर गुस्सा करतीं, “तुम दोनों अलग-अलग बैठो!”
हम चुपके से हँसते और फिर भी घुटनों से घुटने जोड़कर बैठ जाते।
लोग कहते, “ये दोनों तो जुड़वाँ हैं, बस अलग-अलग माँ ने जन्म दिया है।”
क्लास 5 में हमने खून से दोस्ती की थी।
नैना का घुटना छिल गया था खेलते हुए, मैंने अपनी उँगली काटी और उसका खून अपने खून से मिला दिया।
“अब हमेशा के लिए,” मैंने कहा था।
उसने हँसकर गले लगाया, “हमेशा-हमेशा के लिए।”
क्लास 8 तक हमारी दुनिया सिर्फ़ हम दोनों की थी।
रात को 2 बजे तक फोन पर बातें, सुबह स्कूल बस में आँखें लाल करके भी हँसना।
हमने एक डायरी रखी थी – नीले कवर वाली।
हर पन्ने पर लिखते, “आज का बेस्ट मोमेंट” और “कल का प्लान”।
आखिरी पन्ने पर लिखा था:
“जब हम बड़े होंगे तो एक ही घर में रहेंगे, एक ही किचन में चाय बनाएँगे, और बूढ़े होने पर एक ही बेंच पर बैठकर पुरानी बातें करेंगे।”
फिर क्लास 11 आया।
नैना के पापा का ट्रांसफर हो गया।
दूसरे शहर में बेहतर स्कूल, बेहतर कोचिंग।
जाने से एक रात पहले वो मेरे घर आई।
हम दोनों छत पर लेटे थे, तारे गिन रहे थे।
“Anshi, मैं वहाँ मर जाऊँगी तेरे बिना,” वो रो रही थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “तू कहीं नहीं जाएगी। रोज़ बात करेंगे। रोज़ वीडियो कॉल। रोज़ गुड मॉर्निंग, गुड नाइट।”
उसने रोते हुए सिर हिलाया, “पक्का ना?”
“पक्का से भी पक्का।”
पहले हफ्ते सब वैसा ही था।
सुबह 6 बजे उसका गुड मॉर्निंग, रात 12 बजे उसकी गुड नाइट।
फिर धीरे-धीरे…
गुड मॉर्निंग 8 बजे होने लगा।
फिर 10 बजे।
फिर सिर्फ़ “seen”।
मैं उसे कॉल करती, वो “बिज़ी हूँ, बाद में बात करती हूँ” कहकर काट देती।
एक दिन मैंने पूछा, “नैना, तू ठीक है ना?”
उधर से हँसी की आवाज़ें आईं, किसी लड़की की, “यार तू कहाँ है? आ ना, हम लोग वेट कर रहे हैं!”
नैना ने फुसफुसाई, “Anshi मैं अभी फ्रेंड्स के साथ हूँ… बाद में कॉल करती हूँ।”
उस ‘फ्रेंड्स’ शब्द ने मेरे सीने में छुरी घोंप दी।
क्योंकि फ्रेंड्स तो हम थे।
बचपन वाले।
जिन्होंने एक-दूसरे के टूटे क्रेयॉन जोड़े थे।
फ्रेंडशिप डे आया।
मैंने सुबह 6 बजे उसका मैसेज चेक किया – कुछ नहीं।
स्कूल में सब अपनी बेस्ट फ्रेंड के साथ फोटो खिंचा रहे थे।
मैं अकेली बेंच पर बैठी थी, नीली डायरी को सीने से लगाए।
तभी नोटिफिकेशन आया।
नैना ने स्टोरी लगाई थी – वो और एक लड़की, गले में फ्रेंडशिप बैंड, कैप्शन:
“My soul sister ❤️ Forever & always.”
मेरा हाथ काँपने लगा।
मैंने वो फोटो बार-बार देखी।
लड़की की हँसी मेरी हँसी जैसी थी।
उसके कंधे पर नैना का सिर वैसा ही था जैसे कभी मेरा होता था।
उस रात मैंने बहुत लंबा मैसेज टाइप किया।
सब कुछ लिखा – दर्द, गुस्सा, यादें, सवाल।
फिर सब डिलीट कर दिया।
और सिर्फ़ एक लाइन भेजी:
“खुश रहना नैना।
तुम्हारी कमी आज भी लगती है…
पर अब दर्द नहीं होता।”
उसने देखा।
टाइपिंग आने लगा… फिर रुक गया।
फिर “seen”।
उसके बाद मैंने फोन साइलेंट कर दिया।
और रोई।
पहली बार जोर-जोर से।
जैसे कोई मर गया हो।
दो साल बीत गए।
मैंने नए दोस्त बनाए।
हँसना सीख लिया।
पर हर फ्रेंडशिप डे पर दिल से नहीं जुड़ता था।
कभी-कभी रात को पुरानी डायरी खोलती, पन्ने पलटती, और आँखें भर आतीं।
कभी नैना की स्टोरी देखती – अब वो और बड़ी हो गई थी, नई सिटी, नई लाइफ।
मैं मुस्कुरा देती।
खुशी होती कि वो खुश है।
और दर्द होता कि मैं उस खुशी का हिस्सा नहीं।
फिर एक दिन, बिल्कुल अचानक हुआ।
मैं पुराने स्कूल के बाहर से गुज़र रही थी।
गेट के पास कोई खड़ा था।
पीली कुर्ती, वही पुराना हेयर स्टाइल।
नैना।
वो मुझे देखकर रुक गई।
मैं भी।
कुछ पल हम बस एक-दूसरे को देखते रहे।
फिर वो धीरे से आई, मेरे सामने खड़ी हो गई।
उसकी आँखें नम थीं।
“Anshi…” उसने बस इतना कहा।
और मैं टूट गई।
हम दोनों वहीं फुटपाथ पर बैठ गए।
वो रो रही थी, “मैं बहुत बुरी दोस्त थी… मुझे माफ कर दे। मैं डर गई थी कि अगर मैं तुझसे रोज़ बात करूँगी तो घर नहीं बस पाऊँगी। मैं कमज़ोर थी। मैंने सोचा समय के साथ तू भी भूल जाएगी… पर मैं नहीं भूल पाई।”
मैं चुप थी।
फिर मैंने अपना बैग खोला, नीली डायरी निकाली और उसके हाथ में रख दी।
“ये तेरी है। आखिरी पन्ना पढ़।”
उसने पलटा।
वहाँ मैंने एक साल पहले लिखा था:
“अगर कभी तू लौटकर आए,
तो मैं अब भी यहीं मिलूँगी।
क्योंकि बचपन की दोस्ती कभी खत्म नहीं होती,
बस कभी-कभी सो जाती है।”
नैना ने डायरी को सीने से लगाया और खूब रोई।
मैंने भी।
फिर हमने एक-दूसरे को गले लगाया।
जैसे पहले लगाते थे।
जैसे कोई साल बीते ही न हों।
अब हम रोज़ बात नहीं करते।
पर अब जब बात होती है, तो बचपन लौट आता है।
और हम दोनों जानते हैं कि कुछ रिश्ते टूटते नहीं,
बस रुक जाते हैं…
और सही वक़्त पर फिर चल पड़ते हैं।
रीडर्स के लिए आखिरी नोट ❤️
अगर आपके पास भी कोई ऐसा दोस्त है जिससे आप सालों से नहीं बोले,
जिसकी याद आती है पर अहम् या डर के कारण मैसेज नहीं करते,
तो आज रात सिर्फ़ एक मैसेज भेज दो।
बस “हाय” लिख दो।
या “याद आया तुझे।”
या “सॉरी”।
या “मिस यू”।
क्योंकि बचपन की दोस्ती बहुत नाज़ुक होती है,
पर बहुत मज़बूत भी।
वो कभी मरती नहीं,
बस आपका इंतज़ार करती है।
शायद आपका वो एक मैसेज
किसी की नीली डायरी का आखिरी पन्ना पूरा कर दे।
मैंने भेज दिया था अपना।
अब आपकी बारी। ❤️