rain of the heart in Hindi Love Stories by Secret Story Girl books and stories PDF | दिल की बारिश

Featured Books
Categories
Share

दिल की बारिश

मीरा को हमेशा से बारिश पसंद थी। उसे लगता था कि बारिश में भीगी धरती की खुशबू इंसान को उसके अकेलेपन से बाहर खींच लाती है। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था। कॉलेज से लौटते समय बादलों ने अचानक आसमान को घेर लिया और कुछ ही मिनटों में तेज़ बारिश शुरू हो गई। वह सड़क किनारे एक पुराने, ज़ंग लगे बस–स्टैंड की छत के नीचे खड़ी हो गई।
बारिश की बूंदें इतने शोर से गिर रही थीं कि उसके मन की खामोशी भी हिलने लगी। तभी सामने से एक बाइक आकर रुकी। हेलमेट उतारकर जैसे ही वह लड़का उसकी तरफ बढ़ा, मीरा एक पल के लिए ठिठक गई।
वह था आरव।
आरव कॉलेज में सभी का चहेता था—ना सिर्फ उसके अच्छे दिखने की वजह से, बल्कि उसके शांत और सुलझे हुए स्वभाव की वजह से। और सबसे बड़ी बात, वह दूसरों जैसा दिखावा नहीं करता था। मीरा ने उसे कई बार लाइब्रेरी में देखा था, पर कभी बात नहीं की थी।
“लगता है घर लौटना मुश्किल है आज,” आरव ने मुस्कुराते हुए कहा।
मीरा ने हल्की सी मुस्कान दी, “हाँ, अगर बारिश रुक जाए तो…।”
कुछ सेकंड की चुप्पी के बाद आरव ने कहा—
“अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मैं छोड़ दूँ? बारिश में ज़्यादा देर खड़े रहोगी तो सर्दी हो जाएगी।”
मीरा ने पहले मना करने का सोचा, पर उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी सच्चाई थी जिसने उसे शब्द वापस निगलने पर मजबूर कर दिया।
“ठीक है,” उसने धीरे से कहा।
बारिश अब भी ज़ोरों से हो रही थी। बाइक पर बैठते समय मीरा का दुपट्टा थोड़ा पीछे उड़ गया, आरव ने बिना कुछ कहे उसे आगे कर दिया। वह क्षण मीरा को भीतर तक छू गया।
वह सफ़र मुश्किल से दस मिनट का रहा, लेकिन उसके लिए जैसे दुनिया थम गई थी। हवा, बारिश, और आरव का शांत चेहरा… सब कुछ जैसे किसी अधूरी कविता का हिस्सा लग रहा था।
घर पहुँचकर मीरा उतरने लगी तभी आरव ने कहा—
“कभी लगे तो… बात कर लेना। दोस्ती में कोई बुराई नहीं।”
बस एक वाक्य… पर मीरा पूरी रात सो नहीं सकी।
अगले कुछ हफ्तों में दोनों की दोस्ती गहरी होती चली गई। वे लाइब्रेरी के एक ही टेबल पर बैठने लगे, कॉफी पीने लगे, और कभी–कभी साथ घर भी लौट आते। आरव की बातें बेहद सुकून देने वाली होती थीं। वह उन लड़कों की तरह नहीं था जो हर बात में शेख़ी बघारें। वह कम बोलता था, लेकिन जो भी बोलता सच्चा लगता था।
मीरा को उससे प्यार हो गया था।
चुप, गहरा, धीमा… पर बिल्कुल सच्चा प्यार।
पर मीरा ये समझ नहीं पा रही थी कि आरव क्या महसूस करता है।
कभी–कभी लगता कि वह भी उसे पसंद करता है।
पर अगले ही दिन आरव पूरी दूरी बनाए रखता।
एक दिन कॉलेज कैंटीन में मीरा ने हिम्मत जुटाकर पूछ ही लिया—
“आरव… तुम मुझसे दूर क्यों हो जाते हो? क्या मैंने कुछ गलत किया है?”
आरव कुछ पल चुप रहा। फिर धीमी आवाज़ में बोला—
“गलती तुम्हारी नहीं, मीरा।
बस… मैं किसी को खोने से डरता हूँ। अगर किसी को दिल में जगह दूँ, तो उसे निभा ना पाऊँ—इस डर से।”
मीरा ने उसका हाथ पकड़कर कहा—
“कभी–कभी लोग हमें तोड़ने नहीं, पूरा करने आते हैं… तुमने सोचा है शायद मैं उन्हीं में से हूँ?”
आरव उसके शब्दों में खो गया। वह पहली बार था जब उसने मीरा की आँखों में सीधे देखा। उस नज़र में जितनी गहराई थी, मीरा ने कभी नहीं देखी थी।
उस रात दोनों ने घंटों बात की। मीरा ने उसे समझाया कि प्यार हमेशा परफ़ेक्ट नहीं होता। कभी–कभी हिम्मत ही सब कुछ होती है।
कुछ दिनों बाद एक शाम आरव ने मीरा को उसी बारिश वाली जगह बुलाया।
जैसे किस्मत ने उस पल को दोबारा रच दिया हो—एकदम उसी तरह बादल छाए हुए थे और हल्की बूंदें शुरू हो गई थीं।
आरव उसके सामने खड़ा था।
“मीरा,” उसने धीमे से कहा, “शायद मैं अपनी डर की वजह से बहुत कुछ खो रहा हूँ। लेकिन अगर तुम साथ हो… तो शायद मैं बदल सकता हूँ।”
मीरा की आँखें चमक उठीं।
“तो आज फैसला करो,” मीरा ने कहा, “प्यार डर से बड़ा है या डर प्यार से?”
आरव मुस्कुराया।
“तुमसे बड़ा कुछ नहीं।”
और उस क्षण बारिश तेज़ हो गई—जैसे आसमान भी उनके साथ खुश था।
आरव ने उसका हाथ थाम लिया। मीरा की धड़कनें तेज़ हो गईं। दोनों भीग रहे थे, पर उन्हें परवाह नहीं थी। बारिश में खड़े–खड़े आरव ने पहली बार उसे अपने करीब खींचा।
वह आलिंगन सिर्फ एक गले लगना नहीं था…
वह दो अधूरे दिलों का पूरा होना था।
दिन बीतते गए। दोनों एक–दूसरे के बिना नहीं रह पाते थे।
कभी लाइब्रेरी की खामोशी, कभी बारिश की महक, कभी सड़कों पर बाइक चलाते हुए हवा के झोंके… हर पल उनका था।
लेकिन असली कसौटी तब आई जब आरव के पिता की तबीयत बिगड़ गई और उसे परिवार की ज़िम्मेदारियों की वजह से नौकरी के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा।
मीरा टूट गई थी।
पर उसने मुस्कुराकर कहा—
“प्यार साथ रहने से ही साबित नहीं होता… इंतज़ार करने से भी साबित होता है।”
आरव ने उसके माथे पर हल्की-सी किस करके कहा—
“मैं लौटकर आऊँगा। बस… मुझे याद रखना।”
समय बीतता रहा।
मीरा रोज़ वही बारिश वाली जगह जाकर खड़ी हो जाती—जहाँ से उनकी कहानी शुरू हुई थी।
वह हर बूंद में उसकी आवाज़ ढूँढ़ती, हर हवा के झोंके में उसका एहसास।
और फिर… एक दिन
ठीक उसी तरह बारिश शुरू हुई।
मीरा ने आँखें बंद कर लीं। उसे लगा शायद यह भी उसी याद की तरह है जो उसे सुकून भी देती है और दर्द भी।
तभी पीछे से किसी ने धीमे से कहा—
“काफी इंतज़ार करवाया ना?”
मीरा पलटकर खड़ी रह गई।
आरव… वही मुस्कुराहट, वही आँखें, वही बारिश।
वह भागकर उसके गले लग गई।
“तुम आए… सच में आ ही गए!”
आरव ने कहा—
“वादा किया था।
प्यार कभी पीछे नहीं छूटता… बस सही वक्त आने पर लौट आता है।”
बारिश फिर तेज़ हो गई।
दोनों हँसे, भीगे, रोए…
और उस दिन मीरा ने समझा—
कि दिल की बारिश सिर्फ मौसम नहीं होती।
वह उन लोगों की वापसी भी होती है जो हमारे लिए बने होते हैं।