8:30 pm shanti express - 1 in Hindi Motivational Stories by Bhumika Gadhvi books and stories PDF | 8:30 pm शांति एक्सप्रेस - 1

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8:30 pm शांति एक्सप्रेस - 1


       सर्दियों की हल्की धूप अहमदाबाद की सड़कों पर अपनी सुनहरी रेखाएँ बिखेर रही थी। अवनी की नजरें खिड़की से बाहर फैलते शहर पर थीं। ट्रेन धीरे-धीरे मणिनगर स्टेशन पर पहुंची, और उसकी आवाज़ में आने-जाने वालों की हल्की हलचल सुनाई दी।


       स्टेशन की प्लेटफ़ॉर्म पर लोग अपने परिचितों का इंतजार कर रहे थे, कोई चाय की चुस्की ले रहा था, तो कोई अपने बैग्स को संभालते हुए गपशप में मशगूल था। प्लेटफ़ॉर्म के किनारे लगे पुराने और नए बोर्ड्स, रेलवे की आवाज़ और दूर से आती रिक्शा-ऑटो की घंटियों की आवाज़, सभी मिलकर अहमदाबाद की जीवंत और रंगीन दुनिया का अहसास करा रहे थे।


       अवनी  ने गहरी सांस ली। यह शहर उसके लिए नया था, पर हर कदम पर पुराने और नए का संगम उसकी आंखों के सामने जीवंत हो रहा था। मणिनगर स्टेशन की हलचल और शहर की नयी रोशनी उसे एक अजीब सी उत्सुकता और रोमांच का अहसास करा रही थी।


       अवनी  ने स्टेशन से बाहर निकलते ही अपनी नजरें चारों ओर घुमाईं। शहर की हलचल, आवाज़ों का मिश्रण, और चाय की दुकानों से उठती ताजी खुशबू ने उसे तुरंत अहमदाबाद की जीवंतता का अहसास करा दिया।


       सड़क पर चलती बसें, रंग-बिरंगी ऑटो रिक्शाएँ और चलते-फिरते लोग उसकी ओर देखने लगे। अवनी अपने बैग को कसकर थामे धीरे-धीरे पैदल आगे बढ़ी। हर कदम के साथ शहर की आवाज़ और दृश्य उसे नए अनुभवों से भर रहे थे।


       मणिनगर सिटी बस स्टेशन की ओर कदम बढ़ाए। सुबह की हल्की धूप और हलचल भरी सड़कों के बीच, उसने देखा कि 52/2 नंबर की बस विजय चौकड़ी की ओर जा रही थी। वो धीरे-धीरे लाइन में खड़ी हुई, अपने बैग को कसकर थामे, और बस के रुकते ही उसमें चढ़ गई। बस की हल्की झिलमिलाहट और सड़क के शोर ने उसके अंदर एक अजीब सी उत्सुकता और थोड़ी घबराहट भर दी। खिड़की से गुजरते हुए शहर का हर दृश्य, दुकानों की रंग-बिरंगी रोशनी, रिक्शा और ऑटो की हलचल, पैदल चलते लोग, उसे अहमदाबाद की जीवंतता का अहसास करा रहे थे।
बस धीरे-धीरे विजय चौकड़ी की ओर बढ़ी। अवनी  ने खिड़की से बाहर देखा तो सड़क के किनारे छोटे-छोटे कैफे, आधुनिक इमारतें, और दूर से IT कंपनी की गगनचुंबी इमारतें दिखाई देने लगीं। हर मोड़ पर शहर की हलचल और जीवन की ऊर्जा उसे अंदर तक महसूस हो रही थी।


       कुछ ही दूरी पर साबरमती रिवरफ्रंट नजर आया। नदी का पानी हल्की धूप में सुनहरी चमक बिखेर रहा था। पैदल मार्ग पर लोग सुबह की सैर कर रहे थे, योगा कर रहे थे और कुछ बच्चे अपने माता-पिता के साथ नाच-गाने में मग्न थे। अवनी को लगा जैसे नदी के किनारे हर चीज़ अपनी कहानी कह रही हो। पुरानी हवेलियों की सिलुएट से लेकर आधुनिक बेंच और लाइटिंग तक।


       वो रिवरफ्रंट की ओर बढ़ी, और रास्ते में एक छोटा कैफे दिखाई दिया। लोग वहां बैठकर गर्म चाय का आनंद ले रहे थे, और हँसी-खुशी की आवाज़ वातावरण में मिठास घोल रही थी। अवनी ने एक गहरी सांस ली । यह शहर नया था, पर हर दृश्य, हर आवाज़ और हर शोर उसे अजीब ढंग से आकर्षित कर रहे थे।


       जैसे ही वह बस नदी के पास पहुँची, तो वहां  एक स्टेशन पर  ठहरी। पानी में सूरज की किरणें झिलमिला रही थीं, और दूर से आती ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी। अवनी  ने महसूस किया कि इस शहर में हर मोड़ पर नए अनुभव, नए लोग और नई कहानियाँ उसका इंतजार कर रहे थे।


       बस धीरे-धीरे विजय चौकड़ी की ओर  तेज गति से बढ़ी। अवनी  खिड़की से बाहर  की दुनिया को बड़ी ही जिज्ञासा से देख रही थी। उसे महसूस हुआ कि यह शहर ओर यहां के लोग चलते नहीं बल्कि भाग रहे थे, या फिर समय का पीछा कर रहे थे। सब कुछ बहुत ही तेज गति से चल रहा था, उसकी बस भी। उसने अपने हाथ पर बांधी घड़ी की ओर नजर की तो  9:15  मिनट वक्त  हुआ था। उसका इंटरव्यू 11 बजे था इस लिए इस भागते शहर के बीच वो अकेली निश्चिंत थी के वो आराम से पहुंच जाएगी।


                                       क्रमशः......................