एक बार की बात है—निलेश, जय और पार्थ देर रात निलेश के घर पर पार्टी कर रहे थे। पार्टी खत्म होने के बाद जय और पार्थ अपने-अपने घर के लिए निकल पड़े। जय तो अपने घर पहुँच गया, लेकिन पार्थ जब रास्ते से जा रहा था, उसे सड़क किनारे एक लड़की उल्टी पड़ी दिखाई दी।
पार्थ उसके पास गया तो समझ गया कि वह लड़की मर चुकी है। यह देखकर वह बहुत डर गया। वह पुलिस को फोन करने के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक किसी ने उस मरी हुई लड़की का पैर पकड़कर उसे जंगल के अंदर खींच लिया। यह देखकर पार्थ बुरी तरह घबरा गया, लेकिन हिम्मत करके वह भी जंगल में गया।
अंदर जाकर उसने देखा कि उस लड़की का सिर, पैर और शरीर अलग-अलग पड़े थे। तभी अचानक कोई उस लड़की की लाश पर पैर रखता है। पार्थ ने ऊपर देखा तो वह एक भयानक राक्षस था—जिसकी दो नाक, एक आँख और कई बड़े-बड़े दाँत थे। उसे देख पार्थ डर से जड़ हो गया।
अगले ही पल वह राक्षस उस मरी लड़की को कच्चा चबा गया। पार्थ जान बचाकर भागा और राक्षस उसके पीछे दौड़ पड़ा। पार्थ किसी तरह एक सुनसान घर में घुस गया जहाँ हनुमान जी की मूर्ति रखी थी। राक्षस उस घर में प्रवेश नहीं कर पाया। वह जमीन पर थूककर वहाँ से चला गया। पार्थ ने पूरी रात वहीं बिताई।
सुबह वह बाहर निकला, लेकिन राक्षस की थूक उसके शरीर पर लग चुकी थी। उसने यह सब जय और निलेश को बताया, लेकिन दोनों ने यह कहकर टाल दिया कि “तुम्हें रात में ज़्यादा चढ़ गई थी, इसलिए भ्रम हुआ होगा।”
कुछ दिनों बाद पार्थ को पता चला कि उसके पड़ोस में रहने वाली 22 साल की रिया कई दिनों से गायब है। पार्थ समझ गया कि जंगल वाली लाश उसी रिया की थी। वह यह बात रिया के माता-पिता को बताने जा ही रहा था कि अचानक उसके शरीर में झटके लगने लगे, उसकी आँखें लाल हो गईं और वह भी एक राक्षस में बदल चुका था।
राक्षस बने पार्थ ने अपने डेढ़ महीने के भांजे को गोद में उठाकर कहा—
“अरे बेटा, क्यों रो रहा है? मामा अब तुझे हमेशा के लिए सुला देगा…”
फिर उसने उस बच्चे को मिक्सर में डालकर मार डाला और उसका खून पीने लगा।
इसके बाद पार्थ ने एक जवान लड़की पर हमला कर उसे काटकर खा लिया। यह सब जय ने अपनी आँखों से देखा और निलेश को बताया। अब दोनों को यकीन हो गया कि पार्थ सचमुच किसी राक्षस के वश में है।
पार्थ तब तक और भी कई औरतों, मर्दों और बच्चों को मार चुका था। उसने मरे हुए लोगों के खून का एक “स्विमिंग पूल” बना दिया था जिसमें लाशें तैर रही थीं। उसे खासकर जवान लड़कियों को मारने में आनंद आ रहा था। वह उन्हें मदद के बहाने घर बुलाता और चाकू से गोद-गोदकर मार देता।
जय और निलेश को पता चला कि गिरनार पर्वत पर रहने वाले साधु ही इस समस्या का हल बता सकते हैं। दोनों तुरंत गिरनार के लिए निकले। जाते समय उन्होंने पार्थ को उसके घर में बंद कर दिया ताकि वह और किसी को नुकसान न पहुँचाए।
लेकिन जब वे वापस आए, पार्थ भाग चुका था। उसके घर के आसपास कई जवान लड़कियाँ मरी पड़ी थीं। साधु ने यह देखकर कहा कि यह बहुत बड़ा अनर्थ हो चुका है—यदि इसे रोका नहीं गया तो और बढ़ेगा।
साधुओं ने अपनी शक्ति से पता लगाया कि पार्थ जंगल में है। वे सब जंगल की ओर निकले। रास्ते में उन्हें 20 से अधिक लड़कियों की लाशें मिलीं और कई पुलिसकर्मी भी मारे पड़े थे। टूटे हुए पुलिस वाहन बता रहे थे कि पुलिस ने पार्थ को रोकने की कोशिश की लेकिन वह उन्हें भी मार चुका था।
जंगल में आगे पूरी पुलिस फोर्स मौजूद थी—सभी पार्थ को खोज रहे थे। जंगल के भीतर आखिरकार पार्थ राक्षस के रूप में दिखाई दिया। साधु उसके करीब गए, लेकिन पार्थ ने उन पर हमला कर दिया। किसी तरह एक साधु ने एक अलौकिक फूल पार्थ के सिर पर रख दिया, जिससे पार्थ सामान्य हो गया—लेकिन इस प्रक्रिया में वह साधु मारा गया।
पार्थ ठीक तो हो गया…
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती—क्योंकि असली “भ्रम राक्षस” अभी भी बाहर खुला घूम रहा था।
To be continued…