एपिसोड – पवित्र बहू
रात गहरा चुकी थी। चाँदनी खिड़की से भीतर गिर रही थी, लेकिन कमरे के माहौल में एक अनकही बेचैनी थी।
चित्रा की नींद गहरी थी, चेहरे पर मासूमियत… पर दिव्यम पूरी रात सो नहीं पाया।
वह शांत बैठा रहा।
न उसने चित्रा का हाथ छुआ,
न उसे अपना चेहरा दिखाया,
न कोई नई दुल्हन जैसा प्यार का इजहार किया।
सुबह होते ही घरवालों ने जब दरवाज़ा खटखटाया, सब मुस्कुराते हुए खुशियों की उम्मीद में अंदर आए।
पर दिव्यम की आँखों में जो था… वह किसी ने नहीं देखा था।
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❗ आखिर दिव्यम ने चित्रा को छुआ क्यों नहीं?
➡ क्योंकि दिव्यम अपने भीतर एक ऐसा राज़ दबाए बैठा था,
जो उसकी ज़िंदगी बदल चुका था।
एक ऐसा सच… जो उसके दिल पर भारी था।
उसने रातभर चित्रा से दूरी इसलिए बनाए रखी,
क्योंकि वह उसके साथ अन्याय नहीं करना चाहता था।
और अब…
सुबह होते ही दिव्यम सच बताने का फैसला कर चुका था।
घर वाले खुशियाँ मना रहे थे…
पर दिव्यम का एक कदम —
पूरे परिवार की दुनिया बदलने वाला था।
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🌟 आगे क्या होगा?
क्या दिव्यम वह राज़ बताएगा?
क्या चित्रा का संसार टूट जाएगा?
या कहानी कोई नया मोड़ लेगी?
दो दिल…
दो टूटे हुए रिश्ते…
दो अधूरी जिंदगियाँ…
और एक ऐसा बंधन… जिसमें साथ तो है, पर स्पर्श नहीं।
▲ चित्रा का अतीत
चित्रा को उसके पहले पति ने छोड़ दिया।
लेकिन उसने दर्द में भी एक संकल्प लिया—
“मेरे लिए एक ही पति है — चाहे वह मेरे साथ न रहा हो।”
नई शादी उसके लिए सिर्फ जिम्मेदारी थी, प्रेम नहीं।
वह दिव्यम का सम्मान करेगी, लेकिन उसके पास कभी नहीं आएगी।
▲ दिव्यम का अतीत
दिव्यम की पत्नी अंशिका उससे प्रेम विवाह कर के आई थी।
दिव्यम ने उसे दिल से चाहा था।
पर किस्मत ने उसे छीन लिया।
पीछे रह गया—
एक छोटा सा बच्चा… और ढेर सारा खालीपन।
दिव्यम जानता था कि अंशिका की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता।
उसे मजबूरी में यह दूसरी शादी करनी पड़ी…
पर उसका दिल आज भी पहली पत्नी की याद में बंधा था।
🌙 सुहागरात वाली रात
दोनों एक ही कमरे में थे…
पर उनके बीच दो अतीत, दो चोटें, दो कसमें खड़ी थीं।
चित्रा सो गई—
चेहरे पर शांति, भीतर तूफ़ान।
दिव्यम जागता रहा—
चित्रा को छुआ तक नहीं,
क्योंकि वह धोखा नहीं देना चाहता था—
न अपनी पहली पत्नी को,
न उस लड़की को, जिसने पहले से ही स्पर्श न करने की प्रतिज्ञा ली थी।
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💔 दोनों का वचन
📌 चित्रा —
“मैं किसी और को पति मान ही नहीं सकती।”
📌 दिव्यम —
“मेरी पत्नी अंशिका के बाद मेरा दिल किसी को स्वीकार नहीं कर पाएगा।”
दोनों ने यह शादी निभाने का निर्णय तो किया,
लेकिन पति-पत्नी वाला रिश्ता नहीं।
सिर्फ जिम्मेदारी।
सिर्फ सम्मान।
सिर्फ पवित्रता।
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⭐ अब इस कहानी में सच्ची खूबसूरती यहाँ से शुरू होती है—
दो टूटे हुए लोग…
एक साथ रहकर भी दूर…
सिर्फ एक बच्चे को देखकर मुस्कुराते…
धीरे-धीरे एक-दूसरे के दर्द को समझते…
और बिना प्यार छुए…
दिल के स्तर पर एक रिश्ता बनता है
जो शादी का नहीं… इंसानियत का है।
दो दिल…
दो टूटे हुए रिश्ते…
दो अधूरी जिंदगियाँ…
और एक ऐसा बंधन… जिसमें साथ तो है, पर स्पर्श नहीं।
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▲ चित्रा का अतीत
चित्रा को उसके पहले पति ने बिना किसी वजह के छोड़ दिया था।
कानून ने उसे आज़ादी दे दी थी…
पर दिल ने नहीं।
उस रात जब वह मायके लौटी, उसने रोते-रोते माँ की गोद में सिर रखकर एक संकल्प लिया—
“मेरे लिए एक ही पति है — चाहे वह मेरे साथ न रहा हो।
मैं किसी और को अपने करीब आने नहीं दूँगी।”
नई शादी उसके लिए प्रेम नहीं…
एक जिम्मेदारी थी, बस एक समझौता।
वह दिव्यम का मान रखेगी,
पर उसके एक कदम जितना भी पास नहीं जाएगी।
🌟 आगे क्या होगा?