नीला ने धीरे-धीरे सुरेश की तस्वीर को अपने हाथों में थामते हुए आंसू पोंछे। उसकी आंखों में यादों का तूफ़ान उमड़ रहा था। सफेद साड़ी उसकी शारीरिक भव्यता के साथ-साथ उसकी पीड़ा को और गहरा दिखा रही थी। रेणुका उसकी भतीजी, बैठी हुई, नीरवता से उसकी हर हलचल देख रही थी।
नीला अपनी भतीजी रेणुका की आँखों में देखते हुए धीरे-धीरे बोली, रेणुका, सुरेश मरे नहीं हैं। भले ही दुनिया कहे कि वह हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके प्रेम की अमरता, उनका सच्चा समर्पण… यह हमेशा जीवित रहेगा। मेरे लिए वह हमेशा ईमानदार और सच्चे रहे। भले वह डकैत थे, उन्होंने अपने हर कदम, हर लड़ाई… सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए की।
“अगर वह चाहते तो किसी और स्त्री के लिए भी अपना दिल खोल सकते थे। उनके पास अवसरों की कमी नहीं थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने हमेशा मेरे लिए, मेरे साथ अपने प्रेम और सम्मान को बनाए रखा। यही उनकी सबसे बड़ी ताकत और उनकी सच्चाई थी।”
रेणुका ने धीरे से सिर हिलाते हुए कहा, “हां बुआ जी, आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं। आज के जमाने में लोग तो दो-चार बार अपने रिश्ते बदल देते हैं, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड… लेकिन सुरेश जी… इतने बड़े डकैत होकर भी, वह आपके लिए ईमानदारी से, पूरी निष्ठा से रिश्ता निभा रहे थे। सच में, अगर वह चाहते तो उनके पास बहुत सारे विकल्प थे। वे किसी को भी चुन सकते थे। लेकिन उन्होंने कभी अपनी मोहब्बत और समर्पण को किसी और के लिए नहीं गिरने दिया। उन्होंने हमेशा और हमेशा सिर्फ आपके लिए लड़ाई की, आपकी सुरक्षा की और आपके प्यार को अपने जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता बनाया।”
नीला ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा, और आंसू पोंछते हुए बोली, “सही कहा रेणुका… यही कारण है कि मैं उनकी याद में हर दिन अपने दिल में उन्हें जीवित महसूस करती हूँ। उनके प्रेम की शक्ति, उनकी निष्ठा और उनका समर्पण… यही मुझे जीने की वजह देता है। डकैत के शरीर में भी उन्होंने एक देवता की तरह मुझे स्नेह और सम्मान दिया। यही असली प्रेम है, भतीजी… यही असली समर्पण है।”
रेणुका ने उस पल गहरी सांस ली और अपने दिल में यह बात बैठा ली कि सच्चा प्रेम केवल शब्दों या दिखावे का नहीं, बल्कि हर कठिनाई और हर जोखिम में निभाए जाने वाला
वचन है।
रेणुका उत्सुकता से आगे झुकते हुए बोली,
“फिर… प्रेम कहानी आगे बताइए बुआ जी। कैसे शुरुआत हुई?”
नीला ने धीरे से आंसू पोंछे, आंखें आसमान की ओर उठाईं… जैसे पुरानी यादें बादलों में छिपी हों और वह उन्हें वापस छूने जा रही हो।
धीमी, टूटी-सी आवाज़ में नीला ने कहना शुरू किया—
“भतीजी… जब मैं ब्याहकर इस घर आई थी न, तब मुश्किल से एक महीना हुआ था। तुम्हारे फूफा जी… सुरेश… उस समय बिल्कुल अलग इंसान थे। शांत, गंभीर और इतने सुलझे हुए कि पूरा गांव उनकी इज्जत करता था।”
नीला के चेहरे पर हल्की मुस्कान और अनंत दर्द एक साथ झलक गए।
“जानती हो? गांव में सबसे बड़ी कोठी तुम्हारे फूफा जी की थी। इतनी बड़ी… कि लोग कहते थे इसमें 52 दरवाजे हैं… 52 गेट। हर गेट की अपनी कहानी थी। और हर दरवाज़े पर एक किस्सा, एक रहस्य… एक दास्तान।”
रेणुका चौंककर बोली,
“52 दरवाजे! सच में बुआ जी?”
नीला ने हाँ में सिर हिलाया।
“हां भतीजी, ऐसी कोठी पूरे जिले में कहीं नहीं थी। ऊँची-ऊँची दीवारें, लंबा बरामदा, और अंदर से इतना बड़ा आंगन कि घोड़े तक दौड़ जाएं। उस कोठी में गांव के बड़े-बड़े फैसले हुआ करते थे। और तुम्हारे फूफा जी… इतने पढ़े-लिखे कि पूरे गांव में कोई उनकी बराबरी नहीं करता था। गांव के सारे बच्चे उनकी ट्यूशन पढ़ने आते थे।”
नीला का स्वर नरम पड़ गया—
“मैं भी तब नई-नई दुल्हन थी। सुबह घूंघट में रहती, पर पर्दे के पीछे से उन्हें बच्चों को पढ़ाते देखती रहती। वो कितने प्यार से पढ़ाते थे… कितनी इज्जत थी सबकी नजरों में उनकी।”
उसकी पलकों पर फिर नमी तैर आई—
“और उसी समय… उसी शांत दिनों में… हमारे प्रेम की शुरुआत हुई थी, भतीजी। मैं पहली बार समझी कि सुरेश सिर्फ एक शिक्षक नहीं थे… वो एक सच्चे इंसान थे। बड़े दिल वाले। सबके लिए खड़े रहने वाले। और मेरे लिए…”
वह तस्वीर को अपने दिल से लगाती है—
“मेरे लिए तो मेरी जिंदगी का सबसे पवित्र रिश्ता।”
रेणुका ने धीरे से पूछा,
“फिर बुआ जी… कैसे एक इतना शिक्षित, शांत इंसान… डकैत बन गया? आखिर ऐसा क्या हुआ?”
नीला ने गहरी सांस ली।
उसकी आँखों में तूफ़ान फिर लौट आया।
**“यही तो… यहीं से असली कहानी शुरू होती है भतीजी।
जहाँ प्रेम था…
शांति थी…
इज्जत थी…
वहीं से उठी एक आंधी… जिसने सब कुछ बदल दि
या।
सुरेश भी… और मेरी पूरी जिंदगी भी…”**