Kala Ghoda - 2 in Hindi Adventure Stories by Raj Phulware books and stories PDF | काला घोड़ा - रहस्य का दरवाज़ा - भाग 2

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काला घोड़ा - रहस्य का दरवाज़ा - भाग 2


काला घोड़ा — रहस्य का दरवाज़ा (भाग 2)

लेखक – राज फुलवरे

अंदर का रहस्य

लिली जैसे ही नीली रोशनी वाले प्राचीन दरवाज़े के पास पहुँची, उसके भीतर एक हल्का कंपन दौड़ गया।
दरवाज़ा खुद-ब-खुद धीमी गुर्राहट के साथ खुला—
और भीतर बैठा हुआ एक विशाल, चमकती शल्कों वाला साँप प्रकट हुआ।

उसकी आँखें अंगारों की तरह चमक उठीं।
उसकी आवाज़ गहरी, भारी, और कहीं दूर गूँजती हुई जैसी थी—

“बहुत देर से तुम्हारा इंतज़ार था…
आओ, पास आओ… मत डरना।
मैं तुम्हारे अतीत का रक्षक हूँ।
यह मणि छू लो…
तुम्हें तुम्हारा पिछला जन्म याद आ जाएगा…”

लिली का गला सूख गया, दिल तेजी से धड़क रहा था।
वह काँपते हाथ से आगे बढ़ी और मणि को छू लिया…

जैसे ही उसकी उंगलियाँ मणि से टकराईं—
एक चकाचौंध भरी सफ़ेद रोशनी फट पड़ी।
दुनिया घूमने लगी… और उसका मन किसी और समय में उतर गया।


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रानी फ्रेंसा का जन्म

घोड़ों की टापें, शंखों की आवाज़ और लोगों की जयकार—
फिर एक महल दिखाई दिया।
शिशु का रोना गूँज रहा था।

वहीं खड़े थे राजा वज्रसेन—व्याकुल लेकिन गर्व से चमकती आँखें।
उनके बगल में रानी विलसिता, जिनकी बाहों में नन्ही बच्ची थी।

महागुरु ने हाथ उठाकर घोषणा की—

“यह बालिका साधारण नहीं…
इसके भीतर दिव्यशक्ति है।
यह शक्ति रक्षा भी बन सकती है… और विनाश भी।
इसे दुनिया से थोड़ा दूर रखना होगा।
एक श्राप इसके जीवन को छूने आ रहा है।”

रानी विलसिता घबरा गईं—

“गुरुदेव! मेरी बच्ची को कौन-सा श्राप?”

महागुरु ने आँखें बंद कर धीमी आवाज़ में कहा—

“समय आने पर प्रकट होगा…
पर याद रखना—
यह बच्ची इस राज्य का भाग्य भी है… और भविष्य का तूफ़ान भी।”

लिली—या कहें फ्रेंसा—की यादें और गहरी होने लगीं…


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फ्रेंसा का बढ़ना

वह बड़ी हुई—
और उसकी शक्तियाँ पूरे राज्य को चकित करने लगीं।

कभी वह हवा रोक देती, कभी किसी घायल सैनिक को छूते ही ठीक कर देती।
महल में हमेशा पहरा रहता था।

उसके पास अक्सर खड़ा रहता उसका सुरक्षा-रक्षक अरवंग—
लंबा, दृढ़, और फ्रेंसा के प्रति अटूट निष्ठा रखने वाला योद्धा।

अरवंग अक्सर उसे समझाता—

“राजकुमारी, आप शक्ति दिखाती नहीं…
छुपाती हैं।
दुनिया शक्ति की पूजा नहीं—उससे डरती है।”

फ्रेंसा मुस्कुराते हुए जवाब देती—

“अगर मेरी शक्तियाँ लोगों की रक्षा कर सकती हैं…
तो उन्हें छुपाना कैसा?”

अरवंग बस आह भरकर सर झुका देता।


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युद्ध और श्राप

फ्रेंसा के चमत्कारों की खबर दूर-दूर तक फैल गई।
और इसी खबर ने पहुँच बनाई क्रूर राजा कुंडापुरा तक।

वह अपनी सेना लेकर फ्रेंसा को पकड़ने आया।
उसकी लाल आँखों में सिर्फ एक ही जुनून था—

“मुझे उसकी शक्ति चाहिए!
वह लड़की मेरे राज्य की जादुई ढाल बनेगी!”

लेकिन युद्ध में—
फ्रेंसा ने प्रचंड शक्ति से कुंडापुरा को हरा कर भगा दिया।

पर असली विनाश अभी बाकी था…

एक दिन घने जंगल में शिकार करते हुए
फ्रेंसा ने एक बाण चलाया—
जो गलती से एक वृद्ध ऋषि के सीने में जा लगा।

फ्रेंसा दहशत में दौड़कर उनके पास पहुँची—

“महाराज! क्षमा करें!
मुझसे गलती हो गई… मैं आपको चोट पहुँचाना नहीं चाहती थी…”

ऋषि की साँसें टूट रही थीं।
उन्होंने काँपते हाथ से फ्रेंसा की ओर इशारा किया—

“फ्रेंसा… गलती चाहे अनजाने में हो…
पर कर्म अपना फल देता ही है…”

फिर उन्होंने भारी आवाज़ में श्राप दिया—

“जैसे मेरा प्राण निकला…
वैसे ही तुम्हारा भी निकलेगा।”

फ्रेंसा फूट-फूटकर रो पड़ी—

“नहीं! कृपया ऐसा मत कहिए!
मैं आपके चरणों में सिर रखती हूँ… मुझे क्षमा कर दीजिए…”

ऋषि ने अंतिम साँस में धीमी आवाज़ में कहा—

“श्राप को मिटाया नहीं जा सकता…
पर मार्ग बताया जा सकता है…”

फ्रेंसा ने आंसुओं में डूबकर पूछा—

“बताइए ऋषि-वर… मैं क्या करूँ?”

ऋषि ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—

“तुम्हारा दूसरा जन्म होगा…
और उस जन्म में तुम्हारा नाम…
लिली होगा…”

उनकी आँखें बंद हो गईं।
और उसी क्षण फ्रेंसा की दुनिया अंधेरे में विलीन हो गई।


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लिली की वापसी

लिली की सांसें तेज हो गईं।
उसने मणि से हाथ खींचा—
और आँखें खोलते ही खुद को उसी रहस्यमय दरवाज़े के बाहर खड़ा पाया।

साँप की गहरी आवाज़ फिर गूँजी—

“अब तुम जान चुकी हो कि तुम कौन हो…
और क्यों जन्मी हो…”

लिली काँपते हुए फुसफुसाई—

“तो… यह सब सच था…
मैं… रानी फ्रेंसा हूँ?”

साँप की आँखें चमकीं—

“अब तुम्हारी असली यात्रा शुरू होती है, लिली…”