काला घोड़ा रहस्य का दरवाज़ा भाग 1
अध्याय 1 : दूसरा जन्म
ठंडी हवा गाँव के बाँस के झुरमुटों को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी। रात का सन्नाटा इतना गहरा था कि जैसे धरती खुद अपनी साँस रोक कर खड़ी हो। दूर कहीं किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आई और फिर अचानक — ठक… ठक… ठक… घोड़े की टापों जैसी आवाज़ गूँजने लगी।
गाँव वाले अपनी झोपड़ियों में दुबके हुए थे। कोई दरवाज़ा खोलने की हिम्मत नहीं करता था। सभी को मालूम था कि यह आवाज़ उसी काले घोड़े के स्मारक की तरफ़ से आती है, जहाँ दशकों से कोई भी जाने की हिम्मत नहीं करता था।
लेकिन इस जन्म में जिसे सब रानी लिली कहते थे, उसके मन में एक अजीब बेचैनी थी। उसे लगता था कि यह आवाज़ सिर्फ़ उसे ही बुला रही है — जैसे कोई पुराना परिचित उसे पुकार रहा हो।
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लिली का घर — रात का वातावरण
लिली अपनी छोटी-सी खिड़की पर खड़ी थी। चाँद बादलों में छिपता-उभरता, मानो किसी रहस्य की पहरेदारी कर रहा हो। हवा में सड़े पत्तों और नम मिट्टी की गंध थी।
लिली (अपने आप से) — "ये आवाज़ हर रात क्यों आती है? जैसे कोई रो रहा हो… या मुझे बुला रहा हो। क्या यह मेरे पिछले जन्म से जुड़ा हुआ कुछ है?"
उसी समय बाहर से आवाज़ और तेज हुई — ठक… ठक… ठक…
लिली के रोंगटे खड़े हो गए। लेकिन डर के नीचे एक अजीब-सी खिंचाव की भावना थी। जैसे उसे जाना ही पड़े।
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गाँव का माहौल — लोग डर में सिकुड़े हुए
पास ही दो बुजुर्ग गाँव वाले बात कर रहे थे:
बुजुर्ग 1: "फिर शुरू हो गई ये आवाज़… लगता है आज रात काला घोड़ा ज्यादा बेचैन है।"
बुजुर्ग 2: "कहते हैं उसकी आत्मा इसी गाँव में भटकती है। जो भी उसे देखने जाता है… लौटकर नहीं आता।"
बुजुर्ग 1: "औरतें-बच्चे तो सो भी नहीं पाते अब। भगवान बचाए!"
उनकी बातें लिली ने सुन लीं, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि उसके कदम और तेज होने लगे।
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लिली की हिम्मत — अंधेरी राह का सफ़र
लिली घर से बाहर निकली। लंबा नीला दुपट्टा उसके पीछे उड़ रहा था। ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराती, लेकिन वह बिना रुके चलती जा रही थी। रास्ते में पड़े सूखे पत्ते उसके पैरों के नीचे कर्र-कर्र की आवाज़ करते।
जैसे ही वह गाँव के पिछले हिस्से की ओर पहुँची, एकदम से हवा का बहाव बदल गया। ऐसा लगा मानो कोई अदृश्य शक्ति उसकी तरफ़ बढ़ रही हो।
दूर स्मारक के पास काला धुआँ सा उठ रहा था। और तभी —
टापों की आवाज़ एकदम बंद हो गई।
लिली रुक गई। दिल धड़कने लगा।
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काले घोड़े का स्मारक — जीवित होता अश्व
वह धीरे-धीरे करीब गई। सामने पत्थर का बड़ा, काला घोड़ा खड़ा था। उसकी आँखें लाल रंग में चमक रही थीं। जैसे उस पत्थर में जान हो।
अचानक घोड़े की पत्थर वाली गर्दन हिली —
धरर्र…
पत्थर के टुकड़े नीचे गिरने लगे और अगले ही पल वह घोड़ा पूरी तरह जीवित खड़ा था। उसकी साँसें तेज, आँखें खून जैसी लाल, और शरीर काले धुएँ की तरह चमक रहा था।
लिली डर के मारे जमीन से चिपक गई, लेकिन घोड़ा शांत स्वर में बोला:
काला घोड़ा: "मेरी मालिक… रानी माँ… कई जन्मों बाद आपने मुझे पहचाना।"
लिली के पैरों से जैसे जान निकल गई।
लिली: "तुम… तुम कौन हो? और मुझे रानी माँ क्यों कह रहे हो? मेरा नाम तो लिली है!"
घोड़े ने धीरे से सिर झुकाया जैसे किसी महारानी को प्रणाम करता हो।
काला घोड़ा: "आप इस जन्म में लिली हैं… पर पिछले जन्म में आप रानी फ्रेंसा थीं। मेरी स्वामिनी। मेरी रक्षक। और मेरे मरने के बाद आप ही ने यह स्मारक बनवाया था।"
लिली की साँसे तेज हो गईं। उसके आँखों के सामने धुँधले-धुँधले दृश्य उभरने लगे — जैसे पिछले जन्म के टुकड़े।
घोड़ा आगे बोला:
काला घोड़ा: "मेरे स्मारक के नीचे जो दरवाज़ा दिखता है… वह साधारण दरवाज़ा नहीं है। वह आपके जीवन के रहस्यों का प्रवेश द्वार है। उसमें कदम रखो, रानी… आप अपने बारे में सब जान जाओगी।"
लिली काँपती हुई बोली:
लिली: "और अगर मैं उस दरवाज़े के अंदर गई… तो क्या वापस आ पाऊँगी?"
घोड़े की आँखों में अजीब-सी चमक आई।
काला घोड़ा: "सिर्फ़ वही लौटते हैं… जो सच स्वीकार कर पाते हैं।"
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अध्याय 1 : अतिरिक्त विस्तार — और गहराई, और रहस्य
लिली अभी भी काले घोड़े के सामने खड़ी थी। डर और हैरानी उसके चेहरे पर साफ़ दिखती थी। लेकिन अब वातावरण और भी भारी हो चुका था। हवा तेज़ बहने लगी थी, जैसे किसी अदृश्य शक्ति की उपस्थिति बढ़ गई हो।
स्मारक के चारों ओर प्राचीन पेड़ थे—उनकी टेढ़ी-मेढ़ी शाखाएँ ऐसे लग रही थीं जैसे किसी रहस्यमयी दुनिया के दरवाज़े की रखवाली कर रही हों। चाँद बादलों के पीछे से निकलकर पत्थर की मूर्ति पर हल्का-सा नीला उजाला डाल रहा था।
पास ही एक और पात्र — बाबा जयराम — पेड़ की आड़ में छिपकर यह सब देख रहा था। वह गाँव का बूढ़ा तांत्रिक था, जिसे हमेशा लोग पागल समझते थे। पर असल में वही अकेला था जिसे इस स्मारक का रहस्य थोड़ा-बहुत पता था।
बाबा जयराम (अपने आप से फुसफुसाते हुए):
"हाय दैव! यह तो वही क्षण है… वही क्षण जिसका इंतज़ार सदियों से था… लिली रानी फिर से उसे पहचान चुकी है… अब गाँव का भाग्य बदलेगा या बिगड़ेगा, यह तो समय ही बताएगा।"
बाबा आगे बढ़ना चाहता था, लेकिन उसके पैर डर से कांप रहे थे।
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काला घोड़ा — और गहरी आवाज़
घोड़ा शांत खड़ा था लेकिन उसकी आँखों में अजीब-सी बेचैनी थी। उसने लिली को ध्यान से देखते हुए कहा:
काला घोड़ा: "रानी माँ… आपके आने से मेरी आत्मा स्थिर हुई है। पर समय कम है। जो अंधेरा जाग रहा है, उसे केवल आप ही रोक सकती हैं।"
लिली ने घोड़े के चेहरे पर हाथ रखा। पहली बार उसे एहसास हुआ कि घोड़े का शरीर ठंडा नहीं था… बल्कि गर्म था, मानो कोई जीवित प्राणी हो।
लिली: "अंधेरा? कैसा अंधेरा? और मैं… मैं कैसे रोक सकती हूँ? मैं तो सिर्फ एक साधारण लड़की हूँ!"
काला घोड़ा (गहरी सांस लेते हुए): "आप अभी साधारण हैं… लेकिन पिछले जन्म में आप रानी फ्रेंसा थीं — जादुई राज्य की अंतिम रानी। आपके पास शक्तियाँ थीं… ऐसी शक्तियाँ जो किसी भी जीवित आत्मा के पास नहीं थीं।"
लिली चौंक गई:
लिली: "अगर मैं सच में रानी फ्रेंसा थी… तो तुम कौन थे?"
घोड़ा थोड़ी देर चुप रहा। उसकी आँखों में दुख तैर आया।
काला घोड़ा: "मैं… आपका रक्षक था। आपका वफादार। मेरा नाम अरवंग था। आप मुझे अरव कहते थे।"
लिली: "अरव… (धीरे से नाम दोहराते हुए) क्या हम… एक-दूसरे को जानते थे?"
घोड़े ने सिर झुका लिया:
काला घोड़ा / अरव: "इतना कि मैं आपके लिए अपनी जान भी दे सकता था… और मैंने दी भी।"
लिली ने सांस रोक ली। उसके भीतर जैसे कोई भूल चुका रिश्ता जाग रहा था।
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गाँव की ओर — नए पात्रों का प्रवेश
उसी समय किसी ने लिली का नाम पुकारा:
राघव (लिली का बचपन का दोस्त): "लिली! तुम यहाँ क्या कर रही हो? रात के इस समय? पूरे गाँव में तुम्हें ढूँढ रहा था! वापस चलो!"
राघव हाथ में एक पुरानी लालटेन लिए भागता हुआ आया। वह लिली का बहुत करीबी था और उसके मन में लिली के लिए गहरी भावनाएँ थीं।
घोड़े को देखकर राघव के पैरों तले जमीन खिसक गई।
राघव: "लिली… ये… ये तो जीवित घोड़ा है! लेकिन ये तो पत्थर की मूर्ति था! ये… ये कैसे संभव है?"
अरव ने अपनी लाल आँखें राघव पर टिकाईं।
अरव (काला घोड़ा): "पीछे हटो मानव। रानी माँ को रोकने की कोशिश मत करना। उनका मार्ग कोई नहीं रोक सकता।"
राघव डरते हुए पीछे हटा लेकिन लिली की तरफ़ देखते हुए बोला:
राघव: "लिली… मुझे नहीं पता ये क्या है। पर तुम अकेली मत जाओ। अगर कोई खतरा है तो मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
लिली ने धीरे से सिर हिलाया:
लिली: "राघव… ये सिर्फ मेरा रास्ता है। तुम समझ नहीं पाओगे। कृपया दूर रहो।"
राघव का चेहरा गिर पड़ा। वह कुछ कहना चाहता था लेकिन शब्द नहीं मिले।
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दरवाज़े का प्रकट होना
अचानक स्मारक के नीचे की मिट्टी कांपने लगी। घोड़े ने अपना खुर जमीन पर मारा और पत्थर की पट्टियाँ सरकने लगीं। मिट्टी हटने लगी।
धीरे-धीरे जमीन के भीतर से एक नीली रौशनी वाला गोलाकार दरवाज़ा उभरने लगा — जैसे किसी दूसरी दुनिया का द्वार हो।
लिली (डर और उत्सुकता से): "यह… यह कैसे खुल रहा है?"
अरव: "यह दरवाज़ा सिर्फ आपकी उपस्थिति से जागता है, रानी माँ। आपकी आत्मा की पहचान इसे खोलती है।"
बाबा जयराम अब और करीब आ चुका था। उसने थरथराती आवाज़ में कहा:
बाबा जयराम: "यह मार्ग देवताओं का है! कई सदियों से बंद था! कोई नश्वर इसे नहीं खोल सकता… सिवाय आपके, रानी फ्रेंसा!"
लिली ठिठक गई।
लिली: "बाबा… आपको मेरे बारे में कैसे पता?"
बाबा जयराम (धीमे से): "मैंने तुम्हें बचपन से देखा है, बेटी। तुम्हारी आँखों में वही ज्योति है… वही शक्ति… जो रानी फ्रेंसा की थी। ये गाँव तुमसे बहुत कुछ छुपा रहा है। लेकिन अब सच खुलने का समय आ गया है।"
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दरवाज़े के पास खड़ी लिली
नीली रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। हवा की आवाज़ बदल गई—अब उसमें किसी दूसरे लोक के मंत्रों जैसे हल्के कंपन सुनाई दे रहे थे।
अरव (धीमे पर दृढ़ स्वर में): "रानी… दरवाज़े को हाथ लगाइए। आपके पिछले जन्म की हर याद… हर राज़… आपके सामने खुल जाएगा।"
लिली ने काँपते हाथ आगे बढ़ाए। राघव दूर से चिल्लाया:
राघव: "लिली मत करो! ये जगह सुरक्षित नहीं है!"
अरव (गुस्से में लाल आँखें चमकाते हुए): "चुप! यह रानी का निर्णय है।"
धरती हिलने लगी। हवा तेज़ हो गई। नीली रोशनी और चमकने लगी।
लिली ने आँखें बंद कीं… और दरवाज़ा छू लिया।
नीली रोशनी फट पड़ी। सब कुछ सफेद हो गया.