veeraamani in Hindi Mythological Stories by RTJD books and stories PDF | वीरामणि

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वीरामणि

चैप्टर 1: मिशन मालवा 

7 सितंबर 2006 
अमरती, मालवा 

अगहन का मास का आरंभ हों चुका था, आसमान काला पड़ गया, मानो रात समय से पहले ही हो गई हो। नमी से भरे घने बादल शहर के ऊपर लटके हुए थे। मंद- मंद बहती हवा में सतह के नीचे छिपे रहस्य उभर गए। अमरती भी मालवा की उसी तरह की रहस्य से भरी जगह थी, चारों तरफ ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरी और इन पहाड़ियों के बीच बसे इस गांव के आधे लोग हथियार बनाने का काम करते हैं। और बाकी ले के लोग बच्चे, बूढ़े और महिलाएं इन हथियारों को पुलिस से छुपाने का काम करते हैं। अमरती की एक पहाड़ी पर छुपकर बैठा एक अंडरकवर एन.आई.ए एजेंट, दूरबीन की सहायता से इस जगह पर हों रही गतिविधियों की निगरानी कर रहा था।

( वॉकी टॉकी पर अपने एक सहयोगी एजेंट से बात करते हुऐ )

एजेंट हार्ली: जेडी, क्या सिचुएशन हैं वहां पर? 
एजेंट जेडी: यकीन से तो नहीं कह सकता, लेकिन कुछ तो गड़बड़ हैं यहां। हम पिछले 7 साल से इस जगह पर निगरानी बनाएं हुए.. पहले तो ये लोग केवल रात में ही काम करते थे, लेकिन इन दिनों ये दिन में भी हथियार बनाने लगे हैं। 
(दूरबीन से देखते हुए)
एजेंट हार्ली: हों सकता है स्मगलिंग की डिमांड बढ़ गई हो? 
एजेंट जेडी: नहीं..! कुछ और ही बात हैं। ऐसा लग रहा हैं ये लोग बंदूक -पिस्टल के आलावा भी कुछ बनाने लग रहें हैं। 
एजेंट हार्ली: इसका क्या मतलब हुआ़? 
एजेंट जेडी: पता नहीं.. लेकिन मैं जल्द हीं पता लगा लूंगा।
एजेंट हार्ली: अच्छा जेडी, मुझे कुछ तुम्हें दिखाना है। 
एजेंट जेडी: ठीक है फिर शाम को स्टोर पर मिलते हैं। 

 वॉकी टॉकी का संपर्क टूट जाता हैं, एजेंट जेडी अपना सारा सामान उस जगह से समेटकर एक काले बस्ते में भर लेता हैं और पहाड़ी से नीचे उतरकर, नीचे खड़ी मोटर साइकिल चालू कर शहर की तरफ़ रवाना हों जाता हैं।

शेरलॉक बक्शी बुक स्टोर, विजयनगर, इन्दौर 

शाम का समय…
एजेंट जेडी स्टोर के काउंटर पर बैठा, अपने चस्मे की तिरछी नज़र से एक क़िताब में कुछ नए पन्ने चिपका रहा था। क़िताब काली कत्थई रंग की थी जिसपर सफ़ेद रंग में “ द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रुड ” छपा हुआ था। स्टोर के एक कोने में दो बुजुर्ग बैठे न्यूजपेपर के पन्ने पलट रहे हैं। एक लड़का हाथ में एक किताब लेकर काउंटर पर आता हैं। 
“ द अल्केमिस्ट.. वाह! काफ़ी अच्छी पसंद हैं तुम्हारी? ” एजेंट जेडी उस लड़के से कहता हैं। 
“ इसकी किम्मत कितनी हैं? “ लड़का पूछता है।
एजेंट जेडी क़िताब को पलटकर देखता है “ 60 रुपए ”।
“ मेरे पास फिलहल तो 40 रूपए ही हैं” संकोच करते हुए कहता है। 
“ कोई बात नहीं बेटा, अगली बार दे जाना..!” एजेंट जेडी क़िताब देते हुए। 
तभी वहां पर एजेंट हार्ली का प्रवेश होता हैं वो काउंटर पर आकर एक मैगजीन उठाकर पढ़ने लग जाता हैं। दोनों की इशारे में ही बात हों जाती हैं। फिर थोड़ी देर बाद एजेंट जेडी स्टोर के अंदर वाले रूम में जाता हैं और वहां एक अलमारी के सामने जाकर रुक जाता हैं। अपने पॉकेट से एक चाबी निकालकर ड्रॉर खोलता है और उसमें रखी एक क़िताब को अलमारी में धकेल देता हैं। अलमारी वहां से हट जाती हैं और उसकी जगह पर अंदर जानें का एक रास्ता खुल जाता हैं। दरअसल यह चैंबर एजेंट जेडी और एजेंट हार्ली का खुफिया रूम हैं जहां पर ये अपने मिशन से जुड़ी खबरों पर चर्चा करते हैं। रूम की दीवारें मालवा की तमाम असाधारण घटनाओं की फोटोग्राफ और अखबारों के टुकड़ों से सजी हुई थी। कमरे में एक दो कुर्सियां एक टेबल और एक फैक्स मशीन भी रखी हुई थी, जिससे ये अपने मिशन की रिपोर्ट एन.आई.ए मुख्यालय तक पहुंचाते है। चैंबर का दरवाज़ा बंद करते हुए एजेंट हार्ली भी कमरे में प्रवेश करता हैं। एजेंट जेडी टेबल के पीछे जाकर खड़ा हों जाता हैं। 

“अब बताओ क्या हाथ लगा है तुम्हारे?” एजेंट जेडी पूछता है। 
एजेंट हार्ली टेबल पर एक रिपोर्ट खसकाते हुए “ तुम्हें ये 12 अक्टूबर 1999 की ख़बर याद है?” 
एजेंट जेडी रिपोर्ट उठाकर पढ़ता हैं “ हॉ…याद हैं, न्यूज़पेपर में पढ़ा था। देवपुर में एक पुजारी ने दांवा किया था, की भैरवनाथ मन्दिर वाली जगह पर कोई पुराना खज़ाना दबा हुआ़ हैं। फिर वहां पर खुदाई भी हुई…लेकिन कुछ नहीं मिला वहां। बाद में उस पुजारी ने मिडिया में आकर कबूल किया की उसने ये सब ढोंग किया था, लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए। काफ़ी बवाल मचा था…लेकिन ये सब तुम मुझे अभी क्यों दिखा रहे हो?” 
एजेंट हार्ली उसके सामने फिर कुछ फोटोग्राफ रख कर कहता हैं “ ये उस खोदे गए गड्डे की तस्वीरे हैं” 
एजेंट जेडी तस्वीरों को ध्यान से देखना लगाता है और अचानक उसका चेहरा संदेह से गंभीर हों जाता हैं। उसे फोटोग्राफ में कुछ ऐसा देखता है जिससे उसके मन में सवाल उठने लगे। 
“ इस गड्डे की गहराई कितनी रही होगी?”
“ 10 फीट..!” एजेंट हार्ली।
“ अजीब हैं न! जब उनको पता था की खज़ाना पुराना है तब भी उन्होंने केवल 10 फीट गड्ढा खोद कर छोड़ दिया था।” एजेंट जेडी।
“ हां, वो चाहते तो गड्ढा और गहरा खोद सकतें थे।” एजेंट हार्ली। 
“ इससे तो यहीं साबित होता हैं की वो गड्ढा दिखावे के लिए खोदा गया था!” एजेंट जेडी।
एजेंट हार्ली एक और फोटोग्राफ को दिखाते हुए बोलता है “ और कमाल की बात पता है क्या हैं, ये फ़ोटो उस घटना के एक हफ़्ते बाद एक न्यूज़ रिपोर्टर ने खींची थी। जिसमें गड्ढा मिटा दिया गया है , लेकिन…ध्यान से इस गड्डे की मिट्टी देखो!” एजेंट हार्ली।
“ ये मिट्टी किसी दूसरी जगह से खोद कर डाली गई है” एजेंट जेडी सोचते हुए।
“ बिलकुल सही” एजेंट हार्ली।
दोनों फोटोग्राफ को ध्यान से देखने लगते हैं।
“ इतना तो समझ में आ गया की वो गड्ढा खोदना एक ढोंग था, लेकिन क्यों? मुझे यहीं सवाल बार बार खाएं जा रहा है।” एजेंट हार्ली।
एजेंट जेडी फोटोग्राफ की तरफ़ ईशारा करते हुए “ सुनो हार्ली, मुझे इस देवपुर वाली ख़बर के बारे मे तमाम जानकारी चाहिए। ख़ासकर उस खुदाई के एक हफ़्ते में हुई तमाम छोटी बड़ी खबरें।” 
एजेंट हार्ली फोटोग्राफ को उठाते हुए “ ठीक हैं, मैं अपने स्त्रोतों से और जानकारी निकालने की कोशिश करता हूं।” 
फिर एजेंट जेडी उन फोटोग्राफ को उठाकर दीवार पर लगे बोर्ड पर चिपका देता हैं उसके ठीक उपर बडे़- बडे़ अक्षरों में “ रेड वैपन ” लिखा हुआ होता हैं। 
एजेंट जेडी रात को 8:30 बजे बुक स्टोर बंद कर अपने घर जाता हैं। 

अपने घर का दरवाज़ा खटखटाता हैं अंदर से उसकी पत्नी दरवाज़ा खोलते हुए “ इतनी देर कैसे लग गई आज आपको?” ।
“हां, आजकल काम थोड़ा बड़ गया हैं…., बच्चे सो गए क्या?” एजेंट जेडी हुक पर चाबी लटकाते हुए। 
“ हां, निया तो सो गई लेकिन हैरी अभी भी जागा हुआ हैं।” और किचन में चली जाती हैं। 
एजेंट जेडी लाउंज में जाता हैं जहां पर उसका बेटा हैरी जो अभी 5 साल का हैं, वो टीवी पर कार्टून देख रहा होता हैं। एजेंट जेडी जाकर उसे अपनी गोद में बैठा लेता हैं और उसके साथ मस्ती करने लगता हैं। 
“ बेटा ये तुम क्या दिनभर देखते रहते हों टीवी पर?” एजेंट जेडी।
“ ये सुपरमैन है पापा, मैं भी बड़ा होकर सुपरमैन बनूंगा..!” बच्चा हैरी।
“ अच्छा, और सुपरमैन बनकर क्या करोंगे तुम?” एजेंट जेडी।
“ मैं भी लोगों को बुरे लोगों से बचाऊंगा,सुपरमैन की तरह” बच्चा हैरी।
“ लेकिन बेटा, वो तो तुम बीना सुपरमैन बने भी लोगों को बचा सकते हो!” एजेंट जेडी।
“ पर तब मुझे बुरे लोग पकड़ लेंगे न पापा फिर मैं लोगों की मदद कैसे करूंगा” बच्चा है।
“ अच्छा… इधर मेरे पास आओ, मैं तुम्हें एक सीक्रेट पावर के बारे में बताता हूं “ एजेंट जेडी।
“क्या सच में??” उत्साह से बच्चा है।
“ हां, सच में….! तुम्हें पता है इस दुनियां की सबसे बड़ी पावर कौन सी हैं?” एजेंट जेडी।
“कौनसी हैं?” बच्चा हैरी।
“ अच्छाई की पावर..!” एजेंट जेडी ।
“ क्या इससे हम हवा में उड़ सकते हैं?” बच्चा हैरी।
हंसते हुए एजेंट जेडी “ नहीं.. ये वो पावर हैं जिसके सामने दुनियां की हर पावर छोटी पड़ जाती है, तुम्हारी उड़ने की पावर भी। बुरे लोग ताकतवर हों सकतें हैं, लेकिन जीत हमेशा अच्छाई की ही होती हैं।” 
तभी किचन से एजेंट जेडी की पत्नी आवाज़ मारती हैं “ सुनो, हाथ मुंह धोकर आ जाओ खाना लग गया हैं” ।
अब एजेंट जेडी लाउंज से उठकर जाते जाते हैरी को कहता हैं “ अच्छा अब तुम टीवी देखो मैं खाना खाने जा रहा हूं, लेकिन मेरी कही बात हमेशा याद रखना तुम।” 

और वहां से खाने की टेबल पर जाता हैं और खाना खाने बैठ जाता हैं। उसकी पत्नी खाना परोस कर उसके सामने आकर बैठ जाती हैं।
“ अच्छा रीना, अब से मैं घर पर थोड़ा देरी से आऊंगा। अभी सेल का सीज़न चल रहा हैं तो कस्टमर भी बढ़ गए हैं। “
“ हां, लेकिन क्या ये करना ज़रूरी है क्या? मेरा मतलब हम उतना पैसा तो कमा पा रहे हैं जितने में घर चल जाए। तो फिर ये इतनी मेहनत करने की क्या जरूरत है?” हैरी की पत्नी।
“रीना समझा करो तुम, मैं ये सब बच्चों के भविष्य के लिए कर रहा हूं।” एजेंट जेडी खाना खाते खाते।
“ उन्हें तुम्हारे पैसों की नहीं, तुम्हारी जरुरत है… हैरी तो रात में जागकर तुमसे मील लेता हैं। लेकिन निया, निया तो रोज़ तुम्हारा इंतज़ार कर करके सो जाती हैं और जब सुबह वो उठती हैं तब तक तुम काम पर जा चुके होते हों। “ उसकी आवाज़ में दर्द और निराशा थीं। 
“ अच्छा ठीक है, ठीक है..! मैं वादा करता हूं ये सीज़न निकल जाए तो फिर मैं पूरा पूरा समय तुम लोगों के साथ ही गुजरूंगा। बल्की कुछ समय के लिए स्टोर बंद करके हम किसी अच्छी सी जगह पर घूमने चलेंगे।” एजेंट जेडी।
“ ठीक हैं, इस बार भी यकीन करके देख लेते हैं” उम्मीद से।
“ इस बार पक्का…!” एजेंट जेडी 

हैरी टीवी देखते देखते लाउंज पर ही सो गया था, एजेंट जेडी उसे अपने बाहों में उठाकर उपर कमरे में ले जाकर सुला देता हैं। फिर निया को सोते हुए देखता है और उसके गालों को सहलाता हैं। फिर कमरे की लाइट बंद कर अपने कमरे में सोने चले जाता हैं।

2 दिन बाद…
शेरलॉक बक्शी बुक स्टोर 
(खुफिया चैंबर में)

कमरे में एजेंट जेडी कुर्सी पर बैठ कर एक फाईल पढ़ रहा था, जो एजेंट हार्ली लेकर आया था। और उसके बगल में हार्ली दीवार पर एक पैर सटाकर सिगरेट पी रहा होता हैं।

एजेंट हार्ली: तुम्हारे कहने पर मैंने देवपुर वाले मामले की थोड़ी और जांच पड़ताल की….”
एजेंट जेडी: और...? (हार्ली की तरफ़ देख कर)
एजेंट हार्ली: और.. मुझे ये पता चला कि मन्दिर की खुदाई के 6 दिन बाद आश्रम से मुरली नाम का एक सेवक गायब हों गया था।
एजेंट जेडी: गायब…?
एजेंट हार्ली: हां, गायब..। (सिगरेट का एक कस लेते हुए)
एजेंट जेडी फ़ाइल में लगी फ़ोटो को देखते हुए।
एजेंट जेडी: थोड़ा तफ़सीली से बताने का कष्ट करोगे?
एजेंट हार्ली: हां, क्यों नहीं..! कुछ लोगों का कहना हैं की मुरली अपने गांव चले गया था। लेकिन मजे की बात ये है कि उसे जाते हुए किसी ने नहीं देखा। न हि इसकी थाने पर लापता की रिपोर्ट लिखाई गई। 
एजेंट जेडी: क्या ये मुरली अभी भी लापता हैं? 
एजेंट हार्ली: हा..।
एजेंट जेडी: तुमने उसके घर वालों से बात की?
एजेंट हार्ली: इसकी ज़रूर ही नहीं पड़ी। 
एजेंट जेडी: और जरूरत क्यों हीं पड़ी?
एजेंट हार्ली : क्योंकि मुरली अनाथ था ! हा, उसका इस दुनियां में कोई नहीं हैं। इकलौता व्यक्ति जो उसके बारे में जानता था , वो मन्दिर का पुजारी हैं। लेकिन मन्दिर की खुदाई के बाद से वो भी जहीनी मरीज़ बन गया हैं। 
एजेंट जेडी: मन्दिर की खुदाई के ठीक 6 दिन बाद ही इस तरह एक सेवक का गायब हों जाना इत्तेफ़ाक नहीं हों सकता। 
(फ़ोटो को देखकर सोचते हुए) 
एजेंट हार्ली: आख़िर आश्रम से मुरली गया तो गया कहां? उसे ज़मीन खा गई या आसमान निगल गया? (सिगरेट बुझाते हुए)
एजेंट जेडी: अब तो ये देवपुर जाकर ही पता चलेगा! 

एजेंट जेडी और हार्ली चार घंटे का लंबा सफर तय करने के बाद देवपुर पहुंच गए। जीप आश्रम में जाकर रुकती हैं। यहां पर ये फर्जी पत्रकार बनकर जाते हैं और अपनी एजेंसी का नाम “ NAI KHABAR नई ख़बर ” बताते हैं।
आश्रम के आचार्य बालकृष्ण सागर से बात करते हैं , उन्हें अपना परिचय पत्र दिखा कर बताते हैं की वो आश्रम के पंडित ब्रह्मानंद से बातचीत करने आए हैं। क्योंकि वो उनके उपर एक आर्टिकल लिख रहे हैं। शुरु में तो आश्रम का आचार्य उन्हें मना कर देता हैं लेकिन फिर वो बताते हैं की उनकी नौकरी का सवाल है। 
“ वैसे तो परिसर में किसी भी पत्रकार का आना प्रतिबंधित है। चुकीं अब आप लोग आ ही गए तो हम आपको नाराज़ नहीं करेंगे। परंतु आपको परिसर के नियमों का पालन करना होगा।”आचार्य बालकृष्ण सागर ।
और आश्रम के एक सेवक को पंडित ब्रह्मानंद की कुटिया तक मेहमानों को ले जाने का आदेश देता हैं और ख़ुद वापस अपने कक्ष में चले जाता हैं। 

फिर एजेंट जेडी और एजेंट हार्ली को एक सेवक पंडित जी की कुटिया तक ले जाता हैं। (रास्ते में)
“ अच्छा एक बात बताओ, तुम इस आश्रम में कब से हों?” एजेंट जेडी सेवक से पूछता है। 
“ मुझे आश्रम में आए पांच साल हों चुके हैं।” सेवक कहता हैं।
“ ये पंडित जी की ऐसी हालत कैसे हो गई, कुछ पता हैं?” हार्ली सेवक से पूछता है।
“ पंडित जी मेरे आने के पहले से ही इसी अवस्था में हैं.. लेकिन दूसरे सेवक बताते हैं की मन्दिर की खुदाई के बाद उनकी ये हालत हों गईं थी।” सेवक।
“ अच्छा, तुमने मुरली के बारे में सुना हैं..? वो भी इसी आश्रम का सेवक था फिर लापता हों गया था।” एजेंट जेडी। 
सेवक मुरली का नाम सुनकर थोड़ी देर तक चुप रहा फिर दबी आवाज़ में “ हा, मैंने भी इतना हि सुना हैं। वो एक अच्छा सेवक था, ख़ासकर पंडित जी का प्रिय शिष्य था। बाद में वो ये आश्रम छोड़कर कहीं चली गया, पता नहीं कहां…. इतना ही मालूम है।” सेवक। 
और फिर वो उस कुटिया तक पहुंच ही जाते हैं, जहां पर पंडितजी को रखा गया था। सीमेंट की दिवारे, गुलमोहर के पेड़ों के बीच कवेलू की छप्पर वाली कुटिया थी। 
“ पंडित जी, ये लोग अख़बार वाले हैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहते हैं..!” सेवक दरवाज़े से इतना बोलकर एजेंट जेडी और एजेंट हार्ली को अंदर जानें का इशारा करता हैं। 
दोनों एजेंट कुटिया में प्रवेश करते हैं, अंदर अंधेरा था। कुटिया के रोशनदान से सूरज का प्रकाश बल्ब कि पूर्ति कर रहा था। दीवारों पर सफ़ेद चुना पत्थर से अजीबों गरीब चित्रकला कि गई थी। कुटिया में पंडित ध्यान मुद्रा में बैठा था, उसके बगल में उसका बिस्तर और एक पानी का घड़ा भी रखा हुआ था। एजेंट जेडी अपना कैमरा निकालकर दीवारों पर बनी चित्रकला कि तस्वीर खींचता हैं। कैमरे कि आवाज़ से पंडित जी का ध्यान टूटा और वो दोनों एजेंट की तरफ़ देख कर “ कयामत आने वाली हैं…तुम सब मर जाओगे।” 
(उसकी आंखे बड़ी हों गई)
“ कैसी कयामत..?” एजेंट जेडी गंभीर होकर पूछता है। 
“ तुम उसे नहीं रोक सकतें.. उसे कोई नहीं रोक सकता..।” और फिर यकायक चुप हो जाता हैं। 
एजेंट हार्ली अपनी छोटी सी डायरी निकालकर कुछ लिखने लग जाता हैं। 
“ कौन आ रहा हैं? आप किसकी बात कर रहे हैं पंडित जी!” एजेंट जेडी।
“ वो.. वो जाग गया हैं, प्रलय का आरंभ हों चुका है। वक्त अपने आप को फिर से दौहरा रहा है। जो करोड़ों सालो पूर्व नहीं हुआ वो अब होंगा…उसे कोई नहीं रोक सकता!” अब पंडित एजेंट जेडी की आंखों में आंखे डालकर कह रहा होता हैं। 
“ हां, हम समझ गए पंडित जी..। आप ये बताएं.. मुरली के साथ क्या हुआ था? वो आपका ही शिष्य था न?” एजेंट हार्ली का सवाल सुनकर वो अचानक फिर वहीं हरकते करने लगा। 
“ मुरली…मुरली…?” पंडित।
“ क्या हुआ था उसके साथ?” एजेंट जेडी। 
“ मुरली.. मुरली..?” वो बार बार उसका नाम दौहरा रहा था। उसकी आंखे कुछ कहने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो बात जुबान पर नहीं आ रही थी। 
“ मन्दिर की खुदाई में क्या निकला था?” एजेंट जेडी पंडित की तरफ़ उम्मीद से देखते हुए। 
पंडित थोड़ी देर तक एजेंट जेडी को ध्यान से देखने लगा फिर अचानक मानों वो होश में आया हों “ तुम सब उसी के आदमी हों न? चले जाओ यहां से, मुझे छोड़ दो।” और चिल्लाने लगता हैं। 
एजेंट जेडी इससे पहले कि कुछ पूछता पंडित वापस अपनी आंखें बंद कर लेता हैं और कुछ बड़बड़ाने लगता हैं जो दोनो एजेंट को समझ नहीं आता। फिर दोनों एजेंट कुटिया से बाहर आ जाते हैं।
“ लोग सही कह रहे थे , इसकेे तो वाकई में दिमाग के तार ढीले हो चुके हैं।” एजेंट हार्ली। 
“ या फिर पंडित जी ने ऐसा कुछ देख लिया हों, जो इनको नही देखना चाहिए था?” एजेंट जेडी सोचकर।
“ पता नहीं,.. लेकिन अपना टाइम तो बर्बाद हों गया न ! बूढ़े ने एक भी बात काम की नहीं की। ऊपर से दिमाग़ चाट गया वो अलग।” एजेंट हार्ली सिगरेट निकालते हुए। 
“ तुम ये क्या कर रहे हों?.. हार्ली तुम यहां सिगरेट नहीं पी सकते ये एक आश्रम हैं।” एजेंट जेडी। 
“ लेकिन यार… यहां तो हमें कोई देख भी नहीं रहा!” एजेंट हार्ली।
एजेंट जेडी: लेकिन फिर भी तुम यहां सिगरेट नहीं पी सकते हो, आचार्य जी की बातें याद हैं न? 
एजेंट हार्ली: ठीक हैं यार.. नहीं पी रहा हूं (सिगरेट वापस जेब में डालते हुए) तो अब क्या ...? 
एजेंट जेडी: तुम आश्रम में पूछताछ करो, मुरली के बारे में जितनी हों सकें जानकारी निकालो...! किस्मत अच्छी हुईं तो कुछ न कुछ पता चल हि जाएगा।
एजेंट हार्ली: और तुम कहां जा रहे हों? 
एजेंट जेडी: मन्दिर का एक राउंड मार कर आता हूं। 
कहकर एजेंट जेडी सुनसान मैदान में बढ़ जाता हैं, मैदान बहुत विशाल था जहां पर एक प्राचिन भैरवनाथ का मन्दिर बना हुआ़ था। मन्दिर समय और मौसम की मार से जर्जर हालत में था, जिसकी दीवारों पर घास उग आई थी। मन्दिर पर कुछ मरम्मत का काम चल रहा था जीस पर चढ़ने के लिऐ सीढ़ी बनाई हुईं थी। एजेंट जेडी मन्दिर का अच्छे से निरीक्षण करता हैं, जीस जगह पर खुदाई हुई थी वहां पर अब बड़ी बड़ी फॉक्सटेल सिटेरिया की घास उग आई थी। एजेंट जेडी घास को अपने हाथों से सहलाता हैं और कैमरा निकालकर घास की फ़ोटो खींच लेता हैं। फिर वहां से उठकर मन्दिर के पीछे जाकर मैदान में एक लंबी नज़र दौड़ाता हैं। उसकी नज़र एक जगह पर जाकर टिक जाती हैं, वो उस जगह के क़रीब जाता है। उस जगह पर भी फॉक्सटेल सेटेरिया की घास लहरा रही थी ये वहीं घास थी जो मन्दिर के आगे भी खुदाई वाली जगह पर थी। एजेंट जेडी उस जगह को एकाटक नजरों से देखा रहा था। वहां पर एजेंट हार्ली अपनी डायरी में कुछ उतारते हुए एजेंट जेडी के यहां पहुंचता है।
एजेंट जेडी बिना हार्ली की तरफ़ देखें ही " मुरली के बारे में कुछ पता चला? " 
(एजेंट हार्ली अपनी डायरी में देखते हुए)
एजेंट हार्ली: मैंने आश्रम में कई लोगों से पूछताछ की...! कुछ कहते हैं वो गायब हों गया था, कुछ का मानना हैं कि वो गांव चले गया। लेकिन उसे जाते हुए किसी ने नही देखा। और हां इनमें से एक बूढ़े सेवक ने बताया कि मुरली किसी बर्मारक्षस...
(एजेंट हार्ली को सही करते हुए )
एजेंट जेडी: ब्रम्हराक्षस...!
एजेंट हार्ली: हां, ब्रम्हराक्षस... उठा ले गया था बोल रहा हैं। हैरानी होती हैं ये लोग आज़ भी इस तरह की बातों पर विश्वास करते हैं।

एजेंट जेडी अभी भी घास को देखते हुए किसी गहरी सोच में था।
एजेंट हार्ली उसकी तरफ़ देखते हुए " तुम बताओं, तुम इस जगह पर क्या कर रहे हो? तुम्हें कुछ मिला भी या यूं ही इधर उधर भटक रहे हो।" एजेंट हार्ली।
एजेंट जेडी अभी भी घास से अपनी आंखें हटा नहीं रहा था। फिर एजेंट हार्ली उसके कंधे पर हाथ रख कर " जेडी...!" कहता है।
एजेंट जेडी अचानक होश में आता हैं और मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ने लगता हैं, उपर चढ़कर मैदान की तरफ़ हैरानी से देख रहा था। उसकी आंखें किसी चीज़ को देखकर चमक उठी थी। उसे इस तरह करते देख एजेंट हार्ली हैरानी से उसे पूछता है " अब तुम्हें क्या हुआ, वहां क्यों चढ़ गए तुम?" ।
एजेंट जेडी: उपर आओ और ख़ुद देख लो...!
फिर एजेंट हार्ली भी सीढियों के सहारे उपर चढ़ता है और वहां का नज़ारा देख कर वो भी स्तब्ध रह जाता हैं। मैदान में किसी त्रिशूल जैसी आकृति में फॉक्सटेल सेटेरिया की घास उगी हुई थी।
एजेंट हार्ली: ये तो किसी त्रिशूल जेसी आकृति है …! लेकिन इसके बीच का शूल नहीं हैं। आख़िर ये हैं क्या?
एजेंट जेडी: मन्दिर की असली खुदाई यहां हुई थी। (फोटोग्राफ लेते हुए।
एजेंट हार्ली: तो इसका मतलब वो दूसरा गड्ढा दिखावे के लिए खोदा गया था? (हैरानी से)
एजेंट जेडी: और पता हैं, जिसने भी गड्ढा खुदवाया था वो अच्छे से जानता था की ज़मीन में वो चीज़ किस आकर में और कितनी बड़ी हैं। (मैदान की तरफ़ देख कर)
एजेंट हार्ली: हां, लेकिन ऐसा भला कौन करेगा? और क्यों?
एजेंट जेडी: रेड वैपन...!( सोचते हुए)

और दोनों एजेंट एक दूसरे की तरफ़ ऐसे देखते हैं मानो उनको उस रहस्य का पता लग गया हों। मिशन मालवा का उद्देश्य ही रेड वैपन को ढूंढना और उसे रोकना था। इस तरह अचानक उस हथियार का सुराख हाथ लग जाना उन दोनों एजेंट के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।
दोनों एजेंट सीढियों से नीचे उतरते हुए:
एजेंट हार्ली: लेकिन एक मिनट.. क्या मुरली का गायब हों जाना भी इसी योजना का हिस्सा था? 
एजेंट जेडी: हां, बिल्कुल! सूझ बुझ कर खेला गया दांव था। 
एजेंट हार्ली: लेकिन कैसे?
एजेंट जेडी: मुरली ने ज़रूर ऐसा कुछ देख लिया होंगा जो उसे नहीं देखना चाहिए था, और अपना मुंह बंद नहीं कर सका होंगा।
एजेंट हार्ली: हां, अब सब समझ आ रहा हैं। खुदाई के एक दम बाद मुरली का गायब हों जाना, पंडित का मिडिया में आकर झूठा बयान देना और अपना मानसिक संतुलन खो देना। सब एक योजना का हिस्सा था। जिसने भी ये खेल खेला हैं, वो बहुत ही शातिर दिमाग था।
एजेंट जेडी: और पावरफुल भी!
एजेंट हार्ली: हां, जाहिर है।

फिर दोनों एजेंट उलझे तार के घुच्छे को सुलझाते हुए आश्रम से निकलकर अपनी जीप के यहां पहुंच जाते हैं। 
एजेंट जेडी जीप का दरवाज़ा खोल कर अंदर बैठकर 

एजेंट जेडी: तुम्हें याद हैं मन्दिर की खुदाई की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.ई) की एक स्पेशल टिम को सोपी गई थी?
एजेंट हार्ली: हां, उन्होंने ही तो पूरे मामले की जांच पड़ताल कि थी। (जीप के बाहर से ही एजेंट जेडी कि तरफ़ देख कर)
एजेंट जेडी: हार्ली, मुझे 1999 की उस ए.एस.आई की टिम की पूरी जानकारी चाहिए, ख़ासकर उस व्यक्ति की जो उस टिम की राहनुमाई कर रहा था।
एजेंट हार्ली: मुझे थोड़ा वक्त दो, मैं डिटेल निकालकर देता हूं।

इतना कहकर एजेंट हार्ली जीप का दरवाज़ा खोलकर ड्राइवर सीट पर बैठ कर जीप स्टार्ट करता हैं और दोनों एजेंट वापस इन्दौर के लिऐ रवाना हो जाते हैं। 

2 दिन बाद…
(शेरलॉक बक्शी बुक स्टोर )
एजेंट जेडी स्टोर के काउंटर पर बैठा किसी किताब का कवर सुधार रहा था। एजेंट हार्ली स्टोर पर आता है और अपने झोले से निकालकर एक किताब उसके सामने रख कर उसे इशारे में पढ़ने के लिए कहता हैं। एजेंट जेडी अपने आस पास एक नज़र मारता है फिर धिरे से किताब को उठाकर उसे खोल कर देखता है।
एजेंट हार्ली: पूरी टिम कि जानकारी है…! पेज पलटाओ ..
(एजेंट जेडी क़िताब का पेज पलटता है।)
“ ये हैं डॉ. मल्यानसिंह ठाकुर आर्कियोलॉजिस्ट है, और 1999 में यहीं ए.एस.आई की स्पेशल टिम को लीड कर रहा था। 
(एजेंट जेडी फाईल को ध्यान से पढ़ रहा था)
 1995 में ए.एस.आई को ज्वाइन किया, और एक साल में ही सफ़लता की ऊंचाईयां छूने लगा। इसने बहुत कम समय में कई महत्वपूर्ण ख़ोज की, जिसके चलते इन्हें कई पुरुस्कार और सम्मान से नवाजा गया। फिर दो साल में इसे ए.एस.आई का जनरल डायरेक्टर बना दिया गया।” 
एजेंट जेडी: और सारी की सारी ख़ोज पौराणिक हैं …!
एजेंट हार्ली: हां.. और इसने मसूरी में “ठाकुर पौराणिक सेंटर” के नाम से एक अपना खुद का म्यूज़ियम भी खोल रखा है। 
एजेंट जेडी फ़ाइल को पढ़ता हैं ।
फिर एजेंट जेडी स्टोर बंद कर एजेंट हार्ली के साथ एक पीसीओ/एसटीडी से कॉल करता हैं ~
एजेंट जेडी: पॉल..?
एजेंट जेडी: हां, मैं ही हूं 
एजेंट जेडी: हां... ठीक हैं। तुम बताओं!
एजेंट जेडी: वहां पर कैसा चल रहा हैं?
एजेंट जेडी: हम्म... क्या तुम अभी वहीं पर हों?
एजेंट जेडी: सुनो, पॉल मुझे तुम्हारी एक हेल्प चाहिए!
एजेंट जेडी: जानता हूं 
एजेंट जेडी: हां ये मिशन से ही रिलेटेड है। और तुम तो मुझे जानती हो मैं कुछ गिने चुने लोगों पर ही भरोसा कर पाता हूं और तुम उनमें से ही एक हों।
एजेंट जेडी: शुक्रिया तुम्हारा 
एजेंट जेडी: एक साइंटिस्ट हैं, डॉ. मल्यानसिंह ठाकुर। ये ए.एस.आई का जनरल डायरेक्टर हैं अभी। मुझे इसकी पूरी जन्म कुंडली चाहिए।
एजेंट जेडी: हां, इसलिए तुम्हें मसूरी जाना होंगा। वहां पर उसका एक म्यूज़ियम भी है। 
एजेंट जेडी: ठीक हैं, मैं तुम्हें ख़ुद कॉन्टैक्ट करूंगा। ठीक हैं खयाल रखना अपना। 
(संपर्क कट जाता हैं)
एजेंट जेडी पीसीओ से बाहर आता हैं और बाहर एजेंट हार्ली खड़ा था।
एजेंट हार्ली: जेडी तुम्हें नहीं लगता कि एजेंट पॉल को इस सबमें नहीं शामिल करना चाहिए। अगर ये बात किसी तरह मुख्यालय तक पहुंच गईं तब क्या होंगा, ये तुम अच्छे से जानते हो। 
एजेंट जेडी: जानता हूं..! 
एजेंट हार्ली: जानते हो...? तो उसे कॉल क्यों किया!
एजेंट जेडी: क्योंकि इस वक्त मैं किसी और के उपर भरोसा नहीं कर सकता।
एजेंट हार्ली: ठीक है तुम्हारी जेसी मर्ज़ी.. मैं तो तुम्हें बस आगाह कर रहा हूं फिर मुझसे न कहना।
एजेंट जेडी: शुक्रिया तुम्हारा...! वैसे भी मैं इस मिशन के बाद लंबे ब्रेक के लिए जा रहा हूं ।
एजेंट हार्ली: लंबा ब्रेक?
एजेंट जेडी: हा, अब ये आखरी काम ख़त्म कर अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहता हूं। एक साधारण व्यक्ति की तरह जीवन जीना चाहता हूं। (सोच में डूबने लगता है)
एजेंट हार्ली: हा, अच्छा हैं। इसी बहाने मुझे भी थोड़ा सुकून मील जायेगा। (टांग खींचते हुए)
और दोनों हंसने लगते हैं और एजेंट जेडी अपनी बजाज की मोटरसाइकिल पर सवार होकर अमरती के लिऐ रवाना हों जाता हैं। एजेंट जेडी उसके जानें के बाद जेब से एक सिगरेट निकालता है और जलाकर एक कस लेता हैं और धुआं आसमान की तरफ़ देख कर छोड़ता है। 


रात के 7 बजे...
अमरती गांव में, एजेंट जेडी दूरबीन की सहायता से गांव पर नज़र रखें हुए था। गांव में अचानक हल चल मचती हैं जिसे एजेंट जेडी अपनी दूरबीन से देख पा रहा था। लोग इधर उधर भागदौड़ करने लगते हैं, तभी वहां पर एक कार्गो ट्रक गांव में प्रवेश पाता हैं। उसके पीछे पीछे एक लंबी काली कार भी आती हैं। कार गांव के बीचों बीच जाकर रुकती हैं उसमें से एक काले सूट में, मुंह पर मास्क पहनें हुए सर पर एक टोपी पहने आदमी उतरता है। गांव के सभी लोग एक कतार में खड़े हो जाते हैं कुछ लोग अपने तंबू से लाल रंग के बॉक्स बाहर लाते हैं। वो मुखौटे वाला आदमी उन बॉक्स को बारी बारी से खोल कर देखता है फिर अपने आदमियों को इशारा करता हैं तो उसके आदमी उन बॉक्स को उठाकर उस कार्गो ट्रक में चढ़ाने लगते है। एक आदमी जो उस मुखौटे वाले आदमी की तरह ही सूट बूट में होता हैं, वो कार से एक बड़ा सूटकेस लेकर आता हैं। और गांव वालों को उसमे से कुछ निकाल कर बांट देता हैं। 
लेकिन अचानक एजेंट जेडी का पैर एक पत्थर से टकरा जाता हैं और वो छोटा सा पत्थर का टुकड़ा उस सन्नाटे भरी रात में शोर कर जाता हैं। जिसकी आवाज़ सुनकर कुत्ते भौंकने लगते हैं, पहरेदार पहाड़ी पर टॉर्च डालते हैं। एजेंट जेडी हड़बड़ा कर वहां से दबे पांव पीछे हट कर भागने लगता हैं। लेकिन तब तक कुत्तों की भौंकने की आवाज़ उसके बहुत क़रीब से आ रही थी। एजेंट जेडी पहाड़ी से उतर कर अपनी मोटर साइकिल पर सवार होकर मोटर साईकिल को किक मारकर चालू करता हैं। अब कुत्तों की आवाज़ के साथ साथ, मोटरसाइकिलों के आने की आवाजें भी आने लगीं। एजेंट जेडी मोटरसाइकिल की पूरी रफ्तार से शहर की तरफ़ भागने लगा और उसके पीछे लोगों का एक झुंड मोटरसाइकिलों के शोर के साथ उसका पीछा करने लगा। लेकिन यह रेस लंबे समय तक चल नहीं पाई क्योंकि मोटरसाइकिल सवार एजेंट जेडी के बहुत क़रीब पहुंच गए थे। अगर वो थोड़ी देर इसी तरह भागता रहा तो उसे वो लोग पकड़ लेते इसलिए एजेंट जेडी मौका देख कर अपनी मोटरसाइकिल को रस्ते पर ही छोड़ कर पैदल भागता हुआ एक पुराने खंडहर में जाकर छुप जाता हैं। मोटरसाइकिल सवार झुंड भी एजेंट जेडी को उस झाड़ियों के बीच खंडहर में जाते देख कर उस खंडहर में चले जाते है। 
एजेंट जेडी उस खंडहर कीले के अस्तित्व की तरह अपने आप को भी उस कीले में कहीं छुपा लेता हैं। वो किसी पुराने टूटे हुए मन्दिर में छुपा हुआ था, जहां पर कुछ प्राचीन मूर्तियां मिट्टी में मिल रही थी।एक पूरा गिरोह उसे ढूंढने में लग जाता हैं, हर तरह से कीले की तलाशी होती हैं। एजेंट को जब एहसास होता हैं की वो लोग बीना उसे ढूंढे उसका पीछा नहीं छोड़ने वाले हैं, तब वो अपने बैग से एक क़िताब को निकालकर उसमें कुछ कागज़ात रख कर एक मूर्ति के पीछे छिपा देता हैं। गिरोह का ध्यान बटाने के लिए नीचे से एक पत्थर उठाकर हवा में फेक मारता है। पत्थर की आवाज़ का पीछा करते हुए गिरोह उस तरफ़ भागता है और मौका देख एजेंट जेडी वहां से भागने लगता हैं लेकिन दुर्भाग्य से उसके भागने की भनक कुत्तों को लग जाती हैं। अपनी जान हथेली पर रख एजेंट दौड़ने लगता हैं मगर बंदूक से निकली एक गोली उसके दाएं कंधे को चीरते हुए निकल जाती हैं। उसकी रफ़्तार धीमी हो जाती हैं लेकिन एजेंट अपने बाएं हाथ से कंधा पकड़कर भागने लगता हैं। ये रेस उसके मृत्यु और जीवन की थी। पीछे मुड़कर देखना या फिर हार मानकर दौड़ना बंद कर देना अपने आप को मृत्यू को समर्पित कर देने के बराबर था। एजेंट अपनी पूरी कोशिश कर रहा था की वो तेज़ी से उस रात के घने अंधेरे में कहीं ओझल हो जाए, लेकिन बंदूक से निकली दूसरी गोली उसकी पीठ को चीरकर घुस जाती हैं और कराहने की आवाज़ के साथ एजेंट ज़मीन पर गिर जाता हैं। वो अपनी आखरी सांस लेने से पहले भी छटपटा कर वहां से भागने की कोशिश करता हैं लेकिन अब उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा था। और कुछ ही देर में उसका शरीर ठंडा पड़ गया। 

सुबह…
मिडिया और अखबारों में एजेंट जेडी की मृत्यु को संदिग्ध तरीके से देखा जाता हैं। और जाली पहचान के चलते उसके सम्बन्ध माफिया गिरोह से जोड़े जानें लगते है। हालात इस क़दर बिगड़ जाते हैं की एजेंट हार्ली, एजेंट जेडी की पत्नी और बच्चों को अपने भाई के यहां मसूरी हमेशा के लिए भेजने पर विवश हो जाता हैं।

इन्दौर रेल्वे स्टेशन पर 
(एजेंट जेडी की मृत्यु के 3 दिन बाद)
" मेरी बात बंसीलाल से हों गईं हैं, वो आप लोगों को लेने देहरादून स्टेशन पर आ जाएगा।" एजेंट हार्ली।
" हम आपके इन एहसान के हमेशा आभारी रहेंगे, आपने ऐसे समय में हमारी मदद की हैं, जब हमारे जानने वालों ने मदद करने से हाथ खड़े कर दिए।" एजेंट जेडी की पत्नी रीना।
" ऐसा कहकर मुझे शर्मिन्दा न करें, जेडी मुझे अपना भाई मानता था। उसने मेरा हमेशा मुश्किल हालातों में साथ दिया है।" एजेंट हार्ली।
एजेंट हार्ली की बाते सुनकर एजेंट जेडी की पत्नी के आंखों में आसूं तर आए थे। फिर वो अपने आंसू को छिपाते हुए 
" बहुत शुक्रिया..!"
फिर एजेंट हार्ली दोनों बच्चों को अपने गले लगाकर उन्हें प्यार देता हैं। अपने जेब से एक लिफाफा एजेंट जेडी की पत्नी की तरफ़ बढ़ाते हुए 
"दुकान जैसे ही बिक जाएगी तो मैं पैसे आपको मनी लांड्रिंग के जरिए भेज दूंगा, तब तक के लिए ये कुछ पैसे हैं रख लीजिए।"

" इसकी क्या जरूरत हैं? आपने हमारे लिऐ पहले ही इतना कुछ कर चुके हैं।" रीना।
" रख लीजिए, बच्चों को जरूरत पड़ेगी इसकी " एजेंट हार्ली।
बच्चों की तरफ़ देख कर रीना वो पैसों का लिफाफा ले लेती हैं और एजेंट हार्ली का एक बार फिर शुक्रिया अदा करती हैं। 

फिर विदा लेकर बच्चों के साथ रेल कि बोघी में चढ़ने जानें लगती हैं। 
तभी रास्ते में ही हैरी की टक्कर एक उसकी हम उम्र की लड़की से होती हैं और इस टक्कर में उस लड़की से एक क्रिस्टल का किचेन नीचे गिर कर टूट जाता हैं। वो एक सितारा था जो अब नीचे गिरने की वज़ह से टूट चुका था। हैरी उसे उठाकर, उस लड़की को लौटाना चाहता था लेकिन तब तक वह उससे दूर जा चुकीं होती हैं। अब वो चाहकर भी उसे लौटा नहीं सकता था। लेकिन हैरी की आवाज़ से वह लड़की उसकी तरफ़ मुड़कर देखती हैं और बस देखती ही रह जाती है। और हैरी की नज़रों से भीड़ भाड़ में कहीं गायब हों गईं।
हैरी उस टूटे हुए तारे को अपनी मुठ्ठी में छिपा लिया, उसकी नजरे उस लड़की को तब तक ढूंढती रही जब तक इन्दौर से रेल देहरादून के लिए रवाना नहीं हों गई। 

कुछ महीनों बाद...
अमरती के एक खंडहर कीले में बाहर से कुछ पर्यटक घूमने आते हैं। 
तभी एक पर्यटक यात्री को एक पुरानी मूर्ती के पीछे से एक क़िताब मिलती हैं जीस पर " द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रूड" लिखा हुआ था। वो पर्यटक यात्री पहले तो उस क़िताब को वहां पाकर हैरान होता हैं फिर उसे अपने हाथ झोले में रख कर वापस उस कीले में घूमने लगता हैं। शाम को वो पर्यटक यात्री इन्दौर शहर के बाजार में घूम रहा होता हैं, तभी पीछे से एक लड़का मुंह पर कपड़ा बांधे उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ता है और देखते ही देखते उसके गले से झोला छीनकर भाग लिया। वो पर्यटक यात्री उसके पीछे चिल्लाते हुए भागता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वो लड़का एक पेशावर चोर था, जो अब उस बाजार की भीड़ में कहीं गुम हो गया था। एक हद के बाद वो पर्यटक यात्री उस लड़के को ढूंढने की कोशिश भी करता हैं। बाजार से निकलकर वो चोर एक एकांत स्थान पर जाकर झोला खोलता है, झोले में एक घड़ी, कैमरा, कुछ कपड़े और एक क़िताब मिलती हैं उसे। उसमें से बाकी चीज़े वो अपने पास रख लेता हैं सिवाय उस क़िताब के जिसे वो एक रद्दी वाले को चंद पैसों के बदले बेच देता हैं। वो रद्दी वाला अपनी रद्दी से कुछ किताबो को चुनकर इन्दौर की सेंट्रल लाइब्रेरी में ले जाकर दे आता हैं। लाइब्रेरियन के हाथ में जब वो क़िताब आती हैं तब वो उसे अपने पास रख कर रद्दी वाले को कुछ पैसे देकर उसे रवाना कर देता हैं।