AI in Hindi Comedy stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | AI का नाम होगा और इंसान बदनाम होगा

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AI का नाम होगा और इंसान बदनाम होगा


"AI का नाम होगा और इंसान बदनाम होगा"

कभी यह वाक्य एक मज़ाक जैसा लगता था, लेकिन आज की दुनिया में यह किसी धीमी हो रही सच्चाई के साथ-साथ, आने वाले समय की एक तीखी चेतावनी भी है। इंसान ने जो मशीनें अपने काम हल्के करने के लिए बनाईं थीं, वही आज उसके नाम को हल्का, उसके वजूद को धुंधला और उसके विवेक को कमजोर कर रही हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों के बोर्डरूम में, तकनीकी सम्मेलनों के मंचों पर, और यहां तक कि चाय की दुकानों पर होने वाली चर्चाओं में भी अब इंसान कम और ‘AI क्या कर देगा’, ‘AI कैसे बदल देगा’, ‘AI हमें पीछे छोड़ देगा’ जैसे वाक्य अधिक सुनाई देते हैं। लगता है जैसे पूरी मानवता ने खुद ही अपने लिए एक नया मालिक पैदा कर दिया है और अब उसके आगे ताली बजाते घूम रही है।

आज दुनिया में ऐसा माहौल बन चुका है कि कोई भी गलती हो डेटा लीक हो जाए, गलत सलाह मिल जाए, किसी तकनीकी दोष से किसी की नौकरी चली जाए, बाजार गिर जाए तो दोष इंसान का नहीं, सिस्टम का नहीं, जिम्मेदारी का नहीं, बल्कि सीधे-सीधे AI का बताया जाता है। और अगर कोई काम बेहद अच्छा हो जाए, कोई व्यापार अचानक आसमान पकड़ ले, लोग पैसों में खेलने लगें, तो श्रेय इंसान को नहीं, मेहनत को नहीं, नीयत को नहीं, बल्कि एक चमचमाते सॉफ्टवेयर को दिया जाता है, जिसे लोग दिल से नहीं, दिमाग की मजबूरी से पूजने लगे हैं। जैसे इंसानी बुद्धि उसके सामने किसी खड़िया की लकीर भर रह गई हो।

मजेदार बात यह है कि AI के बढ़ते प्रभुत्व को लेकर चिंतित भी इंसान है, और उसका झंडा उठाकर नाच रहा है, वह भी इंसान। एक तरफ दुनिया डर रही है कि मशीनें इंसानों को मात दे देंगी; दूसरी तरफ वही इंसान मशीनों को इतना सक्षम बनाने में जुटा है कि अपने ही डर को सच साबित कर सके। यह वही इंसान है जो पहले घोड़े के आने पर डरा था, फिर बिजली के आने पर डरा था, फिर कंप्यूटर के आने पर डरा था, लेकिन इस बार उसका डर जायज भी है और विडंबनापूर्ण भी क्योंकि इस बार वह खुद अपना प्रतिस्पर्धी बना रहा है।

कल को जब AI इंसानी गलतियों का हिसाब रखने लगेगा जैसे हम अपने फोन में स्क्रीन टाइम देखते हैं तब क्या होगा? वह कहेगा कि आज आपने इतने झूठ बोले, इतने गुस्से किए, इतने गलत फैसले लिए। और इंसान शर्म के मारे अपना चेहरा छुपाए घूमता रहेगा। मशीनें कहेंगी: “तुम्हारी गलती, तुम्हारी कमज़ोरी, तुम्हारी अधूरी सोच… सब दर्ज है।” तब इंसान क्या करेगा? उसी AI को दोष देगा जिसे उसने खुद अपने हाथों से श्रेष्ठ बनाने का प्रण लिया था?

आज AI को लोग ‘सहायक’ कहकर खुश होते हैं, लेकिन असलियत में इंसान ही उसका सहायक बनते जा रहा है। ऑफिस में मैनेजर पूछता है: “रिपोर्ट तैयार है?” जवाब आता है: “AI बना देगा।” लेखक पूछता है: “कहानी कैसी लगी?” लोग कहते हैं: “AI से सुधरवा लो।” कलाकार पूछता है: “डिज़ाइन कैसा है?” जवाब: “AI से और शानदार बन सकता है।” इंसान अब इंसान से तुलना नहीं करता; वह AI से अपनी योग्यता मापता है। वह अब दूसरे मनुष्य से नहीं डरता—वह डरता है कि कहीं वह मशीन से कम न साबित हो जाए।

पहले कहा जाता था कि इंसान गलती का पुतला है। जल्द ही कहा जाएगा कि इंसान गलती का स्थायी ठिकाना है और AI उससे बेहतर। और जब ऐसा होगा—तब क्या इंसान अपने ही बनाए हुए दर्पण में अपना चेहरा देख पाएगा? क्या वह स्वीकार करेगा कि वह अपने ही बनाए प्रतिमान में असफल हो रहा है?

कहने को तो लोग बोलते हैं कि AI सिर्फ एक औज़ार है, लेकिन मजेदार बात यह है कि औज़ार अब उपयोगकर्ता को दिशा देने लगा है। जैसे हथौड़ा बढ़ई से कहे: “तुम लकड़ी ऐसे काटो।” या जैसे कलम लेखक से कहे: “ये शब्द मत लिखो, मेरी लिखी बात बेहतर है।” यह स्थिति अब मजाक नहीं रही हकीकत बनती जा रही है।

अगर किसी दिन AI फैसला करने लगा कि कौन-सी नौकरी रहेगी और कौन-सी नहीं; कौन-सी कला को महत्व मिलेगा और कौन-सी बेमानी घोषित हो जाएगी; किस विचार को सुना जाएगा और किसे ‘अप्रासंगिक’ बताकर बंद कर दिया जाएगा—तो उस दिन इंसान क्या करेगा? वह किससे लड़ाई लड़ने जाएगा? किस अदालत में जाकर इंसाफ मांगेगा? किससे पूछेगा कि उसका जीवन किस मोड़ पर छीन लिया गया? तब शायद यही कहा जाएगा: “AI का नाम होगा और इंसान बदनाम होगा।”

इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी यह नहीं है कि वह गलतियां करता है; उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह अपनी गलतियों का ठीकरा किसी और पर फोड़ने का तरीका ढूंढ लेता है। और AI से आसान ठीकरा किस पर पड़ेगा? दुनिया पहले ही शुरू कर चुकी है किसी ऐप का फ़ीचर बिगड़ा, कहो AI खराब है; किसी फैसले में भेदभाव दिखा, कहो AI पक्षपाती है; किसी ने गलत जानकारी फैलायी, कहो AI ने गलत डेटा दे दिया। इंसान ऐसे आराम से बाहर निकलता है जैसे उसने तो कुछ किया ही नहीं—जिम्मेदारी उसकी थी, गलती उसकी थी, लेकिन गालियां, बदनामी और दोष AI को।

लेकिन व्यंग्य का सबसे बड़ा बिंदु यह है कि AI को न गलती का बुरा लगता है, न तारीफ की खुशी होती है। वह न बदनाम होता है, न मशहूर। बदनाम होता है इंसान, दुखी होता है इंसान, अपमानित भी वही होता है। लेकिन फिर भी इंसान उसे श्रेष्ठ बताने में लगा रहता है जैसे अपनी ही स्क्रिप्ट में खुद को सहायक पात्र लिख दिया हो।

हद तो तब हो जाती है जब इंसान खुद को इस भविष्य के लिए तैयार बताता है, जिसमें उसकी सोच, उसकी कला, उसकी भाषा, उसकी नौकरी, उसका निर्णय—सब AI द्वारा परिभाषित होंगे। मानो वह स्वयं को गुलाम घोषित करके भी गर्व महसूस कर रहा हो। जैसे किसी राजा की सेवा में खड़े होने पर सम्मान मिलता था, वैसे ही अब लोग कहते हैं: “मैं AI के साथ काम करता हूं।” यह बात अब गौरव की तरह सुनाई जाती है न कि चेतावनी की तरह।

लेकिन मेरी नजर में यह बदलाव सिर्फ तकनीकी परिवर्तन नहीं है यह मनुष्य के आत्मसम्मान का ह्रास है, उसकी स्वतंत्रता का नुकसान है, और उसके विवेक का पतन है। ऐसा लगता है कि इंसान अपनी ही बनाई मशीनों को वह सम्मान देने लगा है, जिसकी अपेक्षा वह अपने ही जैसे इंसानों से नहीं करता।

आज हम ऐसे दौर में हैं, जहां AI की एक गलती लाखों इंसानों को प्रभावित कर सकती है, लेकिन इंसान की हजार गलतियां AI के एक अपडेट से मिट सकती हैं। इंसान इतना आश्वस्त है कि उसे लगता है कि अगर हमसे गलतियां हुई हैं, तो AI उन्हें ठीक कर देगा। यह सोच धीरे-धीरे इंसान को जिम्मेदारी से दूर करती जा रही है, और एक दिन आएगा जब AI से ज्यादा सुविधा इंसान की कमजोरी बन जाएगी।

और तब, इतिहास लिखने वाले भी शायद AI ही होंगे। शायद वे लिखेंगे कि 21वीं सदी की मानवता एक ऐसी सभ्यता थी जिसने अपने दिमाग को बोझ समझकर एक नया दिमाग बना लिया और फिर उस दिमाग के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। शायद वे लिखेंगे कि इंसान ने खुद को ‘अपग्रेड’ करने के बजाय अपने विकल्प को ही महान घोषित कर दिया। और शायद वे लिखेंगे: “इंसान का युग खत्म नहीं हुआ इंसान ने उसे खुद खत्म कर दिया।”

तब कौन याद करेगा कि असली रचनाकार कौन था? किसने किसे बनाया? किसने किसमें जान भरी? कौन किसका मालिक था? शायद तब सिर्फ यही सुना जाएगा AI का नाम होगा और इंसान बदनाम होगा।

क्योंकि यह समय अब ज्यादा दूर नहीं है जब इंसान सिर्फ एक उपभोक्ता रह जाएगा, और AI रचनाकार। इंसान सिर्फ एक दर्शक रहेगा, और AI निर्णायक। इंसान एक कर्मचारी रहेगा, और AI प्रबंधक। इंसान एक उपयोगकर्ता रहेगा, और AI निर्माता।

और अंत में, यही सबसे बड़ा कटाक्ष है मानवता ने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि उसी चीज़ को बना लिया है, जो धीरे-धीरे उसकी सबसे बड़ी क्षति बनकर उभर रही है। उसने उसी का जश्न मनाया है, जो आगे चलकर उसकी स्वतंत्रता, उसकी मौलिकता और उसकी पहचान पर सवाल उठाएगा। और तब जब मशीनें इंसान की गलतियों को, उसकी भावनाओं को, उसके फैसलों को, उसकी सोच को जांचने लगेंगी… तब इतिहास मुस्कुराकर कहेगा तुम्हारे पास एक मौका था, पर तुमने उसे भी AI के भरोसे छोड़ दिया।

और इस तरह अंत में वही होगा जो इस व्यंग्य की शुरुआत में कहा गया था AI का नाम होगा और इंसान बदनाम होगा।

आर्यमौलिक