Krishna cafe - 2 in Hindi Horror Stories by Raj Phulware books and stories PDF | कृष्णा कैफ़े - भाग 2

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कृष्णा कैफ़े - भाग 2

कृष्णा कैफ़े भाग 2 

अध्याय एक — समय की रेत



कृष्णा कैफ़े — बंद पडे कई साल बाद।



सांझ का समय है. हल्की हवा चल रही है.

पुराने शहर की एक गली में, एक छोटा- सा ढाबा जैसा घर —“ कृष्णा कैफे”

दीवारों पर धूल की परतें, टूटी कुर्सियाँ, और एक कोने में टंगी हुई एला और मार्क्स की तस्वीर.

नीचे वही पुरानी कृष्ण मूर्ति, जिसके सामने अब रोज दीपक जलता है —

और दीपक जलाने वाला है — डेविड.



वह अब बूढा हो चुका है.

कंधे झुके हुए, चेहरे पर झुर्रियाँ, लेकिन आँखों में वही सच्चाई, वही आस्था.



डेविड दीपक जलाता है, हाथ जोडता है)

डेविड( धीरे, श्रद्धा से)

कृष्ण. जब तक यह दीप जलता रहेगा, तब तक प्रेम जिंदा रहेगा. एला, मार्क्स. तुम्हारी बेटियाँ अब बडी हो गई हैं. जैसी और ग्रेसी. मेरी जिंदगी की रोशनी।



वह तस्वीर को देखता है — मुस्कुराता है, पर उसकी आँखों में नमी है.



पीटर, डेविड का बेटा, दरवाजे पर खडा है.

थोडा ऊँचा, तेज नजरें, पर भीतर एक अजीब ठंडापन.



पीटर( थोडी झुंझलाहट से)

पापा. रोज ये दीपक जलाना जरूरी है क्या? सब तो खत्म हो चुका है. पुराना कैफे, पुरानी यादें. अब कौन लौटेगा?



डेविड( शांत स्वर में)

जो चीजें दिल से बनी होती हैं, बेटा. वो कभी खत्म नहीं होतीं.

कृष्णा कैफे सिर्फ दुकान नहीं था. वो एक भाव था — प्रेम और आस्था का।



पीटर( धीरे से)

लेकिन आपने कभी मेरे लिए इतना नहीं किया, जितना उनके लिए किया।



डेविड चुप हो जाता है. वह दीवार पर एला की तस्वीर को देखता है, फिर पीटर की तरफ मुडता है.



डेविड( थोडी पीडा के साथ)

तुम मेरे बेटे हो, पीटर. लेकिन जैसी और ग्रेसी मेरे दोस्त की अमानत हैं.

उनकी आँखों में मैं अपने अतीत को देखता हूँ।



पीटर कुछ नहीं कहता. सिर्फ दरवाजे की ओर मुडता है —

एक लंबी साँस लेता है — और बाहर चला जाता है.



कमरे में दीपक की लौ हिलती है.

कृष्ण मूर्ति की मुस्कान जैसे कह रही हो —“ यह कहानी अभी बाकी है.









अध्याय दो — नई पीढी की सुबह



सुबह का उजाला.

डेविड बालकनी में बैठा है, हाथ में चाय का कप.

नीचे जैसी और ग्रेसी Collage जाने की तैयारी कर रही हैं.



जैसी( उत्साहित होकर)

ग्रेसी! जल्दी करो न. देर हो जाएगी! आज Collage का पहला दिन है।



ग्रेसी( धीरे, संयत स्वर में)

तुम्हें तो हमेशा जल्दी रहती है, जैसी. मैं थोडा सँभलकर चलना पसंद करती हूँ।



जैसी( हँसते हुए)

हाँ, तुम हमेशा किताबों में खोई रहती हो. लेकिन आज से हमारी असली कहानी शुरू होती है.

‘कृष्णा कैफे’ फिर खुलेगा — और वहीं से हमारी नई सुबह भी।



डेविड ऊपर से सुनता है — मुस्कुरा देता है.



डेविड( धीरे से, खुद से)

इन दोनों में एला और मार्क्स की झलक दिखती है. एक शांत नदी जैसी, दूसरी लहरों जैसी उन्मुक्त।



पीटर सीढियाँ उतरता है, Collage का बैग कंधे पर.

वह दोनों बहनों को देखता है — हल्की मुस्कान देता है, पर भीतर कुछ जलता है.



पीटर( धीरे, खुद से)

पापा के चेहरे पर मुस्कान सिर्फ इनके लिए होती है. कभी मेरे लिए नहीं।



वह नीचे आता है, गाडी की चाबी घुमाता है.



पीटर( संयम से)

चलो, मैं छोड देता हूँ कॉलेज. वैसे भी मेरा भी Admission वहीं हुआ है।



तीनों Collage के रास्ते पर निकलते हैं.









Collage का कैंपस — हरे मैदान, ऊँचे पेड, युवाओं की चहल- पहल.

वहाँ रोबर्ट का प्रवेश होता है —

एक सीधा- सादा, भावुक लडका, जिसकी आँखों में सच्चाई झलकती है.



वह गलती से जैसी से टकरा जाता है.



जैसी( थोडी झल्लाहट में)

अरे! देख कर चलो!



रोबर्ट( मुस्कुराते हुए)

माफ कीजिए. मेरा ध्यान भटक गया था।



ग्रेसी( धीरे से)

शायद दिल की दुनिया में ध्यान लगाना जरूरी है. रास्ते की दुनिया तो संभल जाएगी।



तीनों हँस पडते हैं.

एक हल्की- सी दोस्ती की शुरुआत — जो आगे चलकर तकदीर बन जाएगी.









अध्याय तीन — दोस्ती और सपनों की खुशबू



Collage के कुछ हफ्ते बीतते हैं.

जैसी, ग्रेसी और रोबर्ट अब अच्छे दोस्त बन चुके हैं.



एक शाम कैंपस के बाहर बैठकर वे बातें कर रहे हैं.



रोबर्ट:

तुम दोनों बहनें वाकई अलग हो.

जैसी — जैसे हवा का झोंका,

और ग्रेसी — जैसे मंदिर की घंटी की आवाज।



ग्रेसी( मुस्कुराते हुए)

कभी- कभी हवा भी घंटी को बजा देती है.



जैसी( उत्साह से)

हमारा एक सपना है — ‘कृष्णा कैफे’ को फिर से खोलने का.

वो जगह. जहाँ एला और मार्क्स ने लोगों को सिर्फ कॉफी नहीं,

बल्कि प्रेम परोसा था।



रोबर्ट( धीरे, भावुक होकर)

कभी कृष्णा कैफे आना. वहाँ कॉफी नहीं, यादें परोसी जाती हैं।



जैसी( मुस्कुराकर)

तो फिर मैं वहाँ रोज आऊँगा।



पीटर दूर से देख रहा है.

जैसी और रोबर्ट की हँसी उसे चुभती है.

वह ग्रेसी की ओर देखता है —

ग्रेसी की आँखों में भी कुछ अनकहा- सा दर्द है.



पीटर( धीरे)

शायद सबको अपना हिस्सा नहीं मिलता. किसी को प्रेम, किसी को पछतावा।









अध्याय चार — संघर्ष और साजिश



अब दोनों बहनें पार्ट- टाइम Job करती हैं —“ पिज्जा हट” में.

वे हर महीने थोडा- थोडा पैसा बचा रही हैं ताकि कृष्णा कैफे दोबारा खुल सके.



डेविड रात को उनका हिसाब देखता है.



डेविड( मुस्कुराते हुए)

तुम्हारे इरादे सच्चे हैं. कृष्ण भी साथ देंगे।



जैसी( आत्मविश्वास से)

पापा, हम ये सपना पूरा करेंगे।



पीटर यह सब देखता है — उसके भीतर की आग बढती है.



पीटर( कठोर स्वर में)

पापा, आप हमेशा इन्हीं के साथ रहते हैं.

कभी मेरे बारे में भी सोचिए. मैं आपका बेटा हूँ।



डेविड( धीरे, पर दृढ स्वर में)

तुम मेरे बेटे हो, पीटर. लेकिन वो दोनों मेरे जीवन की आत्मा हैं.

मैंने उन्हें उनके माता- पिता से वादा किया था कि उन्हें कभी अकेला नहीं छोडूँगा।



पीटर का चेहरा ठंडा पड जाता है.

वह उठता है — बाहर चला जाता है.

पीछे दीपक की लौ थरथराती है, जैसे कोई तूफान आने वाला हो.









अध्याय पाँच — कैफे का पुनर्जन्म.



कई महीनों की मेहनत के बाद.

वही पुराना“ कृष्णा कैफे” फिर से खुलता है.



दीवारों को फिर से रंगा गया है.

मूर्ति के आगे फूल, अगरबत्ती, और दो दीपक — एक एला के नाम पर, एक मार्क्स के नाम पर.



उद्घाटन के दिन भीड लगी है.

डेविड मंच पर खडा है, गर्व से मुस्कुरा रहा है.



डेविड( आँखों में आँसू लिए)

आज कृष्णा कैफे फिर से जीवित हुआ है.

यह सिर्फ दुकान नहीं — एक भावना है.

जहाँ प्रेम बिकता नहीं, बाँटा जाता है।



भीड“ जय श्रीकृष्ण” के नारे लगाती है.

जैसी और ग्रेसी एक- दूसरे को गले लगाती हैं.

रोबर्ट पास खडा है — मुस्कुराता है.



दूसरी ओर.

पीटर एक कोने में खडा है — आँखें ठंडी, चेहरा भावहीन.

उसके मन में एक आवाज गूँजती है —



पीटर( मन में)

आज सब खुश हैं. सिवाय मेरे.

शायद इस रोशनी में मेरी जगह नहीं है।


अध्याय छह — प्रेम और ईर्ष्या का संग्राम

स्थान: कृष्णा कैफे — शाम का समय)
कैफे अब फिर से लोगों से भरा रहता है.
दीवारों पर संगीत की धीमी लय, हवा में कॉफी की खुशबू.

जैसी अब आत्मविश्वासी है — मुस्कुराती हुई, लोगों से बातें करती हुई.
ग्रेसी पीछे काउंटर पर बैठी है — हिसाब- किताब संभाल रही है.
और रोबर्ट. अब जैसी के बहुत करीब आ चुका है.




दृश्य: कृष्ण मूर्ति के सामने

कैफे के कोने में वही मूर्ति — जिसके सामने एला और मार्क्स ने दीप जलाया था.
अब जैसी वहाँ रोज जाती है.

रोबर्ट( गुलाब हाथ में लेकर, धीरे)
जैसी. जब मैं तुम्हें देखता हूँ, तो लगता है कृष्णा कैफे में फिर से जान आ गई है.
तुम्हारी हँसी ही इस जगह की साँस है।

जैसी( थोडी झेंपते हुए)
और तुम्हारी बातें. जैसे किसी पुराने गीत की धुन।

वह गुलाब स्वीकार करती है, कृष्ण मूर्ति के पास रख देती है.
पास खडी ग्रेसी यह सब देखती है —
चेहरे पर हल्की मुस्कान, पर आँखों में उदासी का साया.

वह पीछे मुडती है — आँसू छिपाती है.

ग्रेसी( धीरे, मन में)
कभी- कभी प्रेम चुप रहकर भी बहुत कुछ कह देता है.
बस सुनने वाला कोई नहीं होता।




दृश्य: पीटर और ग्रेसी की मुलाकात

रात का समय.
ग्रेसी अकेली कैफे के बाहर बैठी है.
पीटर वहाँ आता है — हाथ में सिगरेट, चेहरा ठंडा.

पीटर:
आज बहुत शांत लग रही हो. शायद दिल में तूफान है?

ग्रेसी( थोडा चौंकते हुए)
तुम यहाँ?

पीटर( धीरे, व्यंग्य से)
कृष्णा कैफे में सबका स्वागत है. सिवाय मेरे।

ग्रेसी कुछ नहीं कहती.
वह चुपचाप सामने देखती है — सडक के पार, जहाँ दीप जल रहा है.

पीटर( थोडी गहराई से)
अगर कोई तुम्हारे दिल की बात नहीं समझता, तो दुनिया को दिखाओ कि तुम्हारा दर्द क्या कर सकता है।

ग्रेसी( धीरे, आँसू भरे स्वर में)
मैं किसी को चोट नहीं देना चाहती, पीटर।

पीटर( कठोरता से)
कभी- कभी कृष्ण भी युद्ध के बिना शांति नहीं लाते।

ग्रेसी उसके शब्दों में कुछ अजीब शक्ति महसूस करती है —
एक ठंडा, खतरनाक आकर्षण.




अध्याय सात — डेविड का अंत

कुछ सप्ताह बाद.
डेविड की तबीयत बिगडती है.
बिस्तर पर लेटे हुए, साँसें धीमी, पर चेहरा शांत.

जैसी और ग्रेसी दोनों उसकी सेवा में लगी हैं.
पीटर पास बैठा है, लेकिन आँखों में ठंडापन है.

डेविड( कमजोर आवाज में)
पीटर. बेटा.

पीटर( धीरे)
जी, पापा?

डेविड:
कभी- कभी भगवान हमारी परीक्षाएँ हमारे ही घर में लेते हैं.
कृष्णा कैफे अब तुम्हारे हाथों में है. याद रखना, यहाँ प्रेम बिकता नहीं — बाँटा जाता है।

वह अपनी नजरें जैसी और ग्रेसी की तरफ उठाता है — मुस्कुराता है.

डेविड:
तुम दोनों. मेरे दोस्तों की आत्मा हो. तुमसे मेरा वादा पूरा हुआ.

वह गहरी साँस लेता है —
और उसकी साँस थम जाती है.

मौन.
सिर्फ दीपक की लौ काँपती है.

जैसी डेविड के सीने पर सिर रख देती है, रोते हुए.
ग्रेसी उसके पैरों को पकडकर चुपचाप सिसकती है.
रोबर्ट भी पीछे खडा — आँखें झुकी हुई.

पीटर बाहर निकल जाता है — बिना कुछ कहे.
बारिश की बूँदें गिर रही हैं — जैसे स्वर्ग भी शोक मना रहा हो.




अध्याय आठ — साजिश की रात

कुछ महीनों बाद.
कृष्णा कैफे फिर से खुला है, पर अब डेविड नहीं है.
जैसी और रोबर्ट साथ में कैफे संभाल रहे हैं.

ग्रेसी अब कम बोलती है.
वह जैसे भीतर ही भीतर बुझ रही है.
पीटर अब रोज देर रात आने लगा है — किसी अंधेरी सोच में डूबा हुआ.




दृश्य: वह रात

रात.
बारिश हो रही है.
कैफे लगभग खाली है.
जैसी आखिरी टेबल साफ कर रही है.

दीपक जल रहा है, हवा में झिलमिलाहट.

दरवाजा खुलता है —
पीटर अंदर आता है, काले कोट में, चेहरा गंभीर.

जैसी( थोडी मुस्कुराकर)
पीटर. तुम इस वक्त? सब ठीक तो है?

पीटर( धीरे, ठंडी आवाज में)
कुछ बातें हैं. जो सिर्फ खामोशी में कही जा सकती हैं।

जैसी( संदेह से)
तुम ठीक तो हो न?

पीटर:
नहीं. शायद मैं अब तक ठीक नहीं था।

उसके पीछे दरवाजे में एक परछाई दिखती है — चेहरा अंधेरे में है।

पीटर आगे बढता है —
जेब से कुछ निकालता है. उसकी उँगलियाँ काँप रही हैं.

जैसी( डर से)
पीटर. क्या कर रहे हो?

पीटर( आँखों में आँसू)
मैं बस वो कर रहा हूँ जो किस्मत ने लिखा था.

गोली चलती है.
आवाज पूरे कैफे में गूँजती है.

दीपक बुझ जाता है.




अध्याय नौ — अधूरी साँस

बारिश अब तेज हो चुकी है.
कैफे की फर्श पर जैसी गिरी हुई है.
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान, पर आँखें बुझी हुई.

ग्रेसी भागकर अंदर आती है, चिल्लाती है —

ग्रेसी( चीखते हुए)
जैसी!

वह उसके पास घुटनों के बल बैठती है, उसे बाँहों में उठाती है.

जैसी( कमजोर आवाज में)
कृष्णा कैफे. बंद मत करना.

उसके शब्द अधूरे रह जाते हैं.
साँस थम जाती है.

ग्रेसी( रोते हुए)
नहीं जैसी. उठो न. तुमने कहा था ना, ये कहानी हमारी होगी!

पीटर पीछे खडा है —
चेहरा पीला, हाथ काँपते हुए, होंठों पर बस एक शब्द —

पीटर( धीरे, काँपते हुए)
मैंने. गोली चलायी. पर. ये तो.

वह समझ नहीं पाता —
गोली जैसी को कैसे लगी, जबकि उसका निशाना हवा में था.

वह दीवार पर लगे कृष्ण की मूर्ति की ओर देखता है —
मूर्ति की आँखों से पानी की एक बूँद नीचे गिरती है.
जैसे खुद कृष्ण रो रहे हों.




अध्याय दस — अंतिम दृश्य( Silent Board)

कुछ महीने बाद.

कृष्णा कैफे फिर से शांत है.
दरवाजे पर एक बोर्ड टंगा है —

>“ कृष्णा कैफे — Where Faith Meets Heaven.



अंदर कृष्ण की मूर्ति के आगे दो दीपक जल रहे हैं —
एक जैसी के नाम पर,
दूसरा एक अनकहे पछतावे के नाम पर.

ग्रेसी अब रोज वहाँ दीप जलाती है.
पीटर अब कहीं नहीं दिखता — शायद कहीं दूर,
कहीं अपराधबोध और पश्चाताप की छाया में भटक रहा है.

रोबर्ट हर शाम वहाँ आता है,
कृष्ण मूर्ति के आगे चुपचाप बैठता है —
एक कप कॉफी लिए, जैसे किसी अदृश्य आवाज से बातें कर रहा हो.

रोबर्ट( धीरे, खुद से)
कृष्णा कैफे अब मंदिर बन गया है.
जहाँ प्रेम अमर है, और आस्था कभी नहीं मरती।

दीपक की लौ उठती है —
और हवा में बस एक मधुर सुगंध फैलती है.

पृष्ठभूमि में धीमा संगीत —
प्रेम कभी नहीं मरता. वो बस रूप बदलता है.




समाप्त — लेकिन आस्था अमर है.