zindagi Sangharsh se sukun Tak - 2 in Hindi Poems by Kuldeep Singh books and stories PDF | जिंदगी संघर्ष से सुकून तक कविताएं - 2

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जिंदगी संघर्ष से सुकून तक कविताएं - 2

👋Hello everyone 👋

उम्मीद है मेरा काव्य संग्रह "जिंदगी संघर्ष से सुकून तक कविताएं- कुलदीप सिंह " का पहला chapter आप सब को पढ़ कर खुशी मिली होगी।

मेरी जिंदगी के संघर्ष के समय मैंने बहुत-कुछ पाया तो कहीं मैंने अपना बहुत कुछ गवाया । जिनको अपनी कविताओं के रूप में मैंने अपनी डायरी में लिखा, जिसे मैं आज आप सबके साथ शेयर कर रहा हूं।



✍️✍️✍️✍️®️®️®️®️®️✍️✍️✍️✍️



      🧑‍🍼राज कुमार🧑‍🍼


ओ मेरे राज कुमार 

तेरे बिन अब रहा न जाए।

याद तेरी पल पल तड़पाए,

दिल में मेरे जख्म कर जाए

 रहा न जाए ,अब रहा न जाए 

ओ मेरे......

हर पल याद तुझे मैं करूं,

सांसों में मेरे तुझे मैं भरूं ,

भुलू कैसे जरा तू बताएं ,

ओ मेरे......

देकर पल भर की खुशियां ,

उम्र भर का गम दे गया,

उम्र भर की खुशियां तु संग ले गया,

क्या कहें ,अब रहा न जाए,

ओ मेरे .....

मां तेरी तुझको हर रोज पुकारे,

रो-रो पगली तेरे कपड़े निहारे, 

बाप तेरा बड़ा समझाएं,

कुछ भी अब समझ ना आए, 

ओ मेरे.....

हमें जरा सी नींद क्या आई ,

तूमने तो मोड़ लिए हमसे अपनी परछाई, 

रूह तेरी हमसे कर गयी जुदाई,

अब तुझको हम कही देख ना पाए , ओ मेरे.....

जाना ही था तो तू क्यों था आया, अपना हमें फिर क्यों बनाया,

अब हम किसी को अपना ना बनाए,

ओ मेरे राज कुमार,

तेरे बिन अब रहा न जाए.....



✍️✍️✍️✍️®️®️®️®️®️✍️✍️✍️✍️


⁉️आखिर क्यों...?⁉️


मान चाहिए हमें, पैसे से ज्यादा अपना सम्मान चाहिए। 

आराम नहीं हमें भी काम चाहिए।

हमें भी सब की तरह सम्मान मिले, 

काम करें तो इनाम मिले।

क्यों भेदभाव करते हैं कच्चे और पक्के में, 

काम तो सभी करें अच्छे और सच्चे से। 

किसी के आने से क्यों छीनी जाती है हमारी कुर्सी को, 

दिन रात काम करें हम उन्हीं सा ही,

 पर नाम और इनाम मिले सिर्फ उन्हीं को ही। 

ज्यादा पढ़ ऊंची डिग्रियां लेकर फिर भी हम कच्चे हैं,

कम पढ़ एक दो डिग्रियां लेकर फिर भी वह पक्के हैं। 

देखें सभी ऐसे, जैसे किया हो हमने गुनाह कभी,

करते काम तो हम उन्हीं सा ही ।

सरकारों से हम क्या गीला करें,

जब मान सम्मान करते ना अपने ही... 

दिन रात हमारे साथ काम करके भी,

हमें महसूस करवाते हम पक्के नहीं।

फिर क्यों हमारा मान नहीं???

क्यों हमारा सम्मान नहीं???? 

जब मेहनत करते सभी एक जैसी,

 तो क्यों है यह भेदभाव हमी से ही????

आखिर क्यों....??? 

कोई आए जो हमारा मान दवाएं...

 कोई आए जो हमारा सम्मान करवाएं....

गीला -: शिकवा, शिकायत

✍️✍️✍️✍️✍️®️®️®️®️®️✍️✍️✍️✍️


          🏃बचपन की यादें🏃

बच्चों को खेलते देखकर फिर जगाती है , 

बचपन कि यादें मुड़-मुड़ याद आती है । 

इकट्ठे होकर सब यार -मित्र रेल बनाते थे। 

गुल्ली डंडा खेलने या फिर टायर घूमते थे। 

स्कूल में फटी पोच कर लिखकर फिर सूखाते थे।  

सूरजा-सूरजा फट्टी सुख जा ,गाना गुनगुनाते थे।  

आधी छुट्टी में भाग आते थे। 

बस्ते घर रख सारे मित्र फिर नहर पर नहाने जाते थे । 

सुऐ वाले रास्ते से टोली बना कर बेर लेकर आते थे।  

बीते हुए वक्त को याद कर, रहता आंखें भरता,

अहिरू खुर्द का दीप तो बैठा,

यादों को ताजा है करता।


 टायर -: साइकिल का पहिया,
 फट्टी -: लकड़ की स्लेट जिस पर काली शाही और कलम के साथ लिखा जाता था । 
पोच-: फट्टी को साफ करना, 
सुऐ-: नहर से जुड़ी छोटे पानी की नदी,


✍️✍️✍️✍️®️®️®️®️®️✍️✍️✍️✍️✍️


संघर्ष से सुकून तक पहुंचने के लिए, दृढ़ विश्वास रखें, सही दिशा में प्रयास करें और अपनी गलतियों और सफलताओं से सीखें।


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To be continue to next chapter......


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Thanku so much everyone 🙏 🙏 😊