THE PRISONER OF LORD - 2 in Hindi Love Stories by Euphoria Light books and stories PDF | THE PRISONER OF LORD - 2

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THE PRISONER OF LORD - 2


मुझे बड़ी जोर का झटका लगा,"क्या..??", मैंने बड़े शॉक से उसे देखते हुए पूछा। 

वह पलट कर मुझसे थोड़ा दूर गया और उसने कहा"मैं कोई भी बात दोबारा रिपीट नहीं करता..,मैं सिर्फ तीन तक गिनूंगा और अगर तुमने अपने कपड़े निकलना शुरू नहीं किए तो मेरे गार्डस तुम्हें गोलियों से भून डालेंगे.."।

मैं बहुत बुरी तरह फंस चुकी थी, मैं उस जगह से जल्द से जल्द निकालना चाहती थी पर उसके लिए मैं ऐसा काम... नहीं .. मैं नहीं कर सकती थी, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, मैं कुछ सोच समझ नहीं पा रही थी।

, तभी अचानक उस आदमी ने गिनती शुरू कर दी दी"एक.....दो .... तीन","ठीक है!... मैं निकालती हूं", ऐसे चिल्लाते हुए मैंने आंखों को कस के बंद कर लिया और अपने दोनों कानों को अपने हाथों से ढक लिया।

मैंने जब आंखे खोल कर देखा तो मुझसे थोड़ी दूर में ही वह आदमी खड़ा था, सारे गार्डों ने अभी भी मुझ पर गन पॉइंट किया हुआ था

पर हर एक गार्ड और नौकरों कि नज़ारे जमीन की तरफ थी। मैंने अपने आप को संभाला,एक गहरी सांस ली और अपने हेलमेट को उतारने लगी।

, मैंने अपना हेलमेट उतारकर जमीन पर रखा। मैंने एक हल्के नीले रंग की शर्ट और एक ब्लैक पैंट पहनी हुई थी। मुझे बहुत शर्म भी आ रही थी और बहुत डर भी लग रहा था पर मेरे पास और कोई चारा नहीं था।

मै रोते हुए अपने शर्ट के बटन खोलने लग गई, जैसे ही मैं अपने पेट के पास के बटन को खोलना लगी उस आदमी ने कहा"स्टॉप!"


मैंने उसकी तरफ देखा ,वह सीधे चल कर मेरे पास आ रहा था, वह मेरे काफी ज्यादा करीब आकर खड़ा हो गया मैंने अपनी आंखें कसकर बंद कर ली। 

मुझे धीरे से अपने गले में एक टच महसूस होने लगा, उसने मेरे गले को अपने हाथों से पकड़ लिया और धीरे-धीरे अपनी पकड़ टाइट करने लगा।

मुझे बहुत ज्यादा डर लग रहा था और काफी अजीब भी लग रहा था उसने मेरी गर्दन पकड़ के अपनी तरफ खींचा जिससे मैं उसके इतने करीब आ गई कि उसकी सांसे मुझे महसूस हो रही थी।

उसने अपनी पकड़ और टाइट करी जिसके कारण मैंने झटके से अपनी आंखें खोली, उसका चेहरा मेरे चेहरे के बहुत ही ज्यादा करीब था उसकी नज़रें किसी शेर की तरह मुझे घूर रही थी। 

उसने मुझसे कहा"दफा हो जाओ यहां से ...और अगर तुमने किसी को कुछ भी बताया तो तुम्हारा जो हाल होगा वह तुम सोच भी नहीं सकती"ऐसा कहकर उसने एक झटके से मेरी गर्दन छोड़ दी और पलट के सीढ़ियों की तरफ जाने लगा। 


मैने तुरंत अपनी शर्ट के बटन लगाए,अपना हेलमेट उठाया और वहां से भाग कर निकल गई। मैने अपनी स्कूटी चालू कि और जल्दी ही वहां से निकल गई। 

ड्राइव करते समय मेरी आंखों के सामने वही सीन बार-बार आ रहा था,  जब मुझे यकीन हो गया कि मैं उस विला से बहुत दूर आ गई हूं तो मैंने कहीं शांत जगह पर अपनी स्कूटी रोकी, स्कूटी से उतरकर मैं गहरी सांस ली और अपने आप को संभाला पर अभी भी मैं डर के मारे कांप रही थी, लगभग 5 मिनट बाद मैंने अपने आप को पूरी तरह शांत किया।



कुछ देर बाद मैंने अपना हेलमेट पहना और स्कूटी स्टार्ट करने लगी, तभी मेरा फोन रिंग हुआ , मैंने फोन पॉकेट से निकाल कर देखा, मेरी मां का कॉल आ रहा था। 

मैंने कॉल अटेंड किया,"हेलो..हां मम्मी! मैं बस घर के लिए निकल..", तभी मेरी बात काटते हुए फोन की दूसरी तरफ से आवाज आई, "कमिनी कहीं की... किसके साथ इतनी रात को रंगरलियां मना रही है, अगर तू 5 मिनट में घर नहीं आई तो तेरी मां को मार डालूंगी", अचानक पीछे से मेरी मां के चीखने की आवाज आई और कॉल कट गया।


मैंने तुरंत स्कूटी स्टार्ट की और सीधे घर की तरफ जाने लगी। मैं बहुत डरी हुई थी, रास्ते में मैं भगवान से यही दुआ कर रही थी कि बस मेरी मां को कुछ न हुआ हो।


मै जल्द ही घर पहुंच गई, हड़बड़ाहट में मैने स्कूटी घर के सामने ही गिरा दी और दौड़ते हुए घर के अंदर गई। घर की हालत बहुत खराब थी, सारे सामान जमीन पर इधर उधर बिखरे हुए थे तभी एक जोर की चीख मेरी मां के कमरे से आई। 

मै भागकर उस तरफ गई, कमरे में मैने देखा मेरी मां जमीन पर लगभग बेहोश पड़ी है, मेरी सौतेली मां मेरी मां को चाबुक से मार रही थी और मेरे पिता बड़े आराम से ये नजारा देख रहे थे।

"रुको...!!", मैं चीखी और अपनी मां के पास जा कर उन्हें उठाने की कोशिश करने लगी,"मां...मां.. प्लीज उठो.. मां होश में आओ..", मैं रोने लगी ।

तभी मेरी सौतेली मां ने मुझे पीछे से बालों से कस कर पकड़ लिया और बड़े गुस्से से कहा,"कहां थी तू अब तक बता.. किसके साथ थी? नीच..!" और मुझे मेरे पिता के तरफ गिरा दिया।

मेरे पिता ने बड़े प्यार से मेरी सौतेली मां को कहा,"अरे! इसे कुछ मत करो , तुम्हें पता है न हमे अभी इसकी जरूरत है", 

मेरी मां जोर से चिल्लाई,"जैस्मीन! भाग जाओ यहां से.. जल्दी! कहीं दूर चला जाओ.. बचाओ खुद को बेटा"।

सौतेली मां ने मेरी मां को एक जोर की लात मारी जिससे मेरी मां के मुंह से खून आने लगा,"चुप कर कुतिया!" सौतेली मां ने कहा। 

मैने रोते हुए कहा "प्लीज मेरी मां को मत मारो... तुम लोग मेरी मां को इस तरह क्यों मार रहे हो? हमने तुम्हरा क्या बिगाड़ा है?? तुमलोगों ने हमे हमारे घर से निकाल दिया, सारी प्रॉपर्टी भी लेली तो अब हमे क्यों परेशान कर रहे हो??"


"मेरी प्यारी बेटी जैस्मीन.. मैं तुमसे एक छोटी सी मदद मांगने आया हूं। तुम मेरी मदद करोगी न बोलो..??" मेरे पिता ने एक शैतानी मुस्कान के साथ कहा।

"क.. क.. कैसी मदद?" मैने डरते हुए कहा।"देखो मेरी एक बहुत बड़ी डील होने वाली है जिसके लिए तुम्हे मेरी छोटी सी हेल्प करनी है... तुम्हे इस एड्रेस पर जाकर एक आदमी को खुश करना है" , ऐसा कहकर उन्होंने एक होटल का कार्ड मेरी तरफ बढ़ाया। 

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा,"देखो अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारी मां के साथ क्या होगा ये तो तुम जानती ही हो.."

मुझे बहुत बड़ा झटका लगा "क्या..? पर...पर मैं आपकी बेटी हूँ, आप ऐसा सोच भी कैसे सकते है?"मैंने कहा।

तभी सौतेली मां ने मुझे एक जोर का थप्पड़ मारा और मेरे पैर को जोर से कुचलते हुए कहा,"जितना कहा है उतना कर नहीं तो तेरी खाल उधेड़ दूंगी", मैं दर्द में चीख पड़ी और अपना सिर हां में हिला दिया। 

सौतेली मां ने मेरे हाथों से अपना सैंडल हटाया। मेरे पिता ने जाते हुए कहा"कल रात ठीक 10 बजे इस होटल में पहुंच जाना"और दोनों घर से चले गए।


मैने अपने आंसू पोछे और एंबुलेंस को कॉल किया। कुछ देर में एंबुलेंस आ गई। मैंने अपनी मां को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया और मेरे हाथ की भी ड्रेसिंग हो गई। 

कुछ देर बाद डॉक्टर ने आकर मुझे सांत्वना देते हुए कहा" तुम्हारी मां अब ठीक है , तुम कहो तो पुलिस को कॉल करु? तुम कबतक ये सब झेलते रहोगे.. वैसे भी तुम्हे पता है न तुम्हारी मां के स्टमक कैंसर का इलाज चल रहा है.. पर ऐसे में तो वो जल्द ही मर जाएगी",


"डॉक्टर.. पुलिस को कॉल करने का कोई मतलब नहीं है मेरे पिता इस शहर के रहीस आदमी है.. तो पुलिस को कॉल करने का कोई मतलब नहीं होगा.. उलटा अगर उन्हें मालूम हुआ तो वो कहीं मेरी मां को और चोट न पहुंचा दे "मैने रोते हुए सिर झुका कर कहा।