Parvaah - 3 in Hindi Motivational Stories by Aanchal Sharma books and stories PDF | परवाह - पार्ट 3

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परवाह - पार्ट 3

सरला के जाने को अब दो साल बीत चुके थे ।
लेकिन उनके बिना पायल का हर दिन अधूरा सा था ।
वो हर चीज़ में मां को ढूंढती — उनके पुराने चश्मे, वो टूटी रोटी बेलने वाली बेलन, वो हलवे की मिठास… और सबसे ज्यादा — उनकी परवाह ।

पायल अब एक स्कूल में पढ़ाती थी — एक N G O स्कूल में, जहां गरीब और अनाथ बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती थी ।

वहीं उसकी मुलाकात हुई " छोटी माही " से।
पांच साल की एक नन्हीं सी बच्ची, जो बहुत चुपचाप रहती थी। कोई दोस्त नहीं, कोई हंसी नहीं, आंखों में अजीब सी गहराई थी। उसके माता - पिता एक हादसे में चल बसे थे, और अब वो शेल्टर होम में रहती थी।


एक दिन, क्लास के बाद माही पायल के पास आकर बोली —
" मैम, क्या आप भी मेरी मम्मी की तरह मुझे छोड़ देंगी ? मैं तो सबको बोझ लगती हूं…"

पायल का दिल चीर गया।

उसने माही को गोद में उठाया, और कुछ नहीं कहा… बस उसे सीने से लगा लिया।
" मां " शब्द उसके मुंह से नहीं निकला, पर " परवाह " उसके आंसुओं से झलक रही थी।



उस दिन के बाद पायल ने अपने जीवन का सबसे बड़ा निर्णय लिया —
माही को गोद लेना।

जब उसने कानूनी प्रक्रिया शुरू की, तो कई लोगों ने फिर वही सवाल उठाए —
"क्यों अनाथ बच्ची को गोद ले रही हो? "
"अपनी शादी का क्या? भविष्य का क्या?"

पर पायल अब जवाब देना जानती थी।
"जब मेरी मां ने मुझे बिना खून के रिश्ता अपनाया, तो क्या मैं उस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा सकती? मेरी मां ने मुझे सिखाया था — जो दिल से अपना हो, वही असली होता है।"


माही अब पायल को "मम्मा" कहने लगी थी।
वो सुबह उसका टिफिन पैक करती, शाम को उसके साथ होमवर्क करती।
कभी मां की चूड़ियां पहन लेती, तो कहती —
"मम्मा, आप सरला नानी की तरह लग रही हो।"

पायल की आंखें भर आतीं।
सरला की तस्वीर अब घर की सबसे ऊँची जगह पर रखी थी — उसके नीचे दीप जलता था, और माही हर रात उस तस्वीर को "नानी मां" कहकर प्रणाम करती।


एक दिन स्कूल में "मदर्स डे" कार्यक्रम था।
हर बच्चा अपनी मां के बारे में कुछ कह रहा था।

जब माही की बारी आई, उसने मंच पर जाकर कहा —

"मेरी मम्मा मुझे अपने पेट से नहीं लाईं, पर उन्होंने मुझे अपने दिल में जगह दी।"

"वो मुझे डांटती हैं, पढ़ाती हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा मेरी परवाह करती हैं। और मैंने सीखा है — मम्मा से नहीं, परवाह से मां बना जाता है।"

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
और पीछे बैठी पायल की आंखों से आंसू बह निकले —
वो आंसू ममता के थे, कृतज्ञता के थे, और उस "परवाह" के थे जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बहती चली गई।


कभी एक सौतेली मां ने परवाह करके एक बच्ची को संवार दिया…
आज वही बच्ची किसी और की मां बन गई।

कभी रोटियों से परवाह जताई गई थी…
आज माही के लिए वही रोटियां प्यार बन चुकी थीं।

खून से रिश्ते नहीं बनते, परवाह से बनते हैं।
और जब परवाह विरासत बन जाए —
तो जिंदगी फिर किसी खून की मोहताज नहीं रहती।