🌧️ अंजान
लेखक: राज फुलवरे
🕯️ भाग 1 — हसीना की दस्तकरात धीरे-धीरे अपनी नमी फैला रही थी।बाहर आसमान जैसे किसी पुराने ज़ख्म की तरह गरज रहा था —बिजली की चमक हर कुछ मिनट में कमरे की दीवारों पर नाच जाती।बारिश की बूँदें खिड़की के शीशे पर टिक-टिक करतीं,और उस आवाज़ में एक अजीब सुकून भी था और एक अजीब बेचैनी भी।शहर की सड़कें खाली थीं —लैम्पपोस्ट के नीचे गिरती बूँदें सुनहरी लग रही थीं,और हवा के झोंकों से सूखे पत्ते इधर-उधर भाग रहे थे।---✈️ अजय — उड़ान का आदमी, ज़मीन पर तन्हाअजय खिड़की के पास खड़ा था।उसकी आँखों में एक थकान थी — वो थकान जो सफ़र से नहीं, ज़िंदगी से आती है।कुछ महीने पहले ही उसे एयरलाइन में नौकरी मिली थी।अब ज़िंदगी में सब कुछ नया था —नई कार, नया घर, नया शहर,बस पुराना वही रिश्ता — उसका छोटा भाई बंटी।> बंटी उसके लिए सब कुछ था —माँ-बाप के जाने के बाद दोनों ने एक-दूसरे को संभाला था।अजय खिड़की से बाहर देखता हुआ सोच में डूबा था।“बारिश में कुछ अजीब बात होती है… हर बूंद जैसे किसी याद को जगाती है…”टीवी चल रहा था,न्यूज़ ऐंकर की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी —> “राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक कार दुर्घटना…कार में सवार युवती की मौके पर ही मौत…”अजय ने चैनल बदल दिया।स्क्रीन पर फिल्म का गाना चल पड़ा — लेकिन वो भी अधूरा लगा।> “हर बारिश में कुछ बुरा ही क्यों होता है…”उसने धीमे स्वर में कहा, जैसे खुद से बात कर रहा हो।---☕ रसोई का सन्नाटारसोई में जाकर उसने गैस ऑन की।पानी की केतली में धुआँ उठने लगा।कमरे की हल्की पीली रोशनी और बाहर की काली रात का विरोध बड़ा अजीब लग रहा था।बंटी अभी तक नहीं लौटा था।वो अपने दोस्त राहुल के घर खेलने गया था।अजय ने फोन देखा — नेटवर्क नहीं था।बारिश इतनी तेज़ थी कि मोबाइल सिग्नल तक डूब गए थे।> “उसे अब तक आ जाना चाहिए था…”अजय ने खुद से कहा और केतली बंद कर दी।---🌩️ रात का नौ बजा सन्नाटाघड़ी ने नौ का घंटा बजाया।बाहर बादलों की गरज के साथ बिजली चमकी,और तभी —“टिंग-टॉन्ग…”दरवाज़े की घंटी गूँज उठी।इतनी तेज़ कि अजय एकदम चौंक गया।> “कौन होगा इस वक्त?”उसने धीरे से कहा।उसके कदम दरवाज़े की ओर बढ़े।हर कदम के साथ फर्श की लकड़ी कर्र-कर्र कर रही थी।उसने दरवाज़ा खोला —और पलभर के लिए उसका दिल रुक गया।---💧 दरवाज़े पर खड़ी हसीनासामने एक युवती खड़ी थी —भीगी हुई, काँपती हुई,सफेद शर्ट शरीर से चिपकी हुई, बालों से पानी टपक रहा था।चेहरा… जैसे किसी फिल्म का सीन हो —गोरी, पर डरी हुई।> “सॉरी…”उसकी आवाज़ धीमी थी, ठंडी हवा में काँपती हुई।“मेरी कार यहीं पास में खराब हो गई है।फोन डेड है। क्या मैं थोड़ी देर यहाँ रुक सकती हूँ?”अजय ने बिना कुछ सोचे कहा —> “हाँ, हाँ, ज़रूर। अंदर आइए, आप बहुत भीग गई हैं।”उसने तौलिया और अपने पुराने सूखे कपड़े निकाले।> “ये लीजिए, बाथरूम उधर है। आप बदल लीजिए, मैं चाय बना देता हूँ।”लड़की (हल्की मुस्कान के साथ): “थैंक यू… बहुत मेहरबानी।”वो बाथरूम की ओर चली गई।उसके गीले पैरों के निशान फर्श पर रह गए —हर कदम जैसे एक रहस्य छोड़ गया हो।---🌫️ अजय की उलझनरसोई में पानी उबल रहा था,लेकिन अजय की सोच कहीं और थी।“इतनी रात को अकेली… कार खराब… और इतनी खूबसूरत…”उसने खुद से कहा और हँस पड़ा।> “काश ये थोड़ी देर और रुक जाए…”बाहर से बिजली चमकी,कमरे की दीवारें एक पल को उजली हुईं और फिर अंधेरे में डूब गईं।---🚪 बंटी की वापसीदरवाज़ा अचानक खुला।“भैया!!” — बंटी अंदर आया, भीगा हुआ, हांफता हुआ।> अजय (चौंककर): “अरे तू भीग गया! छाता कहाँ है?”बंटी: “छाता उड़ गया हवा में! लेकिन सुनिए भैया… अभी मोड़ पर बड़ा एक्सीडेंट हुआ है!”अजय (गंभीर होकर): “कौन-सा एक्सीडेंट?”बंटी: “एक लड़की की कार जल गई… पुलिस आई थी… मैंने फोटो ली है!”अजय के हाथ से कप गिर गया।> “क्या किसी को देखा तुमने?”बंटी: “नहीं भैया… बस इतना पता है कि लड़की बहुत सुंदर थी…”“सुंदर थी…”ये शब्द अजय के कानों में गूंज गए।उसने ऊपर नज़र उठाई —वो तो बाथरूम में है…---👻 सन्नाटा और डरअजय सीढ़ियाँ चढ़ा।बाथरूम का दरवाज़ा आधा खुला था।> “हैलो… आप ठीक हैं?”कोई जवाब नहीं।वो अंदर गया —बाथरूम खाली था।आईने पर धुंध जमी थी,और नीचे वही सूखे कपड़े पड़े थे जो उसने दिए थे।गीले कपड़े गायब थे।आईने पर लिखा था —> “थोड़ा देर रुकने आई थी…”अजय के हाथ काँप गए।वो नीचे भागा।> “बंटी! जल्दी अपना फोन दिखा!”बंटी ने फोन खोला।फोटो में वही चेहरा था —वही लड़की, वही मुस्कान,बस अब वो इस दुनिया में नहीं थी।बाहर बिजली चमकी।लाइट झिलमिलाई और चली गई।सन्नाटा गहरा गया।ऊपर कमरे से “ठक… ठक…” की धीमी आवाज़ आई।> बंटी (डरकर): “भैया… कोई ऊपर है क्या?”अजय (धीरे से): “शायद हवा होगी…”लेकिन दोनों जानते थे —ये सिर्फ हवा नहीं थी।