tujh sang preet lagaai in Hindi Women Focused by Sunita Roy books and stories PDF | तुझ संग प्रीत लगायी ....

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तुझ संग प्रीत लगायी ....

क्या  हो जब  प्रेम  प्रताड़ना  बन  जाय  और  जीने  का  सबब  भी...


मैं  वैभव  ....  

आज  दो साल  बाद  कैलिफ़ोर्निया  से  वापस लौट  रहा  हूँ ....  तीन  साल  पहले  भी  मैं  यहां  आया था । पर  तब  में  सिर्फ वैभव  था  पर  आज  ..... आज  मैं  विभा  का  वैभव  हूँ । तब  भी  विभा  का  नाम  मेरे  वजूद  से  जुड़ा  था  । वह बात  अलग थी कि  मैने  उसे अपने  मन  में  स्वीकारा  नहीं  था । मैं  उस  किस्म  का  इंसान  हूँ  ना ... जो  बस  मानते नही  है । जानते  सब  है,समझते  सब  है , बस  स्वीकारते  नहीं  है । ऐसा  नहीं  है  कि  वे  स्वीकारना  नहीं  चाहते ...!! बेशक  चाहते  पर  बस  स्वीकारते  नहीं  है । पर  आज  मैं  स्वीकारना  चाहता  हूँ । 

इन  दो सालो  में  मेरी  विभा  से  कोई  बात  नहीं  हुई । न  फ़ोन  .. न  मैसेज ... न कोई  चैट ..  ना  कोई  कॉल ... कुछ  भी  नहीं .. पहले भी  हमारी  बाते  कहाँ  होती  थी ....!! पर  तब  लगता  था  जैसे  हमे शब्दों  की  जरुरत  ही  नहीं । मेरा  मौन  जाने  कैसे वह समझ  जाती ... और  मैं ... मैं  तो  उसकी  आँखों  की  पुतलियों को  भी  देख  कर  समझ  जाया  करता  था । बशर्ते ... मोहतरमा  वह  भी  मुझसे छुपा  न  ले ... !!

इसलिए  तो याद  भी  नहीं  किया मैने इन्हें कैसे करता...?? व्यस्तता  इतनी  थी  कि  कर  ही  नहीं  पाया ... पर  क्या  भूल  भी  पाया  इन्हें ...!! वह तो  सोते  जागते  उठते  बैठते  काम  में  आराम  हर  पल  मुझ पर  काबिज  थी । बिना  किसी  अतिरिक्त  परिश्रम  के ... जैसे  सांसे  होती  है न ... इंसान  ज़िंदा  रहे  तो  आती  जाती  रहती  है  बिना  किसी  परिश्रम  के ... बस  उसी  तरह  कुछ ...!!  

पर  वह .... !!उसे  क्या  मैं  एक  बार  भी  याद  न  आया ..?? कम  से  कम  एक  बार  झगड़  ही  लेती  मुझसे ... पर  मैं  भी  कौन  सी   खुली  आँखों  से सपने  देख रहा  था । जिनके शब्द  ही  दुर्लभ  हो  वह  झगड़े  भी  कैसे ...?? वह  भी  मुझसे ... जिसके  सामने खासकर  मौन  व्रत  रक्खा  जाता  था .. और  मैं  कॉल  की  उमींद  कर  रहा  था । जब  भी  सोचता  हूँ  जी  जल  जाता  है  मेरा ....  क्या  वह  नहीं जानती  थी ... ऐसा  ही  हूँ  मैं ...!! नही  आती  है  मुझे  वह  कला  जिसमे लोग अपनी  भावनाओं  को  शब्दों  में  पिरो  देते  है  ...... पर  वह  क्या  इतना  भी  मुझे  न  समझी  थी ...?? 

और  मैं .... मैं  क्या  कर  रहा  हूँ ....??इतनी  उपेक्षा  के  बाद  कैलिफ़ोर्निया  से  लौटकर   मुझे  अपने  घर दिल्ली लौटना  चाहिए  ...  पर  मैं  जा  रहा  हूँ अपनी विभा  के  घर ।

मोबाइल  पर  कैब  ड्राइवर  का  कॉल  आया । और  अब  मुझे  अपनी  यादो   के  गलियारे  को  मुक्त  करना  पड़ा । उसका  घर  आजमगढ़  में  है । मैं  बनारस  स्टेशन  पर  ही  उतर  गया । वहाँ  से  कैब  बुक  कर  ली  थी । मुझे  अब  जल्द  से  जल्द  उसे  देखना  था । ये  दो  साल  जाने  कैसे  सब्र  कर  बिता  दिए  थे  मैने ..  पर  अब ये  दो  चार  घंटे  मुश्किल  पड़  रहे  थे । समझ  नहीं  आ  रहा था  उससे  मिलूंगा  तो  पहले  उसे  प्यार  से  निहारूँगा  या  फिर ... गुस्से  में  झिड़कूंगा ...!! गुस्सा ... हां  गुस्सा  तो  हूँ  मैं  उससे ... चाहे  जो  कुछ  भी  हो  उसकी  हिम्मत  कैसे  हुयी  मुझे  डाइवोर्स  पेपर्स  भेजने  की ..!! मेरे  वापस  लौटने  का  इंतज़ार  भी  नहीं  किया ...  दो  साल  की  ट्रेनिंग  के  लिए  कैलिफ़ोर्निया  गया  था ...  ऐसी  भी  क्या  आफत  आ  गयी  थी ...??  जिद्दी  मगरूर  घमंडी  जैसे  भी  हूँ ....  वापस   आता  न ...  मैं  आखिर ......!! प्यार  जताया  नहीं  तो  क्या  प्यार  नहीं  करता  मैं ... !!


कैब  में  बैठा  तो  वही  जाने  पहचाने  रास्ते  दिल  दिमाग  में  दस्तक  देने  लगे ..... आंखे  खुद  ब खुद  अतीत  के  गलियारों  की  टोह   में  बंद  हो  गयी । कैब  की सीट  से अपनी  पुश्त  टिकाए  मैने  भी  उन  यादो   के  लिए  अपने  मन  के  झरोखों  को  खोल  दिया ....







सुनिये ......

उफ़ ... !! मोहतरमा  का  वही  एक  टुकड़ा  जुमला ... उससे  तो  आगे  ये  कहेंगी  नहीं ...  बल्कि  खड़े  खड़े  इंतज़ार  में  दस  मिनट  ही  क्यों  ना  बिता  दे । पिछले  सात  महिनो  में  तो  ये  बात  अब  मैं  भी  समझ  चुका  हूँ ।  

आखिर  मैने  अपनी  क्लांत  आंखे ,  जिसमे  कुछ  गुस्सा    जो विगत  दिनों  का  था .. , विभा  की  तरफ  कर  ही  दी । और  वह  हमेशा  की  तरह  आज  भी  वैसे  ही  शांत  सी  दिखी । समुन्दर सी  आंखे .. जिनमे क्रोध , ख़ुशी , गम  , चुलबुलाहट  जाने  क्या  कुछ  होगा ।  पर  सब  अंदर  दफ़्न   ...!!   जैसे  समुन्दर  अपने  अथाह  तल   में  जाने  क्या  कुछ  समेटे  रहता  है  । बिलकुल  वैसे  ही ... ये  भी  अपनी  आँखों  में  जाने  क्या  कुछ  समेटे  रहती  है  जो  मजाल  भी  है  किसी  को  दिख  जाय ...मुझे  भी 
कभी  पता  ही  नहीं  चल   पाया । तो  मोहतरमा  मेरी  तिलस्मी  सी  ....!! पर  खूबसूरत  तिलस्म .. जो  अभी  रूठी  हुयी  भी  है ... और  ये  शिकायत  करने  से  रहीं । दूसरे  पति  मरे  जाते  है  बीवियों  की  शिकायतो  से  और  एक  मैं  हूँ  जो  चाहता  हूँ  मोहतरमा  शिकायत  तो  करे  कम  से  कम ... पर  कहाँ ....?!  


और  इनकी  विरक्ति इसके  तो  क्या  ही  कहने  ..अपने  बारे  में  मैं जब  भी जितना  भी  हवाई  किले  बनाता  हूँ  इन   देवीजी  के  पास  आकर  सब  धराशायी  हो  जाती  है । कोई  और  होती  तो   मेरे  चेहरे  मुहरे  पर  ही  आसक्त  हो  जाती  ।  मेरी  इतनी  ऊँची  पोस्ट,  इनकम  और  इंसेंटिव  तो  दूर  की  बात  थी ।  पर  ये  मोहतरमा  तो  मुझ जैसे  ऑयऑयटियन  को हमेशा  आम  ही  बनाये    रहने  पर  तुली  रहती  है । मुझपर तो  खुद  इतराती  नहीं उल्टे मेरा  खुदपर इतराना  भी  जाया  हो  जाता  है ।



विभा  ने  मेरे  सामने  चाय  नाश्ता  का  प्लेट  रख  दिया और  खुद  एक  कोने  में  खड़ी  हो  गयी ।  मैने  उसे  नजर  भर  कर  देखा  तो  जाने  क्यों  एक  तसल्ली  सी  मिली ।  पिछले  दो  घंटे  जो  धुल  मिटटी  में  कच्ची  सड़क  पर  चलकर  बिताये  थे,  वह  थकावट  थोड़ी  कम   होती  महसूस  हुयी ।  पर  वो  मजाल  था  मेरी  तरफ  आँख  उठाकर  देख  ले ।और  मैने  भी  भला  अपनी 
आतुरता  की  कहाँ  भनक  लगने  दी ? वो  शायद  डरती  हो  मुझसे !!  उम्र  में  भी  तो  हमारे  छह  साल  का  अंतर  था । और   फिर  मैने  भी   कभी  कोशिश  ही  नहीं  की  उसकी  हिचक  कम  करूँ । आखिर  उसे  भी  तो  पता चले  मैं  कितना  व्यस्त  रहता  हूँ । और  उसके  सामने  तो  कुछ  ज्यादा  ही ... पर  आश्चर्य  है  मोहतरमा  ने  शिकायत  तो  दूर  मेरी  व्यस्तता  में  कभी  खलल  तक  नहीं  डाली । और  मैं  भी  क्या  करता  अब तो  खुद ही  अपने  स्वांग  से  खुन्नस  सी  आती  है ।


मैने  चाय  की  एक  घूंट  ली  और  अपनी  टाई  की  क्नॉट  को  ढीला  करने  लगा । उसने  तुरंत  ही  कूलर  ऑन  कर  दिया । ठंढी  हवा  पाकर  मैने  राहत  की  सांस  ली । मैने   कूलर  को   देखा  बिलकुल  नया  लग  रहा  था  । ये  जानती  थी  । बिना  ऐसी  के  मेरा  गुजारा  नहीं । तभी  मेरी   सहूलियत  के  लिया  लाया  गया  होगा  । ये ख्याल  आते  ही  मेरे  चेहरे  पर  मुस्कराहट  आ  गयी । आखिर  दामाद  हूँ । और  पहली  बार  आया  हूँ  तो  इतनी  आवभगत  तो  बनती  ही  है । 

जी ... आप  फ्रेश  हो  जाये ... जरुरत  का  सारा  सामान  वहीं है ।


फिर  वही  इनके  टुकड़े  टुकड़े  जुमले .... कुछ  और  भी  कह  सकती  थी ... मसलन  मैं  कैसा  हूँ .. ?सफर  कैसा  रहा ... ? घर  में  सभी  कैसे है ? 

हहह ....पर  मैं  भी  क्या  सोच रहां  हूँ ।  घर  में  तो  इनकी सबसे कम  बाते  अगर  किसी  से  होती  है  तो  वह  मैं  ही हूँ ।अगर  औपचारिकता    जैसे ... चाय  ,  कॉफ़ी , डिनर , तोलिया , कपड़े ... वैगरह  वैगरह  की  आवश्यकता ना  होती , तो  शायद  मोहतरमा  और  मेरे  बीच  में  कोई  बात  भी  नहीं  होती ।  तो  फिर  ये  मुझसे  घर  के  हाल  चाल  पूछे ... ये  तो  खुली  आँखों  से  सपने  देखने  जैसी  बात   होगी । इनफैक्ट   अगर  मैं  ये  कहूं  जो  घर  में  सभी को  पता  चल  जाता  है  वह  सबसे  अंत  में  मुझे  पता  चलता  है,   तो  भी  कोई  अतिश्योक्ति  नहीं  होगी । इनके  लिये  तो  घर  का  सबसे  उपेक्षित  प्राणी   मैं  ही  हूँ ... यू  क्नोव  सवर्णो  के  बीच कायस्थ  जैसा  .... मुझसे  तो  शब्द  भी  इतने  नपे  तुले  बोले  जाते  है इनके  द्वारा । जैसे  आइंस्टीन  का  कोई  फार्मूला  बोल  रहीं  हो  .... एक  भी  शब्द   अपनी  यथा  स्थिति  से  इधर  उधर  हो  गये  तो  नंबर  कट  हो  जायेंगे ...



चाय  का  कप  रख  दिया  मैने .... इतनी  झुँझलहट  आयी  कि  क्या  ही  कहूँ ....!!  हां  तो  मैं  भी  कौन  सा  मरा  जा  रहा  हूँ  इनसे  बात  किये   बिना .... !!  इनका पहला   करवा  चौथ  और  माँ  की जिद  ना  होती  तो  मैं इस  गांव  में  कभी  कदम  तक  ना  रखता  .... अरे  ये  गांव  देहात   मेरी  प्रतिष्ठा  को  भला  जंचता  ही  कहाँ  है ...?!  पर  अपनी  अम्मा  का  क्या  ही  करूं ??   जो  हर  वक्त ... विभा ... विभा ... विभा की   ही  रट  लगाए  रहती  है .... जाने  कौन  सा  जादू  टोना  कर  रक्खा  है ...  बैग  से  कपड़े  निकालने  गया , तो  ये  एक  जोड़ी  कपड़े  हाथों  में  लिये  ही  खड़ी  थी ।  इंकार  भी  ना  कर   पाया ।  कपड़े  बिलकुल  वैसे  ही  थे  जैसे  मैं  पहनता   हूँ । आखिर  मै उन्हे  लिये  गुसलखाने  की  तरफ  बढ़  ही  गया । शायद  मेरी  अनुपस्थिति  में  विभा  ने  भी  चैन  की  सांस  ली  होगी ।


उसके  एक्सप्रेशन  देखने  के  लिये  तो  मैंनै   कितनी  ही  बार  अपना  तौलिया  तो  कभी  अपनी  टाई  तो  कभी  अपनी  जुराबे   जानबूझकर  छुपाई थी ... हां  कभी  कभी   अपने  शर्ट में  सिलवटे भी खुद  ही  डाल  दिया  करता था  । हां  जानता  हूँ  मुझ  जैसे  ऑयऑयटियन  को  बच्चो  जैसे  ये  हरकते   शोभा नहीं  देती  थी ....पर  करता  भी  क्या .. जिस पति  की पत्नी  विभा  जैसी हो  उन्हे  तो  अपनी  तरफ  उनका  रुख  करने  के  लिये  ऐसी  हरकते  तो  करनी  ही  पड़ती  है ।  वरना   ये  तो  कभी  मुझे  सवर्णो  के वर्ग मे आने  ही  ना  दे । यानी  मोहतरना  कभी    मुझ  जैसे   गोरे   चिट्टे   दबंग  डैशिंग  को  कायस्थ  की  श्रेणी  से  कभी  ऊपर  उठने  ही  ना  दे ... अरे  .. कहने  का  मतलब  है  मैडमजी  मुझ  पर  अपनी  नजरे  इनायत  ही  कहाँ  करती  थी  ।  तो  क्या  करता  बहाने  तो  ढूंढने  ही  पड़ते  है थे ना ... मेरी  एक   ही  तो  पत्नी  थी ... वैसे  ज्यादतरों  की  तो  एक  ही  होती  है ... पर  मैं  नव  विवाहित  होकर  थोड़ा  एडवांटेज  तो  ले  ही  सकता  था... और  मेरी हालत  ऐसी  ही थी   कि  मोहतरमा  पर  आसक्त  भी था  ... पर  पहले  दिन  से  जो  अपनी  दम्भी  गरिमा  बनायी  थी मुझे  उसे  बरकरार  भी  तो रखना था  .. तो  फिर  बहाने  ही  सही ..कौन  सा  मैडमजी  समझ  पाती  होगीं ..

मैं  पैर   पटक  पटक  कर  बड़बड़ाता  था तो  ये  मेरी  छुपाई  चींजों  को मिशन  मंगल  की  तरह  ढूंढती थी ।  और  इस  दौरान  मैं  अपने  तंज  भरे  जुमलों से  उसे  परेशान  करने  में  कोई  कसर नहीं  छोड़ता  था और  जब  वह   मेरी  चींजों  को  ढूंढकर  मेरे  सामने  रखती थी  ...उसका  वह  पसीने  से  तर  बतर  चेहरा ... चढ़ती  उतरती  फूलती  सांसे  और  डर  से  गुलाबी  हो  आया  मुखमण्डल  मुझे  इतना  प्यारा  लगता  है  कि उस  वक्त  दिल  चाहता था  कि उसे  कस  के  अपने  सीने  से  लगा  लूँ । और  उसके  गुलाबी  गालों  को  अपने  होठों  के  स्पर्श  से  और  भी  गहरा  शरबती  कर  दूँ  और  उसकी  नीची  झुकी  पलकों  को  अपने  पलकों  से  ऊपर  उठा  दू । जाने  कब  वो  दिन  आयेगा  ... और  जाने  तब   क्या  ही  आलम  होगा ... 

वाकई  ये  मेरे  जैसे  छह  फुटिया  आदमी  के किसी  तरह    गले  तक  पहुँचती  पाँचफुटिया   लड़की  जो  मेरे  वामांग  के  आधे  हिस्से  को  भी  ना   ढक  पाये  किस  कदर  मुझे अपने  नियंत्रण  में  लेती  जा  रही  थी ।और मेरा  आलम  यह  था  कि  मैं  तो  कभी  कभी  बिन   पिये   ही  नशे  में  झूम  जाता  था । पर  मजाल  है  जो  मै अपनी  इस  दिल  की  बदहाली  का  उसे   भनक  भी  लगने  दिया  हूँ ।


सच  पूछा  जाय  तो  मुझे  उसे  पैनिक  करना  बहुत  अच्छा  लगता था । बड़ी  सुकून  वाली   फीलिंग  आती  थी । बेड के   क्राउन  पर  सिर  टिकाये  गोद  में  लैपटॉप  लिये ,  अधलेटे  हुये  मौन आँखों  से  जब उसका  पीछा  करो  तो  वह  हंड्रेड  परसेंट   टेरर   और  डिप्रेशन   में आकर हिस्टेरिकल एक्टिविटी  करती  थी  । और  सच  में  ये  काफी  एन्जॉयबल होता  था ।  चेहरे  पर  गुस्से  की  गर्द  लपेटे  अंदर  से  दिल  खिखिला  उठता  था मेरा।


अभी बक़ाया है इक क़िस्त मुस्कुराहट की
अभी ग़मों का बराबर हिसाब कैसे हुआ..?

तुझ  संग  प्रीत  लगायी ....


Part ....2






सच  पूछा  जाय  तो  मुझे  उसे  पैनिक  करना  बहुत  अच्छा  लगता था । बड़ी  सुकून  वाली   फीलिंग  आती  थी । बेड के   क्राउन  पर  सिर  टिकाये  गोद  में  लैपटॉप  लिये ,  अधलेटे  हुये  मौन आँखों  से  जब उसका  पीछा  करो  तो  वह  हंड्रेड  परसेंट   टेरर   और  डिप्रेशन   में आकर हिस्टेरिकल एक्टिविटी  करती  थी  । और  सच  में  ये  काफी  एन्जॉयबल होता  था ।  चेहरे  पर  गुस्से  की  गर्द  लपेटे  अंदर  से  दिल  खिखिला  उठता  था मेरा।


माफ़  किजियेगा  जीजाजी  बस  अभी  कनेक्ट  कर  देता   हूँ ।

करंट  चला  गया  था  और कुंदन  इन्वर्टर   से  तारों  की  कुछ  सेटिंग  कर  रहा  था ।  गर्मी  में  मुझे  कितनी   उतकाहट  होती  है  जैसे  सभी  इसका  विशेष  ध्यान  दे  रहे  थे ।  

कुंदन  ने  कहा तो  मैं  सरपट  अपने  ख्यालों  से  बाहर  दौड़ता  भागता  आया । कुंदन  विभा  का  भाई .... शादी  में  ही  एक  दो  बार  देखा  था । सोलह  साल  की  उम्र  में  जरुरत  से  ज्यादा  ही  संजीदा  था । और  मासूमियत ... मानो  इन भाई  बहन  ने  तो  उसपर  अपना  पेटेंट  ही  लिखवा  लिया था । खैर इस  वक्त  तो  उसकी  मासूमियत  भी  मुझे  लुभा  न  पायी  थी । मन  खिन्न  सा होकर खुन्नस  से  भर गया  था । मेरी आजकल  की  इस  नयी  नयी  खुन्नस ने  मुझे खासा  परेशान  किया था  । जब  मैं  मोहतरमा  के  बारे  में सोचता था  जाने  किस  खुमारी  में  सैर  करने  लगता  था और  उस वक्त  कोई  मेरे  ख्यालों  में बस  विघ्न  न  डाले ... पर  जब  कोई  उन  पर 
अपना  सेंध  डालता था  सच में  मुझे खासी  चिढ़  मचती  थी।  वैसी  ही  चिढ़  जैसे  किसी  बच्चे  के  हाथ  में  उसकी मनपसंद  फ्लेवर  की  आइसक्रीम  देकर  उससे  वापस  छीन  लेना । बस  मज़बूरी  थी  कि  पैर  पटक  नहीं  सकता  वरना फीलिंग  बस  वही जमींन  पर  लोट  पोट  मचाने  की  होती  थी । 



कुंदन  अपने  काम  में  व्यस्त  था  तो अब जाकर  कहीं  मेरी  नजरो  को  फुर्सत  मिली  थी  और  वे (मेरी  नजरे ) कमरे  का  मुयाईना करने  लगी थी।  और   रुकी  भी  तो  मैडमजी  की  तस्वीर  के  ही  सामने ... वाकई  मुझ  जैसे  आवारा  को  बाँध  ले ... ये  कुव्वत  तो  बस मैडमजी  में  ही   थी।मैने  ध्यान  दिया  वह किसी  से  कोई  मैडल  ग्रहण  कर  रही  थी ।  तौलिये  को  साइड  में  रक्खे  मैं  उसी  तस्वीर  को  निहार  रहा  था  कि कमरे  में  वापस  जान  आ  गयी  मतलब  हवा  आ  गयी ।  मेरे  लिये  तो  जान  ही   थी। मैने  राहत  की  सांस  ली  कि   कुंदन  मेरे  पास  आकर  खड़ा  हो  गया । 


अपने  कॉलेज  में  दी  ने  डिबेट  कम्पटीशन  जीता  था  ये  उसी  की  तस्वीर  है ।

उसकी  चहकती  आवाज  बता  रही  थी  कि  उसे  कितना  गर्व था  विभा पर ।  मेरे  चेहरे  पर  भी  मुस्कराहट  आ  गयी । आखिर उसकी  बहन  खालिस  पत्नी  थी  मेरी ।  पर  मेरी  मुस्कराहट  जाती  रही .... कौन  सा  पति  होगा  भला  मेरी  तरह  अजूबा  सा  । जो  ये  भी  ना  जानता   हो  उसकी  पत्नी  कहाँ  तक  पढ़ी  है ..?  उसके  विषय  क्या  थे ...?? हां  एक  बार ... शायद  पहली  बार  कहूं ... या  फिर  अंतिम  बार  कहूं ... मोहतरमा  ने  अपनी  मर्जी  से  स्वेछा   से  मुझे  कुछ  कहा  था ....



जब  वह  ना  जाने  कितनी  झिझक  से  मुझे  रोकी  थी।  और  कहा  था  कुछ  बात  करनी  है .... मैं  सेल्फ  ऑब्सेस्सेड  इंसान  खुद  पर  ही  कितना  इतराया  था । सोचा  था  आखिर  मेरी  बेरुखी  के  आगे  झुकना  ही  पड़ा  ना ... !! चाहिये  होगा  कुछ  सामान ... उपहार  .. गहने  , कपड़े  वैगैराह .... पर  मैडम  जी तो  मैडमजी  ठहरी  । पंद्रह  मिनट  तक  उंगलिया  तोड़ते  मरोड़ते  आखिर  बोली  थी ....


क्या  मैं  आगे  पढ़  सकती  हूँ ...??

ओह्ह्ह .....गौश ....श ... मैने  तो  लाखों  का  बिल  मन  ही  मन  बना  लिया  था  । जितनी  हिचकिचाहट  इन्हे  थी  लगता  था जाने  कितने रुपये पॉकेट  से  खाली  होंगे  ...  और मैं  मगरूर  तैयार  था  इसके  लिये ... जेब  खाली  होती  है  तो होने  दो,  मेरी  श्रेष्ठता  जो  सिद्ध होती  । पर  इन्होने  तो  मेरे  हवाई  किले  को  एक  ही  सेकंड  में  धराशायी  कर  दिया ।मैने भी बातों  को  गोलमोल  कर  दिया ... मेरा  दिल  टूटा   था  , भला  इनका  दिल  जुड़ा  ही  क्यों  रहे ...?  कुछ  हुज्जत  तो  इनके  हिस्से  भी  आनी  ही  चाहिये  ना ।  चाहता  तो  हां  कह  सकता  था  पर  मैने   गंभीरता  की  चादर  ओढ़े  कुछ  और  ही  कह  दिया ... ताकि  मुझे  आत्म तुष्टि  मिल  जाय ।  



देखो  विभा .... घर  में  माँ  अकेली  रहती  है । निशांत  भी  हॉस्टल  में  रहता  है ।मैने  शादी  की  बात  इसलिये  ही  स्वीकारी  थी  क्योंकि  अम्मा  चाहती  थी  कोई  आकर  घर  को  संभाल  ले ।  और  अब  तुम   पढ़ना  चाहती  हो ..!! मुझे  तुम्हारे  पढ़ायी  से  प्रॉब्लम  नहीं  है  । पर  तुम   ही  बताओ  तुम पढ़ायी  , घर , माँ  ,  सब  कैसे  मैनेज  कर पाओगी ...?  और  फिर  इसकी  कोई  ख़ास जरुरत   भी  मुझे  महसूस  नहीं  होती .... ऑय  मीन .... तुम  भी  नहीं  बैलेंस  कर  पाओगी ...

वैसे  भी घर  में  किसी  चीज  की कोई  कमी  नहीं है ... और  अगर  तुम्हे  कुछ  चाहिये  तो  बताओ  मैं  ला  दूंगा ।  इनफैक्ट  तुम्हारा  अकाउंट   ओपन  कर देता  हूँ   और  तुम  चाहो  तो  क्रेडिट  कार्ड  भी  दे  दूंगा ...  तुम  जैसे  चाहो  इसे  ऑपरेट   करो ...  मैं  कोई  सवाल  नहीं  करूँगा ... पर  प्लीस फिलहाल तुम  अपना  वक्त  घर  को  दो .... !! 

तुम  आंखे  झुकाये  चुप  खड़ी  थी । तुम्हारी  चुप्पी  ने  दिल  भेद  दिया  मेरा । मन  किया  कि  कह  दूँ  मेरी  जान  जितना  चाहे  उतना  पढों ... पर  उस  वक्त  कुछ  कह  ना  सका । अपनी  ही  कही  बात  को  एकदम   से  तुरंत  कैसे  नकार  देता । सो  मन  में  सोचा  कि  कुछ  दिन  बाद  हां  कह  दूंगा । पर  काम  के  चक्करों  में  ऐसा   भूला  कि  वह  दिन  आज  तक  नहीं  आया । तुम  सिर  झुकाए  अपने  पैरों  के  अंघूठे  से  जमींन  कुरेदती  रही ... शायद  कोई  बून्द  भी  तुम्हारे  आँखों   से  गिरी  थी ... और  सच  मानो  विभा  मेरा  दिल  चीत्कार  कर  उठा  था .. तुम्हे  यू  मायूस  देख  ही  नहीं  पाया  था  । इसलिए  तुम्हे वहीं खड़ा  छोड़  मैं  खुद  परे  हट  गया  था । पर  जाते  जाते  तुम्हारे  आत्मविश्वास  को  भी  तोडा  था  मैने .. और  उस वक्त  लगा था  सही  ही  हूँ मैं ...

अगर  तुम जॉब  में  इंटरेस्टेड  हो  तो  मैं  बता  दू  यहाँ  काफी  कम्पटीशन  है  । गांव  की  पढ़ाई  लेकर  यहाँ  सरवाइव नहीं  कर  पाओगी .... ऑय  डोंट  थिंक  इट्स  योर  कप  ऑफ़  टी विभा.... फॉर  द  मोमेंट  लीव  दिस   टॉपिक   ...

मैं  तुम्हे  इतना  कड़वा  नहीं  बोलना  चाहता  था । पर  जाने  कैसे  बोल  गया ... तुम्हे   गांव  का  ताना  मुझे  नहीं  देना  चाहिये  था । पर  जाने  कैसे  ये  मेरे  मुँह  से  निकल  गया । अगर  सच  पुछा  जाय  तो  शहर  की  लड़कियों  की  भीड़  में  तुम  मुझे  उन  सभी  से  से  बेहद  उम्दा   लगती  हो । पर  तुम  बिना   किसी  सवाल  जवाब  के  ख़ामोशी  से खड़ी  रही। और  मैं  खुद  को  झिड़कता  रहा ..



और   तुमने सचमुच  उस पल  के  बाद  कभी  वह  मुद्दा  दुबारा  उठाया  नहीं ... और  वह  मुद्दा  क्या ...  तुमने तो  दुबारा  कभी  कोई  भी  मुद्दा  मेरे  सामने  नहीं  उठाया ।  मुझे  तो  याद  भी  नहीं  पड़ता   तुम बिना  किसी  काम  मुझसे  कुछ  बोली  हो ...  तुम्हारे सामने तो  मुझे  प्रिंसिपल  वाली  फीलिंग  आती  है ... क्या  करूँ  तुम  रहती  ही  इतनी  डिसिप्लिन  में  है । जैसे  लगता  है  कोई  एक  गलती  करोगी और  मैं  तुम्हारा  कोर्ट  मार्शल  कर  दूंगा ... या  फिर  कह  दूंगा ... चलो  मैदान  के  दस  चक्कर  लगाओ ... या  फिर  रनिंग  विथ  नील  डाउन .... जाने   कितना  खूंखार  समझती हो  मुझे  ...



इसकी  वीडियो  भी  है  मेरे  पास .. आप  देखेंगे   जीजाजी ...!!


कुंदन  ने  तुम्हारे  इस  फोटो  की  वीडियो  के  बारे  में कहा मन  तो  उछल   कर  कहा  कि  कहूं दिखाओ  ...!!  दिखाओ ... मुझे  इस  विभा  पजल  को  सोल्व करना  है  । पर  गंभीरता  की  चादर  ओढ़े  ही  उसे  हां  में  स्वीकृति  दे  दी । और  वह   फटाफट  अपनी  उंगलिया अपनी  फ़ोन   स्क्रीन  पर  घुमाने  लगा । मन  तो  मेरा  कर  रहा  था  ज़रा  उचक  कर  ही  देख  लू  पर  मेरे  जैसे  ऑयऑयटियन  को  भला  ये  ज़ेब  ही  कहा  देता था..!!  मैं  अधीरता  में  पड़ा  रहा  जब  तक  कि  उसने  मोबाइल  मेरे  हाथों  में  ना  पकड़ा  दी ।  और  कितनी  ख़ुशी  मिली  मैं  बता  नहीं  सकता  जब  उसी  वक्त  किसी  ने  उसे  पुकारा  और  वह  मुझसे  माफ़ी  मांगकर   नीचे  चला  गया ।  अब  कम  से  कम  अपनी  मैडमजी  के  वीडियो  को  मैं  उलट  पुलट  कर  बार  बार  निर्विघ्न  देख  तो  सकता  था ।  मैने   तो  डिबेट  शब्द  जबसे  सुने  थे  तभी  से   कोमा  में  था । मैडम  और  डिबेट .... यहाँ  तो  हमेशा  शब्दों  का  अकाल  ही  देखा  था ... शादी  के शुरू  शुरू  में  तो  मैं  सीरियसली  डर  गया  था  कहीं  मोहतरमा  गूंगी  तो  नहीं ?




Respected teachers ,esteemed  principal , beloved fellow students  and  honorable  college  authorities . With  utmost  delight  and  gratitude , I  humbly  stand  before this  esteemed  gathering  today  to speak on women  empowerment. 

Women empowerment  is a crusial issue .  No  doubt  it is  gaining  immense  importance  world wide ...


वो  स्पीच  दे  रही  थी  और  मेरी   आंखे  भौच्चकी , कान  खड़े , और  दिमाग  लगभग  सुन्न  सा  हो  गया  था । उसकी  अंग्रेजी  का  एक्सेंट  गजब  था  और  कहाँ  मैं  उसे   गवार  समझता  था ।  और  समझता  क्या  मैने  तो  इंडाइरिक्ट्ली  जता  भी  दिया  था उसे।  मन  शर्मिदगी  से  भर  गया । ये  सोच  कर  नहीं  कि  वह  गवार  नहीं  है  बल्कि  यह  सोचकर  कि  अगर  उस  दिन  वह  अंग्रेजी  के  दो  चार  जुमले  मेरे  ऊपर  फेंक  कर पलटकर   मेरा  भ्रम तोड़कर   मुझे  मेरी  औकात  याद  दिला  ही  होती  तो  मेरी  क्या  ही  इज्जत  रह  जाती ... !! पर  आखिर  वह  चुप  क्यों  रह  गयी  जब  मैं  उसे  गांव की  पढाई  और  दिल्ली  का  कम्पटीशन  समझा  रहा  था .. !  मतलब  मैं  ही  बेवकूफ  था  या  मुझे  ट्रिगर  करके  बेवकूफ  बनाया  जा रहा  था .......

 जो  भी  था  मुझे  तिलमिलाहट  सी होने  लगी  थी । मन  किया  फ़ौरन  उसके सामने जाकर  खड़ा  हो  जाऊं  और  पूछू  उसकी  इस  हरकत  की  वजह ..?  जैसे  लगता  है मैडम  बतायेंगी  नहीं  तो  कभी  मुझे  पता  ही  नहीं  चलेगा ... मेरी  आँखों  के  सामने  उसका   डरा  डरा   चेहरा  आ  गया । कैसे  बड़ी  बड़ी  आँखों  से  मुझे  देखती   थी।

पर  अभी  हालत  ये  थे  कि  मैं कहाँ  मैडम  जी  का  वीडियो  उनके  चेहरे  को  सिर्फ  तकते   रहने  के  लिये  देखना  चाह  रहा  था । और  एक  ये  थी  कि  इतने  भारी  भारी  शब्द  इस्तमाल  कर  रहीं  थी  कि  दिमाग  सुन्न  हुआ  पड़ा  था । आँखे  चेहरे  पर  तो  नहीं  ठहरी  बल्कि  शब्दों  में  जरूर  ठिठक  गयीं ।


मैंने  झटपट  वीडियो  पॉज  किया  और  फोटो की  स्क्रीनशॉट्स  ली । ऊपर  लिखे  छोटे  अक्षरों  को  देखा  तो  वह  सेकंड  ईयर  मेडिकल  स्टूडेंट्स  का   फेस्ट  था  जिसमे  वह  अपना  परफॉरमेंस  दे  रही  थी ....

मेरा  हाथ  खुद  ब खुद  मेरी  भवों  को  रगड़ने  लगा ... यानी  मैडमजी  मेडिकल  स्टूडेंट्स  है ....  मैने  वीडियो  की साइड  व्यू की थोड़ी  और  खोजबीन  की  तो  जो  पता  चला  वह  थोड़ा  और   शॉकिंग  था  मेरे  लिये  .. क्योंकि  मैडम  जी  का  कॉलेज   गुड़गांव  का  एड्रेस  शो  कर  रहा  था ।  जो  हमारे  अपार्टमेंट  से  ज्यादा  से  ज्यादा  तीस  किलोमीटर्स  की  दूरी  पर  ही  होगा । अब  तो  मेरा  सर  ही  चकराने  लगा  था । यार ... इतने  महीनो  से  मैं  किस  भूल  भुलैया  में  जी  रहा  था । और  किसी  ने  मेरी  गलतफहमी भी  दूर  करने  की  जहमत  नहीं  उठायी । अम्मा  को  तो  मैं  कितनी  बार  शादी  से  इंकार  कर  चुका  था । एटलीस्ट  उन्हे  तो  मुझे  बताना  ही  चाहिये  था ...  पर  वो  बताती  भी  कैसे  ??  वो  मैं  ही  तो  था  जो  उस  वक्त  मुँह  फुलाये  फुलाये  घूम  रहा  था ।  कितना  कोफ़्त  भरा  भारी  भारी  माहौल  मैने  घर  का  बना  दिया  था । बात  भी  तो  मैं  किसी  से  नहीं  कर  रहा  था । कोई  मुझे  बताता  ही  क्या ...?? मुझे विभा  के  बारे  में  कोई  जानकारी  नहीं  थी  तो  इसका वास्तविक दोषी  मैं  ही  था ।अब  समझ  में  आ  रहा  है  कम्युनिकेशन  गैप  होने  से  क्या  होता  है । और  मिसअंडरस्टैंडिंग  कितना  नुक्सान  पहुंचा  सकती  है । आज  अगर  मैने  बातचीत  के  प्रावधान  खुले  रहते  , तो  शायद  अभी  इस  तरह  उल्लुओं  की  तरह  नहीं  बैठा  होता । ना  ही  अपनी  ही  बीवी  की  स्पाई  करने  की   जरुरत  होती ... 

खैर ... वह  इंसान  ही क्या  जो  खुद  को  पूरी  तरह  समझ  ले । मैं  ना  खुद  को  समझ   पाया  तो  कौन  सा  अनोखा  काम  हो  गया । मैने  फटाफट   कुंदन  के  मोबाइल  से  वह  वीडियो  अपने मोबाइल में  ट्रांसफर  किया  क्योंकि  विडीओ  बीस  मिनट  का  था  और  मैं  इसका  जर्रा  जर्रा  इत्मीनान  से  देखना  चाहता  था ।  और  अपनी  हेकड़ी  भी  बरकरार  रखना  चाहता  था । अपने  मोबाइल  में  वीडियो  डाउनलोड  होते  ही  मैने   कुंदन  के  मोबाइल  से  हिस्ट्री  क्लीन  कर  दी ।

उसी  वक्त  पायलों  की   मध्यम  रुनझुन  मेरे  कानो  में  पड़ी ।  उस   दिलकश  आवाज  को  कूलर  की  शोर  मचाती  आवाज  भी  ना  दबा  पायी ।  आखिर  पिछले  छह   सात  महीने  से  यही  आवाज  तो  मेरे  दिल  का  सुकून  था  ।  मैने  अपनी  आंखे  बंद  की  और  सोफ़े..  जो  शायद  उस  कमरे  में  मेरे  लिये  ही  लाया  गया  था । उसपर  अपना  सिर  टिकाकर   गहरी  नींद  में  होने   का  स्वांग  रच  लिया ।  ये  तो  अब  मेरा  पसंदीदा  काम  हो  गया  था । जब  मैं  उसकी  आवाज  से  नहीं  जागता  तो  वह  अजीब  सी  कैफियत  और  जिद्दोजहत  से  भर  जाती  थी । उस  समय  उसके  द्वारा  किया  गया हर  एक्ट  मुझे  बहुत  ही  लुभावना  लगता  था ।

मैं  महसूस  कर  सकता  था  कि  वह  मेरे  करीब  खड़ी  है  और  हमेशा  की  तरह  अपनी  दोनों  हथेलियों  को  रगड़  रही  थी ।  बंद  आँखों  से  इस  तरह  उसे  देखना   क्या  कहूं  मुझे  कितने  सुकुन   से  भर  दिया ...   मैं  अब  उसकी  दूसरी  गतिविधि  की  प्रतीक्षा  में  था ....


सुनिये .....


उसकी  परेशान  सी  आवाज  मुझे  पुलकित  कर  रही  थी । मैं अपनी  नींद  के  ढोंग  को  बरकरार  रक्खा ।  मै  उसे  थोड़ा  और  परेशान  करने  के  मूड  में  था ।  जैसे  कुछ  देर  पहले  मैं  हुआ  था । कुछ  भरपाई  तो  मैडम  को  भी  करनी  चाहिये  थी  ना ... तो  फिर  मैडमजी  थोड़ी  और  मशक्कत  करे   क्योंकि  आपके  जनाब  गहरी  नींद  मे  है ....


जी  सुन  रहे  है ....!!

वह  थोड़ा  मेरे  कानो  के  पास  झुक  कर  इस  बार  बोली  थी । पर  जगता  तो  वह  है  ना  जो  सोया  रहता   है  , ना  कि  वह  जो  नौटंकी  करता  है । मैं  मस्त  पसरा  था  और  मैडम  जी  घोर  परेशान .... 


शायद  कुछ  ज्यादा  ही  हो  गया  था ....  उसने  मेरे  कन्धों  को  छूने  की  कोशिश  की  ही  थी  कि  मेरे  फैले हुये  पैरों  में  उलझ  गयी  और  मुझपर  ही  गिरी ।   मैने  तो  बस  अपनी  आंखे  खोली  थी  और  वह  क़यामत  की  तरह  मुझपर  बरस  गयी  थी ।  रिमझिम  फुहार  की  तरह ....  लहरों  की  तरह  खुलकर  उसके  बाल  मेरे  चेहरे  को  ढक  रहे  थे । और  वो  थरथरायी  सी   अपनी  बड़ी  बड़ी  आँखों  से  मुझे  देख  रही  थी ।   जाने   कितनी   देर    से  मेरे  लम्हे  ठहर  से  गये  ... जाने  सांस  लेना  भी  मुझे  याद  था  या  नहीं ..... मैं  तो  लुटा  पिटा   उसमें  ही  खोया  था   और  एक  वो  बिचारी   थी  जो  डर  और  शर्म  दोनों  की  मारी  थी  । उसकी  गोरी  गोरी  सी  रंगत  कितनी  गुलाबी  हो  गयी. थी ।  उसने  मेरे  ही  सीने  पर   टिकायी  अपनी  हथेलियों  पर  जरा  सा  दबाव  बढ़ाया  और  सीधे  उठने  की  कोशिश  की  पर  हाय  रे  उसकी  किस्मत  ... वो  थोड़ा  और  मेरे  ऊपर  फिसल  गयी ...  काश  ....!! मैं  भी  थोड़ा  फिसल  सकता  और  उसे  अपने  सीने  से  लगा  सकता ...  पर  उफ़ .... मेरी  अपनी ही     बनायीं   हुयी  दीवारे ....


उसकी  चुन्नी  खिसक  रही  थी  तो  मैने  दूसरी  तरफ  अपना  मुँह  घुमा  लिया ... पर  वो  बेचारी  अभी  तक   मुझसे  दूर  जाने  की  ही  कोशिश  कर  रही  थी ... अब  मैं  भी  क्या  करता ... मदद  ना  करता  तो  शायद  वो  अब  रो  देती .... उसकी  पनीली  आंखे  मैने  देख  ली  थी  .. और  अब  तो  मेरी  शोखी  मुझपर  ही  भारी  पड़  रही  थी । मैने   उसके  कंधे  पकड़े  और  एक  पल  में  ही  उसे  सीधा  कर  दिया । कितनी  नाज़ुक  सी  थी  वह ....   वह  खड़ी  हुयी  तो  मैं  भी  खड़ा  हो  गया । मैं  उसकी  तरफ  अपनी  पीठ  कर  ली  क्योंकि  वह  तो  ज़रा  भी  सहज  नहीं  लग  रही  थी । मैने  अपने  पैरों  की  तरफ  देखा  उसकी  चुन्नी  मेरे  पैरों  तले  रोंधीं  हुयी  थी । मैने  उसकी  चुन्नी  उठाकर  सोफ़े  पर  रख  दी वह  अभी  भी  शायद  खुद  को  दुरुस्त  कर  रही  थी । उसकी  हाथों  की  चूड़ियां  लगातार  बज  रही  थी । शायद  वह  अपना  जुड़ा  बाँध  रही  थी  । काश  की  मैं   कह  पाता   कि  तुम  खुले  बालों  में  बहुत  प्यारी  लगती  हो ... दिल  तो  मेरा  गाना  ही  गाने  लगा  था ..


मेरा दर्पण अँखियाँ तेरी
तुझको तरसें रतियाँ मेरी 
जीना मुझको रास आने लगा 
जबसे चहकीं बतियाँ तेरी 
जोगन तेरा मारा रसिया
जग जीता दिल हारा रसिया


क्रमशः..
तुझ  संग  प्रीत  लगायी ...