रात की वो ठंडी हवा आज फिर कुछ यादें लेकर आई थी। बालकनी में खड़ी मैं आसमान को देख रही थी, जैसे वो तारे मेरे पुराने दिनों की कहानी सुना रहे हों।
कभी यही आसमान हमारे वादों का गवाह था… जब तुम कहते थे — “हमेशा साथ रहूंगा।”
और मैं मुस्कुराकर कहती थी — “झूठ मत बोलो।”
तुम हंसते थे — “अगर ये झूठ है, तो सच से खूबसूरत है।”
पर वक्त... वक्त ने वो सब बदल दिया।
तुम्हारे जाने के बाद मैंने बहुत कोशिश की तुम्हें भुलाने की, मगर हर कोशिश बस एक नाकाम याद बनकर रह गई।
तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी बातें, वो छोटी-छोटी नोकझोंक — सब कुछ अब भी मेरे दिल के किसी कोने में ज़िंदा है।
कभी-कभी लगता है तुम लौट आओगे, दरवाज़े पर दस्तक दोगे, और कहोगे — “माफ़ कर दो, बस एक गलती हो गई थी।”
पर हकीकत ये है कि अब दरवाज़ा सिर्फ हवा हिलाती है, और मैं बस इंतज़ार करती रहती हूं... उस आवाज़ का, जो अब कभी नहीं आएगी।
कुछ दिन पहले तुम्हारा भेजा हुआ वो “आख़िरी खत” हाथ लगा था —
सफेद कागज़ पर नीले अक्षरों में तुम्हारे शब्द थे:
> “मैंने तुम्हें सिर्फ प्यार किया, मगर वक्त ने हमें अलग कर दिया। अगर कभी मेरी याद आए, तो आसमान की तरफ देख लेना — मैं वहीं हूं, तुम्हारे पास।”
उस खत को पढ़ते-पढ़ते आंखों से आंसू अपने आप गिर पड़े।
वो खत अब तक संभाल कर रखा है मैंने… जैसे किसी ने मेरे दिल का एक टुकड़ा उस कागज़ में सिला हो।
आज भी जब बारिश होती है, तो उसकी हर बूंद में तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती है।
तुम कहते थे — “बारिश में रोना सबसे आसान होता है, क्योंकि कोई नहीं जान पाता कि आंखें भीग रही हैं या आसमान।”
शायद तुम सही कहते थे।
क्योंकि आज भी मैं उसी बारिश में भीगती हूं, लेकिन किसी को नहीं बताती कि मैं अब भी तुमसे मोहब्बत करती हूं।
कभी-कभी सोचती हूं, अगर हम मिले ही न होते तो शायद इतना दर्द भी न होता…
पर फिर दिल कहता है — “नहीं, वो कुछ पल ही सही, लेकिन वो मेरा सबसे खूबसूरत हिस्सा थे।”
अब ज़िंदगी चलती जा रही है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
लोग कहते हैं — “समय सब ठीक कर देता है।”
पर उन्हें क्या पता, कुछ जख्म वक्त के साथ नहीं भरते, बस और गहरे हो जाते हैं।
और मैं… आज भी उसी खत के साथ जी रही हूं।
हर रात उसे खोलती हूं, तुम्हारा नाम देखती हूं, और फिर धीरे से मुस्कुरा देती हूं —
क्योंकि शायद अब बस इतनी ही मोहब्बत बाकी है… कागज़ पर लिखे कुछ शब्दों में।
कभी-कभी सोचती हूँ, अगर ज़िंदगी हमें दोबारा मिलाती,
तो शायद मैं तुमसे कुछ नहीं पूछती… बस देखती रहती —
वैसी ही शांति से, जैसे कोई किताब आख़िरी पन्ने तक पढ़ ले पर खत्म न करे।
अब मैं भी उस किताब की तरह हूँ —
जिसके कुछ पन्ने अधूरे हैं, और कुछ पर स्याही अब भी ताज़ा है।
लोग कहते हैं, वक्त सब भुला देता है,
मगर कुछ यादें ऐसी होती हैं जो वक्त से नहीं,
बस सांसों से जुड़ी होती हैं।
हर सुबह जब सूरज उगता है,
तो लगता है जैसे तुम्हारा नाम किरणों में लिखा हो।
और जब रात ढलती है, तो वो चाँद भी तुम्हारी ही याद दिला जाता है।
शायद अब मैं मुस्कुराना सीख गई हूँ,
मगर वो मुस्कान आज भी अधूरी है —
जैसे कोई तस्वीर जिसमें रंग तो हैं, पर रूह नहीं।
तुम चले गए, मगर तुम्हारी याद ने रहना सीख लिया,
हर धड़कन के साथ, हर साँस के साथ...
और अब यही यादें मेरी ज़िंदगी बन गई हैं।
कभी सोचा नहीं था कि मोहब्बत इतनी खामोश भी हो सकती है —
जो बोलती नहीं, बस हर पल महसूस होती रहती है।
अगर तुम कहीं हो भी,
तो बस इतना याद रखना —
मैं आज भी वही हूँ,
जो तुम्हारे “आख़िरी ख़त” के हर शब्द को
ज़िंदगी की तरह संभालकर रखती हूँ।
हर किसी की ज़िंदगी में एक “आख़िरी ख़त” ज़रूर होता है…
क्या आपके पास भी है कोई ऐसा राज़?
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✍️ By SilluWrites
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