एपीसोड -3
बड़ौदा में होने वाली मीटिंग्स को व वहां से इस स्त्री संस्था ` लेखनी `. `को खदेड़े कितने बरस गुज़र गए --- पंद्रह सोलह साल ?तबसे ज़माना बिल्कुल नहीं बदला ---वह अभी अभी इस दूसरे शहर के हृदयस्थल से ` ` लेखनी `.`को खदेड़े जाने के कारण आहत है या कहना चाहिए अठ्ठाइस उनत्तीस वर्ष बाद समझ में आ रहा है कि उन्हें क्यों अरविंद आश्रम में मीटिंग्स करने से खदेड़ा गया था।
उसकी आँखों में ब्वॉय कट बाल वाली महाराष्ट्र की तृप्ति देसाई का चेहरा घूम जाता है . ----` जंग अभी ख़त्म कहाँ हुई है ? तृप्ति देसाई कितनी बार औरतों को लेकर वह शनि शिंगणापुर गई। कितनी बार पुलिस ने उसे बाहर ही दोनों हाथ पकड़कर सड़क पर घसीट दिया था सालों बाद अब औरतें बार बार धावा बोलकर ,पुलिस के डंडे या लोगों की गालियां खाकर मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश पाने में सफ़ल हो गईं हैं। सबरीमाला में ये बार बार आक्रामक होकर बता रहीं हैं कि इस मंदिर में पूजा करना सिर्फ़ पुरुष की बपौती नहीं है।
अपना वर्चस्व कायम रखना ,स्त्रियों को खदेड़ना सनातन है .अठारह पहाड़ों से घिरा है वो मंदिर ,बीच में सुरक्षित।स्त्रियों के लिए परम्परायें भी आसमान छूती बेहद मज़बूत हैं। ऐसी सुदृढ़ हैं कि दस से पचास बरस की कोई औरत जाकर तो देखे मंदिर में ? उन आकाओं का क्या होगा जिन्होंने औरत को उसकी ज़मीन दिखाने के लिए ये नियम बनाये हैं ? मासिक धर्म के नाम पर उसे गंदी बताया व उसमें हीन व अपराध भावना भरने के लिए चालें चलीं हैं।
सदियों से यहाँ हर जाति ,धर्म ,हर उम्र के पुरुष पूजा करने आते रहतें हैं ---अर्र ----औरत हाड़ मांस के मानवों की गिनती में कहाँ होती है ?औरत की कोई जाति होती है क्या ?औरत तो पानी होती है -जिस बर्तन में रख दो वैसी हो जाएगी ,जिससे ब्याह दो वही उसकी जाति हो जाएगी,वही धर्म। औरत न हुई ,हुई कोई आटे की लोई --जो चाहा आकर दे दो --ज़ोर से बेल दो ,जला दो, सेंक दो ,गाय को खिला दो ,कुत्ते को डाल दो.सबरीमाला मंदिर की ऐसी परम्परा है तो क्या हुआ ? जो सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर से भी नहीं डर रही। डाकुओं की तरह पुरुष ने आस पास की पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया है. केरल में स्त्रियां एक दूसरे का हाथ पकड़ कर मानव श्रंखला बनाये खड़ीं हैं ----. दो स्त्रियां छल से मंदिर में प्रवेश भी कर गईं हैं. एक स्त्री जो दर्शन कर आई उसे घरवालों ने घर से निकाल दिया है ,दूसरी की सास ने पिटाई कर दी है।
अस्मिता में भी एक बहुत समृद्ध घर की स्मार्ट लेडी ने वार्षिक कार्यक्रम में अँग्रेज़ी में कविता पाठ किया था ,स्मार्ट पति साथ थे [हम समझे थे प्रोत्साहन के लिए ] . दूसरे दिन से उसके `लेखनी `में आने पर ही नहीं, फ़ोन पर प्रतिबन्ध लग गया था। दो चार और भी किस्से हैं।
सत्ता में बैठी महिला मंत्री व सत्ता की पार्टी के अध्यक्ष भी तो यही कह रहे थे ?क्या कम अक्ल है जो आपको समझ नहीं आ रहा ?--धर्म का मामला है न !नित नए बलात्कार कांडों में लिप्त हज़ारों लड़कियों को हजम करने वाले गुरु घंटालों का हमारा देश है ,फिर भी धर्म के टोकरे हम सिर पर लिए चलते हैं। आपको बात समझ नहीं आ रही ?इक्कीसवीं --- सदी की रोशनी आलोकित हो गई है तो क्या औरत को अपनी औकात पहचाननी चाहिए। सदियों की सड़ी गली परम्परायें सबरीमाला मंदिर के रूप में स्थापित रहनी चाहिए।ऐसी मानसिकता वालों के हिसाब से वो कौन बेवकूफ़ थे जिन्होंने सती प्रथा बंद कर दी ?वो भी तो सदियों पुरानी परम्परा थी। जलने देते औरतों को पति की चिताओं पर। कितना अच्छा होता लोग इसी दिन सती मेला लगाते --तफ़रीह काटने सती मेले में निकल पड़ते --सती के घरवाले उसके मंदिर से धन बटोरते।`
प्रतीक्षा जी के सम्मान में हुई गोष्ठी के बाद अपमान करने के वाले उस लिपिक दिवांग के पीछे छिपे चेहरों ने सोचा होगा चे कि स्त्रियाँ यहाँ आने की हिम्मत नहीं करेंगी। यदि अपने अपमान को झाड़कर आगे बढ़ना नहीं सीखीं होतीं तो सारी स्त्रियां घर वापिस बैठ गई होतीं। इरा ने बाकायदा मेल से घटना की जानकारी देते हुए अध्यक्ष से शिकायत की व वहां`लेखनी `की मासिक गोष्ठियाँ बंद नहीं हुईं।
इधर भी कोशिश ज़ारी है ,उधर भी। उस दिन तो और हद गई न्यूयॉर्क की नीति सेन के सम्मान में एक नये प्रयोग का कार्यक्रम था जिसमें अतिथि भी आमंत्रित थे. सुबह वह इमारत में पहुंची। देखा वह कमरा बंद है जिसमे कार्यक्रम होना है , चालीस कुर्सियाँ लगनी हैं।
वॉचमेन पटेल ने उसके पास आकर पूछा ,``आप इस समय ?``
``हाँ ,लेखनी का कार्यक्रम है आपने कमरा भी तैयार नहीं किया। ``
``मेरे पास तो कोई ऑर्डर नहीं है। ``
इरा के हाथ पैर फूलने लगे ,`` क्यों नहीं है ? मैंने भास्कर भाई को मेल किया था ,फ़ोन पर बात की थी। ``
वह जल्दी जल्दी भास्कर भाई को फ़ोन मिलाने लगी। चार पांच डायल किया तो पता लग गया कि वह जानबूझकर कॉल नहीं ले रहे . क्या करे ----क्या करे ---वॉचमेन पटेल कमरा खोलने को राज़ी नहीं हो रहा था। उसने फिर नम्बर डायल किया --उत्तर नदारद। तभी कोई भास्कर भाई को पूछता वहां आ गया। पटेल ने निर्विकार कह दिया ,``भास्कर भाई तो साँझे आउसे। ``
वह बोला ,``मुझे ज़रूरी काम है। ``
उसे युक्ति सूझी उसने उस व्यक्ति से कहा ,``आप उन्हें फ़ोन करिये ,``वह व्यक्ति ने भास्कर भाई को अपने मोबाइल से फ़ोन करने लगा था ।
उसकी बात समाप्त होते ही इरा ने मोबाईल ले लिया ,``गुड मॉर्निंग भास्कर भाई !ये पटेवाला रूम नहीं खोल रहा। क्या आपने इसे इसे `लेखनी `की मीटिंग के विषय में बताया नहीं था ? मेहमानों के आने का समय हो रहा है। चालीस कुर्सियां कैसे लगेंगी ?``
भास्कर भाई बेशर्मी से गुर्राये ,``आप लोग तो शाम को मीटिंग करतीं हैं `.`
``मैंने मेल में मेल स्पष्ट लिखा था , आपसे मेरी बात हुई थी फिर आप ऐसा कैसे कर सकतें हैं ?``
`` पटेल फ़ोन दीजिये मैं उसे रूम खोलने के लिए कह देता हूँ। `
``वॉट डु यू मीन ?कुछ मेहमान आ भी गये हैं ,समय नहीं है कमरे में कुर्सियां लगाने का। .हॉल खुलवाइये। ``
``आपने हॉल बुक कहाँ करवाया है ? ``
`` हमारा प्रोग्राम बड़ा थोड़े ही है और फिर अभी हॉल में प्रोग्राम भी नहीं हो रहा। हॉल खुलवाइये। ``उसकी आवाज़ की तुर्शी से उन्हें पटेल को हॉल खोलने आदेश देना ही पड़ा क्योंकि इरा का किया ई मेल प्रमाण था। ।
तीन घंटे के कार्यक्रम के बाद बाद वे बेशर्मी से आ खड़े हुए भरसक अपना क्रोध रोककर पूछा ,``भास्कर भाई !सब ऑफ़िस वालों को नाश्ते के पैकेट मिल गये ?``
``हाँ जी ,आप अभी ऑफ़िस में दो हज़ार रुपया इस हॉल का किराया जमा कर दीजिये। ``
.`` अभी तो हम नहीं करेंगे क्योंकि यदि हॉल बुक करवाते तो बड़ा कार्यक्रम करके और गेस्ट बुलाते। मैं प्रेसीडेंट को मेल करूँगी। ``
``नहीं मेल नहीं करिये रजिस्टर्ड लैटर भेजिये। ``
इरा मन ही मन बड़बड़ाई -पागल नहीं हूँ लेटर भेजूं और तुम फाड़ दो ,मेल ही करूँगी।इरा के मेल ने स्थिति स्पष्ट कर दी थी. बाद में प्रशासन ने `लेखनी `से पैसों का तकाज़ा नहीं किया था।
लेखनी ने चार पुस्तकों के विमोचन के लिए शहर के इस वर्ष के शक्तिपीठ पुरस्कार प्राप्त धनवीर वर्मा जी को आमंत्रित किया। पुरस्कार मिलने के लिए उन्हें सम्मानित किया। कार्यक्रम के दो महीने बाद ही शहर में सरगर्मी होने लगी वर्मा जी एक अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन करवा रहे हैं। उसने अनुमान लगाया जनवरी में सम्मेलन इसलिए रक्खा होगा क्योंकि नीति सेन की पुस्तकें ये अपने प्रकाशन से प्रकाशित करतें हैं।
एक सप्ताह बाद नीति सेन का फ़ोन मिला ,``इरा जी !मैं न्यूयॉर्क से आ गईं हूँ। मुझे लेखनी में कब बुला रहीं हैं ?`
``अभी आपको फ़ुर्सत कहाँ होगी सहाय जी ,अपने पब्लिशर के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में जाना होगा। आपकी कितनी केयर करते हैं क्योंकि उन्हें पता है आप विंटर्स में इंडिया आतीं है। `
``केयर माई फुट ,मुझे तो पता भी नहीं है कि ऐसा कोई अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन हो रहा है। ``
बेटे की पोस्टिंग के कारण ईरा मुम्बई जा बसी। लेखनी की नई सचिव व अध्यक्ष ने इसे बहुत अच्छे से संभाल लिया लेकिन सचिव को चार महीने अमेरिका जाना पड़ा। वह मुम्बई से कहती रह गई कि गोष्ठियां बंद मत करो लेकिन इन चार महीनों में संस्था को बहाना मिल गया। वह कमरा कमप्यूटर रूम बना दिया गया।
इरा उन अध्यक्ष महोदय से फ़ोन पर ,मेल से बात करती रही ,बताती रही कि इन मुठ्ठी भर स्त्रियों की रचनाओं से प्रेरित होकर उसने छ; पुस्तकें सम्पादित की हैं .ये अपने आपमें भारत में एक इतिहास है ,साहित्यिक आंदोलन है ,स्त्री विमर्श का जिसमें पहली बार पौराणिक स्त्री चरित्रों का आकलन हुआ है और भी बहुत कुछ [लेकिन व्यवस्था को ये ही तो नहीं चाहिए ] .अध्यक्ष महोदय सचिव पर ये बात टाल विदेश उड़ गए। सचिव उस कमरे का किराया मांगने लगे ,प्रति गोष्ठी. बार बार ईरा बेशर्म हो फ़ोन करती रही लेकिन कभी निश्चित किराया नहीं बताया गया। ----- सच ही अठ्ठाईस बरस से इस प्रदेश में काम करने वाली `लेखनी `गांधी जी की कल्पना उस इमारत से धीमे धीमे खदेड़ दी जाती है । वो भी ऐसे समय में जब इसके नये अध्यक्ष बने थे केंद्रीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत महोदय। बड़ौदा में रहने वाले यही अध्यक्ष उसके ज़ख्मों पर नमक छिड़कते हुये उसे वॉट्स एप पर वहां उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रम का आमंत्रण पत्र भेजते हैं, जैसे उसे चिढ़ाता हुआ कोई बड़ा तीर हो ।दिल पर पत्थर रखकर वह उन्हें वॉट्स एप पर शुभकामनाओं का संदेश देती है।
इरा मुंबई से लौट चुकी है,अध्यक्ष व सचिव के के सहयोग से अब तक `लेखनी `सम्भल चुकी है।वह `लेखनी `का विश्वविद्यालय में होने वाले कार्यक्रम का आमंत्रण अध्यक्ष को शान से वॉट्स एप करती है। उत्तर नदारद है--- इनबॉक्स में लम्बी ख़ामोशी फ़ैली हुई है -- या उसे उनका खिसियाआ चेहरा नज़र आ रहा है। हिंदी दिवस होने के कारण प्रदेश के मुख्यमंत्री जी का शुभकामना सन्देश आ गया है।
------तृप्ति देसाई और उसकी साथिनों ने व केरल की कुछ स्त्रियों ने शनि शिंगणापुर मंदिर व सबरीमाला मंदिर में स्त्रियों को प्रवेश दिलाकर ही दम लिया। और `लेखनी `,उसे कौन समाप्त करेगा ? वह अध्यक्षा या किसी सदस्य के यहाँ गोष्ठी करती ,आगे और आगे बढ़ती जा रही है।
क्या कहे इरा ---देल्ही में अपनी साहित्यकार मित्रों के साथ मंत्रालय के सामने धरना देतीं मैत्रेयी पुष्पाजी याद आ रहीं हैं , एक साहित्यिक हस्ती के लेखिकाओं को `छिनाल `बताने वाली बात का विरोध करती हुई , ``पुरुष हमें हर जगह से , यहां तक कि साहित्य से भी खदेड़ देना चाहतें हैं । ``
[ नोट :जो सम्पादक ,प्रकाशक व लेखक स्त्री साहित्य को आगे बढ़ाते रहे हैं उनसे क्षमा याचना सहित -नीलम कुलश्रेष्ठ ]
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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