🌌 एपिसोड 44 — “कलम जो खुद लिखने लगी”
(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)
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🌙 1. लौटना — मगर सब कुछ बदला हुआ
दरभंगा की हवेली पीछे छूट चुकी थी,
मगर उसकी रूह अब रूहाना और अर्जुन के भीतर बस चुकी थी।
ट्रेन दिल्ली की ओर बढ़ रही थी।
खिड़की से नीला आसमान, बादलों में तैरती धूप —
सब कुछ किसी नई शुरुआत की तरह था।
रूहाना की गोद में वही पेन रखा था — Ruh-e-Kalam।
वो बार-बार उसे देख रही थी,
जैसे उसमें किसी अदृश्य धड़कन को महसूस कर रही हो।
अर्जुन ने मुस्कराकर पूछा,
“अब भी डर लग रहा है?”
रूहाना ने धीमे स्वर में कहा,
“डर नहीं… बस अजीब-सी ऊर्जा है, जैसे ये कलम मुझसे बातें कर रही हो।”
अर्जुन ने उसकी हथेली थामी,
“तो सुनो उसे। शायद वो अब हमारी कहानी लिखना चाहती है।”
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🌧️ 2. रूह की कलम स्टूडियो में वापसी
कुछ दिनों बाद, दिल्ली की हलचल के बीच उनका स्टूडियो फिर से जीवित हो उठा।
रूह की कलम का नया बोर्ड अब नीली रोशनी में चमक रहा था।
पुराने कैनवास हटाकर रूहाना ने बीच में एक खाली टेबल रखी —
जहाँ अब सिर्फ वही कलम थी।
वो चुपचाप बैठी और कहा,
“अगर तू सच में रूहों की कलम है… तो मुझे अपना सच दिखा।”
अगले ही पल पेन अपने आप उठ गया।
अर्जुन ने विस्मय से देखा —
पेन हवा में तैर रहा था, और खुद कागज़ पर कुछ लिखने लगा।
लिखे हुए शब्द चमक रहे थे —
> “हर इश्क़ का एक पुनर्जन्म होता है,
और हर पुनर्जन्म एक नई कहानी चाहता है…”
रूहाना की आँखें भर आईं।
“अर्जुन… ये कलम खुद लिख रही है!”
अर्जुन बोला,
“मतलब अब ये हमारे विचार नहीं लिखती —
ये हमारी किस्मत लिख रही है।”
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🌌 3. कहानी जो हकीकत बन गई
अगली सुबह रूहाना ने देखा कि मेज़ पर एक नई कहानी का पन्ना रखा है।
उस पर लिखा था —
> “आज एक लड़की से मुलाक़ात होगी,
जो तुम्हें तुम्हारे अगले जन्म की झलक दिखाएगी।”
वो मुस्कराई।
“अब कलम भविष्यवाणी करने लगी है?”
अर्जुन ने कहा,
“चलो देखते हैं, ये क्या खेल है।”
दिन के दोपहर में रूहाना एक बुक गैलरी में गई।
वहाँ एक लड़की खड़ी थी —
लंबे बाल, आँखों में नीली चमक, और मुस्कान में कुछ जाना-पहचाना।
वो लड़की बोली,
“आप रूहाना हैं न? मैं आर्या हूँ… आपकी कहानियों की बहुत बड़ी फैन।”
रूहाना मुस्कराई,
“धन्यवाद, आर्या। मगर तुम्हारी आँखें… बहुत जानी-पहचानी लग रही हैं।”
आर्या ने हल्का सिर झुकाया,
“शायद इसलिए… क्योंकि मैंने आपकी रूह को पहले भी देखा है।”
वो पल ठहर गया।
रूहाना के दिल की धड़कन बढ़ गई —
कहीं ये वही आत्मा तो नहीं जो हवेली में रुमी की दोस्त थी?
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🔥 4. रूहों की पहचान
अगले दिन जब रूहाना ने फिर कलम उठाई,
तो उसने अपने आप कुछ लिखा —
> “आर्या वही है, जो रुमी के आख़िरी जन्म की साक्षी थी।
उसे पहचानो, तभी कहानी पूरी होगी।”
रूहाना हतप्रभ रह गई।
“अर्जुन… हवेली की रूहें अब भी हमसे जुड़ी हैं।
शायद वो चाहती हैं कि हम उनके सभी अधूरे धागे सुलझाएँ।”
अर्जुन ने गहरी सांस ली,
“मतलब अब ये कलम सिर्फ हमारे लिए नहीं,
बल्कि उन सब रूहों के लिए लिख रही है जो कभी अधूरी रहीं।”
रूहाना ने महसूस किया —
हवा में नीली चमक फैल रही थी,
और दीवारों पर शब्द उभरने लगे थे —
“हर इश्क़ का हिसाब वक़्त रखता है…”
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🌠 5. रूह की कलम का रहस्य गहराता है
रात को स्टूडियो में हल्की बारिश की आवाज़ गूंज रही थी।
रूहाना अकेली थी।
अचानक पेन मेज़ से गिरा — और जैसे ज़मीन पर गिरते ही काँच के फर्श में समा गया।
उसने नीचे झाँका —
और देखा कि फर्श पारदर्शी हो गया है,
नीचे कोई दूसरी दुनिया दिख रही थी —
एक सुनहरी जगह, जहाँ रूहें नाच रही थीं।
वो नीचे झुकी और फुसफुसाई,
“तुम कौन हो?”
नीचे से आवाज़ आई,
> “हम वही शब्द हैं, जो कभी बोले नहीं गए।
अब हमें तुम्हारी ज़ुबान चाहिए।”
रूहाना पीछे हट गई,
लेकिन तभी पेन फिर ऊपर उछला और उसके हाथ में आ गया।
इस बार वो स्याही नहीं — नीली रोशनी छोड़ रहा था।
रूहाना ने कागज़ पर लिखा —
> “अगर मैं तुम्हारी आवाज़ बनूँ… तो बदले में क्या दोगे?”
कागज़ पर जवाब खुद उभर आया —
> “अनंत रुमानियत — जहाँ इश्क़ कभी मरता नहीं।”
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🌌 6. भाग्य का पहला अध्याय
अगली सुबह जब अर्जुन लौटा,
तो उसने देखा कि स्टूडियो के सारे पन्नों पर नए शब्द लिखे हैं।
हर पन्ने पर वही दो नाम बार-बार — अर्जुन और रूहाना।
वो घबराकर बोला,
“ये सब तुम्हारे नाम लिखे हैं! इसका मतलब क्या है?”
रूहाना मुस्कराई,
“इसका मतलब है कि अब कहानी हमें जी रही है।
हम लेखक नहीं रहे, हम किरदार बन चुके हैं।”
अर्जुन ने धीरे से कहा,
“तो क्या हम अब अपने अतीत से नहीं भाग सकते?”
रूहाना ने उसकी ओर देखा,
“नहीं अर्जुन, क्योंकि अब हर जन्म की कलम एक ही है —
बस कहानी बदलती है।”
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🌙 7. नई रूह का आगमन
उसी रात दरवाज़े पर दस्तक हुई।
आर्या वहाँ खड़ी थी —
लेकिन उसकी आँखें अब नीली नहीं, सुनहरी थीं।
वो बोली,
“रूहाना… रुमी का आख़िरी संदेश तुम तक पहुँचाना था।”
“क्या?”
आर्या ने आगे बढ़कर कहा,
> “रूमी की आत्मा अब इस कलम में नहीं…
वो तुम्हारे भीतर है।”
रूहाना के भीतर बिजली-सी कौंध गई।
नीली रोशनी ने पूरे स्टूडियो को ढँक लिया।
कागज़ों पर आग-सी लकीरें उभर आईं —
हर लकीर में वही शब्द चमक रहे थे:
> “जहाँ प्रेम अमर होता है,
वहाँ लेखक भी रूह बन जाता है।”
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💫 एपिसोड 44 हुक लाइन:
> “अब रूह की कलम किसी कहानी को नहीं लिख रही —
वो खुद कहानी बन चुकी है,
और इस बार किरदार वही हैं,
जो कभी लेखक थे।” 🌙