Why Mosquitoes and Insects Always Chase the Light in Hindi Children Stories by JASWANT SINGH SAINI books and stories PDF | मच्छर और कीड़े रौशनी के पीछे क्यों भागते हैं

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मच्छर और कीड़े रौशनी के पीछे क्यों भागते हैं

एक समय की बात है...
घना, हरा-भरा जंगल था। उस जंगल में एक दिन सारे मच्छर और कीड़े इकट्ठे हुए। सबके चेहरों पर उदासी और चिंता की लकीरें थीं।
एक मच्छर बोला:
“हमें कोई पसंद क्यों नहीं करता?”
दूसरा मच्छर बोला:
“हम तो झुंड में रहते हैं, एकता दिखाते हैं... फिर भी लोग हमें देखकर चिढ़ते क्यों हैं?”
एक कीड़ा बोला:
“पर देखो, वो जुगनू! वो तो अकेला होता है, फिर भी सब उसे पसंद करते हैं। उसकी रौशनी देखकर सब खुश हो जाते हैं!”
सभी ने मिलकर फैसला किया:
“चलो, हम जुगनू से पूछते हैं कि उसकी रौशनी का क्या राज़ है!”

अगली रात, सारे मच्छर और कीड़े जुगनू के पास पहुँचे।
एक मच्छर बोला:
“जुगनू भाई, तुम्हारे पास ये रौशनी कहाँ से आई?”
एक कीड़ा बोला:
“हमें भी इसका राज़ बताओ, ताकि हम भी तुम्हारी तरह प्रसिद्ध हो सकें।”
जुगनू ने सबकी बातें ध्यान से सुनीं, फिर कुछ देर चुप रहा।
वह जानता था कि ये सवाल आसान नहीं था।
उसने पहले मच्छरों की ओर देखा और मन में सोचा:
“अगर मैं सच्चाई बता दूँ, तो इन्हें बुरा लगेगा।
ये मच्छर, जो झुंड में रहने का दिखावा करते हैं,
असल में दूसरों का खून चूसते हैं।
जहाँ भी जाते हैं, लोगों को चैन से नहीं रहने देते।
इनकी एकता सिर्फ अपने फायदे तक सीमित है।”
फिर उसने कीड़ों की ओर देखा और मन में कहा:
“ये कीड़े भी... दूसरों की मेहनत पर डाका डालते हैं।
जहाँ भी जाते हैं, किसी और का हिस्सा छीन लेते हैं।
इनकी एकता भी सिर्फ स्वार्थ के लिए ही है।”
लेकिन जुगनू ने यह सब अपने मन में ही रखा।
वह जानता था कि सच्चाई कहना हमेशा आसान नहीं होता,
कभी-कभी सही बात को सही तरीके से समझाना ज़्यादा ज़रूरी होता है।

जुगनू हल्का मुस्कुराया और बोला:
“मुझे यह रौशनी उस ‘परम प्रकाश’ से मिली है।”
सारे मच्छर और कीड़े हैरान रह गए।
“परम प्रकाश?
वो कहाँ मिलता है?”
जुगनू ने शांत स्वर में कहा:
“वह हर जगह व्याप्क है, और उसे पाया जा सकता है
लेकिन उसके लिए अंदर की सफाई, निःस्वार्थ सेवा
और सच्चे इरादों की आवश्यकता होती है।”
पर मच्छरों और कीड़ों ने आगे की बात सुनी ही नहीं!
वे बस इतना समझे:
“रौशनी परम प्रकाश से मिलती है, और वह हर जगह व्यापक है और उसे पाया जा सकता है!”
यह सुनते ही सारे मच्छर और कीड़े वहाँ से भाग पड़े,
हर किड़ा और मछर इस होड़ में कि वे पहले उसे पा लें और प्रसिद्ध हो जाएँ।
और फिर वे दौड़े —
कोई बल्ब की ओर, कोई दीए की ओर, कोई आग की ओर।
“यही है परम प्रकाश!”
“मैं पहले पहुँचूँगा!”
वे आपस में टकराए, जल गए,
और उसी रौशनी में समाप्त हो गए।
उन्हें कभी यह समझ नहीं आया
कि जुगनू की रौशनी बल्ब या आग से नहीं,
बल्कि उसके अच्छे कर्मों, संतोष, विनम्रता,
दूसरों के प्रति प्रेम और परमात्मा की सच्ची कृपा से मिली थी।
और आज भी...
रात के समय जब आप बल्ब, दीए या आग के आसपास
मच्छर और कीड़ों को मंडराते देखें,
तो समझ जाना —
वे अब भी उसी ‘परम प्रकाश’ को खोज रहे हैं,
जिसका सही अर्थ उन्होंने कभी समझा ही नहीं।
शिक्षा:
सच्ची रौशनी बाहर नहीं, भीतर होती है।
जो लोग सिर्फ दिखावे और स्वार्थ के पीछे भागते हैं,
वे कभी असली इज़्ज़त या चमक नहीं पा सकते। ✨
लेखक – जसवंत सिंह सैणी, लुधियाना
ऐसी और लागु कहानियो के लिए पड़ते रहे जसवंत सिंह सेणी को