Family of shadows - Part 2 in Hindi Detective stories by Sagar Joshi books and stories PDF | Family of shadows - Part 2

Featured Books
Categories
Share

Family of shadows - Part 2

अध्याय 2 – रात का सन्नाटा और पहली मौत



रात आधी बीत चुकी थी। हवेली के ऊपर काले बादल इस तरह मंडरा रहे थे, जैसे आकाश भी इस घर से दूर भागना चाहता हो।

हवा में नमी और अजीब सी घुटन थी — हर साँस भारी लग रही थी।


हवेली के भीतर सब अपने-अपने कमरों में चले गए थे, मगर नींद किसी को नहीं आ रही थी।

दीवारों के पीछे से आती धीमी आवाज़ें, छत पर चलते कदमों की आहटें, और कभी-कभी खुद-ब-खुद खुलती खिड़कियाँ — ये सब किसी की रूह तक काँपाने के लिए काफी थीं।





सविता अपने कमरे में अकेली थीं।

टेबल पर लगी मोमबत्ती की लौ बार-बार टिमटिमा रही थी, जैसे बुझने से पहले कुछ कहना चाहती हो।

उन्होंने अपने पति रघुनाथ की तस्वीर उठाई और धीमे स्वर में बोलीं —

“तुम्हारी वसीयत ने इस परिवार को तोड़ दिया, रघुनाथ। ये बच्चे अब एक-दूसरे के दुश्मन बन रहे हैं। अगर यही तुम्हारी योजना थी… तो तुम जीत गए।”


इतना कहकर उन्होंने मोमबत्ती बुझाई।

कमरे में अंधेरा फैल गया।

और उसी अंधेरे में, उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उनके पीछे खड़ा है।

दिल की धड़कन तेज़ हो गई।

उन्होंने धीरे से मुड़कर देखा —

दरवाजे के पास परदे हिल रहे थे, पर वहाँ कोई नहीं था।


उन्होंने खुद को समझाया — “यह मेरा वहम है…”

पर कमरे में एक हल्की साँसों की आवाज़ गूँजी — मानो कोई बहुत पास हो।





नीचे वाले कमरे में राजेश शराब के गिलास के साथ बैठा था।

उसकी आँखें लाल थीं, और चेहरे पर गुस्से की लकीरें साफ थीं।

“माँ ने मुझे धोखा दिया… सब कुछ अपने नाम करवा लिया… मैं उन्हें दिखाऊँगा कि असली मालिक कौन है,” उसने खुद से कहा।


वह टेबल पर रखी पुरानी फाइलें पलट रहा था।

अचानक उसे एक पुराना दस्तावेज़ मिला — रघुनाथ देशमुख की पुरानी तस्वीरें, जिनमें एक अजनबी व्यक्ति था।

राजेश ने ध्यान से देखा — उस आदमी की गर्दन पर तीन दाग़ जैसे निशान थे, और रघुनाथ उसके कंधे पर हाथ रखे खड़े थे।


राजेश ने धीरे से कहा,

“ये आदमी कौन है? और पिता ने इस तस्वीर को क्यों छुपाया?”


उसी समय खिड़की के बाहर कोई हलचल हुई।

राजेश उठा और बाहर देखा — कोई साया दीवार के पीछे से गुज़रा।

उसने ज़ोर से पुकारा — “कौन है वहाँ!”

कोई जवाब नहीं।


अचानक हवा का झोंका आया, और टेबल पर रखे कागज़ उड़ गए।

एक कागज़ सीधे उसकी गोद में आ गिरा।

उस पर लिखा था —

“जो सच जानने की कोशिश करेगा, वो नहीं बचेगा…”


राजेश ने डर और गुस्से के बीच कागज़ को मरोड़ा।

“ये मज़ाक किसने किया?”


वह दरवाजा खोलकर बाहर भागा।

गलियारे में अंधेरा था।

दूर एक दीवार पर किसी की परछाई झिलमिला रही थी — लंबी, दुबली, और स्थिर।


राजेश ने पास जाकर देखा…

वहाँ कुछ नहीं था।

लेकिन दीवार पर लगी घड़ी ने “टिक… टिक… टिक…” करते हुए 2:03 AM बजाए।

और उसी पल —

एक ज़ोरदार चीख हवेली में गूँज उठी।





सभी दरवाजे खुल गए।

किरण, आशा, सविता और माया दौड़ते हुए राजेश के कमरे की ओर भागे।

दरवाजा अंदर से बंद था।

किरण ने ज़ोर से खटखटाया — “राजेश! दरवाजा खोलो!”

अंदर से कोई जवाब नहीं आया।


श्री कपूर भी पहुँच गए। उन्होंने कहा,

“पीछे हटो!”

उन्होंने कंधे से दरवाजा तोड़ा —


अंदर राजेश फर्श पर गिरा हुआ था।

चेहरे पर भय और पीड़ा का मिश्रण था।

उसकी आँखें खुली थीं, और होंठ आधे खुले, जैसे वह किसी का नाम पुकारते-पुकारते रुक गया हो।


उसके हाथ में एक फटी हुई तस्वीर थी — वही पुरानी तस्वीर जिसमें रघुनाथ देशमुख और वह अजनबी व्यक्ति थे।

और तस्वीर के पीछे लिखा था —

“पाप का फल हमेशा यहीं मिलता है।”


सविता की चीख पूरे हॉल में गूँज उठी।

आशा सिसक पड़ी, और किरण बस स्तब्ध खड़ा रह गया।

श्री कपूर काँपती आवाज़ में बोले,

“यह… यह तो हत्या लगती है।”


लेकिन सवाल था — कैसे?

दरवाजा अंदर से बंद था, और खिड़कियाँ भी जकड़ी हुई थीं।

किसी के अंदर आने का कोई निशान नहीं था।


माया ने धीमे स्वर में कहा,

“मैंने कहा था न… कोई हवेली में है। कोई जो हमें देख रहा है…”


सविता ने धीरे से दीवार की ओर देखा —

जहाँ रघुनाथ देशमुख का बड़ा चित्र टंगा था।

चित्र की आँखों पर बिजली की चमक पड़ी —

और सविता को ऐसा महसूस हुआ, जैसे वो चित्र अब जीवित हो गया हो।




हवेली फिर सन्नाटे में डूब गई।

पर इस बार वह सन्नाटा मौत की गंध लिए था।

कहीं दूर, किसी बंद कमरे से धीरे-धीरे एक पुरानी घड़ी की आवाज़ आई —

“टिक... टिक... टिक...”

और हवेली के दरवाज़े अपने आप बंद हो गए