Mere Ishq me Shamil Ruhaniyat he - 39 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 39

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मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 39

🌌 एपिसोड 39 — “नीले वादे का पुनर्लेखन”

(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)
 
 
---
 
🌙 1. हवेली की खिड़की से लौटती रूहें
 
सुबह की ठंडी हवा में दरभंगा की हवेली एक नए संगीत में सांस ले रही थी।
दीवारों पर उभरी नीली लकीरें अब बुझ नहीं रही थीं —
बल्कि उनमें एक हल्की धड़कन सुनाई दे रही थी।
 
रूहाना बालकनी में खड़ी थी, उसके बाल हवा में उड़ रहे थे।
वो मुस्कराई, “अर्जुन, लगता है हवेली अब हमें अपना हिस्सा मान चुकी है…”
 
अर्जुन ने धीमे से जवाब दिया,
“कभी-कभी रूहें जगह नहीं बदलतीं, बस अपना अर्थ बदल देती हैं।”
 
अचानक हवेली की पुरानी खिड़की अपने आप खुल गई।
उसके पीछे एक पुराना कागज़ी दीया रखा था — वही,
जो पहले तालाब में रूमी ने छोड़ा था।
 
दीये पर कुछ लिखा था —
 
> “हर जन्म में वही लौ जलती है, जो वादा निभाना जानती है।”
 
 
 
रूहाना ने दीये को अपनी हथेली पर रख लिया।
नीली लौ फिर जल उठी…
 
 
---
 
🌘 2. इश्क़ की स्याही, रूह का दस्तावेज़
 
रात के सन्नाटे में अर्जुन ने एक पुराना रजिस्टर खोला।
वो हवेली का रूह-दफ्तर था — जहाँ सदियों से अधूरे इश्क़ों के नाम दर्ज थे।
 
पन्नों पर पुराने नाम चमक रहे थे —
रूहान – रुमी, आरव – मिशा, रिहान – मीराब…
और आख़िर में एक नया नाम खुद-ब-खुद उभरा —
 
> अर्जुन – रूहाना
 
 
 
अर्जुन ने देखा, “रूहाना… अब हमारी कहानी भी इस हवेली की किताब में दर्ज हो गई है।”
रूहाना ने उसकी आँखों में झाँका, “मतलब अब हम किसी की याद नहीं, किसी की रूह बन चुके हैं।”
 
नीली स्याही खुद-ब-खुद पन्नों पर बहने लगी,
जैसे हवेली खुद यह प्रेम कथा लिख रही हो।
 
 
---
 
🌕 3. रूहों का वादा, ब्रह्मांड की मोहर
 
हवेली के आँगन में अचानक हल्की नीली आँधी चली।
फूल, धूल, और परछाइयाँ मिलकर एक आकृति बनी —
वो थी रुमी की रूह।
 
उसने मुस्कराकर कहा,
“वादा निभ गया… अब तुम्हारी रूहें अगले ब्रह्मांड की चौखट पर होंगी।”
 
रूहाना ने आँसू भरी आँखों से पूछा,
“क्या वहाँ भी इश्क़ होगा?”
 
रुमी ने कहा,
 
> “जहाँ रूहें जाती हैं, वहाँ मोहब्बत पहले से मौजूद होती है।”
 
 
 
नीली लहरें आसमान में उठीं —
और रुमी की रूह एक तारे में समा गई।
उस तारे से रोशनी उतरकर अर्जुन और रूहाना के दिलों में बस गई।
 
 
---
 
🌒 4. पुनर्जन्म का संकेत
 
अगली सुबह जब सूरज उगा,
तो हवेली के बरामदे में दो छोटे नीले फूल खिले थे।
उनके नीचे एक चिट्ठी रखी थी —
 
> “हर जन्म में, हर इश्क़ में — वही रूह लौटेगी, जो अधूरी रही थी।”
 
 
 
अर्जुन मुस्कराया, “तो इसका मतलब… अगली कहानी शुरू हो चुकी है।”
रूहाना ने जवाब दिया, “हाँ, बस हमें उसे फिर से पहचानना है।”
 
हवा में वही पुरानी नीली खुशबू फैली —
जैसे हवेली खुद फुसफुसा रही हो,
“रूहों का पुनर्जन्म कभी ख़त्म नहीं होता…”
 
 
 
 
🌙 1. हवेली के भीतर की फुसफुसाहटें
 
सुबह की धूप हवेली की खिड़कियों से छनकर आ रही थी —
पर अब हर किरण नीली थी।
मानो हवेली की रूह भी अर्जुन और रूहाना की तरह फिर से जन्म ले चुकी हो।
 
बरामदे के बीचोबीच वो रजिस्टर खुला पड़ा था,
जिसकी स्याही रात भर खुद-ब-खुद बहती रही थी।
अब उसके पन्नों पर कुछ नए शब्द उभरे थे —
 
> “कहानी अधूरी नहीं थी, बस एक और जन्म का इंतज़ार कर रही थी।”
 
 
 
रूहाना ने पन्नों को छुआ,
“अर्जुन, ये देखो… हवेली खुद हमें कुछ लिखवा रही है।”
 
अर्जुन ने धीरे से कहा,
“हो सकता है, अब हवेली हमारी कहानी को किसी नए दौर में भेजना चाहती हो — जहाँ हम फिर मिलें, किसी और नाम से।”
 
रूहाना ने मुस्कराकर सिर झुकाया,
“अगर अगला जन्म फिर शुरू हुआ… तो मैं वही आवाज़ बनूँगी, जो तुम्हारा नाम पुकारे।”
 
 
---
 
🌘 2. रात की नीली रेखा
 
शाम ढलते ही हवेली की दीवारों पर रोशनी की रेखाएँ उभरने लगीं।
वो सीधी नहीं थीं — बल्कि वृत्ताकार बनती जा रही थीं।
उनके बीच एक नीला गोला बना… जो धीरे-धीरे धड़कने लगा।
 
अर्जुन ने कहा, “रूहाना, ये वही ऊर्जा है जो हर पुनर्जन्म की शुरुआत करती है।”
रूहाना की आँखें नम थीं, पर उनमें चमक थी —
“इसका मतलब, हम फिर से जन्म लेने वाले हैं… पर कहाँ?”
 
नीला गोला आसमान की ओर उठ गया।
हवेली की दीवारें कांपीं, और स्याही से एक नक्शा उभरा —
वाराणसी, गंगा किनारा, “मणिकर्ण घाट”।
 
अर्जुन ने उस नक्शे को देखा,
“शायद वहीं हमारी रूहें नया चेहरा पाएँगी…”
 
हवेली की खिड़कियाँ बंद हो गईं —
और आख़िरी आवाज़ आई,
 
> “हर इश्क़ को अपना घाट चाहिए, जहाँ वो फिर से साँस ले सके…”
 
 
 
 
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🌕 3. मणिकर्ण घाट की पुकार
 
वाराणसी की सुबह सुनहरी थी,
पर गंगा के पानी में नीले फूल तैर रहे थे —
उसी तरह जैसे दरभंगा के तालाब में तैरे थे।
 
एक लड़की घाट पर बैठी थी —
उसकी उँगलियों पर वही नीला दीया रखा था।
वो बोली,
“अजीब है, ये दीया रात में मेरे सपनों में आया था…”
 
उसका नाम था आर्या।
और पास में खड़ा एक अजनबी मुस्करा रहा था —
उसकी आँखों में वही गहराई थी जो कभी अर्जुन की थी।
 
वो बोला, “अजीब है… मुझे लगता है मैं तुम्हें पहले से जानता हूँ।”
आर्या ने जवाब दिया,
“शायद पिछले जन्म से…”
 
गंगा की लहरें हौले से टकराईं —
और उनके बीच एक नीली लौ नाच उठी।
 
 
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🌒 4. हवेली की अंतिम साँस
 
दरभंगा की हवेली अब शांत थी —
बस दीवार पर नीले अक्षरों में लिखा था —
 
> “रूहें निकल चुकी हैं…
अगला अध्याय वाराणसी में शुरू होगा।”
 
 
 
नीली हवा ने रजिस्टर के आख़िरी पन्ने को पलटा।
उस पर सिर्फ एक पंक्ति थी —
 
> “रूहाना – अर्जुन → आर्या – अयान”
 
 
 
और उसके नीचे हल्की नीली स्याही में लिखा था —
 
> “इश्क़ ने रूप बदला है, पर रूह वही है…”
 
 
 
 
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💫 एपिसोड 38 हुक लाइन:
 
> “जब इश्क़ अपने वादे पर अडिग रहता है,
तो जन्म, नाम और वक़्त सब उसके आगे झुक जाते हैं…” 🌌