Swayamvadhu - 60 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 60

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स्वयंवधू - 60

60. सीने में खंजर


कवच, सिर से पाँव तक भीगा हुआ राहुल से दो कदम पीछे चल रहा था।
वह महसूस कर सकता था कि कई नज़रे उन पर थी।
तीनों पर बेबुनियाद टिप्पणियाँ सुन सकते थे और जब वे मुड़ते,तब दूसरी ओर देखने लगते। तीन मिनट की दूरी तीस मिनट के समान थी।
चलते-चलते राहुल दाई ओर मुड़कर रुका। कवच ने सिर उठाकर सामने देखा, वहाँ नर्स दिशा कान्हा को सांत्वना देते हुए उनका इंतजार कर रही थी।
जब उसने उन्हें पहली बार देखा तो उसे राहत मिली लेकिन जैसे ही उसने वृषा बिजलनी को पीछे और वृषाली को राहुल के हाथ पर देखा तो उसकी राहत गायब हो गयी। उसकी नर्स प्रवृत्ति जागृत हुई और वह उन्हें सीधे अंदर ले गई और तुरंत ऐक्शन में आ गयी।
कमरे में अचानक हलचल से कान्हा रोने लगा।
राहुल, वृषाली और कान्हा के साथ रहना चाहता था। वह परेशान, कान्हा को हाथ में ले वृषाली के साथ खड़ा था।
जब कवच ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "बच्चे को देखो। बच्चा डरा हुआ है। यह सब देखने की उसकी उम्र नहीं है।", राहुल ने गुस्से में अपने होंठ काटते हुए कहा, "ठीक है! बस दूरी बनाए रखो, वह अब मेरी पत्नी है।",
कवच को आश्चर्य हुआ लेकिन वृषाली की हालत देखकर उसने यह सोचकर सिर हिलाया कि (जब वह जागेगी तो शायद वह भी मुझसे नफरत ही करेगी। आखिर मैंने अपना वादा जो तोड़ा है।)
जब कवच अपने ख्यालों में खोया हुआ था तब राहुल दिशा को निर्देश दे रहा था।
नर्स दिशा ने कवच को एक तौलिया दिया और राहुल के निर्देशानुसार उसे बदलने के लिए एक जोड़ी शर्ट और पैंट दी।
"सर ने कहा है। पता नहीं कब भागना पड़ जाए?", दिशा ने हिचकते हुए कहा,
कवच को यह बात चुभी पर फिर भी राहुल की बात का मान रखते हुए वह दस मिनट के अंदर नहाकर और कपड़े बदलकर बाहर आया और तुरंत उसकी मदद करने लगा।
राहुल दिशा के कमरे में कान्हा को सुलाने गया था।
तभी एक होटल कर्मचारी ने डॉक्टर के साथ उनके दरवाज़े पर दस्तक दी।
कवच ने दरवाज़ा खोला। डॉक्टर ने बस एक नज़र कच पर डाली और पहचान लिया कि उसके सामने वांटेड, वृषा बिजलानी खड़ा था।
वह वापस जाने के लिए मुड़ा पर वृषा का भन्न्या हुआ चेहरा देख सहमते-सहमते अंदर आया और उसकी जाँच शुरू की। वृषाली पहले ही ऊपरी तौर से स्थिर थी। उसकी हालत स्थिर रखने के लिए जल्दी से इंजेक्शन दिए और दिशा को कुछ दवाइयाँ दीं, हर विवरण समझाया और जल्दी में बाहर जाने लगा।
"तुरंत रुक जाओ!", कवच ने गहरी आदेशात्मक आवाज़ में कहा और डॉक्टर वही जम गया, होटल स्टाफ असहज हो गया।
कवच ने धमकी देते हुए कहा, "एक शब्द बाहर और तुम...", कवच को कुछ करने की ज़रूरत नहीं पड़ी, होटल स्टाफ काँप उठा। वो डर से उसे देखते रह गया, "नहीं, नहीं!", सिसकते हुए अपनी जान बचाते हुए भागा।
उसे भागता देख डॉक्टर अपनी जान की भीख माँगते हुए कवच के पैरों पर गिड़गिड़ाने लगा।
"मुझे माफ कर दो। मैं वो नहीं करना चाहता था। वो तो बॉस ने-", वो अपना पक्ष रखने की भरपूर कोशिश कर रहा था।
लेकिन कवच, वह उसे या उसके जीवन को माफ करने की योजना में नहीं था। वह सोच रहा था कि पहले पैर तोड़े या हाथ?
कवच ने एक शक्तिशाली मुक्का उस डॉक्टर की तरफ फेंका जो आधा इंच से चूक, दीवार से टकराया। डॉक्टर लड़की की तरह चीखा और दीवार की टुकड़े-टुकड़े हो गई लेकिन वह सुरक्षित था... फिलहाल के लिए।
शोर सुन राहुल बाहर भागकर आया, दिशा बगल सहमी बेहोश वृषाली के बगल दवाइयाँ लेकर खड़ी थी।
कवच के हाथों से खून बह रहा था। अपने खून बहते हाथों से उसने डॉक्टर का कॉलर पकड़ लिया, "मिलकर खुशी हुई डॉक्टर श्रीवास्तव..... नहीं, नहीं। गुमनाम सीनियर डॉक्टर जो लोगों के अंगो को अपने अँगुलियों में नचाता है। क्यों है ना, पीट प्राइवेट लीडिंग के सीनियर डॉक्टर और मानव रोबोटिक्स डिपार्टमेंट के मुख्य डायरेक्टर डॉक्टर नवीन श्रीवास्तव?",
सामने खड़े डॉक्टर की हालत और पतली हो गयी।
वो हाथ-पैर जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा, "प्लीज़ मुझे माफ कर दो वृषा बेटे। मैं मज़बूर था। मेरे बीवी और बच्चे दोंनो, आह! समीर के चंगुल में थे।",
उसने कुछ नहीं कहा बस एक प्रश्न और पूछा, "बॉट नंबर वन कहाँ है?",
"मुझे नहीं पता!", डॉक्टर ने प्रतिरोध किया। कवच के हाथ ने डॉक्टर की गर्दन को और अधिक आक्रामक तरीके से पकड़ लिया।
"डॉक्टर नवीन! आखिरी बार पूछ रहा हूँ, कहाँ है बॉट नंबर वन उर्फ विषय नीर?!!", कवच के नाखून डॉक्टर नवीन के गर्दन के अंदर और अंदर धसते जा रहे थे।
डॉक्टर को अपने सामने मौत नाचती दिख रही थी। हर एक हल्की साँस कोसो दूर लग रही थी।
डॉक्टर साँस लेने के लिए तड़पा... लेकिन कवच को इसकी परवाह नहीं थी, वह गुस्से से उबल रहा था। वह उसे मारने के लिए तैयार था!
कवच की पकड़ हर पल के साथ जकड़ती जा रही थी।
वह पीला पड़ चुका था...
- बस दो ही पल और वो खत्म.......डॉक्टर जीने की जंतो-जहत उसके गले से सीटी जैसी आवाज़ से वो निकल, "वो.... वो- अगर, अड्-अड्डे में- में है! हाँ...", कवच उसे देखे जा रहा था। पकड़, वही सख्त, तभी राहुल कान्हा को सुलाकर आया और डॉक्टर को मरता देख कवच को अपने पूरी जान लगाकर धक्का दिया।
कवच दीवार से टकराया।
डॉक्टर नीचे धड़ाम से गिर पड़ा बेजान पर ज़िंदा।
कवच चिल्लाया, "तुम कौन हो जो मेरे काम में दखल दे रहे हो?",
राहुल अचंभित रह गया।

आते वक्त वृषाली ने उसके सामने कबूल किया था—
"क्या? मैं वृषा बिजलानी से कैसे मिली?", सामान पैक करते वक्त राहुल ने पूछा,
"इतना तो जानने के हक मुझे है,आखिर मेरी गृहस्थी पर ग्रहण का क्या कारण है?", राहुल ने सोफे पर बैठकर पुछा,
हिचकिचाते हुए वृषाली ने कुबूल किया,"अपहरण...",
'अपहरण' शब्द सुन राहुल सोच में पड़ गया।
वृषाली उसे देखकर हँसकर बोली, "मुझे भी नहीं पता था। मैं ही क्यों? मैं कोई जानलेवा बला नहीं, ना ही चाणक्य जिसे बिजलानी जैसा परिवार चुराना चाहेगा। आई फील लाइक वन डे आई विल वेक अप ऐड़ दिस ऑल विल बी ए ड्रीम ऑफ माई वानटिंग टू बी ए सेंटर ऑफ ऐटेंशन फॉर वन डे ऑफ माइ लाइफ।",

वृषा को देख राहुल ने दिल में सोचा—
(वह पूरे समय उपेक्षापूर्ण हँसी हँस रही थी। तुम एक मासूम लड़की के साथ क्या करना चाहते हो वृषा?)
फिर वह दृढ़ता से खड़ा हुआ और कहा, "क्या किया तुमने इस मासूम के साथ वृषा?", राहुल ने वृषाली की ओर हाथ दिखाकर पूछा जो वहाँ बेहोश थी।
वृषा गिरे हुए दोशी भरी नज़र से वहाँ देखा।
"जिस लड़की से तुमने मदद माँगी थी, जिस लड़की को बचाने का वादा कर तुमने! भेड़ियों के बीच निहत्थे और असहाय फेंककर भाग गया, अब मैं उसका मंगेतर हूँ और तुम्हारे तथाकथित पुत्र का बाप! याद रखना यह बात।",
कवच दंग रह गया।
"तुम क्या कह रहे हो?", कवच को समझ नहीं आ रहा था कि राहुल उसपर क्या आरोप लगा रहा था।
लेकिन राहुल दो-धारी तलवार पर चलकर थक चुका था। उसकी पत्नी लापता थी, उसके नवजात की जान उसके सामने, एक बाप के सामने चौबीसों घंटे खतरे में थी। उसका क्रोध चरम सीमा पर था। उसने पाँच महीने तक बहुत कुछ चुपचाप, बिना आवाज़ किए, बिना चू-चा करते हुए सहन कर रहा था। अब उसकी सब्र की बाँध टूट गयी – उसके बच्चे का जीवन, धन और शक्ति के जुआ का मोहताज बना हुआ था और वृषा इसे सही ढंग से नहीं संभाल रहा था। सब कुछ एक सफल हार थी। उसके पास सबूत थे लेकिन बेकार। समीर भी वहाँ, समीर का साम्राज्य भी।

"लड़के की तरह नहीं, बल्कि एक आदमी की तरह ऐक्शन लो!", राहुल ने कवच के सीने पर इशारा कर कहा, "तुमने विराज से कहा था कि तुम उससे प्यार करते हो और सुरक्षित रखना चाहते हो, लेकिन जिस पल उसने तुम पर भरोसा किया, उसी पल तुमने उसे धोखा दिया।", वह गुस्से में भारी साँस ले रहा था, "तुम्हारे कारण मेरा कान्हा, मेरा बच्चा मेरे नाम के बजाए तुम्हारे नाम से पहचाना जा रहा है जबकि उसका पिता, मैं, जिंदा- जीता जागता, सक्षम, यहाँ जीवित हैं!", राहुल के शब्द आपस में उलझ रहे थे, पर उसके जज़्बात सारी पीड़ा बयां कर रहा था, "और मेरी पत्नी, जिसने एक नया जीवन दिया था, तुम उसे भी ले गए। कहाँ बेचा तुमने उसे? रेड लाइट एरिया? वेश्यालय? सामान्य क्लब या अश्लील क्लबे? या एक निजी साइड रिलीफ की तरह बेचा या क्या? वो कहाँ है? मेरी पत्नी कहाँ है?! कहाँ है मेरी पत्नी वृषा बिजलानी?!!",
इस बार वृषा का कॉलर राहुल के हाथ में था।
कमरे के कोने में वृषाली जाग रही थी। नर्स दिशा व्यस्त होने का अभिनय कर रही थी, डर से काँप रही थी। वृषाली सब सुन रही थी।
"तुम्हारी वजह से मेरा हँसता खेलता परिवार बर्बाद हो गया!", राहुल मुट्ठी बना चुका था।
वृषा शांत था। वह समझ रहा था। वह पिटने के लिए तैयार था। उसके मन में, उसके पिता ने अपने स्वार्थ के लिए एक खुशहाल परिवार को बर्बाद कर दिया था। इससे अगर राहुल को थोड़ी ठंडक मिले तो ठीक।
"...आ..आह!....", दोंनो उसकी कराह सुनी।
राहुल का मुक्का बीच में रुक गया।
अपनी लड़ाई रोककर तुरंत उसकी ओर भागे।
वह बैठने कि कोशिश कर रही थी, दोनों तरफ से दोंनो उसकी मदद कर रहे थे। वह सीधे बैठ गई। उसने पहले शर्म भरी नज़रो से राहुल की ओर देखा जो अब भी उसकी चिंता कर रहा था। अपराध बोध से उसे गला रुंधता हुआ महसूस हुआ। फिर उसने सीधे कवच को देखा और बोली, "बहुत हो गया अब वृषा। हमने अपनी अंतरमूर्खता का खेल तन भरकर खेल लिया। अपना और मेरा हाल देखो। शरीर में जान से ज़्यादा मौत है। वृषा, वृषा यह एक व्यक्ति का काम नहीं है। यह कार्य ऐसा नहीं है कि केवल आप ही ऐसे यूँ कर दे या मैं? हम दोनों की गर्दन सूली पर है और हमारी वजह से हमारे अपनो के भी।",
वृषा चुप था, उसकी आँखें वृषाली से नहीं मिल रही थीं।
वृषाली ने गहरी साँस ली, "हाह! वृषा?", उसने कवच के हाथों को पकड़ा और भरोसे वाली निगाहों से उसे देखा और कहा, "वापस आ जाओ... हम एक साथ समीर बिजलानी से निपट सकते है। उसके पास खोने के लिए बहुत कुछ है, और हमारे पास... उसने तो उसे पहले ही छीन लिया।",
"क्या छीन लिया वृषाली?", वृषा की पकड़ वृषाली के हाथ में और सख्त हो रही थी।
वृषाली ने पूरी तरह से वृषा की ओर मुँह कर कहा, "उन्हें जिन्हें समीर ने चुन-चुनकर पकड़ा था और मारने की कोशिश कि।",
दहशत भरी नज़रों से कवच ने पूछा, "मारना? किसे?",
वह मुस्कुराई, "पता नहीं यह प्लान कितना सफल होगा पर आप मम्मा, डैडा और विरासत को मार दो और एक महीने के अंदर बिजलानी कॉरपोरेशन वापस जॉइन कर लीजिए।",
वृषाली का प्लान सुन कवच सदमे में चला गया। उसका हाथ वृषाली के हाथ से छूट गया और काँपते हुए आवाज़ में चीखा, "ये तुम क्या बोल रही हो?",
कवच ने राहुल की तरफ देखा जो उतना ही सदमे में था।
वे एक दूसरे को भयभीत होकर देख रहे थे। दोंनो में से एक ने भी एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं की। कमरा भयानक सन्नाटे से भर गया। आप घड़ी की टिक-टिक और खिड़की पर बारिश की आवाज़ सुन सकते थे।
वृषाली प्रश्नवाचक चेहरे से दोंनो की तरफ देखा... दोंनो के चेहरे पर एक ही भाव, प्रश्नवाचक भय। उसने एक पल के लिए सोचा कि उसने क्या कहा..... "ओह!", फिर उसे एहसास हुआ कि उसने क्या कहा था। वह तुरंत बिस्तर पर कूद पड़ी और अपना सिर और हाथ हिलाते हुए बोली, "यह- यह वह नहीं था जो मेरा मतलब था। आह! आउच!", उसने अपने हाथों को इतनी ज़ोर से फड़फड़ाया कि उसकी गर्दन के घाव में दर्द होने लगा।
राहुल ने उसकी मदद करने के लिए लपका पर वृषा तेज़ था और उसने उसे पकड़ लिया।
वृषा ने उसे मज़बूती से उसे और उसकी गर्दन को सहारा देते हुए पकड़ा, "हिलो मत। तुम अभी भी घायल हो।",
वृषा का भयभीत चेहरा देखकर, जिसे उसने कई बार देखा था, वृषाली का हृदय धड़क बँद हो गयी।
दिल की उलझन में उसने बोला, "मेरे शब्द गलत निकले। कृपया मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं सुधार करने की कोशिश कर रही हूँ।", उसने धीरे से कहा।
वृषा को ऐसा लगा जैसे वह पहले वाली डरी हुई, अविश्वासी वृषाली को देख रहा हो। उसने उसके सिर पर धीरे से थपथपाया, "तुम एक योद्धा हो, वृषाली। अपने आप को छोटा मत समझो। तुमने उस नर्क में रह रही हो जिसे किसी ने भी अपने पूरे जीवन में सोचा भी नहीं होगा।"
वह वर्षों में पहली बार अपनी आँखों से हँसी।
राहुल ने पहली बार उसे लापरवाही से मुस्कुराते हुए देखा। इससे उसे अपनी भार्या की याद आ गई जो गायब थी। उसकी आँखों में आँसू भर आये। उन्हें अपने में रमा देखकर वह धीरे-धीरे कमरे से चुपके से निकल गया।
वह दिशा के कमरे में कान्हा के बगल में बैठ गया, जो अपने सपनों में परिस्थितायोें से अनजान खिलखिला रहा था।
राहुल दुख, पीड़ा, भय, राहत, अवसाद... हर मानवीय नकारात्मक भावना जिसे मनुष्य ने कभी जाना था उन भाव के साथ रोया। वह कान्हा को ना जगाने के लिए चुपचाप अकेले रोया। उसके काँपते हाथ ने कान्हा के नन्हें हाथों को थामा, उन्हें धीरे से सहलाया और सौम्यता से पूछा, "क्या तुम्हें अपनी मम्मा की याद आती है?",
कान्हा नींद में हँसने लगा।
उसे देख राहुल भी थोड़ा हँसा।
"क्या वृषाली आंटी तुम्हें अच्छी लगी?", राहुल ने कान्हा के नन्हे मुलायम गालों को प्यार से सहलाया,
कान्हा खिलखिलाया और अपनी नींद में, "..म...मा.." बुदबुदाया।
राहुल हँसा नहीं, बल्कि उसने खुद को रोने से रोकने के लिए गहरी साँस ली।
"क्या तुम्हें कभी अपने पिता की याद आई?",
कान्हा नींद में ही मुस्कुरा रहा था। राहुल अब और नहीं रुक सका। उसने रोते हुए कान्हा को अपने गले लगा लिया। वह अपने जीवन के निर्णयों पर विचार कर रहा था। उसने बिना सोचे-समझे अपना फोन निकाल लिया और रात भर स्क्रॉल करता रहा। तीन बजे के आसपास , वह कान्हा के रोने की आवाज़ से जागा।
कमरे में जाकर उनके बैग से बेबी फार्मूला लेने के बजाय, राहुल ने रूम सर्विस से इसके लिए पूछा। वह अपने बेटे को फिर से खोने के डर के भवंड़र में फँसा था जो शांत होने के बजाय और भयानक रूप ले रहा था।

कुछ मिनट बाद...
कान्हा को चुप कराते समय दरवाज़े पर दस्तक हुई।
राहुल ने दरवाज़ा खोला।
देखा तो वह वही लड़का था जो वृषा के क्रोध से बच निकला था।
वह अभी भी काँप रहा था। बेबी बोतल देते समय उसके हाथ काँप रहे थे।
"क्या तुमने किसिको....?", राहुल ने बोतल लेते हुए पूछा, लड़का अभी भी डरा हुआ था।
खौफ भरी नज़रो के साथ उसने ना में सिर हिलाया। उसके चेहरे पर भय साफ दिखाई दे रही थी और उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि वह एक सामान्य लड़का था जो इस नरक से बचने की कोशिश कर रहा था। राहुल उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था, उसने खुद को उसमें देखा।
"अंदर आओ।", उसने उसे अंदर आने का इशारा किया।
एक और पिटाई के डर से वह अंदर सहमे पैर आया। वह पत्ते की तरह काँप रहा था। कान्हा को खिलाते समय उसने उस लड़के से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?",
काँपती आवाज़ में उसने उत्तर दिया, "गा- गगन...",
"उम्र?"- राहुल,
"उन्नीस।"- गगन,
"उन्नीस? तो तुम कॉलेज तो जाते होगे?"- राहुल,
"न- नहीं, साहब।"- गगन,
"तो क्या करते हो?"- राहुल,
"बस यही होटल के छोटे-मोटे काम, कस्टमर की मदद करना और कमरों की सफाई करना और... अपना मुँह बँद रखना। सर मैं अपना मुँह बँद रखूँगा प्लीज़ मुझे जाने दीजिए।", वह राहुल के पैरों में गिड़गिड़ा रहा था।
राहुल का दिल कचोट आया। उसने अपने एक हाथ से उसे उठाया, "मैं यहाँ अपनी चापलूसी करवाने नहीं आया, ना ही वो करने जो लोग यहाँ करने आते है। आओ, चलो बात करते हैं।", राहुल उसे सोफे पर बैठने का इशारा किया।
गगन 'सोफे पर बैठो' सुन अंदर से थर्रा गया। वह वहाँ असहजता से खड़ा था, अजीब तरह से हिल रहा था।
"लेकिन मैं एक आदमी हूँ, सर...", उसने कहा लेकिन उसकी आवाज़ कर्कश थी,
राहुल कान्हा की पीठ सहलाते हुए उसे डकार दिलाते हुए बिस्तर पर बातचीत करने बैठ गया, "मुझे पता है कि तुम एक आदमी हो। अब बैठो और बात करते है।",
गगन के हाथ काँप रहे थे। यह उसका पहला मौका था जब किसी आदमी ने उसे आदेश दिया था। उसके काँपते हुए हाथ हिले।
राहुल को कुछ समझ नहीं आया, उसने सोचा कि लड़का घबराया हुआ होगा। वो भी उस उम्र में, उस जगह ऐसे ही था। उसने उसे चिंतित निगाहों से देखा। लेकिन गगन के लिए यह निगाह, आतुरित, आदेशात्मक लगी।
काँपते हाथ उसकी गर्दन के चारों ओर घूमकर कॉलर ढीली कर रहे थे, उसकी लाल रंग की वेटर वर्दी ढीली हो गई जिससे उसकी छाती का एक इंच हिस्सा दिखाई देने लगा और वह धीरे-धीरे राहुल की ओर झुका और उसके पैरों के सामने घुटने के बल बैठा।
राहुल को तब समझ आया कि गगन ने बैठने का क्या मतलब निकाला और कान्हा बिस्तर पर रख उसकी ओर झपट पड़ा।
सामने कमरे में कवच और महाशक्ति, समीर को लेकर बहस कर रहे थे तब उन्हें सामने वाले कमरे से एक धमाक की आवाज़ सुनी।
धमाके जैसी आवाज़ सुन कवच सतर्क हो गया और कवच का ध्यान भटकने का मौका लेते हुए, महाशक्ति ने बगल में रखी कैंची लिया और कवच जो बिस्तर से नीचे उतर रहा था उसके गले में कैंची रखकर उसे नोक पर रखा।