Mere Ishq me Shamil Ruhaniyat he - 37 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 37

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मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 37

🌌 एपिसोड 37 — “इश्क़ की परछाईं, रूह की दस्तक”

(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रूहानियत है)
 
 
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🌙 1. हवेली का नया सवेरा
 
दरभंगा की हवेली पर आज एक अजीब-सी शांति थी —
न बहुत ठंडी, न बहुत गर्म… बस जैसे वक़्त ठहर गया हो।
 
रूहाना बरामदे में खड़ी थी, नीले दीए की लौ को देखती हुई।
कल रात की घटनाएँ अभी भी उसके ज़ेहन में गूंज रही थीं —
वो ताबीज़, वो लिपि, और वो आवाज़ जो शीशे के भीतर से आई थी।
 
अर्जुन पीछे आया, उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला —
 
> “अब ये हवेली हमें देख रही है, रूहाना।
लगता है, इसकी दीवारें भी हमारी कहानी का हिस्सा बन चुकी हैं।”
 
 
 
रूहाना ने उसकी ओर देखा।
“अगर हवेली हमारी कहानी जानती है, तो शायद वो हमारे अतीत को भी छुपाए बैठी है…”
 
अर्जुन ने धीमी मुस्कान के साथ जवाब दिया —
 
> “तो चलो, आज हवेली से उसका राज़ पूछते हैं।”
 
 
 
हवेली की दीवार पर हवा के साथ नीली लकीरें बन गईं —
जैसे कोई अनदेखा हाथ ‘रूह’ शब्द फिर से लिख रहा हो।
 
 
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🌘 2. पुरानी चौखट का रहस्य
 
दोनों हवेली के पश्चिमी हिस्से में पहुँचे —
जहाँ पुरानी लकड़ी की चौखट के नीचे एक छोटी-सी दरार थी।
 
रूहाना झुकी, और मिट्टी हटाने लगी।
वहाँ एक छोटा-सा काँच का डिब्बा निकला —
जिसमें सूखी नीली स्याही और एक पुराना खत था।
 
अर्जुन ने खत खोला,
स्याही के शब्द अब भी चमक रहे थे —
 
> “अगर ये खत किसी रूह के हाथ लगे,
तो समझ लेना… वादा अधूरा नहीं रहा।
अगला जन्म वहीं से शुरू होगा जहाँ कलम टूटी थी।”
 
 
 
रूहाना के हाथ काँप गए।
“ये खत रुमी और रूहान का है…”
 
अर्जुन की आँखों में अब कोई हैरानी नहीं थी —
बल्कि एक पहचान थी।
 
> “रूहाना, शायद हम ही वो रूहें हैं जो अधूरा वादा पूरा करने लौटे हैं।”
 
 
 
उस पल हवा में नीला धुआँ घुल गया,
और दोनों के चारों ओर स्याही की खुशबू फैल गई।
 
 
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🌕 3. रूह की दस्तक
 
रात के ग्यारह बजे, हवेली की दीवारें फिर गूँजने लगीं।
सीढ़ियों से नीचे आते-आते रूहाना ने देखा —
फर्श पर नीले अक्षरों से लिखा था — “अपनी परछाईं से मिलो।”
 
कमरे के बीचोबीच एक पुराना शीशा रखा था।
रूहाना आगे बढ़ी और उसमें देखा —
इस बार उसमें उसकी सूरत नहीं थी, बल्कि एक और चेहरा उभर रहा था —
वो रुमी का था।
 
रूमी की आवाज़ गूँजी —
 
> “रूहाना, तू वही है जो मेरी कहानी को मुकम्मल करेगी।”
 
 
 
अर्जुन ने पास आकर शीशे को छुआ,
और उसके अंदर से रूहान की परछाईं उभरी —
दोनों रूहें फिर से पास आईं, और नीली रोशनी का गोला बन गया।
 
रूहाना के आँसू बह निकले —
“ये… हमारी आत्माएँ हैं, अर्जुन।
हम वही हैं जिन्होंने सदियों पहले वादा किया था…”
 
 
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🌒 4. रूह का मिलन
 
धीरे-धीरे कमरा नीली रोशनी से भर गया।
दीवारों पर सब कुछ मिटने लगा —
पुरानी पेंटिंग्स, पुरानी यादें… बस एक ही चीज़ बाकी रही —
नीली स्याही से लिखा वाक्य:
 
> “जहाँ शब्द रुक जाएँ, वहाँ रूह बोलती है।”
 
 
 
अर्जुन ने रूहाना की ओर देखा —
“क्या अब हम आज़ाद हैं?”
 
रूहाना मुस्कुराई —
“नहीं अर्जुन, अब हम बंध चुके हैं — एक नई कहानी में।”
 
अर्जुन ने धीरे से उसका चेहरा अपने हाथों में लिया —
“तो चलो, इस बार कहानी अधूरी न छोड़ें।”
 
हवा में एक हल्की गूँज उठी —
जैसे रूहें अपनी मंज़िल पा चुकी हों।
 
 
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🌠 5. नीले आसमान की गवाही
 
सुबह जब सूरज उगा, तो आसमान पूरी तरह नीला था —
वो नीला जो सिर्फ़ इश्क़ के बाद आता है।
 
बरामदे में रखे दीए से आख़िरी लौ उठी
और आसमान में मिल गई।
 
रूहाना ने अपनी डायरी खोली,
और लिखा —
 
> “हमारा इश्क़ अब हवेली की दीवारों में नहीं,
बल्कि ब्रह्मांड की रूह में दर्ज हो चुका है।”
 
 
 
अर्जुन ने उसके पास खड़े होकर फुसफुसाया —
 
> “इश्क़ की असल रूह वही है,
जो हर जन्म में खुद को फिर से पहचान ले।”
 
 
 
नीली हवा ने दोनों को अपने आगोश में ले लिया —
और हवेली की गूंज ने कहा —
 
> “रूह की ख़ामोशियाँ अब बोल उठीं हैं…”
 
 
 
 
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💫 एपिसोड 36 — हुक लाइन:
 
> “जब दो रूहें अपनी परछाईं से मिलती हैं,
तो वक्त भी झुककर कहता है — इश्क़ अमर है…” 🌌