This is life Babu......! in Hindi Love Stories by Ved Prakash books and stories PDF | ये जिंदगी है बाबू......!

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ये जिंदगी है बाबू......!

संगीता एक सरकारी दफ्तर में टाइपिस्ट थी।आदतन वह ऑफिस में रोज लेट आती परन्तु क्या मजाल है बॉस उसे फटकार लगाए उल्टा वह बॉस को ही कभी-कभी अनाप- शनाप बोल देती।🥺बॉस बेचारा उसके सुंदर दूधिया रंग मुखड़े और सुडौल काया पर फिदा था इसलिए कुछ बोल नहीं पाता था,वह जब दिल करता काम करती। नहीं तो,ऑफिस के बहुमंजिले इमारत की छत पर जाकर रील बनाती,फिर भी वह अपने काम के प्रति कभी लापरवाह नहीं थी।रोज रंग बिरंगे आउटफिट में ऑफिस आती और आते ही अपने नाजुक अंगुलियों से कीपैड पर सुरीली खट-खट की राग छेड़ देती जब उसके हाथों की अंगुलियां कंप्यूटर के "की बोर्ड" पर नर्तन करते तो ऑफिस के सभी स्टॉफ का ध्यान इसी के तरफ  खींच जाता,ऐसा लगता मानो कोई अप्सरा सितार बजा रही हो दूसरे सेक्शन के स्टॉफ बहाने से इसके करीब आते और हुस्न का दीदार करते।यह उसके रूप सौंदर्य का चमत्कारिक प्रभाव था की बड़े- साहब जो पहले कभी बिखरे बाल और मामूली कपड़ों में  नजर आते थे। अब बालों में ख़िजाब लगाने लगे थे ताकि जवान दिखे,और कपड़े भी कीमती आधुनिक पहनने लगे थे।ऑफिस के चपरासी ने तो उन्हें जिम में कसरत करते भी देखा था। पान की पिक से ऑफिस की दीवारों को लाल करने में अपनी बहादुरी समझने वाले अब मुंह में पान की जगह इलाइची चबाते नज़र आते थे। ताकि किसी दिन सांस से सांस मिले तो दुर्गंध न आए।😜😜बड़े साहब संगीता को अक्सर अपने चेंबर में अकारण ही बुला लेते और घंटो इधर-उधर की बाते करते,उसकी मधुर- मुस्कान को देख कर वह कामुक हुए बिना न रह पाते। स्त्री कितनी सुकून देती है, यह बात संगीता के सानिध्य में उन्हें महसूस होता,एक खड़ूस धर्मगुरु की बातों में आकर आजीवन ब्रह्मचारी रहने के फैसले पर उसे अफ़सोस हो रहा था और साथ ही साथ उसपर गुस्सा भी आ रहा था,क्योंकि जवानी के जोश भरे दिन अब उससे दूर हो गए थे, उम्र अब पचपन की हो चली थी ।परंतु पचपन बर्ष की अवस्था में भी वह संगीता के मधुर मुस्कान के तीरों से अपने ह्रदय को छलनी हुआ महसूस कर रहे थे। एक तरफ जहां उनके हृदय में प्रेम की लहरे हिलोरे मारती थी वही दूसरी तरफ ढलती उम्र के साथ सफेद होते बाल,नवयुवकों को उपहास उड़ाने का मौका भी दे देती थी। जिसे सुनकर उसके चहरे के हाव भाव एकदम से बदल जाते क्रोध ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ता, उपहासकर्ता को वह तीखे स्वर में जवाब देते "बुढ़ा होगा तेरा बाप भूतनी के ....."इस कहानी का तीसरा मुख्य पात्र सोहन है जो सुंदर, सुशील अविवाहित युवक है वह भी उसी दफ्तर में एक टाइपिस्ट था उसकी टेबल संगीता के टेबल को स्पर्श करती हुई रखी थी। एक भले सहकर्मी की भांति मोहन, संगीता को खूब सहयोग करता था संगीता को टाइप करने के लिए  मिलेऑफिशियल लेटर्स में स्पेलिंग मिस्टेक को वह झट से खोज लेता और उसे बता देता,जिससे उसे टाइप करने में कोई त्रुटि नही होती और वह शुद्धतापूर्वक  टाइप कर पाती, अपने बेहतर कार्य के लिए उच्च अधिकारियों से कभी कभी  शाबाशी भी पाती थी ।वह सोहन को सदा सम्मान भरी नजरों से देखती थी,परंतु सोहन मन ही मन उसे अपना जीवनसाथी मान चुका था । अब तो बस उसे शहनाई बजने का इंतजार था ताकि शर्म के सभी पर्दे हट जाय और तन,मन की ज्वाला ठंडी हो सके।वह संगीता को पत्नी रूप में प्राप्त करने के सपने देखा करता था, जब भी कभी बड़े साहब संगीता को अपने चेंबर में बुलाकर उससे बाते करते तो सोहन को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, वह कर तो कुछ नहीं सकता था बस मन ही ढेर सारी सुंदर सुंदर गालियां दे देता जिससे उसका मन हल्का हो जाता था । एक बार की बात है ,बरसात के मौसम में आफिस से छुटने के बाद बहुत तेज बारिश शुरू हो गई।संगीता के पास एक  प्यारी  रंगबिरंगी छतरी थी जिसे खोलकर वह घर जाने की तैयारी करने लगी,जबकि सोहन भींगते हुए सिर पर एक पुरानी फाइल रखकर जाने लगा जिसे देखकर संगीता  बोली "सोहन जी...! मेरे छाते के अंदर आ जाइए इस तरह तो आप घर जाते - जाते भींग जायेंगे "सोहन के मन में डबल लड्डू फूटे  वह झट से उसके छाते के अंदर आ गया। छतरी छोटी थी इसलिए कभी बारिश की फुहार संगीता को छूती तो कभी सोहन को, दोनो लगभग आधे -आधे भींग रहे थे और जब कभी दोनो के गीले बदन कम जगह की वजह से टकरा जाते तो किसी शॉर्ट सर्किट से कम महसूस नहीं होता वह मन ही मन बेमौसम बारिश को लाख लाख धन्यवाद दे रहा था ।🤪🤪ऑफिस से कुछ दूरी पर एक चाय की दुकान थी सोहन, संगीता  को एक - एक कप चाय पीने की इच्छा जाहिर की जिसके लिए संगीता तैयार हो गई। दोनो दुकान के आगे लगे टीन के शेड के नीचे बेंचपर बैठ गए।सोहन चाय का ऑर्डर देने चला गया इधर संगीता बरसात के गिरते बूंदों के साथ खेलने लगी  बारिश को देख कर उसे अपने बचपन के दिन याद आ रहे थे की किस प्रकार वह मां के मना करने पर भी बरसात में भींगती रहती तभी सोहन ने उसे चाय का एक कप पकड़ाया फिर दोनो गरम गरम चाय का आनंद लेने लगेतभी दुकान के सामने बड़े साहब  की सरकारी गाड़ी आकर रूकी । जिसे  देख कर सोहन की सारी खुशियां मानो फुर्र गई उसे किसी दुर्भाग्य की आशंका सता रही थी।🫩बड़े साहब,संगीता के नजदीक आकर  उसे जाकर गाड़ी में बैठने को कहा ताकि वह उसे उसके घर तक पहुंचा दे। संगीता भी खुश होकर गाड़ी के पास जाने लगी, जाते जाते वह अपना छाता मोहन को दे गई ताकि वह बिना भींगे अपने घर पहुंच सके।बड़े साहब संगीता को लेकर फुर्र हो चुके थे और मोहन के हाथ में था तो सिर्फ एक बेजान छाता,उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी पूंजीपति ने एक बार फिर किसी गरीब की झोपडी की मजाक उड़ाई हो तेज कदमों से वह अपने घर की ओर जा रहा था  साथ ही साथ असमय बरसात को कोस भी रहा था बरसात से उसका शरीर  लगभग पूरा भींग गया थाघर पहुंच कर वह बस छाते को ही निहारे जा रहा था कभी वह छाते को सीने से लगा लेता तो कभी उससे बातें करता, तो कभी रंग बिरंगे छाते के ऊपर शायरी कहता। आज सचमुच नींद उनकी आखों से कोसो दूर थी उसे बार - बार वहीं पल याद आ रहा थे जब उस छाते के अंदर संगीता के साथ आधे -आधे भींग रहा था फिर न जाने कब नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया और वह सो गया। अगली सुबह उसका शरीर तेज बुखार से तप रहा था शायद रात का भीगना उसके शरीर को बिल्कुल भी रास नहीं आया था। उसने फोन से ही मेडिकल लीव के लिए अर्जी लगा दी । स्वस्थ होने के कुछ दिनों पश्चात् ,जब वह दफ्तर पहुंचा तो देखा  संगीता की सीट खाली है एक स्टाफ से पूछने पर पता चला की संगीता की शादी  फिक्स हो गई है जिससे वह छुटी पर है सोहन के टेबल पर संगीता का शादी का कार्ड  रखा था और उसमे एक चिट्ठी भी थी। चिट्ठी में लिखा था।सोहन जी ,मेरी शादी अचानक फिक्स हो गई।सब कुछ जल्दी-जल्दी हो रहा है निमंत्रण कार्ड दे रही हूं उम्मीद है आप शादी में जरूर आयेंगे,शादी के बाद हनीमून मनाने हिल स्टेशन जा रही हूं।20-25 दिन रहकर खूब एंजॉय करने का इरादा है ।अतः मेरी अनुपस्थिति में मेरे सारे काम संभाल ले । मै आपकी सदा आभारी रहूंगी                                                          आपकी प्यारी सखी                                                                 संगीता ❤️