कुछ ही मिनटों में ट्रेन लखनऊ से चलने ही वाली थी,कि तभी एक जाना-पहचाना सा चेहरा आकर ठीक मेरे बगल में, विंडो के पास वाली सीट पर बैठ गया,इस तरह उसका यहां मिलना एक इत्तेफाक ही था, वो हवा के झोंके की तरह आया और मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गया,न मेरे तरफ देखा,न पहचानने की कोशिश की,मैने कनखियो से नज़र बचाकर उसे देखा और बिल्कुल कंफर्म हो गई ।
ये वहीं है.... रोल नंबर 22,अमन शर्मा,जगदम्बा हाइस्कूल में मेरे साथ पढ़ने वाला लड़का,जो अब आदमी बन चुका था, मै लगभग 25 सालों बाद उसे देख रही थी,उसकी शक्ल सूरत में कुछ खास
बदलाव नहीं आयी थी वह स्कूल टाइम से ही चश्मा लगता था जो अब तक उससे चिपका था । देखने में आज भी वह पहले की तरह हैंडसम लग रहा था । तभी मुझे कुछ याद आया और मैने झट से साड़ी का पल्लू सिर पर डाल लिया। दरअसल जल्दी जल्दी में मैने बालों में डाई करना भूल गई थी और मेरे बालों से सफेदी झांकने लगी थी । मै तुरंत अपनी छोटी सी हैंड बैग लेकर बाथरूम में चली गई और ढंग से अपना मुंह धोया और उसके बाद कुछ क्रीम की
लीपा - पोती की,फिर आईने में अपनी सूरत देखी,पसंद तो नहीं आयी,फिर भी जल्दी जल्दी में इससे ज्यादा क्या हो सकता था ?
मै वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गई ,वो अब भी खिड़की से बाहर ही देख रहा था। उसका ध्यान मेरी तरफ बिल्कुल भी नहीं था। उसकी यहीं बात मुझे स्कूल के दिनों में भी सबसे ज्यादा बुरी लगती थी कि मेरी तरफ ध्यान नहीं देता था। फिर भी न जाने उसमें क्या था कि आज तक मैं उसे भूल नहीं पाई थी । रह - रह कर मुझे यह ख्याल डरा रहा था कि कहीं वह मुझे भूल तो नहीं गया ????
हां ... .. कुछ मोटी जरूर हो गई हूं,पर ऐसा नहीं है कि पहचान में न आऊं ऐसा कहीं होता है 25-30 सालों में कोई कैसे भूल सकता है मै उसकी क्लासमेट थी 6 घंटे रोज हम दोनों एक दूसरे के नजरों के सामने रहते थे । क्या सचमुच वह मुझे भूल गया ? जिस शख्स को मै आज तक भुला नहीं पाई क्या उसने मुझे भुला दिया ,माना कि लड़कियों को ताड़ने की इसकी पहले भी आदत नहीं थी पर ये क्या की पहचाने भी नहीं ?????
मालूम है शादीशुदा है..... पर मैं भी तो शादीशुदा हूँ प्यार न सही दोस्ती के खातिर कुछ पल साथ मिलकर पुरानी यादें तो ताजा कर ही सकते है। स्कूल टाइम में सबसे नजरें चुराकर मुझे देखा करता था और आज जब इसके सामने हूं तो देखने से भी परहेज कर रहा है माना हम दोनों के बीच कभी प्यार का इजहार नहीं हुआ फिर भी एक दूसरे के बीच लगाव तो था।
मै उसके ठीक बगल में बैठी थी और टाइम पास के लिए मोबाइल पर सोशल मीडिया पर उसी का अकाउंट खोल कर उसके पोस्ट पढ़ रही थी और उसकी हर कविता, कहानी में खुद को ढूंढ रही थी और एक वो था जो मुझे पहचान ही नहीं रहा था क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी टीटी ने कंपार्टमेंट में दस्तक दिया। और देखते देखते मेरे पास आकर टिकट मांगा मैने अपनी टिकट निकल कर उसे दिया तभी टीटी ने अमन से टिकट मांगा पहली बार अमन ने सुन कर अनदेखा कर दिया परंतु दूसरी बार मांगने पर टीटी से बोला " टिकट .... नहीं है बना दो " टीटी ने पूछा कहां का बना दूं ???तभी वह अचानक उठकर टीटी से मेरी टिकट लेकर देखा और बोला वाराणसी का बना दो । टीटी टिकट बनकर उसे दिया और आगे निकल गया ।
आखिर मुझसे रहा नहीं गया और मैने पूछ ही लिया " वाराणसी में कहां रहते हो ? " वह बोला " कहीं नहीं..... अगली ट्रेन से वापस लखनऊ लौट आऊंगा "
मै बेशर्मी की हद लांघ कर ये पूछ लिया वाराणसी क्यों जा रहे हो ??
वह मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा कर बोला " लखनऊ स्टेशन पर एक दोस्त मिल गई थी उसे छोड़ने जा रहा हूं "
इतना सुनकर मेरा दिल जोर से धड़का,उसका इशारा मेरी तरफ था पर मैं भी अंजान बनने का पूरा नाटक कर रही थी ।
मै हिम्मत करके फिर पूछी " कहां है वो दोस्त ??????"वह मुस्कुरा कर बोला यहीं.. मेरे पास बैठी हैं और एकटक मेरी आंखों में देखने लगा और मुझे एक - एक करके सभी पुरानी यादें ताजा होने लगी, आंखें भींगनी ही थी । मैने खुद को बड़ी मुश्किल से संभाला । नहीं तो ट्रेन डिब्बे में ही रोना धोना शुरू हो जाता ।
उसने डरते डरते मुझसे पूछा " तुम्हे छू लूं....,पाप तो नहीं लगेगा ? "
मैने बोल दिया " छूने... से पाप नहीं लगता "
उसने मेरी हथेली को अपने दोनों हथेलियों के बीच थामकर घंटों बैठा रहा और हमारी बातें होती रही ,घंटों का सफर , मिनटों में गुजर गया ,ट्रेन वाराणसी स्टेशन पर आकर खड़ी हो गई ।
वह हड़बड़ा कर उठा और ट्रेन से यह कहकर उतरने लगा कि लखनऊ वापसी की ट्रेन बीस मिनट बाद यहां से है मुझे टिकट लेना होगा । देखते देखते वह आंखों से ओझल हो गया ,न उसने मेरा नंबर लिया न मैने उसका नंबर लिया। शायद यहीं हम दोनों के लिए अच्छा भी था ।