unfulfilled desire in Hindi Horror Stories by ADITYA RAJ RAI books and stories PDF | अधूरी चाहत

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अधूरी चाहत

रात का वक्त था। पहाड़ी रास्तों पर झींगुरों की आवाज़ें गूँज रही थीं। ठंडी हवा में पत्तों की सरसराहट किसी रहस्य की फुसफुसाहट सी लग रही थी।
शहर से दूर, “राजगढ़” नाम के छोटे से कस्बे में एक पुराना बंगला था—“वर्मा हाउस”। कहते हैं, वहाँ आज भी किसी की “अधूरी चाहत” भटकती है।

लोगों का मानना था कि जो भी उस बंगले में रात गुजारता है, वो या तो गायब हो जाता है, या पागल होकर लौटता है।
पर एक आदमी था—अर्जुन राठौर, जो इन कहानियों से डरता नहीं था।
पूर्व पुलिस अफसर, अब एक प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर। उसकी आंखों में सच्चाई खोजने की आग थी।
उसे बुलाया गया था “राजगढ़” में हुए एक अजीब केस के लिए—तीन लोगों की लाशें, बिना किसी निशान के मर चुकी थीं… और तीनों मौतें उसी बंगले के पास हुई थीं।


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पहला अध्याय: बंगले की दस्तक

अर्जुन अपनी जीप से उतरकर बंगले के गेट के सामने रुका।
लौह का पुराना फाटक हवा में हिल रहा था—चीखता हुआ।
हाथ में टॉर्च थी, और कमर पर पिस्तौल।
उसने फाटक खोला, और भीतर कदम रखते ही ज़मीन ने जैसे कोई अनकही बात कही—
“वापस लौट जाओ…”

लेकिन अर्जुन ने सिगरेट सुलगाई और हँसते हुए बोला,

> “डर वो दिखाते हैं जिन्हें खुद पर भरोसा नहीं होता…”



जैसे ही वह बंगले के अंदर दाखिल हुआ, दीवारों पर लगे पुराने पेंटिंग्स हिलने लगे।
एक पेंटिंग में एक लड़की थी—सफेद गाउन में, मुस्कुराती हुई।
लेकिन जब अर्जुन ने ध्यान से देखा, तो उसकी आँखों से खून टपक रहा था…

अर्जुन ने सिर हिलाया—“Hallucination…”
वो आगे बढ़ा। मगर तभी दरवाज़ा अपने आप धड़ाम से बंद हो गया।
टॉर्च की रोशनी एक झलक के लिए बुझी, और जब फिर जली—तो फर्श पर लिखा था,
“वो अभी भी मेरा इंतज़ार कर रहा है…”


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दूसरा अध्याय: अधूरी चाहत की कहानी

अर्जुन ने अगले दिन गाँव के बुज़ुर्ग “श्यामलाल” से बात की।
वह बोले—
“बेटा, इस बंगले में कभी विक्रम वर्मा रहता था… एक रईस ज़मींदार।
उसे रिया नाम की लड़की से प्यार था—एक आम घर की लड़की।
लेकिन समाज ने इस रिश्ते को ठुकरा दिया।
विक्रम ने सबके खिलाफ जाकर रिया से शादी करने की ठानी,
मगर शादी के दिन ही, किसी ने रिया को ज़िंदा जला दिया…”

अर्जुन चौंका—“किसने?”

श्यामलाल ने कहा,
“कोई नहीं जानता… बस इतना सुना है कि उस दिन बंगले में चीखें गूँजी थीं,
और तब से वो आवाज़ हर अमावस की रात दोहराई जाती है।”

अर्जुन को अब यह सिर्फ़ भूत की कहानी नहीं लगी।
उसे लगा, इसमें कोई इंसानी चाल भी है।


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तीसरा अध्याय: अमावस की रात

अमावस की रात आई।
अर्जुन ने बंगले में कैमरे और सेंसर लगा दिए थे।
वो हर कमरे में घूम रहा था, तभी एक पुरानी किताब मिली—
“रिया की डायरी”।

उसमें लिखा था:

> “अगर मैं जिंदा न रहूँ, तो समझ लेना, मेरी मौत कोई हादसा नहीं…”



अर्जुन की साँसें रुक गईं।
वो पन्ने पलटता गया, और हर पन्ने के पीछे जैसे दर्द की चीख थी।
“विक्रम का गुस्सा… उसका शक… और अंत में आग।”

डायरी के आखिरी पन्ने पर सिर्फ़ एक लाइन थी—
“मैं लौटूँगी, अपने प्यार का हिसाब लेने…”

और तभी, हवा में ठंडक फैल गई।
बंगले की सारी लाइट्स एक साथ जल गईं।
टॉर्च अपने आप बंद हो गई।
शीशे में अर्जुन ने अपनी परछाई देखी—पर वो उसकी नहीं थी।
वो एक औरत थी—लंबे बाल, लाल आँखें, जलता हुआ चेहरा।

> “क्यों आए हो… मेरे वादे को तोड़ने?”



अर्जुन ने खुद को संभाला—
“रिया? क्या तुम मरी नहीं हो?”

हवा में गूँज उठा—

> “मर कर भी अधूरी चाहत पूरी करनी बाकी है…”




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चौथा अध्याय: सच का चेहरा

अर्जुन ने अगले दिन गाँव के रिकॉर्ड खंगाले।
विक्रम वर्मा ने रिया की मौत के बाद खुदकुशी नहीं की थी,
बल्कि गायब हो गया था।
कुछ महीनों बाद, बंगले में एक और औरत की लाश मिली थी—
वो रिया जैसी ही दिखती थी।

अर्जुन ने तुरंत बंगले की तहखाने की दीवार तोड़ी।
अंदर सड़ती हुई हड्डियाँ मिलीं—दो इंसानों की।
और उनके पास एक ताबीज़, जिस पर लिखा था—“हमेशा साथ रहेंगे…”

उसी वक्त दीवार के पीछे से ठंडी हवा का झोंका आया।
रिया की आत्मा फिर सामने थी।
उसकी आँखों में आँसू थे, आवाज़ में दर्द—

> “मैंने किसी और के साथ नहीं रहना चाहा…
लेकिन उसने मुझे धोखे में जला दिया…”



अर्जुन समझ गया—विक्रम ने ही उसे जलाया था।
शक, जलन और पागलपन ने उसे राक्षस बना दिया था।

“रिया…” अर्जुन ने कहा,
“तुम्हारा बदला पूरा हुआ। वो अब इस दुनिया में नहीं है।”

रिया मुस्कुराई, लेकिन उसकी मुस्कान में सुकून नहीं था—

> “प्यार कभी मरता नहीं, अर्जुन। बस अधूरा रह जाता है…”



इतना कहकर वो धुएँ में बदल गई।
बंगले की दीवारें चरमराने लगीं, जैसे कोई अंदर से आज़ाद हो रहा हो।
अर्जुन बाहर निकला, और देखा—वर्मा हाउस धीरे-धीरे राख बन रहा था।


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पाँचवाँ अध्याय: आखिरी मोड़

कई महीने बाद, अर्जुन अपने शहर लौट आया।
पर एक रात जब उसने आईने में खुद को देखा,
तो पीछे वही सफेद गाउन वाली परछाई खड़ी थी।
होंठों पर मुस्कान, और आँखों में वही तड़प।

> “मैंने कहा था न अर्जुन… अधूरी चाहत कभी नहीं मरती…”



और आईना टूट गया।


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अंत में, बस इतना कहा जा सकता है:

> प्यार जब अधूरा रह जाए, तो वो रूह बनकर लौटता है…
कभी किसी के स्पर्श में, कभी किसी की सजा में…
और कभी किसी ऐसे इंसान के दिल में, जो सच्चाई खोजता है — पर खुद रहस्य बन जाता है…




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“अधूरी चाहत”
एक ऐसा प्रेम, जो मौत से भी ज़्यादा ज़िंदा था।
एक ऐसा बदला, जो सच्चाई से भी डरावना था।
और एक ऐसी आत्मा… जिसे बस मोहब्बत चाहिए थी। ❤️‍🔥