थामा ओ रामा रामा। क्या फिल्म बनाई है? क्यों , कब, कहां , कैसे?
अनेक प्रश्न आपके दिलों दिमाग पर मंडराने लगेंगे जब आप यह फिल्म देखकर सिनेमाघरों से बाहर निकलेंगे। आयुष्मान खुराना और नेशनल क्रश रश्मिका मन्दाना को लीड रोल में लेकर ट्रेडिंग टॉपिक हॉरर कॉमेडी पर बनाई इस फिल्म से दीपावली की छुट्टियों में उम्मीदें लगाई गईं थीं, क्या हुआ उन उम्मीदों का?
रश्मिका मन्दाना आज कल नेशनल क्रश बनीं हुईं हैं। उनकी फिल्में साउथ में सुपर हिट हो चुकीं हैं और पुष्पा में उनके काम को बहुत सराहना मिली है। हिंदी फिल्मों में उनको बड़ी फिल्में मिल चुकी हैं जिसमें एनिमल , छावा और सिकंदर सम्मिलित है, एनिमल और छावा बहुत अच्छी चलीं। अब हिंदी हॉरर कॉमेडी में उनका यह पहला प्रयोग रहा। लगता है फिल्म चुनने में थोड़ी जल्दबाजी कर ली या फिर कहें तो स्त्री की सफलता उन्हें खींच लाईं।
आयुष्यमान खुराना काफी समय से उनकी पत्नी के स्वास्थ्य की वजह से फिल्मों में नहीं दिखे और आखिर कार थामा फिल्म में उनका आगमन हुआ , उनको देसी लड़के के किरदार अच्छे जचते हैं पर यहां उनका किरदार अलग है, उन्हें कॉमेडी रोल भी अच्छी तरह आते हैं, ड्रीम गर्ल या अंधाधुंध में उनकी कॉमेडी टाइमिंग को सराहा गया, पर यहां थामा में लगता है स्क्रिप्ट फीकी पड़ रही है। जो डायलॉग और सिक्वेंस कॉमेडी करवाते हैं वो चीजें यहां फीकी पड़ रहीं थीं। एक बेताल के रूप में उन्हें कितना पसंद करेगी उनकी फैन फॉलोइंग ?
थामा की कहानी में नए प्रकार के भूत हैं। ये इंसान जैसे हैं पर इंसान नहीं हैं, ये खुद को बेताल बताते हैं। उनको एक पौराणिक कथा के राक्षस रक्तबीज से जोड़ा गया है। महाकाली ने जब रक्तबीज को मारना चाहा तो रक्तबीज अपने खून से नए राक्षस बनाता गया। उन्हें रोकने के लिए महाकाली ने बेताल भूतों को बुलाया और उसके पूरे रक्त को पीने को कहा, तब जाकर रक्तबीज की मुक्ति हुई। अब यह अलग बात है कि इसका आगे कोई सीधा संपर्क कहानी से नहीं हुआ।
खैर, आगे इनके समाज की सुंदर बेताल मतलब रश्मिका मिलती है एक अच्छे इंसान आयुष्मान को। होता है प्यार और कंफ्यूजन। इंसान और बेताल का प्यार कैसा होगा? कॉमेडी के प्रयत्न अच्छे किए गए हैं पर आप कितना हंस पाते हैं वो आपकी बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है।
आगे फिर एक थामा है जिसको ये अपना पूर्वज मानते है जो है नवाज़ुद्दीन सिद्दकी। इनके अच्छे दिन नहीं चल रहे, किसी भी रोल में भाई साहब आज कल कुछ अच्छा नहीं कर पा रहे, तो इस रोल में भी ना ये कॉमेडी कर पाए, ना डरा पाए। इतने अच्छे कलाकार के ये दिन मुझे अच्छे नहीं लगते, नवाज़ुद्दीन वापस जरूर आएगा।
फिल्म को दिशा ही नहीं मिल रही थी, लग रहा था जैसे डायरेक्टर टुकड़े बनाकर कुछ जोड़ने का प्रयत्न कर रहे हों पर वो हो नहीं पा रहा जिसमें और टुकड़े समेटने पड़ रहे थे। भेड़िए को भी लेकर आए, स्त्री वाले जाना को लेकर आए, कटप्पा फादर को लेकर आए, आखिर में सर कटा का भी आगमन हुआ पर आखिर ये करना क्या चाह रहे थे। फिल्म में कहानी का कोई मकसद सामने नहीं आया।
फिल्म में जबरदस्त बैकग्राउंड साउंड के साथ बेड़ियां और बेताल की लड़ाई है और फिर बेताल और दूसरे बेताल की लड़ाई है, बहुत छोटे बच्चों को शायद यह लड़ाई अच्छी लगे जैसे मार्वल मूवीज में होती है।
फिल्म को कमर्शियल लेवल पर एक फॉर्म्युला की तरह बनाया गया है जिसमें भूत , कॉमेडी और बहुत मसाले डाल कर भी कुछ अच्छी फिल्म सामने नहीं आई, मलायका अरोड़ा, नूरा फतेही जैसे डांस वाले गाने निष्क्रिय और निश्तेज गए हैं।
दिनेश विजयन ने स्त्री की सफलता, स्त्री २ की 75‰ सफलता , भेड़िया की 50% सफलता और मुंजिया की 25% सफलता को दिमाग में रखकर हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स बनाने का निष्फल प्रयास किया है, जिससे बुकिंग ऐप पर फेक रिव्यू लिखवाकर प्रसिद्ध करने का भी पूरा प्रयास है।
आप अपनी दिवाली की छुट्टियों का अंत शांति और आनंद के साथ करना चाहें तो फिल्म से दूरी बनाए रखें ।