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🌕 1. हवेली की स्याह सुबह
दरभंगा की हवेली पर आज सुबह की धूप नहीं उतरी थी —
आसमान पर काले बादल मंडरा रहे थे,
और हवा में गुलाब की महक की जगह अब लोहे जैसी गंध थी —
ख़ून की।
सीढ़ियों के पास लाल निशान फैले थे।
अर्जुन की हथेली अब भी कांप रही थी,
और उसकी आँखें — नीली रौशनी से चमक रही थीं।
रुमी भागती हुई आई।
उसने अर्जुन के हाथ थामे —
“ये क्या किया तुमने?”
अर्जुन बोला —
> “मैंने कुछ नहीं किया… किसी ने ये मेरे खून से लिखा है।”
रुमी ने ज़मीन पर देखा —
वो शब्द अब भी ताज़े थे —
“रुमानियत को जो छूएगा, वो खुद रूह बन जाएगा…”
रमाकांत पंडित वहीं आ गए, काँपती आवाज़ में बोले —
> “ये हवेली अब किसी नए खेल की शुरुआत कर रही है… सावधान रहना बेटी,
इस बार रूह किसी के शरीर में नहीं — किसी के इश्क़ में बसी है।”
रुमी ने ताबीज़ को कसकर पकड़ा।
वो हल्का-सा जल उठा।
अर्जुन ने दर्द से कराहते हुए कहा —
> “ये ताबीज़ मुझे जलाता क्यों है… और तुम्हारे लिए ठंडा क्यों पड़ता है?”
रुमी ने धीमे स्वर में जवाब दिया —
> “क्योंकि ये ताबीज़ किसी एक दिल को नहीं पहचानता… ये सिर्फ रूहों को पहचानता है।”
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🌘 2. हवेली का छिपा कमरा
रात को रुमी और अर्जुन हवेली के पुराने पश्चिमी हिस्से में गए,
जहाँ अब तक कोई नहीं गया था।
वहाँ दीवार पर एक पेंटिंग टंगी थी —
जिसमें राज़, रूहनिशा और एक तीसरा चेहरा था — धुंधला।
अर्जुन ने हाथ बढ़ाया तो दीवार पीछे हट गई।
एक गुप्त कमरा खुला।
कमरे में एक डायरी रखी थी —
उस पर खून के निशान और दो शब्द — “मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत”।
रुमी ने कांपते हुए पन्ना खोला —
अंदर लिखा था —
> “जिस दिन कोई इंसान अपने इश्क़ में रूह की रुमानियत को पहचान लेगा,
उसी दिन ये हवेली फिर ज़िंदा होगी।”
अर्जुन ने रुमी की ओर देखा —
> “क्या इसका मतलब… हम दोनों?”
रुमी बोली —
> “शायद… या शायद ये हवेली हमसे कुछ और चाहती है।”
दीवारों से फुसफुसाहट आई —
“वो लौट आया है… अधूरा वादा पूरा करने।”
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🌙 3. अधूरी रूह की दस्तक
मध्यरात्रि।
अर्जुन को वही सपना फिर आया —
राज़ रूहनिशा के सामने खड़ा था।
मगर इस बार तीसरा चेहरा भी दिखा —
वो चेहरा अर्जुन का ही था।
राज़ बोला —
> “इस बार गलती मत करना, अर्जुन।
मोहब्बत को अधूरा छोड़ने की कीमत रूहें देती हैं।”
अर्जुन नींद से उठा —
कमरे का दर्पण झिलमिला रहा था,
और उस पर रुमी की परछाई उभर रही थी।
वो फुसफुसाई —
> “मोहब्बत जब रूह बन जाती है, तो मौत भी उसे रोक नहीं सकती।”
अर्जुन ने आगे बढ़कर दर्पण को छुआ —
आईना पिघलने लगा, और हवेली की दीवारों से गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरने लगीं।
ताबीज़ फिर चमक उठा —
दो हिस्से मिलकर अब सुनहरे रंग में बदल गए।
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🔥 4. रुमानियत का स्पर्श
सुबह जब रुमी ने अर्जुन की हथेली पकड़ी,
उसकी हथेली से नीली रौशनी फैल गई।
हवेली की दीवारें एक-एक करके जगमगाने लगीं।
हर कमरे में पुरानी तस्वीरें मुस्कुराने लगीं।
रमाकांत पंडित ने हैरानी से देखा —
> “रूमी बेटी… अर्जुन बाबू… ये तो वही है, जो तीन जन्म पहले होना था!”
अर्जुन ने रुमी की ओर देखा,
उसके चेहरे पर नूर था, और आँखों में वही रुमानियत —
जो राज़ की आँखों में थी।
रुमी ने कहा —
> “अब मैं समझ गई… मेरे इश्क़ में जो शामिल है,
वो सिर्फ इंसान नहीं — वो रूह है, जो अधूरी मोहब्बत पूरी करने आई है।”
अर्जुन ने मुस्कुराकर कहा —
> “तो इस बार अधूरी नहीं रहेगी।”
वो आगे बढ़ा,
उसने रुमी का हाथ थामकर कहा —
> “मोहब्बत का ये जन्म — हमारी रूहों की मुक्ति है।”
और उसी क्षण हवेली के ऊपर नीली रोशनी की लहर उठी,
जो पूरे आकाश में फैल गई।
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🌕 5. ताबीज़ की आख़िरी धड़कन
रात ढली —
रुमी और अर्जुन हवेली के आँगन में खड़े थे।
हवा में गुलाब की महक लौट आई थी।
दोनों ने मिलकर ताबीज़ को हवेली की मिट्टी में दबा दिया।
रुमी ने कहा —
> “अब ये रुमानियत किसी और जन्म की मोहब्बत बनेगी।”
अर्जुन मुस्कुराया —
> “और अगर फिर बिछड़ गए तो?”
रुमी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —
> “तो शायद अगली बार मैं तुम्हारे लिखे किसी शब्द में जन्म लूँगी।”
अर्जुन ने धीरे से कहा —
> “और मैं तुम्हें पहचान लूँगा — हर बार, हर जन्म में।”
हवेली की घड़ी ने बारह बजाए —
और नीली रौशनी पूरी हवेली में बिखर गई।
रुमी की परछाई हवा में घुल गई —
बस गुलाब की खुशबू बाकी रह गई।
अर्जुन अकेला खड़ा था, मगर उसके होंठों पर मुस्कान थी —
> “रुमानियत अब मेरी रगों में बहती है…”
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💫 एपिसोड 30 — हुक लाइन:
अगले दिन हवेली के दरवाज़े पर एक नई पेंटिंग टंगी थी —
उसमें राज़, रूहनिशा और अर्जुन नहीं…
बल्कि रुमी और अर्जुन साथ खड़े थे।
और नीचे लिखा था —
> “रूहें लौट आती हैं… जब इश्क़ रुमानियत बन जाए।” ❤️🔥