Ek Anokhi Love Story in Hindi Love Stories by VIJAY BASRE books and stories PDF | एक अनोखी लव स्टोरी

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एक अनोखी लव स्टोरी

एक अनोखी लव स्टोरी

 

“ये मैं कहाँ हूँ?  

 

  मैं तो अपने कमरे में नींद की गोली लेकर सोई थी.

 

मैं यहाँ कैसे आ गई? किसका कमरा है ये?”

 

आँखें खुलते ही सुमन के मन में हज़ारों सवाल घूमने लगते हैं. एक अंजाना भय उसके मन को घेर लेता है.

 

वो कमरे को बड़े गौर से देखती है. "क्या मैं सपना तो नहीं देख रही?" सुमन सोचती है.

 

"नहीं, नहीं, ये सपना नहीं है... पर मैं हूँ कहाँ?" सुमन हैरानी में पड़ जाती है.

 

वो हिम्मत करके धीरे से बिस्तर से खड़ी होकर दबे पाँव कमरे से बाहर आती है.

 

"बिल्कुल सुनसान सा माहौल है... आखिर हो क्या रहा है?"

 

सुमन को सामने बने किचन में कुछ आहट सुनाई देती है.

 

"किचन में कोई है... कौन हो सकता है....?"

 

सुमन दबे पाँव किचन के दरवाजे पर आती है. अंदर खड़े लड़के को देखकर उसके होश उड़ जाते हैं.

“अरे! ये तो राजू है… ये यहां क्या कर रहा है... क्या ये मुझे यहां लेकर आया है...इसकी हिम्मत आखिर कैसे हुई?” सुमन द्वार पर खड़ी-खड़ी सोचती है। 

 

राजू उसका क्लास मेट भी था और पड़ोसी भी.

 राजू और सुमन के परिवारों की बिल्कुल नही बनती थी. अक्सर अदित्य की मम्मी और सुमन की अम्मी में किसी ना किसी बात को ले कर कहा सुनी हो जाती थी.

 इन पड़ोसियों का झगड़ा पूरे मोहल्ले में मशहूर था.

 अक्सर इनकी भिड़ंत देखने के लिए लोग इक्कठ्ठा हो जाते थे.

सुमन और राजू भी एक-दूसरे को देखकर बिल्कुल खुश नहीं थे। जब कभी कॉलेज में वे एक-दूसरे के सामने आते थे, तो मुंह फेरकर निकल जाते थे। हालत कुछ ऐसे थे कि अगर उनमें से एक कॉलेज की कैंटीन में होता था, तो दूसरा कैंटीन में नहीं घुसता था। 

शुक्र है कि दोनों अलग-अलग सेक्शन में थे, वरना क्लास अटेंड करने में भी प्रॉब्लम हो सकती थी।

 

“क्या ये मुझसे कोई बदला ले रहा है?” सुमन सोचती है।

 

अचानक सुमन की नज़र किचन के दरवाजे के पास रखे फ्लावर पॉट पर पड़ी। उसने धीरे से फ्लावर पॉट उठाया।

 

राजू को अपने पीछे कुछ आहट महसूस हुई, तो उसने तुरंत पीछे मुड़कर देखा। जब तक वह कुछ समझ पाता... सुमन ने उसके सिर पर फ्लावर पॉट दे मारा।

 

राजू के सिर से खून बहने लगा और वह लड़खड़ा कर गिर गया.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की?" सुमन चिल्लाई.

 

सुमन फ़ौरन दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल कर भाग कर अपने घर के बाहर आ गई.

 

पर घर के बाहर पहुँचते ही उसके कदम रुक गए.

 उसकी आँखें जो देख रही थीं, उसे उस पर विश्वास नहीं हो रहा था.

 वह थर-थर काँपने लगी.

उसके घर के बाहर उसके पिताजी और माँ की लाश थी, और घर के दरवाजे पर उसकी छोटी बहन माया की लाश निर्वस्त्र पड़ी थी.

गली में चारों तरफ कुछ ऐसा ही माहौल था.

 

सुमन को कुछ समझ नहीं आता, उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगता है, और वह फूट-फूट कर रोने लगती है.

 

इतने में राजू भी वहाँ आ जाता है.

 

सुमन उसे देख कर भागने लगती है, पर राजू तेज़ी से आगे बढ़कर उसका मुँह दबोच लेता है और उसे घसीट कर वापस अपने घर में लाकर दरवाजा बंद करने लगता है.

 

सुमन को सोफे के पास रखी हॉकी नज़र आती है.

 

वह भाग कर उसे उठा कर राजू के पेट में मारती है और तेज़ी से दरवाजा खोलने लगती है.

पर अदित्य जल्दी से संभल कर उसे पकड़ लेता है, "पागल हो गई हो क्या? 

कहाँ जा रही हो? दंगे हो रहे हैं बाहर.

 

इंसान… भेड़िए बन चुके हैं.. तुम्हें देखते ही नोच-नोच कर खा जाएंगे.” 

 

सुमन ये सुनकर हैरानी से पूछती है, “द.द..दंगे!! कैसे दंगे?” 

 

“एक ग्रुप ने ट्रेन फूंक दी…….. और दूसरे ग्रुप के लोग अब घर-बार फूंक रहे हैं… चारों तरफ… हा-हा-कार मचा है… खून की होली खेली जा रही है.” 

 

“मेरी मम्मी, पिताजी और माया ने किसी का क्या बिगाड़ा था?” 

 

“बिगाड़ा तो उन लोगों ने भी नहीं था जो ट्रेन में थे….. बस यूं समझ लो की करता कोई है और भरता कोई… सब राजनीतिक षड्यंत्र है.” 

 

“तुम मुझे यहां क्यों लाए, क्या मुझसे बदला ले रहे हो?” 

 

“जब पता चला कि ट्रेन फूंक दी गई तो मैं भी अपना आपा खो बैठा था.” 

 

“हां-हां, माइनॉरिटी के खिलाफ आपा खोना बड़ा आसान है।”

 क्योंकि मेरे माँ-बाप उस ट्रेन की आग में झुलस कर मारे गये, कोई भी अपना आपा खो देगा.”

 

“सुमन तो मेरी मम्मी और पिताजी कौन सा जिंदा बचे हैं, और माया का तो रेप हुआ लगता है.

 हो गया ना तुम्हारा और हिसाब बराबर अब मुझे घर जाने दो” सुमन रोते हुये कहती है."

 

“ये सब मैने नही किया समझी तुम्हे यहा उठा लाया क्योंकि माया का रेप देखा नही गया मुझसे, अभी रात के 2 बजे हैं और बाहर कर्फ्यू लगा है, माहौल ठीक होने पर जहाँ चाहे वहाँ चली जाना”

 

“सुमन मुझे तुम्हारा अहसान मंजूर नही…मैं अपनी जान दे दूँगी.”

सुमन किचन की तरफ भागती है और एक चाकू उठा कर अपनी कलाई की नस काटने लगती है.

 

राजू भाग कर उसके हाथ से चाकू छिंता है और उसके मुँह पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है.

 

सुमन थप्पड़ की चोट से लड़खड़ा कर गिर जाती है और फूट-फूट कर रोने लगती है.

 

“राजू चुप हो जाओ.. बाहर हर तरफ वैसी दरिंदे घूम रहे हैं.. किसी को शक हो गया कि तुम यहा हो तो सब गड़बड़ हो जाएगा.”

 

“क्या अब मैं रो भी नही सकती… क्या बचा है मेरे पास अब.. ये आँसू ही हैं.. इन्हे तो बह जाने दो.”

 

राजू कुछ नही कहता और बिना कुछ कहे किचन से बाहर आ जाता है.

 

सुमन रोते हुवे वापिस उसी कमरे में आजाती है जिसमे उसकी कुछ देर पहले आँख खुली थी.

 

अगली सुबह सुमन उठ कर बाहर आती है तो देखती है कि राजू खाना बना रहा है.

 

राजू सुमन को देख कर पूछता है, “क्या खाउंगी ?”

 

“ज़हर हो तो दे दो”

 

“वो तो नही है.. टूटे-फूटे पराठे बना रहा हूँ….यही खाने

 

पड़ेंगे..….आऊउच…” राजू की उंगली जल गयी.

 

“क्या हुआ …. ?”

 

“कुछ नही उंगली ज़ल गयी”

 

“क्या पहले कभी तुमने खाना बनाया है ?”

 

“नही, पर आज…बनाना पड़ेगा.. अब वैसे भी मम्मी के बिना मुझे खुद ही बनाना पड़ेगा ”

 

सुमन कुछ सोच कर कहती है, “हटो, मैं बनाती हूँ”

 

“नही मैं बना लूँगा”

 

“हट भी जाओ…जब बनाना नही आता तो कैसे बना लोगे”

 

“एक शर्त पर हटूँगा”

 

“हां बोलो”

 

“तुम भी खाऊंगी ना?”

 

“मुझे भूक नही है”

 

“मैं समझ सकता हूँ सुमन, तुम्हारी तरह मैने भी अपनो को खोया है. पर जिन्दा रहने के लिए हमें कुछ तो खाना ही पड़ेगा”

 

“किसके लिए जिन्दा रहूँ, कौन बचा है मेरा?”

 

“राजू कल मैं भी यही सोच रहा था. 

पर जब तुम्हे यहा लाया तो जैसे मुझे जीने का कोई मकसद मिलगया हो.

“सुमन क्या मैं किसी तरह दिल्ली पहुँच सकती हूँ, मेरी मौसी है वहाँ?”

 

“चिंता मत करो, माहौल ठीक होते ही सबसे पहला काम यही करूँगा”

 

सुमन राजू की ओर देख कर सोचती है,

“कभी सोचा भी नही था कि जिस इंसान से मैं बात भी करना पसंद नही करती, उसके लिए कभी खाना बनाउंगी.”

 

राजू भी मन में सोचता है, “क्या खेल है किस्मत का? जिस लड़की को देखना भी पसंद नही करता था, उसके लिए आज कुछ भी करने को तैयार हूँ, शायद यही इंसानियत है”

 

धीरे-धीरे वक्त बीत-ता है और दोनो अच्छे दोस्त बनते जाते हैं, एक दूसरे के प्रति उनके दिल में जो नफ़रत थी वो ना जाने कहा गायब हो जाती है.

 

वो 24 घंटे घर में रहते हैं. कभी प्यार से बात करते हैं कभी तकरार से, कभी हंसते हैं और कभी रोते हैं, वो दोनो वक्त की कड़वाहट को भुलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

 

एक दिन राजू सुमन से कहता है, “तुम चली जाओगी तो मैं ना जाने कैसे रहूँगा.

 

 तुम्हारे साथ की आदत सी हो गयी है, कौन मेरे लिए अच्छा अच्छा खाना बनाएगा समझ नही आता कि मैं तब क्या करूँगा?”

 

“तुम शादी कर लेना, सब ठीक हो जाएगा”

 

“और फिर भी तुम्हारी याद आई तो?”

 

“तो मुझे फोन कर लेना”

 

सुमन को भी राजू के साथ की आदत हो चुकी है वो भी वहाँ से जाने के ख्याल से परेशान हो जाती है, पर कहती कुछ नही.

15 दिन बाद...

 

“राजू, सुमन उठो दिन में भी सोती रहती हो”

 

“क्या बात है? सोने दो ना”

 

“कर्फू खुल गया है. मैं ट्रेन की टिकट बुक करके आता हूँ. तुम किसी बात की चिंता मत करना, मैं जल्दी ही आजाऊंगा तुम अपना ख्याल रखना.”

 

“ठीक है…सो जाओ तुम कुंभकरण कहीं की…हे..हे..हे….”

 

“वापिस आओ मैं तुम्हे बताती हूँ” -- सुमन राजू के उपर तकिया फेंक कर बोलती है.

 

राजू हंसते हुए वाहा से चला जाता है.

 

जब वो वापस आता है तो सुमन किचन में काम कर रही होती है.

 

“राजू सुमन बस 5 दिन और…फिर तुम अपनी मौसी के घर पर होगी.”

 

“5 दिन और का मतलब? ……मुझे यहा कोई तकलीफ़ है?”

 

“तो रुक जाओ फिर यहीं…अगर कोई तकलीफ़ नही है तो”

 

सुमन राजू के चेहरे को बड़े प्यार से देखती है. उसका दिल भावुक हो उठता है.

 

“क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं रुक जाऊ?”

 

“नही-नही मैं तो मज़ाक कर रहा था, ऐसा चाहता तो मैं

टिकट क्यों बुक कराता?” -- 

ये कह कर राजू वाहा से चल देता है. उसे पता भी नही चलता की उसकी आँखे कब नम हो गयी.

 

इधर सुमन मन ही मन कहती है, “तुम रोक कर तो देखो मैं तुम्हे छोड़ कर कहीं नही जाउंगी.”

 

वो 5 दिन उन दोनो के बहुत भारी गुज़रते हैं.

 राजू सुमन से कुछ कहना चाहता है, पर कुछ कह नही पाता.

सुमन भी बार-बार राजू को कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करती है पर राजू को कुछ कह नहीं पाती. 

 

जिस दिन सुमन को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट की,किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं.

 

मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अच्छा हो,पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.

सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.

 

कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है वो आँख खोल कर देखता है कि सुमन ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है.

 

“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”

 

“तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जिन्दा ना होती”

 

“मैं कौन होता हूँ सुमन, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”

 

सुमन वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो राजू ”

 

“क्या तुम रुक नही सकती सुमन...बहुत अच्छा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते” राजू भी मन में कहता है.

 

"एक अनोखी लव स्टोरी दोनों के बीच बन जाती है."

 

7 बजे राजू, सुमन को ऑटो में रेल्वे स्टेशन ले आता है.

 

सुमन को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”

 

“क्या? ”

 

“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”

 

“सच!!!!”

 

“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहौल में तुम्हे अकेले दिल्ली थोडिना भेजूँगा”

 

“सुमन तुम इंसान हो कि एक फरिश्ता …कुछ समझ नही आता”

 

“राजू एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”

 

“तुम्हे… क्या?” सुमन ने प्यार से पूछा “कुछ नही”

 

दोनों एक दूसरे से प्यार करते है पर कह नहीं पाते.

 

ट्रेन चलती है, राजू और सुमन खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो दिल्ली पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता.

 

ट्रेन से उतरते वक्त सुमन का दिल भारी हो उठता है, वो सोचती है कि पता नही अब वो राजू से कभी मिल भी पाएगी या नही.

 

“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” राजू ने कहा.

 

सुमन को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतरती है.

 

“चलो अब सिलकपुर के लिए ऑटो करते हैं” राजू ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.

 

“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”

 

“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”

 

सुमन ये सुन कर मुस्कुरा देती है.

 

राजू के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलकपुर की तरफ चल पड़ते हैं.

 

सुमन रास्ते भर किन्ही गहरे ख्यालो में खोई रहती है. 

राजू चुप रहता है.

 

एक घंटे बाद ऑटो वाला सिलकपुर की मार्केट में ऑटो रोक कर पूछता है, “कहा जाना है… कोई पता-अड्रेस है क्या?”

 

भैया यही उतार दो सुमन मेरी मौसी का घर सामने वाली गली में है” राजू से कहा.

 

"शुक्र है तुम कुछ तो बोली." 

"राजू ने कहा."

 

"तुम भी तो चुप बैठे थे मोनी बाबा बन कर...क्या तुम कुछ नही बोल सकते थे."

 

"अच्छा अब उतरो भी...ऑटो वाला सुन रहा है." दोनो के बीच तकरार शुरू हो जाती है.

 

सुमन ऑटो से उतरती है "आइ एम सोरी पर तुम कुछ बोल ही नही रहे थे."

 

"ठीक है कोई बात नही. शांति से अपने घर जाओ...मुझे भूल मत जानता."

 

"तुम्हे भूलना भी चाहूं तो भी भुला नही पाऊँगी"

 

"देखा हो गयी ना अपनी बाते शुरू." राजू ने मुस्कुराते हुए कहा.

 

सुमन ने उस गली की और देखा जिसमे उसकी मौसी का घर था और गहरी साँस ली. "चलु मैं फिर"

 

थोड़ी देर दोनो में खामोसी बनी रहती है. 

 

राजू सुमन को देखता रहता है. "जाते जाते कुछ कहोगी नही" राजू ने कहा.

 

“ अब क्या कहूँ…तुम्हारा सुक्रिया करूँ भी तो कैसे, समझ नही आता”

 

“सुक्रिया करो भगवान का जिसने हमे इतनी बड़ी मुश्किल से बहार निकाला है….

 

“कभी खाना बुरा बना हो तो माफ़ करना, और जल्दी शादी कर लेना, तुम अकेले नही रह पाओगे”

 

“ठीक है..ठीक है….अब रुलाओगि क्या.. चलो जाओ अपनी मौसी के घर”

 

“ठीक है राजू अपना ख्याल रखना और हां मैने जो उस दिन तुम्हारे सर पर फ्लवर पोट मारा था उसके लिए मुझे माफ़ कर देना”

 

“और उस हॉकी का क्या?”

 

सुमन शर्मा कर मुस्कुरा पड़ती है और कहती है, “हां उसके लिए भी”

 

“ठीक है बाबा जाओ सब…. लोग हमें घूर रहे हैं”

 

सुमन भारी कदमो से मूड कर चल पड़ती है और राजू उसे जाते हुए देखता रहता है.

 

वो उसे पीछे से आवाज़ देने की कोशिस करता है पर उसके मूह से कुछ भी नही निकल पाता.

 

सुमन गली में घुस कर पीछे मूड कर राजू की तरफ देखती है. दोनो एक दूसरे को एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बाय करते हैं.

उनकी दर्द भरी मुस्कान में उनका अनौखा प्यार उभर आता है.

"दोनो अभी भी इस बात से अंजान हैं कि वो ना चाहते हुए भी उनकी एक अनोखी लव स्टोरी चालू हो गई है."

 

जब सुमन गली में ओझल हो जाती है तो राजू मूड कर भारी मन से चल पड़ता है.

 

पता नही कैसे जी पाउँगा सुमन के बिना मैं? 

काश! एक बार उसे अपने दिल का हाल बता पाता…

क्या वो भी मुझे प्यार करती है?

लगता तो है, पर कुछ कह नही सकती राजू चलते-चलते सोच रहा है.

 

अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है

 

“राजू! रूको….”

 

राजू मूड कर देखता है.

 

उसके पीछे सुमन खड़ी थी, उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.

 

अरे तुम रो रही हो… तुम्हे तो, अपनो के पास जाते वक्त खुस होना चाहिपता नही कैसे जी पाउँगा सुमन के बिना मैं? 

काश! एक बार उसे अपने दिल का हाल बता पाता…

क्या वो भी मुझे प्यार करती है?

लगता तो है, पर कुछ कह नही सकती राजू चलते-चलते सोच रहा है.

 

अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है

 

“राजू! रूको….”

 

राजू मूड कर देखता है.

 

उसके पीछे सुमन खड़ी थी, उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.ए”

 

“तुम से ज़्यादा मेरा अपना कौन हो सकता है राजू … मुझे खुद से दूर मत करो”

 

राजू की भी आँखे छलक उठती हैं और वो दौड़ कर सुमन को गले लगा कर कहता है, “क्यों जा रही थी फिर तुम मुझे छोड़ कर?”

 

“तुम मुझे रोक नही सकते थे?” सुमन ने गुस्से में पूछा.

 

“रोक तो लेता पर यकीन नही था कि तुम रुक जाओगी”

 

“तुम कह कर तो देखते” सुमन नें रोते हुए बोली.

 

“राजू …सुमन आइ लव यू…”

 

“पता नही क्यों.... बट आइ लव यू टू राजू ” सुमन ने कहा.

 

“मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वापिस कैसे जाउन्गा”

 

“और मैं सोच रही थी कि तुम्हारे बिना कैसे जिपाऊँगी ”

 

“अछा हुआ तुम वापिस आ गयी वरना दिल्ली से मेरी लाश ही जाती”

 

“ऐसा मत कहो… मैं वापिस क्यों नही आती. 

मम्मी,पिताजी और माया को तो खो चुकी हूँ, तुम्हे नही खो सकती राजू.”

 

उन्हे उस पल किसी बात का होश नही रहता. प्यार और होश शायद मुस्किल से साथ चलते हैं.

 

“पता है…मैं तुम्हे बिल्कुल लाइक नही करता था”

 

“मैं भी तुमसे बहुत नफ़रत करती थी”

 

“ऐसा कैसे हो गया? 

ये सब सपना सा लगता है” राजू ने कहा

 

“ये तो पता नही…पर मुझे हमेशा अपने पास रखना राजू, तुम्हारे बिना मैं नही जी सकती”

 

“तुम मेरी जींदगी हो सुमन.

      दोनों वही चले जाते है जहाँ से आये थे और नई जिंदगी की शुरुआत करते है.