EK KABRA KA RAHASY in Hindi Horror Stories by Laughing Funny Video books and stories PDF | एक कब्र का रहस्य

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एक कब्र का रहस्य

**“एक कब्र का रहस्य”**

एक स्कूल का मासूम लड़का, एक रहस्यमय कब्र और उससे उठती इत्र की अजीब खुशबू…जय की यह जिज्ञासा उसे उस आत्मा के सामने ला खड़ा करती है, जो अपने इंसाफ लिए भटक रही है।

रात के सन्नाटे में उसका शरीर किसी और का बन जाता है -

क्या जय का परिवार उसे बचा पाएगा?

क्या वह उस रहस्य से निकल पाएगा जो उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देने वाला है?

 

लेखक विजय बेसरे

 

“एक कब्र का रहस्य”

 

 

## अध्याय 1 : कब्र की ओर आकर्षित

 

## अध्याय 2 : अनजानी परछाइयाँ

 

## अध्याय 3 : आधी रात की चीख

 

## अध्याय 4 : फकीर बाबा का आगमन

 

## अध्याय 5 : जफर की कहानी

 

## अध्याय 6 : कब्र की पुकार

 

## अध्याय 7 : धोखे का सच

 

## अध्याय 8 : गुनहगारों के नाम

 

## अध्याय 9 : राख से उठती परछाइयाँ

 

## अध्याय 10 : आमना-सामना

 

## अध्याय 11 : शांति और बदलाव

 

## अध्याय 12 :जीवन में बदलाव

 

## अध्याय 13 : समापन : शांति का अहसास

 

 

 

## अध्याय 1 : कब्र की ओर आकर्षित 

 

शाम के चार बज रहे थे। आसमान पर हल्के बादल तैर रहे थे और धूप पेड़ों की शाखों से छन-छनकर ज़मीन पर गिर रही थी। हवा में अजीब-सी नमी और ठंडक थी। बारिश का मौसम था, लेकिन उस दिन बूंदें गिरने के बजाय वातावरण में एक अजीब-सी चुप्पी थी।

 

मैं, यानी जय, तब बहुत छोटा था—शायद सात या आठ साल का। मेरी रोज़ की दिनचर्या थी कि स्कूल जाने के लिए हमें अपनी कॉलोनी से एक पुरानी पीली रंग की बस उठानी पड़ती थी। वह बस रोज़ हमें उसी रास्ते से ले जाती थी—एक पुराने जंगल के बीच से होकर।

 

जंगल का वह रास्ता टूटा-फूटा था। सड़क जगह-जगह से उखड़ी हुई थी, जिससे बस जब भी वहाँ से गुजरती, तो झटकों से हमारी किताबें, बैग और कभी-कभी हम बच्चे भी उछल जाते थे। हमारे लिए यह रोज़ का मज़ाक था, लेकिन मेरे लिए वह रास्ता हमेशा किसी रहस्य की तरह था।

 

उस रास्ते के बीचोंबीच एक बहुत पुराना और विशाल पेड़ था। उसका तना इतना मोटा था कि तीन-चार आदमी भी मिलकर उसे गले नहीं लगा सकते थे। पेड़ की जड़ों के नीचे, ज़मीन में हल्की-सी ऊँचाई बनी हुई थी। पहले तो मैंने सोचा था कि यह महज़ मिट्टी का ढेर है। लेकिन जब ध्यान से देखा, तो समझ आया—वह एक कब्र थी।

 

हर दिन जब बस वहाँ से गुजरती, मेरी आँखें अपने आप उस कब्र पर टिक जातीं। कभी उसमें कोई ताज़ा फूल दिखता, कभी सूखे पत्तों से ढकी रहती। बच्चों की चिल्ल-पों और ड्राइवर के रेडियो पर बजते गानों के बीच भी, मेरे कानों में एक अजीब खामोशी गूँजती, जब तक हमारी बस उस कब्र से आगे नहीं बढ़ जाती।

 

मैं हमेशा मन-ही-मन सोचता—“ये कब्र किसकी होगी? यहाँ कौन दफन है? और क्यों जंगल के बीचोंबीच?”

लेकिन जवाब कभी नहीं मिला।

 

धीरे-धीरे समय बीतता गया। मैं बड़ा होता गया, पर मेरी जिज्ञासा उस कब्र के बारे में बढ़ती ही गई। मुझे लगता जैसे वह कब्र मेरी ओर देख रही है, जैसे वहाँ कोई राज़ छुपा है, जो सिर्फ मेरे लिए है।

 

एक दिन, जब मेरी उम्र करीब बारह साल रही होगी, मैंने सोचा—“आज जाकर देखना ही चाहिए।”

उस दिन शाम को स्कूल से लौटने के बाद मैंने अपनी पुरानी साइकिल उठाई और बहाना बनाकर घर से निकल पड़ा। माँ को बताया कि दोस्तों के साथ खेलने जा रहा हूँ। लेकिन सच्चाई यह थी कि मैं अकेला ही उस जंगल की ओर जा रहा था।

 

रास्ता सुनसान था। पेड़ों की टहनियाँ हवा से चरमरातीं, जैसे कोई फुसफुसाकर बातें कर रहा हो। मेरी साइकिल की घंटी की टन-टन उस खामोशी में अजीब-सी गूँज पैदा कर रही थी। जैसे-जैसे मैं उस जगह के करीब पहुँचा, मेरे दिल की धड़कन तेज़ होती गई।

 

आखिरकार मैं उस पेड़ तक पहुँच गया।

मैंने अपनी साइकिल को एक तरफ खड़ा किया और धीरे-धीरे कब्र की ओर बढ़ा।

 

कब्र कोई बहुत पुरानी नहीं लग रही थी। ऊपर पत्थरों की मोटी पट्टी थी, लेकिन उस पर उकेरे गए अक्षर इतने मिट चुके थे कि पढ़ना मुश्किल था। आसपास सूखे पत्ते और काई जमी हुई थी। जैसे सालों से वहाँ कोई नहीं आया हो।

 

मैं कुछ देर तक उस कब्र को देखता रहा।

मन हुआ कि नाम पढ़ लूँ, पर अक्षर इतने मटमैले थे कि नाकाम रहा।

मुझे निराशा हुई, लेकिन उसी क्षण मेरी नज़र पास रखे एक छोटे-से शीशे की बोतल पर पड़ी। बोतल आधी टूटी हुई थी, लेकिन उसमें से हल्की-सी महक आ रही थी—एक अजीब-सी, मदहोश कर देने वाली इत्र की खुशबू।

 

मैंने सोचा—“यहाँ इत्र की बोतल कैसे आई? क्या कोई हाल ही में यहाँ आया होगा?”

लेकिन आस-पास तो कोई इंसान दिखाई नहीं दे रहा था। सिर्फ मैं, वह कब्र और जंगल की खामोशी।

 

थोड़ी देर वहाँ बैठकर मैं अपने विचारों में खो गया।

पर जैसे ही मैं वहाँ से उठकर जाने लगा, अचानक हवा का एक झोंका आया और वही इत्र की खुशबू और तेज़ हो गई।

इतनी तेज़ कि मेरा सिर चकराने लगा।

और अजीब बात यह थी कि वहाँ कोई नहीं था।

 

मैं डर गया।

जल्दी-जल्दी साइकिल उठाई और घर की ओर भागा।

 

घर पहुँचते ही माँ ने पूछा—

“कहाँ था तू, जय? बताकर जाया कर।”

मैं कुछ नहीं बोला।

बस अपने कमरे में चला गया।

 

लेकिन उस रात… कुछ अजीब हुआ।

 

## अध्याय 2 : अनजानी परछाइयाँ

 

रात का सन्नाटा पूरे घर पर छा गया था।

घड़ी की सुइयाँ धीरे-धीरे दस बजने का संकेत दे रही थीं। बाहर पेड़ों से टकराती हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी। कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज़ दूर से आती और फिर सब कुछ शांत हो जाता।

 

मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा था, पर नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी।

कब्र के पास मिली इत्र की महक अब भी मेरी नाक में बस गई थी।

बार-बार वही ख्याल आता—वह बोतल वहाँ कैसे पहुँची? कौन उसे वहाँ छोड़ गया होगा? और क्यों मुझे ही उसकी खुशबू इतनी गहराई से महसूस हुई?

 

मैंने करवट बदली, लेकिन मन और भी बेचैन हो गया।

अचानक लगा जैसे कमरे की हवा भारी हो गई हो। साँस लेना मुश्किल होने लगा।

पंखा अपनी पूरी रफ्तार से घूम रहा था, फिर भी पसीना मेरे माथे से टपकने लगा।

 

“ये मुझे क्या हो रहा है?” मैंने खुद से बुदबुदाया।

 

धीरे-धीरे मेरे कानों में हल्की-हल्की फुसफुसाहट गूँजने लगी।

जैसे कोई मेरे पास बैठकर बहुत धीरे बोल रहा हो।

लेकिन कमरे में तो मैं अकेला था!

 

मैंने घबराकर चारों ओर देखा।

कोने में अंधेरा था, दीवार पर टंगी तस्वीरें भी धुंधली लग रही थीं।

फिर अचानक, कमरे के दरवाज़े की दरार से वही इत्र की महक अंदर घुसने लगी—तेज़, नशीली और मदहोश कर देने वाली।

 

अब मेरी धड़कन इतनी बढ़ गई थी कि मानो सीना फट जाएगा।

मेरे हाथ-पाँव काँपने लगे।

और तभी, कानों में एक धीमी पर ठंडी आवाज़ आई—

 

**“जय…”**

 

मैं झटके से उठ बैठा।

“कौन?” मेरी आवाज़ काँप रही थी।

पर कोई जवाब नहीं आया।

 

कमरे का अंधेरा अब मुझे और डराने लगा था।

मैं बिस्तर से उठा और खिड़की की ओर बढ़ा, शायद बाहर झाँककर देख लूँ कि कोई है भी या नहीं।

पर खिड़की खोलते ही एक तेज़ झोंका अंदर आया और मेरी किताबें ज़मीन पर बिखर गईं।

हवा में वही महक भर गई।

 

अब मुझे साफ़ महसूस हुआ कि कोई मेरे बेहद करीब खड़ा है।

मेरे कानों में गर्म साँसों का अहसास हुआ, जैसे कोई बहुत पास से फुसफुसा रहा हो—

 

**“तू… मेरा नाम जानना चाहता है न?”**

 

मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

मैंने काँपते हुए पीछे मुड़कर देखा।

 

कोने में, अंधेरे में, एक धुंधली-सी परछाई खड़ी थी।

उसकी आँखें लाल अंगारों जैसी चमक रही थीं।

चेहरा धुंधला था, लेकिन होंठ हल्के-से हिल रहे थे—मानो मुस्कुरा रहा हो।

 

मैं चीखना चाहता था, लेकिन गला सूख गया।

पैरों में इतनी भी ताक़त नहीं थी कि भाग सकूँ।

 

अचानक वह परछाई एक झटके से मेरी ओर बढ़ी और मेरे कान के पास फुसफुसाई—

 

**“मेरा नाम… जफर है।”**

 

इतना सुनते ही मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया।

शरीर जैसे किसी ने जकड़ लिया हो।

मैं ज़मीन पर गिर पड़ा और सब कुछ धुंधला हो गया।

 

आख़िरी चीज़ जो मुझे याद है, वह थी मेरी अपनी ही आवाज़—

मैं ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा था।

वही हँसी जो मेरी नहीं थी।

 

## अध्याय 3 : आधी रात की चीख

 

मेरी आँखें अचानक खुलीं।

कमरे में अँधेरा गहराया हुआ था।

घड़ी की टिक-टिक साफ़ सुनाई दे रही थी—रात के करीब बारह बज रहे थे।

 

लेकिन यह मैं नहीं था, जो उठकर बैठा था।

मानो मेरा शरीर किसी और की पकड़ में हो।

हाथ काँप रहे थे, आँखें किसी और की तरह बड़ी-बड़ी खुली हुई थीं, और मुँह से अपने आप हँसी निकल रही थी—कर्कश, डरावनी हँसी।

 

मैं महसूस कर रहा था कि मैं अपने ही शरीर में क़ैद हूँ।

चीखना चाहता था, माँ-पापा को पुकारना चाहता था, लेकिन आवाज़ मेरे गले से बाहर ही नहीं आ रही थी।

उस परछाई का नाम—“जफर”—अब मेरे कानों में गूंज रहा था।

 

अचानक मेरे पैर खुद-ब-खुद बिस्तर से नीचे उतरे और दरवाज़े की ओर बढ़ने लगे।

मेरे कदम भारी लेकिन तेज़ थे।

दरवाज़ा चरमराता हुआ खुला और मैं घर के बाहर निकल आया।

 

बाहर आँगन में हल्की चाँदनी फैली हुई थी।

लेकिन चाँद काले बादलों में छिपा हुआ था, और हवा की सनसनाहट से नीम का पेड़ भयावह लग रहा था।

 

मेरे मुँह से अचानक एक ज़ोरदार चीख निकली—

इतनी भयानक कि पूरी गली में गूँज गई।

फिर हँसी—पागलों जैसी हँसी।

 

माँ सबसे पहले दौड़कर बाहर आईं।

“जय! ये तू क्या कर रहा है? इतनी रात को…”

 

उन्होंने मुझे पकड़ना चाहा, लेकिन मैंने उन्हें ऐसी नज़र से देखा जैसी मैंने ज़िंदगी में कभी किसी को नहीं देखी थी।

आँखों में लाल चमक, चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान।

माँ डरकर पीछे हट गईं।

 

अब पापा भी बाहर आ गए।

उन्होंने गुस्से से कहा, “जय! ये क्या बेहूदा हरकत है? अंदर चल!”

 

लेकिन तभी मेरे मुँह से जो आवाज़ निकली, वह मेरी नहीं थी—

“जय? कौन जय? मैं… जफर हूँ!”

 

पापा एक पल के लिए सन्न रह गए।

माँ काँप उठीं।

उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा, मानो समझ ही नहीं पा रहे हों कि यह सब क्या हो रहा है।

 

मैं, या कहो मेरा शरीर, अब जोर-जोर से हँसते हुए आसमान की ओर देखने लगा।

काले बादल हटे और जैसे ही चाँद की चाँदनी मुझ पर पड़ी, मेरे हाथ हवा में उठ गए।

मैं ज़ोर से चीखा—

“देखो! मैं लौट आया हूँ… फिर से!”

 

पड़ोसी भी अपनी-अपनी खिड़कियों से झाँकने लगे।

लेकिन पापा और माँ समझ गए थे कि अब मामला उनकी पकड़ से बाहर है।

 

पापा धीरे से माँ से बोले, “इसे अंदर ले चलो। दरवाज़ा बंद कर दो। कल सुबह किसी को बुलाना पड़ेगा।”

 

लेकिन मुझ पर उस वक्त किसी का बस नहीं था।

मैंने खुद को झटका देकर छुड़ाया और अंधेरे में भागता हुआ फिर से कमरे की ओर लौट गया।

अंदर जाकर कोने में दुबककर बैठ गया—मानो किसी से छिप रहा हूँ।

 

मेरे होंठ बुदबुदा रहे थे—

“मत पकड़ो मुझे… वो आ रहा है… वो यहाँ है…”

 

माँ दरवाज़े के पास खड़ी रहीं, उनकी आँखों में आँसू थे।

पापा ने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया।

 

उस रात मैं कमरे के अंधेरे में हँसी, चीख और फुसफुसाहट के बीच अकेला पड़ा रहा।

और बाहर पूरा घर जाग रहा था—डर और अनिश्चितता में डूबा हुआ।

 

 

 

## अध्याय 4 : फकीर बाबा का आगमन

 

सुबह की पहली किरणें खिड़की से छनकर कमरे में आईं।

लेकिन मेरे लिए यह सुबह वैसी नहीं थी जैसी हर दिन होती थी।

मैं अब भी कमरे के कोने में दुबका बैठा था, आँखों के नीचे काले गहरे धब्बे, शरीर थका हुआ, लेकिन मन अजीब-सी बेचैनी में डूबा हुआ।

 

रातभर मेरी हँसी, चीख और बड़बड़ाहट से घर में कोई सो नहीं पाया था।

माँ रो-रोकर थक चुकी थीं, और पापा का चेहरा चिंता से भरा हुआ था।

वे दोनों समझ चुके थे कि यह कोई सामान्य बीमारी नहीं है।

 

करीब दोपहर के समय, मैंने बाहर लोगों की आहट सुनी।

दरवाज़ा खोला गया।

और मेरे सामने चार-पाँच लोग खड़े थे। उनके बीच में सफेद कपड़ों में लिपटा एक दुबला-पतला, लंबी दाढ़ी वाला आदमी था।

उसके माथे पर तिलक था और हाथ में एक माला।

 

पापा ने धीरे से कहा,

“जय, यह बाबा जी हैं… हमारे गाँव के पुराने मंदिर से आए हैं। सब कहते हैं, इनके पास अलौकिक ज्ञान है। ये तुम्हारी मदद करेंगे।”

 

मैंने सिर झुका लिया, लेकिन मन के भीतर कुछ और ही चल रहा था।

मुझे लग रहा था कि मेरे भीतर कोई चिल्ला रहा है—**“नहीं! इसे मत बुलाओ… दूर रखो इसे!”**

 

बाबा जी ने कमरे में कदम रखा।

जैसे ही वे भीतर आए, उनकी आँखें सीधे मेरी आँखों से टकराईं।

उनकी निगाहें तेज़ और गहरी थीं, जैसे मेरी आत्मा को चीरकर देख रही हों।

 

उन्होंने धीरे से कहा,

“बेटा, डरो मत। मैं जानता हूँ, तू जय है… लेकिन तेरे भीतर कोई और भी है।”

 

मेरे शरीर में अचानक सिहरन दौड़ गई।

मैंने मुँह खोलना चाहा, लेकिन मेरे होंठ अपने आप हिले और आवाज़ निकली—

“तू मुझे नहीं निकाल सकता… मैं यहीं रहूँगा… हमेशा के लिए।”

 

वह आवाज़ मेरी नहीं थी।

वह थी जफर की।

 

माँ सहमकर पापा का हाथ पकड़ लीं।

पापा का गला सूख गया।

 

बाबा जी ने शांति से अपनी माला के मोती घुमाए और मेरे पास बैठते हुए कहा,

“कौन है तू? अपना नाम बता।”

 

मेरे होंठ फिर से अपने आप हिले।

“मेरा नाम… जफर है। मैंने कभी इंसान की तरह जिया था… लेकिन अब मैं इंसान नहीं रहा।”

 

कमरे में सन्नाटा छा गया।

सिर्फ मेरी कर्कश हँसी गूँज रही थी।

 

बाबा जी ने जेब से एक ताबीज़ निकाला और मेरी गर्दन में डाल दिया।

जैसे ही ताबीज़ मेरी त्वचा से छुआ, मेरे शरीर में आग-सी दौड़ गई।

मैं ज़ोर-ज़ोर से तड़पने लगा, चीखने लगा—

 

“हटाओ इसे! यह मुझे जला रहा है!”

 

लेकिन बाबा जी शांत रहे।

उन्होंने अपने थैले से एक छोटी शीशी निकाली और उसमें से कुछ बूँदें मेरे सिर पर डालीं।

वही महक! वही इत्र की खुशबू!

 

मेरी आँखें फैल गईं।

यह वही महक थी जो कब्र पर महसूस हुई थी।

लेकिन अब वह मेरे भीतर की आत्मा को और भी बेचैन कर रही थी।

 

मैंने काँपती आवाज़ में पूछा—

“ये… ये इत्र कहाँ से लाए आप?”

 

बाबा जी ने गहरी साँस ली और पापा की ओर देखा।

“इस लड़के के शरीर में जो आत्मा है… वह उसी इत्र से जुड़ी हुई है। यही इसकी जड़ है।”

 

माँ हकबका गईं।

“तो क्या… हमारा जय अब कभी ठीक नहीं होगा?”

 

बाबा जी ने दृढ़ स्वर में कहा—

“नहीं, ऐसा मत कहो। अभी बहुत कुछ बाकी है। लेकिन तुम्हें सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। जफर कौन था, यह जानना होगा। तभी जय को बचाया जा सकता है।”

 

कमरे में खामोशी गहरी हो गई।

और मैं, जय, अपने ही शरीर में कैद होकर सोच रहा था—

“आख़िर ये जफर कौन है… और क्यों मुझे ही चुन रहा है?”

 

 

 

 

 

## अध्याय 5 : जफर की कहानी

 

कमरे में अजीब-सी खामोशी थी।

बाबा जी ने माला हाथ में पकड़े हुए अपनी आँखें बंद कीं और गहरी साँस ली।

कुछ पल बाद उन्होंने कहना शुरू किया—

 

“सालों पहले… इसी इलाके में जफर नाम का एक लड़का रहता था। साधारण-सा इंसान, पर बेहद मेहनती। वह इत्र बनाने की एक कंपनी में काम करता था। उसके पास खुशबू को पहचानने और बनाने की अद्भुत कला थी। लोग कहते थे कि उसके बनाए इत्र की खुशबू से कोई भी मोहित हो सकता था।”

 

पापा ध्यान से सुन रहे थे।

माँ की आँखों से आँसू बह रहे थे।

मैं भीतर ही भीतर उस नाम को बार-बार दोहरा रहा था—**जफर**।

 

बाबा जी आगे बोले,

“लेकिन किस्मत को शायद यह मंज़ूर नहीं था। एक दिन इत्र की फैक्ट्री में आग लग गई। लपटें इतनी भयंकर थीं कि कई लोग बचकर भाग निकले, मगर जफर अंदर ही फँस गया। जब तक लोग मदद ला पाते, तब तक सब ख़त्म हो चुका था। जफर वहीं जलकर राख हो गया।”

 

यह सुनते ही मेरे शरीर में एक झटका-सा लगा।

मेरे मुँह से अचानक ज़ोरदार आवाज़ निकली—

“झूठ! यह सब झूठ है!”

 

सभी लोग चौंक गए।

पापा मुझे पकड़ने की कोशिश करने लगे, लेकिन मैं बुरी तरह झटपटा रहा था।

 

बाबा जी ने शांत स्वर में कहा,

“नहीं बेटा, यह झूठ नहीं है। यही सच है। जफर की मौत आग में हुई। लेकिन उसकी आत्मा को शांति नहीं मिली। शायद उसके जीवन में कुछ अधूरा रह गया था… कोई ऐसा राज़, जो उसके साथ ही दफन हो गया।”

 

मेरा शरीर कांपने लगा।

मेरे होंठ अपने आप बुदबुदाने लगे—

“मेरा इत्र… मेरी पहचान… सब राख कर दिया उन्होंने… मुझे धोखा दिया गया था…”

 

अब यह मैं नहीं बोल रहा था, यह जफर था।

उसकी आवाज़ मेरे भीतर से निकल रही थी।

 

बाबा जी ने आँखें खोलकर कहा,

“देखा? यही है उसकी पीड़ा। यही कारण है कि वह जय के शरीर में प्रवेश कर गया है। इत्र की खुशबू वही बंधन है, जो उसे इस दुनिया से जोड़े रखती है। जब भी कोई उस कब्र के पास जाता है, उसे वह महक महसूस होती है… और वही रास्ता जफर को उसके भीतर बुला लेता है।”

 

माँ काँपती आवाज़ में बोलीं,

“तो अब क्या होगा बाबा? क्या मेरा जय कभी पहले जैसा हो पाएगा?”

 

बाबा जी गंभीर स्वर में बोले,

“हाँ, लेकिन यह आसान नहीं है। जय को इस बंधन से छुड़ाने के लिए हमें जफर की अधूरी कहानी पूरी करनी होगी। हमें यह जानना होगा कि वह किससे धोखा खाकर मरा… और उसकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी।”

 

कमरे में एक बार फिर सन्नाटा छा गया।

सिर्फ मेरी साँसों की भारी आवाज़ और बाहर हवा की सनसनाहट सुनाई दे रही थी।

 

मैं भीतर ही भीतर चीख रहा था—

**“मुझे बचाओ… कोई मुझे इस जफर से बचाओ!”**

 

लेकिन बाहर जो दिख रहा था, वह था—

मेरी आँखें अंगारों की तरह चमक रही थीं, और होंठों पर धीमी, भयावह मुस्कान थी।

 

 

## अध्याय 6 : कब्र की पुकार

 

 

बाबा जी ने अपनी माला कसकर पकड़ी और गंभीर स्वर में कहा,

“अब समय आ गया है… हमें उस जगह जाना होगा जहाँ से यह सब शुरू हुआ। जफर की कब्र पर।”

 

पापा घबराकर बोले,

“पर बाबा, वहाँ जाना सुरक्षित है क्या? जय की हालत तो देख ही रहे हैं आप।”

 

बाबा जी शांत स्वर में बोले,

“अगर हमें जय को बचाना है तो यही करना होगा। आत्मा को वहीं जाकर संबोधित करना होगा। तभी सच सामने आएगा।”

 

माँ ने काँपते हुए मेरी ओर देखा। मेरी आँखें अब भी लाल चमक रही थीं और होंठों पर हल्की मुस्कान थी। जैसे कोई अनदेखी ताकत मेरे भीतर से बोल रही हो—

“हाँ… आओ… आओ मेरी कब्र पर… वहीं मिलेगा तुम्हें सच।”

 

रात का समय तय हुआ।

बाबा जी ने कहा, “यह कार्य दिन में संभव नहीं है। रात ही आत्माओं की दुनिया का दरवाज़ा खोलती है।”

 

### रात का सफर

 

आधी रात होते ही हम सब कार से उस पुराने कब्रिस्तान की ओर चल पड़े। आसमान में घने बादल थे, चाँद धुंधला दिखाई दे रहा था। हवा में वही अजीब-सी खुशबू घुली हुई थी।

 

मैं पिछली सीट पर बैठा था, पर महसूस कर रहा था कि कोई और मेरी नसों में दौड़ रहा है।

जफर की आवाज़ मेरे भीतर गूंज रही थी—

“आख़िरकार… तुम मुझे वहीं ले जा रहे हो… जहाँ मेरा सब कुछ जलकर राख हो गया था।”

 

माँ ने मेरे हाथ थामने की कोशिश की, लेकिन मेरी पकड़ इतनी ठंडी और कठोर थी कि उन्होंने झटके से हाथ पीछे खींच लिया।

 

### कब्रिस्तान

 

आख़िरकार हम उस पुराने कब्रिस्तान पहुँचे।

जर्जर कब्रें, टूटी हुई दीवारें और बीचों-बीच एक बड़ा बरगद का पेड़… जिसके नीचे वही कब्र थी।

 

जैसे ही हम उसके पास पहुँचे, मेरी साँसें तेज़ हो गईं।

मेरे होंठ अपने आप बोले—

“यही है… यही मेरी जगह है… मेरी आख़िरी सांसों की गवाही।”

 

बाबा जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया।

धूप और दीपक जलाए गए।

पापा और माँ उनके पास खड़े थे।

 

अचानक ज़मीन हिलने लगी।

कब्र की मिट्टी से हल्की-सी धुंध उठने लगी और खुशबू इतनी तेज़ हो गई कि सबके सिर चकराने लगे।

 

बाबा जी ने ऊँचे स्वर में कहा,

“जफर! अगर तू यहीं है तो सामने आ… बता कि तुझे शांति क्यों नहीं मिली? किसने धोखा दिया तुझे?”

 

धुंध और गहरी हो गई।

और उसी धुंध में, एक आकृति धीरे-धीरे उभरने लगी—

जली हुई त्वचा, धधकती आँखें, और हाथ में टूटी हुई शीशी… जिसमें कभी इत्र भरा होगा।

 

मैं ज़ोर से चीख पड़ा।

“बचाओ! वो… वो मेरे अंदर आ रहा है!”

 

मगर बाबा जी ने हाथ उठाकर सबको रोका और गरजते हुए बोले—

“यही तो हमें जानना है। सच बताए बिना यह आत्मा जय को छोड़कर नहीं जाएगी।”

 

कब्र के पास खड़ी वह परछाई अचानक ठहर गई…

उसकी आँखों से आँसू जैसे धुआँ बनकर बह रहे थे।

और उसने बुदबुदाया—

“मुझे… मेरे ही अपनों ने धोखा दिया था।”

 

 

 

 

## अध्याय 7 : धोखे का सच

 

कब्रिस्तान की ठंडी हवा अचानक और भारी हो गई।

धुंध के बीच खड़ी वह परछाई धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगी।

उसकी जली हुई देह से राख झड़ रही थी, और टूटी हुई शीशी उसकी उँगलियों से लटक रही थी।

 

बाबा जी ने मंत्रोच्चार रोककर गंभीर स्वर में कहा,

“जफर, अगर सच कहना चाहता है तो सबके सामने कह। किसने दिया तुझे यह धोखा?”

 

जफर की आत्मा ने अपनी खाली आँखों से पापा, माँ और मुझे घूरा।

फिर उसकी आवाज़ गूँजी—

“मैं जिस फैक्ट्री में काम करता था… वहीं मेरा सब कुछ छिन गया।

मैंने इत्र की एक नई खुशबू बनाई थी। ऐसी खुशबू… जो पूरी दुनिया को दीवाना बना सकती थी।

लेकिन…”

 

उसकी आवाज़ कांपने लगी।

“लेकिन मेरे ही साथी, मेरे अपने दोस्त… जिन्होंने मेरे साथ काम सीखा था, उन्होंने ही मेरी खोज चुरा ली। उन्होंने मालिक को बहकाकर सारी मेहनत अपने नाम कर ली। और जब मैं सच सामने लाने पहुँचा, तो फैक्ट्री में आग लगा दी गई। लोग कहने लगे यह हादसा था… लेकिन सच में वह *साज़िश* थी।”

 

माँ ने डर से पापा का हाथ पकड़ लिया।

मैं भीतर से जफर की हर बात महसूस कर रहा था। जैसे वह दर्द मेरे सीने में भी उतर रहा हो।

 

जफर चीख़ते हुए बोला,

“मैं जलकर राख हो गया, मगर वे लोग नाम और दौलत के मालिक बन बैठे।

मेरे सपने, मेरी पहचान… सब चुरा लिए उन्होंने।

इसीलिए मेरी आत्मा बंध गई इस खुशबू से…

क्योंकि यही खुशबू थी मेरा जीवन… और यही मेरी मौत।”

 

बाबा जी ने आँखें बंद कर प्रार्थना की,

“जफर, अगर यही सच है तो तुझे शांति कैसे मिलेगी? जय को छोड़ने के लिए तुझे क्या चाहिए?”

 

जफर की परछाई ने टूटी शीशी ज़मीन पर पटक दी।

शीशी टूटते ही एक तीखी गंध हवा में फैल गई।

और उसकी आवाज़ गूँजी—

“जब तक मेरा सच दुनिया के सामने नहीं आएगा… जब तक उन गद्दारों के नाम उजागर नहीं होंगे… मैं इस लड़के के शरीर से बाहर नहीं जाऊँगा।”

 

माँ रो पड़ीं,

“नहीं! मेरा जय निर्दोष है। कृपया उसे छोड़ दो।”

 

लेकिन जफर ठहाका मारकर हँस पड़ा—

“निर्दोष? अब उसका शरीर मेरा है… और जब तक मेरे गुनहगारों को सज़ा नहीं मिलती, मैं इसे नहीं छोड़ूँगा।”

 

धुंध और गहरी हो गई।

मैं चीखते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा।

मेरे होंठ अपने आप बोल रहे थे—

“अब जय और जफर… एक ही हैं।”

 

बाबा जी ने माला उठाकर मंत्रोच्चार शुरू कर दिया।

उन्होंने कहा,

“नहीं, यह संभव नहीं है। जफर, अगर तुझे न्याय चाहिए तो हमें तेरे गुनहगारों तक ले चल। हम तेरे सच को सामने लाएँगे। लेकिन जय को बंधक बनाकर रखना अधर्म है।”

 

जफर की परछाई कुछ पल खामोश रही।

फिर उसकी आँखें धीमे-धीमे बुझने लगीं।

उसकी आवाज़ हवा में गूंजी—

“ठीक है… मैं बताऊँगा कि वो लोग कौन हैं।

लेकिन याद रखना… यह सफ़र आसान नहीं होगा।”

 

इतना कहकर धुंध धीरे-धीरे मिट गई।

मगर उसी पल मेरी आँखें उलट गईं और मैं बेहोश होकर कब्र के पास गिर पड़ा।

 

 

## अध्याय 8 : गुनहगारों के नाम

 

मेरी चेतना धीरे-धीरे लौटी।

आँखें खुलीं तो देखा, मैं अपने ही कमरे में बिस्तर पर पड़ा हूँ।

सिर के पास माँ रोती हुई बैठी थीं और पापा मेरी धड़कन जाँच रहे थे।

बाबा जी खामोशी से आँखें बंद किए मंत्र पढ़ रहे थे।

 

मैंने धीमे स्वर में कहा—

“जफर…”

 

सबका ध्यान मेरी ओर गया।

बाबा जी ने आँखें खोलीं और बोले,

“बोलो बेटा, जफर अब भी तेरे अंदर है। वही तेरे माध्यम से अपना सच कहेगा।”

 

मेरा शरीर अचानक झटका खाने लगा।

मेरी आवाज़ बदल गई—वह अब मेरी नहीं थी।

गहरी, भारी और गूँजती हुई।

 

“सुनो… मेरे गुनहगार तीन लोग हैं।

पहला—*रशीद*, जो फैक्ट्री का सुपरवाइज़र था।

दूसरा—*अनवर*, जो मेरे सबसे करीब दोस्त होने का ढोंग करता था।

और तीसरी… *शबीना*।”

 

पापा ने चौंककर पूछा,

“शबीना? वो तो तेरी सहकर्मी थी न? उसने क्या किया?”

 

मेरे होंठ फिर जफर की आवाज़ में बोले,

“वह मेरी दोस्त नहीं थी, बल्कि… वह मेरे सपनों की साथी थी।

मैं उससे शादी करना चाहता था।

पर उसने ही मेरी खोज अनवर और रशीद को बेच दी।

मेरी खुशबू का राज़ उन्हीं को बताकर उसने मुझे मौत के मुँह में धकेल दिया।

वही थी जिसने आग वाली रात मुझे अंदर बंद कर दिया था।”

 

कमरे की हवा भारी हो गई।

माँ ने सिहरते हुए पापा का हाथ पकड़ लिया।

मेरे शरीर से पसीना बहने लगा और मैं काँपने लगा।

 

बाबा जी ने गंभीर स्वर में कहा,

“जफर, अगर तुझे न्याय चाहिए तो हमें रास्ता दिखा।

कहाँ मिलेंगे ये लोग?”

 

मेरे होंठ बुदबुदाए—

“वे अब बड़े लोग बन चुके हैं।

रशीद अब उस कंपनी का मालिक है।

अनवर उसका दाहिना हाथ।

और शबीना… उसका चेहरा अब पोस्टरों और अख़बारों में छपता है।

वह मशहूर परफ़्यूम डिज़ाइनर बन गई है।”

 

मैं ज़ोर से चिल्लाया—

“उन्होंने मेरा नाम मिटा दिया… मेरा अस्तित्व छीन लिया।

अब मैं उन्हें चैन से जीने नहीं दूँगा!”

 

मेरे हाथ-पाँव बेकाबू होकर हिलने लगे।

माँ ने मुझे कसकर पकड़ लिया,

“जय… नहीं, तू उनका कुछ नहीं बिगाड़ेगा।”

 

लेकिन मेरी आँखें अंगारों की तरह जलने लगीं।

“जय अब सिर्फ मेरा माध्यम है।

अगर सच का पर्दाफाश करना है तो हमें वहीं जाना होगा जहाँ सब शुरू हुआ था—फैक्ट्री।”

 

बाबा जी ने पापा की ओर देखा और बोले,

“अब फैसला आपके हाथ में है।

क्या आप अपने बेटे की जान बचाकर इस आत्मा को शांति देंगे…

या डरकर इसे हमेशा के लिए बंधक बने रहने देंगे?”

 

कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया।

पापा का चेहरा सफेद पड़ चुका था।

धीरे से उन्होंने कहा—

“हम… फैक्ट्री चलेंगे।”

 

इतना सुनते ही मेरे चेहरे पर एक विचित्र मुस्कान तैर गई।

जफर की आवाज़ गूँजी—

“तो तैयार हो जाओ… क्योंकि वहाँ तुम्हें सच के साथ-साथ मौत भी मिल सकती है।”

 

 

## अध्याय 9 : राख से उठती परछाइयाँ

 

 

अगली सुबह हवा में अजीब-सी खामोशी थी।

पक्षियों की चहचहाहट भी मानो कहीं गुम हो गई थी।

मैं खिड़की से बाहर देख रहा था, पर वह “मैं” नहीं था—जफर मेरी आँखों से झाँक रहा था।

 

बाबा जी ने साफ कहा—

“आज रात हम उस फैक्ट्री जाएँगे। दिन में वहाँ जाना खतरनाक है, क्योंकि अब वह जगह कागज़ पर बंद है लेकिन असलियत में वहाँ गुप्त कारोबार चलता है।”

 

माँ घबराकर बोलीं,

“लेकिन जय को लेकर वहाँ जाना… क्या यह सही होगा?”

 

बाबा जी ने शांत स्वर में उत्तर दिया,

“अगर जय को बचाना है तो यही एक रास्ता है। जफर तब तक चैन से नहीं जाएगा जब तक उसका सच सामने न आए।”

 

शाम होते-होते हम सब तैयार हो गए।

पापा गाड़ी निकालकर आगे खड़े हुए।

मैं बीच की सीट पर बैठा था, माँ मेरे बगल में और बाबा जी सबसे पीछे ध्यानमग्न।

 

रास्ते भर मैं चुप था।

लेकिन बीच-बीच में मेरे होंठ अपने आप हिल जाते—

“यहीं से मुड़ो… यह रास्ता तेज़ है।”

“गाड़ी धीरे करो… यह जगह मुझे याद है।”

 

माँ हर बार सिहर उठतीं, क्योंकि वो मेरी नहीं, जफर की आवाज़ थी।

 

करीब रात के ग्यारह बजे हम उस फैक्ट्री के पास पहुँचे।

टूटी दीवारें, आधी जली छत और जंग लगे लोहे के दरवाज़े अब भी खड़े थे।

चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था, लेकिन भीतर से हल्की रोशनी झलक रही थी।

 

पापा ने फुसफुसाकर पूछा—

“क्या यहाँ अब भी कोई रहता है?”

 

बाबा जी ने गंभीर स्वर में कहा—

“यहाँ सिर्फ लोग ही नहीं… परछाइयाँ भी रहती हैं।”

 

हम धीरे-धीरे अंदर दाख़िल हुए।

दीवारों पर धुएँ के निशान अब भी मौजूद थे।

एक कोना पूरी तरह राख से भरा हुआ था।

मैं अचानक उस राख की ओर खिंचने लगा।

 

मेरी आँखें लाल हो गईं और मैंने चीख़ते हुए कहा—

“यहीं… यहीं मेरी जान ली गई थी!

यहीं उन्होंने मुझे बंद किया था।”

 

माँ ने मुझे रोकने की कोशिश की लेकिन मैं राख पर गिर पड़ा और दोनों हाथों से राख को मुठ्ठियों में भरने लगा।

उस राख से अचानक एक चमकदार लौ निकली और पूरे कमरे में धुएँ की परछाइयाँ फैल गईं।

 

बाबा जी ने ऊँचे स्वर में मंत्रोच्चार शुरू किया।

लेकिन तभी…

पीछे से कदमों की आहट आई।

 

तीन परछाइयाँ दरवाज़े पर खड़ी थीं।

रशीद, अनवर और शबीना।

उनके हाथों में टॉर्च और किसी पुराने नक्शे जैसे कागज़ थे।

 

पापा दंग रह गए—

“तो… तुम लोग सचमुच यहाँ आते हो!”

 

रशीद ठंडी हँसी हँसते हुए बोला—

“लगता है किसी ने हमारी गुप्त जगह ढूँढ ली है।

यहाँ आना तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है।”

 

जफर की आवाज़ मेरी देह से गूँजी—

“रशीद… अनवर… और शबीना… आखिरकार तुम सामने आए!”

 

तीनों के चेहरे का रंग उड़ गया।

शबीना डरते हुए बोली—

“ये… ये तो जफर की आवाज़ है!”

 

मैं धीरे-धीरे खड़ा हुआ।

“हाँ… जफर वापस आ गया है।

तुम्हारे झूठ, तुम्हारे गुनाह और तुम्हारे धोखे को अब कोई नहीं बचा पाएगा।”

 

अचानक हवा तेज़ हो गई।

पुरानी खिड़कियाँ चरमराने लगीं और कमरे के कोनों में अंधेरे साये घूमने लगे।

जैसे पूरी फैक्ट्री जफर के क्रोध से जाग उठी हो।

 

रशीद ने डर छुपाते हुए चीख़कर कहा—

“ये सब धोखा है! जफर मर चुका है।”

 

लेकिन तभी राख का ढेर अपने आप हवा में उड़ने लगा और लाल लौ की शक्ल लेने लगा।

जफर की परछाई राख से उठ खड़ी हुई…

और तीनों गुनहगारों के सामने आ गई।

 

 

## अध्याय 10 : आमना-सामना

 

 

फैक्ट्री का माहौल अचानक भयानक हो गया।

राशि-राशि राख हवा में उड़ रही थी और लाल लौ की तरह चमक रही थी।

तीनों—रशीद, अनवर और शबीना—पीछे हट गए, उनके चेहरे सफेद और कांप रहे थे।

 

जफर की आवाज़ मेरी देह से गूँज रही थी—

“अब तुम्हारे झूठ, धोखे और गुनाह का हिसाब चुकता होगा।

तुमने मेरी पहचान चुराई, मेरे सपनों को मारा और मेरी जान ले ली।

अब तुम मेरे सामने हो।”

 

रशीद ने फुसफुसाया—

“ह…हम…हम तो बस… काम कर रहे थे। दुर्घटना थी।”

 

जफर की परछाई ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया।

राशीद के चारों ओर लाल धुएँ की लहर दौड़ गई।

उसका चेहरा भय और पछतावे में बदल गया।

 

अनवर ने घबराकर कहा—

“जफर… हमें छोड़ दे… हम अब सब ठीक कर देंगे!”

 

लेकिन जफर का क्रोध शांत होने का नाम नहीं ले रहा था।

“अब बहुत देर हो चुकी है!

तुमने न सिर्फ मुझे, बल्कि मेरे परिवार और सपनों को भी मारा।

अब तुम्हें वही भुगतना होगा जो मैंने झेला।”

 

शबीना रोते हुए जमीन पर बैठ गई।

“जफर… मुझे माफ़ कर दो… मैं… मैं नहीं जानती थी कि ऐसा होगा।”

 

राख की लहरें अब तीनों के चारों ओर गूँजने लगीं।

जफर की परछाई धीरे-धीरे आकार ले रही थी।

उसका चेहरा धधकते लाल आँखों वाला और जले हुए शरीर की झलक लिए हुए था।

 

बाबा जी ने ऊँचे स्वर में मंत्र पढ़ना शुरू किया।

उन्होंने कहा—

“जफर! अगर तेरा उद्देश्य न्याय है, तो क्रोध को छोड़ दे।

सत्य का सामना करके उन्हें सबक सिखा।

लेकिन निर्दोष को मत सताना।”

 

जफर की आवाज़ धीमी हुई।

राख की लहरें ठहरीं।

और उसने कहा—

“ठीक है… मैं निर्दोष को नहीं सताऊँगा।

लेकिन जो मेरे साथ धोखा किया, उनका सच सामने आए बिना मैं चैन से नहीं जाऊँगा।”

 

तीनों गुनहगारों ने काँपते हुए अपने अपराध स्वीकार कर लिए।

राशीद बोला—

“मैंने सब कुछ चुराया, मैं दोषी हूँ।”

अनवर फुसफुसाया—

“और मैं उसे रोकने में विफल रहा। मैं दोषी हूँ।”

शबीना ने आँसुओं के साथ कहा—

“मैंने धोखा दिया। मुझे माफ़ कर दो।”

 

जफर की परछाई धीरे-धीरे शांत हुई।

राख की लहरें हवा में मिलकर गायब हो गईं।

लाल आँखे अब मंद पड़ गईं और अंततः वह धुंधली धुंध में घुल गई।

 

मैं, जय, अपने शरीर में वापस लौट आया।

साँसें भारी थीं, हाथ-पाँव कांप रहे थे।

माँ और पापा मेरे पास आए और मुझे कसकर पकड़ लिया।

बाबा जी मुस्कराए और बोले—

“अब जफर की आत्मा को शांति मिल गई।

तुम सुरक्षित हो। लेकिन याद रखना… कभी भी किसी रहस्यमय शक्ति की उपेक्षा मत करना।”

 

फैक्ट्री में अब शांति थी।

लेकिन रात के उस डरावने सफ़र की याद हमेशा मेरे भीतर रह गई।

और मुझे पता था—जफर के गुनहगारों का सच सामने आ चुका था।

लेकिन उसके अनुभव ने मुझे हमेशा सतर्क रहने की सीख दी थी।

 

## अध्याय 11 : शांति और बदलाव

 

अगली सुबह सूरज की हल्की किरणें खिड़की से छनकर कमरे में आईं।

मैं, जय, बिस्तर पर बैठा था।

सिर भारी था, पर मन के भीतर एक अजीब-सी हल्की खुशी और शांति थी।

जफर की आत्मा अब कहीं दूर चली गई थी।

 

माँ ने धीरे-धीरे मुझे छुआ और कहा,

“जय, अब सब ठीक है। डर गया था मैं तुम्हारे लिए।”

 

पापा ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,

“तुमने बहादुरी दिखाई। तुम्हारे कारण सब सच सामने आया।

और जफर की आत्मा को शांति मिली।”

 

मैं बाहर झाँका।

फैक्ट्री की ओर देखा—वह अब वैसी ही पुरानी और शांत लग रही थी।

अब वहाँ डर नहीं था, केवल धुएँ की बिखरी परछाइयाँ रह गई थीं।

 

बाबा जी ने मेरी ओर देखकर कहा,

“जय, यह अनुभव तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा थी।

तुमने साहस और संयम दोनों दिखाए।

जफर की आत्मा अब मुक्त है, पर उसकी याद हमेशा तुम्हारे भीतर रहेगी।

याद रखो—अज्ञात शक्तियाँ कभी-कभी इंसान को परीक्षण के लिए चुनती हैं।

जो पार कर जाता है, वही सच्चे साहस का मालिक बनता है।”

 

मैंने गहरी साँस ली।

और महसूस किया कि अब मेरे भीतर डर नहीं, बल्कि ताकत और समझ है।

 

 

### अध्याय 12 :जीवन में बदलाव

 

 

उस दिन के बाद, मैं कभी भी पुराने जंगल के रास्ते से अकेले नहीं गया।

लेकिन उस अनुभव ने मुझे सिखाया—

 

* जिज्ञासा कभी-कभी खतरनाक होती है, लेकिन अगर साहस हो तो सच सामने आता है।

* आत्मा और जीवन की गहराई को समझना ज़रूरी है।

* भय के बावजूद सही कदम उठाना ही सच्चा साहस है।

 

माँ-पापा के साथ मेरा रिश्ता पहले से भी मजबूत हो गया।

हमने बाबा जी की सीख को जीवन में उतारा।

और मैं… मैं अब अपने जीवन में छोटे-छोटे डर का सामना करने से नहीं डरता।

 

कभी-कभी, रात में मैं वही इत्र की हल्की खुशबू महसूस करता हूँ।

लेकिन अब यह डर नहीं है।

यह सिर्फ जफर की याद और उसकी आत्मा की शांति का संकेत है।

और मुझे यह अहसास दिलाता है—कि सच और न्याय हमेशा विजयी होते हैं।

 

 

 

 

## अध्याय 13 : समापन : शांति का अहसास

 

समय धीरे-धीरे बीतता गया।

जय अब पहले की तरह अपने जीवन में वापस आ गया था।

स्कूल जाना, दोस्तों के साथ खेलना, माँ-पापा के साथ वक्त बिताना—सब कुछ सामान्य लगने लगा।

 

लेकिन अब वह लड़का जो कभी डर और रहस्यमय शक्तियों से घिरा हुआ था,

वह भीतर से बदल चुका था।

 

मैंने अब सीखा था—

कि साहस केवल शारीरिक ताकत में नहीं,

बल्कि डर का सामना करने और सत्य के लिए खड़े होने में है।

 

बाबा जी अब समय-समय पर हमें गाँव आते हुए मिलते थे।

वे अक्सर कहते—

“जय, तुम्हारे अनुभव ने तुम्हें सिखाया कि जीवन में भय और रहस्य हमेशा रहेंगे।

पर जो उन्हें समझकर सामना करता है, वही सच्चा विजेता है।”

 

माँ-पापा ने भी अपनी समझ और धैर्य में वृद्धि महसूस की।

वे अब मुझे अकेले नहीं छोड़ते, लेकिन मेरे फैसलों और मेरी हिम्मत का सम्मान करते थे।

 

रोज़ मैं उस पुराने जंगल के रास्ते की ओर नहीं जाता,

लेकिन कभी-कभी शाम के समय मैं झाड़ियों के बीच से गुजरता हूँ।

और हल्की हवा में महसूस करता हूँ…

वह वही इत्र की खुशबू, जो कभी जफर की याद दिलाती थी।

 

अब यह डर नहीं, बल्कि शांति की गवाही है।

जफर की आत्मा अब चैन से है।

और मैं जानता हूँ—भले ही रहस्य कभी-कभी हमारे सामने आएँ,

सत्य और न्याय अंततः हमेशा विजयी होते हैं।

 

मैंने अपने भीतर की हिम्मत और आत्मविश्वास को पहचाना।

और यह अहसास किया कि भय के बावजूद, इंसान अपने जीवन की कहानी खुद लिख सकता है।

 

फिर भी… कभी-कभी, रात के सन्नाटे में,

मैं हल्की हँसी सुनता हूँ—

और समझता हूँ, जफर कहीं दूर से मुझे याद कर रहा है।

लेकिन अब हम दोनों शांति में हैं।

 

कहानी समाप्त।