Swayamvadhu - 59 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 59

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स्वयंवधू - 59

इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।  
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।

दिल की पीड़ा

जब उसके आँसू, रक्त और शुद्ध भावनाएँ महाशक्ति रत्न पर गिरीं।
"कृपया मेरी मदद करो शक्ति। हम तुम्हारे बच्चे हैं, तुम्हारे वंशज है और हमें अपनी माँ, अपनी शक्ति, अपनी जननी की मदद की ज़रूरत है, शक्ति। कृपया अपने बच्चों की मदद करो। प्लीज़।", वो गिड़गिड़ाकर मदद माँग रहा थी।

मैं उसकी ईमानदारी से बहुत खुश थी इसलिए, जंगल में अचानक तेज़ तूफ़ान लाना पड़ा, "देखूँ तो ये निष्ठा क्षणभंगुर है क्या?", शक्ति उसकी ईमानदार भावना और उन तत्वों से ऊर्जा सोख रही थी जिनसे वह बनी थी।

दूसरी ओर वृषाली हवा में ना उड़ने की पूरी कोशिश कर रही थी। सत्तर से अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चल रही हवा ने उसे बुरी तरह से झकझोर दिया था। उसने घास को अपने को आखिरी सहारे की तरह कसकर पकड़ रखा था।
पत्ते और छोटी नुकीली शाखाएँ घूम-घूमकर उसे ढूँढते हुए ज़ोर-ज़ोर से मार रही थीं जिससे उसके पूरे शरीर पर घाव हो रहे थे। वह दर्द से रो रही थी और खुद को बचाने की कोशिश कर रही थी।
वृषाली का एक हाथ ज़मीन में धसा, खुद को उड़ने से बचाने की जंतो जहत कर रही थी और दूसरी टहनियों से खुद को बचा रही थी। खून उसके माथे, आँखो, सीने से पानी की तरह टपक रहा था। छोटे-छोटे नुकीले लकड़ी के टुकड़ो, उसके पीठ पर अपना परचम लहरा रहे थे। उसके ऑपरेशन की सिलाई नरम पड़ चुकी थी।

संघर्ष के बीच वृषाली के पीछे वाली झाड़ियों के बीच कोई हलचल दिखी।

वृषाली यातना के बीच सब सहते हुए, "आउच! आह! मुझे पता है कि आप मुझसे नाराज़ हैं। और मैं ये बात पूरी तरह से समझती हूँ। आपने मुझे हमेशा चेतावनी दी थी, मेरी मदद की थी लेकिन मैंने दो साल तक आपकी उपेक्षा की। आपके आस्तित्व को नकारते गयी। आह-!", एक पतली टहनी उससे आ टकराई।
उसका हाथ ढीला हो गया।
वह स्थिर रहने के लिए खूब जंतो-जहत कर रही थी।
"अपना दृढ़ संकल्प दिखाओ!!", उसे और डराने कि कोशिश करते हुए मैंने आदेश दिया।
"मैं तुम्हारी जो भी शर्त हो... हर एक शर्त को स्वीकार करती हूँ- आह!", एक और टहनी उसके उसकी नरम सिलाई से कसकर टकराई। एक मार और उसकी सिलाई फट खून का फव्वारा निकलने लगा! झटके से उसका शरीर सुन पड़ गया। खून पूरी जगह फैल चुका था।
कराह रहे जंगल में फैल गयी।
घने जंगल के प्रवेश द्वार के बस ठीक अंदर बैठा शख्स मेरी मुस्कान देख सिहर गया। उसके कदम आगे बढ़े फिर अंदर अँधेरे में गायब हो गए। वह जानता था कि क्या हो रहा था। यदि वह कठिन लड़ाई नहीं लड़ सकता तो मैं किसी और को यह युद्ध लड़ावा सकती थी। मेरी इच्छा के अनुसार हवाओं ने अपना रौद्र रूप अपनाया और उन्होंने उसे बुरी तरह से ज़मीन पर पटकना शुरू कर दिया। एक लता कही से आकर उसे एक जगह फेंकती तो जड़ तो दूसरी और अंततः लताओं ने उसे जंगल के प्रवेश के ठीक बाहर फेंक दिया।
अंदर छिपा शख्स बाहर आने के लिए निकला तभी—

वृषाली में कुछ बदला। वह खड़ी होने की पूरी कोशिश कर रही थी। उसने घास को अपनी जान की तरह पकड़ रखा था और जैसे ही उसने थोड़ा सा खड़ा होने की कोशिश की और गिर पड़ी। कवच के बिना वह अधूरी थी। मेरे इशारों पर गतिशील हवाओं ने उसे उछालकर एक छोटी चट्टान पर दे मारा और उसकी गर्दन के पिछले हिस्सा फिर से क्षतिग्रस्त हुआ और माँस के चिथड़ो फटकर पूरी जगह फैल गए।
"-...आआहहहह!!", तब उसे दर्द का अहसास हुआ। दर्द भरी चीख पूरे जंगल में तूफान की गरज को चीरते हुए फैल गयी। वह दर्द से कराह उठी और ज़मीन पर तड़पने लगी। खून पहले से भी अधिक बेलगाम बह रहा था। ऐसा चले तो उसका देह ज़्यादा वक्त तक नहीं अस्तित्व में नहीं रहेगा।
(लगता है ज़्यादा हो गया?) मैंने खुद से सोचा।
तभी, "क्या, इतने में टूट गयी? अगर अपनी शक्तियों को बचाना चाहती हो तो अपनी बोटी-बोटी करना सीख जाओ।",
मौसम उसके प्रति निर्दयी हो रहा था और तूफानी बारिश उसे मार रही थी। उस समय जंगल के प्रवेश द्वार के अंदर कुछ सुनहरा चमक वाली धार बह रही था जो सीधे उसकी अंगूठी और लॉकेट से उसके भीतर प्रवाहित हो रहा था। 
उसकी आँखे पलटने के बजाए नई ऊर्जा के संचार से भर गयी।
वह ऊर्जा पेड़ो के बीच से निकल रहे शख्स की गर्दन पर लटकी पँखो वाली लॉकेट से निकल रहा था। वह लंगड़ते हुए महाशक्ति के पास गया और उस उठते हुए सहारा दे रहा था। उसने उसे प्रेम से उठाया। उसके हाथ में लड़ाई के गहरे, नए पुराने, ज़ख्म थे। उसके हाथ-पैर में चमड़े से ज़्यादा चोटे थी। वह परास्त और दयनीय लग रहा था।
उस शख्स ने वृषाली को प्रेमपूर्वक उठाया और अपने शर्ट का आधा हिस्सा फाड़ उसके गर्दन में सावधानीपूर्वक बाँधने। पट्टी बाँधते वक्त वृषाली थोड़ा चेतना में आई और उसे देख सन्न रह गयी और कमज़ोर करहाती आवाज़ में उसे पुकारा, "वृ-वृषा?", उनके मुस्कान के साथ उसका नाम लिया, "वृषा, आप- आप य-हाँ? शु-शुभ-रात्री...",
कवच की आँखो से आँसू, बारिश के बूँदों में घुल महाशक्ति और उसके दोंनो रत्नों पर बरसने लगे।
उसकी आँखें अपना ध्यान खो रही थीं।
कवच डर गया।
उसने उसे धीरे से पकड़ा और उसके गालों पर धीरे से लेकिन लगातार थपथपाया, "वृषा- वृषाली, बच्चे उठो। उठो। सुनो। मेरे साथ रहो। अपनी आँखें बँद मत करो, अपनी आँखें बँद मत करो। उन्हें खोलो, उन्हें खोलो! अपनी आँखें खोलो! अपनी आँखे खोलो! आँखे खोलो वृषाली, आँखे खोलो वृषाली! वृषाली!",
वह अचानक सिहर उठी!
उसकी आँखे ज़रूरत से ज़्यादा खुल गयी। उसकी साँसे ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ चलने लगी। धीमी दर्द भरी आवाज़ में कहा, "आ- सॉरी....",
उसकी साँसें तेज़ थीं, इतनी तेज़ कि उसका दम घुटने लगा।
"वृष-वृषाली? वृषाली!", उसने उसे जगाए रखने की कोशिश करते हुए उसे हिलाया।
उसकी साँसें उसे होश में रखने में असमर्थ हो रही थीं। कवच ने उसे फिर से हिलाया पर उसके होंठ नीले पड़ने लगे।
कवच ने अपने हाथ से उसका मुख बँद करने कि कोशिश की पर उसकी साँसे तीव्र, तीव्र, अति तीव्रता से उसका दम घोटे जा रहे थे।
कवच के पास और कोई रास्ता नहीं बचा। उसने अंतिम उपाय के रूप में उसे सीधा कर उसके चेहरे को सहारा देते हुए अपने होठों के पास मज़बूती से थामा।
उसकी गर्दन और सिर से खून कवच को भी अपने अंदर समा रही थी।
यह प्राथमिक उपचार के लिए था, लेकिन कवच के हाथ भय और उत्तेजना की मिश्रित भावना से काँप रहे थे। उसे खोने का भय और पहली बार उसे चूमने का उत्साह।
"सॉरी बट नॉट।", कह उसने अपनी होंठ को वृषाली के होंठ से जोड़ा। वृषाली के होंठ गीले, खुरदरी और ठंडी थी। फिर भी कवच के लिए गर्म थी। जीभ और होठों का इस्तेमाल करते हुए उसे मुँह से साँस लेने से रोकने लगा।
डरी हुई वृषाली ने कवच के हाथों को कसकर थामा। कवच ने ध्यान नहीं दिया पर वृषाली की गर्दन भरने लगी थी, उसकी खुद की चोटे भरने लगी जो सालों से भरे नहीं थे और जो चोट वृषाली के छूने से आधे भरे थे सब भरने लगे। कमज़ोरी और थकावट से वृषाली की पकड़ ढीली होने लगी। कवच ने उसकी पीठ को सहारा देते हुए उसे अपने और पास खींचा। फिर से वृषाली के नीले हो चुके होंठ को कवच ने नाज़ुक हाथों से पकड़ा और अपने अँगूठे से उसका मुँह को कोमलता से खोला और अपनी जीभ का इस्तेमाल करते हुए उसे पूरी तरह से मुँह से साँस लेने से रोकने के प्रयास किया जिसकी जगह वह नाक का इस्तेमाल करने पर मज़बूर हो जाए।
पहले तो वृषाली तिलमिला गयी पर कुछ सेकंड के संघर्ष के बाद वृषाली की तीव्र साँसे शाँत होने लगी और अंततः वह नाक से साँस लेने में सक्षम हुई।
उससे स्थिर देख कवच स्थिर हुआ।
उसने कवच के हाथ को पकड़कर बेहोश होने के पहले टूटे-फूटे शब्दों में मुस्कराते हुए कहा, "फिर ब-चा लिया? आपने हमेशा मुझे बचाया... वृ-",
कवच ने उसे सवारते हुए अपने सीने से किसी खज़ाने जैसा चिपका लिया।
टप-टप कर वृषाली के बँद आँखो से पानी बह रहा था।
देखने पर आँसू कवच के थे।
यह उसके आँसू उसके संघर्ष के गवाह थे।
यह आँसू उसके नाकामी थे।

"अब समझ आया होगा तुम्हें!",
 मैं प्रकाश के रूप में उसके सामने खड़ी थी।
उसके सामने वृषाली बेजान पड़ी थी।
उसे अपने हाथ में थामकर, "हाँ... हाँ, मैं मानता हूँ शक्ति, मैं हार गया। मैं हार गया। मैंने गलती की। मैं समीर बिजलानी के रियासत को ध्वस्त करने में कामयाब रहा, लेकिन मैं फिर भी हार गया!",
वृषा टूट चुका था।
"आर्य, उसकी पत्नी दिव्या और उनका अजन्मा बच्चा, वो बच्चा जिसने दुनिया में कदम तक नहीं रखा उसपर भी मेरी अकड़ के कारण मौत का आतंक मंडरा रहा हैं।
मेरे यही अकड़ ने मेरे बच्चन के दोस्त, शिवम को सुहासिनी, उसकी प्रियतमा से बंदूक की नोंक में शादी के लिए मज़बूर किया गया...", उसकी आवाज़ भारी थी, "और सुहासिनी का पूरा परिवार समीर के चंगुल में था।
उसने विरासत और सरयू का अपहरण किया और निर्दयतापूर्वक उन्हें मारने कि अनगिनत कोशिश की।
कायल को कठपुतली बनाकर रखा है।
अंजलि के परिवार को बर्बाद कर अपने पैरों के नीचे रखा है।
चित्रा प्रोडक्शन, हमारे देश की पुरानी, प्रसिद्ध प्रोडक्शन हाउस को बेइज्ज़त कर निलामी के द्वार पर खड़ा कर दिया। सिर्फ इसलिए, क्योंकि प्रतिज्ञा (स्वयंवधू की प्रतियोगी) ने मेरी मदद की वृषाली तक राहुल के बच्चे पहुँचाने में।
और राहुल... मेरे कारण उसका परिवार तितर-बितर हो गया।
मैंने तो कुछ किया ही नहीं शक्ति- मैं कुछ कर ही नहीं सका।
समीर भी वहाँ है, उसका साम्राज्य भी और उसके आतंक भी!
कुछ नहीं बदला शक्ति, मेरी हिचक और अकड़ ने सब कुछ बर्बाद कर दिया... सब खत्म हो गया शक्ति, सब खत्म हो गया।",
"महाशक्ति को अपने फटे शर्ट से तूफान से बचाने की असफल प्रयास क्या फ़ायदा कवच?! जो होना था, वो हो गया। ठीक अभी की तरह। जैसे तुम इस अधूरे कपड़े से उसे बचा रहे हो, वैसे ही तुमने उसका अपहरण अधूरे प्लान के साथ किया। क्या सोचा था, विराज वीर्य के मदद के बदले तुम महाशक्ति को विदेश भेज दोगे और समीर उसे छोड़ देगा?
(रक्षक भी उसके अधीन है।)
कैसी बचकानी सोच है?!
आज, महाशक्ति पर आधा स्वामी समीर बिजलानी है। बिना किसी फालतू चिप के भी वो जहाँ जाए उसे चुटकियों में पता चल सकता है। और मज़े की बात पता है?
उसे कुछ भी नहीं पता!
और वो समीर पर हमला करने के बारे में सोच रही है। उसे लगता है जो जानकारी तुमने दी वो काफी है।
काफी???", मैंने नीचा दिखाते हुए उसे पूछा,
"नहीं।", कवच ने सिर झुकाकर कहा।
तुमने उसे बस भूखे भेड़ियो के सामने लाचार फेंक दिया था।
तुम्हें पता है ना, पूर्व कवच अपनी महाशक्ति का मौत भूला नहीं है.....अपना बदला भूला नहीं है। अपने अतीत को छोड़ा नहीं है और उसे बस एक चारे की तरह इस्तेमाल कर तुम्हें और समीर को नचा रहा है। उसका लक्ष्य समीर को शक्ति के लालच में फँसा उसके आँखो के सामने महाशक्ति को मारना है। इत्तला ओ उम भी जाने होगे।", इस बिंदु पर मैं उसके चेहरे पर इतना झुक गयी कि मैं खुद को उसकी आँखों में देख सकती थी। अपराध, आतंक, डर, दर्द और जो मैं देखना चाहती थी, दृढ़ संकल्प से भरी हुई आँखे।
 
उसने ज़हर का घूँट पीकर कहा, "सब पता है मुझे। मैं सब जानता था... फिर भी कुछ संभालने की जगह सब बर्बाद कर दिया। ना अपना अधिकार, ना अपने दोस्त और ना अपना प्यार। आई लव वृषाली। कबसे पत्ता नहीं... शायद पहले से? फिर भी सब कुछ जानते हुए भी, कितने चेतावनियों के बाद भी मैं कायर की तरह सब राम भरोसे छोड़ चलता रहा। इन ही हाथों से मैंने अपनी अमम्मा और अपनी माँ को मारा था और आज वृषाली को भी मौत के दरवाज़े पर खड़ा कर दिया है।",
मैं महाशक्ति के गर्दन जहाँ पर समीर ने अपना और कवच के रक्त को मिलाकर डाला था, मैं वहाँ जाकर बैठी, "इसलिए तुम बचते रहे। तुम्हारी तरह बेवकूफी, हज़ारों पीढ़ियों से आजतक किसी ने नहीं की। तुम ऐसे इकलौते कवच हो जिसने अपनी शक्ति को खुले बाज़ार में अपने मित्रों के कितने समझाने पर भी उसे परोस दिया।",
सुनने के बाद, कवच ने उसे और अधिक कसकर पकड़ लिया, मानो उसे डर हो कि कहीं कोई उसे फिर से चुरा ना ले।
जहाँ मैं खड़ी थी वहाँ मेरे हटते ही एक काक ने वही पर अचानक वार किया और मांस का टुकड़ा ले उड़ा जिससे उसके शरीर से काला खून बहते लगा।
कवच अचानक हमले से ज़्यादा मांस के टुकड़े को देख भौचक्का रह गया।
कवच उसे बचाने गया और खुद अपनी गर्दन वही उसी जगह पर कटवा गया इस बार काक ने मांस नहीं लिया बस गहरी चोट कर उड़े गया। उसके गर्दन से भी वही काला खून और कुछ गाढ़ा द्रव्य निकलने लगा।
उसकी आँखो के सामने अँधेरा छाने लगा और पकड़ ढीली होने लगी। उसने उसे कसकर पकड़ा।
मुझे उन्हें देख तरस आ रहा था।
दोंनो काले लिए खून से सने चोटिल, शरीर पर अनेको नए, पुराने, नहीं ठीक होने वाले ज़ख्म और आंतरिक ज़ख्म से रमे थे।
मैंने अपना गला साफ़ किया, "आहम!", अपनी आवाज़ को माँगपूर्ण रखने की कोशिश करते हुए, "तुमने उसे कोई किताब दी थी क्या?",
उसने जवाब देने के बजाए पूछा, "क्या अब आप अब इस तूफ़ान को अभी रोक सकती है?",
मैं मुस्कुराई, उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी लेकिन उसने बस अपने प्यार को छुपाने की कोशिश की। तब मुझे एहसास हुआ, वह मेरा चेहरा नहीं देख सकता। (मेरी बुद्धि उनकी तरह हो रही है।)
मुझे शर्म आ रही थी।
मैंने चुपचाप अपना गला साफ़ किया।
मैंने पूछा, "क्या तुमने उसे कोई किताब दी थी जिसे तुमने जलाने को कहा था? कहो नहीं तो यही और काक भेज उसके टुकड़े यही कर दूँगी!",
डरते हुए वृषाली को खुद से और चिपकाकर कहा, "ह-हाँ?",
वह डर गया था कि मैं उन्हें और अधिक चोट पहुँचा सकती थी।
वह सतर्क और भयभीत था।
"क्या था किताब उस में?", 
सतर्कता से उसने जवाब दिया, "हमारा आरंभ!
हमारी शक्तियाँ!
हमारी जिम्मेदारियाँ!
और हमारी कमजोरियाँ!",
"तुम्हारा कहना क्या है?",
उसने जवाब देते हुए वृषाली को हैरानी से देखा, "मैं उस किताब.... शक्ति, वृषाली ठंडी पड़ रही है। क्या तुम इस आँधी को अब रोक सकती हो?",
"तुम्हारा क्या कहना है?", 
कवच की आँखे उसकी शक्ति पर थी, "प्लीज शक्ति वृषाली की हालत खराब हो रही है। कुछ ही दिनों पहले उसका ऑपरेशन हुआ है। बारिश और काक के हमले का कारण उसकी जान को खतरा है। वो मर रही है!", वह गिड़गिड़ाते हुए चिल्लाया,
"तुम्हारा क्या कहना था?", मैंने उसे नज़रअंदाज कर पूछा,
सुन कवच विनम्र से विरोधी हो गया। उसने मुझे नफरत भरी आँखो से देखा और चिल्लाया, "यही की हम कितने अमानवीय हो सकते है और मक्कार!!",
कह उसने अपनी शक्ति को उठाया और चोटिल अवस्था में बिना रुके, बिना साँस लिए, बिना डरे उस डरावने, खूंखार जानवर और शिकारियों से भरे वन को एक दौड़ में बिना रुके पूरा कर, लॉज के गार्ड को पार कर फ्रंट डेस्क तक गया।
वह दरवाज़ा तोड़ते हुए अंदर घुसा और वृषाली को गोद में पकड़ कर लॉबी के बीच में खड़ा होकर चिल्लाया, "कॉल डॉक्टर, दिस ईस ऐन इमर्जेंसी!",
वृषाली उसकी बाहो में बेहोश थी और दोंनो खून, बारिश और मिट्टी से सने हुए थे।
शोरगुल सुनकर सभी लोग दौड़कर अंदर आए। राहुल जो कि फ्रंट डेस्क पर रिसेप्शनिस्ट से चिंता में बात कर रहा था, शोरगुल की ओर देखा और परिचित आवाज़ सुनी।
"कृपया मुझे उसे जल्दी से ढूँढने में मदद करें। वह सर्जरी से उबर रही है।", वह उससे वृषाली को जल्दी से ढूँढने की विनती कर रहा था,
"सर, मैं समझ सकती हूँ लेकिन-",
पूछते समय उसने भीड़ में वृषाली की झलक देखी और रिसेप्शनिस्ट से बातचीत के बीच भीड़ की ओर दौड़ पड़ा।
वह लोंगो को हटाते बीच में गया और पाया कि कवच मीरा उर्फ वृषाली को सार्वजनिक स्थान पर थामे हुए था। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। जो कान्हा के बगल में सो रही थी, वो दूसरे मर्द के हाथों बेहोश पड़ी थी। सभी ने उसे और वृषाली को देखा और तुरंत गपशप और तरह-तरह की ऊटपटांग चरित्रहीन बाते शुरू कर दी।

वह बस मुस्कुराया और मुस्कुराते हुए आगे बढ़कर बोला, "बहुत बहुत धन्यवाद। मेरी पत्नी ने सर्जरी के बाद नींद में चलने की आदत विकसित करना शुरू कर दिया था।",
उसने उसे असहज नज़रों से देखते हुए तुरंत कवच के हाथों से ले लिया और पास के होटल स्टाफ से डॉक्टर को उनके कमरे में भेजने को कहा।
राहुल ने अपना सिर हल्का सा झुकाकर चलना शुरू किया, तभी कवच ने उसे हिचकिचाते हुए पुकारा, "क्या मैं?",
उसने कड़क चेहरा रख सिर्फ एक बार सिर हिलाकर उनके साथ चलने पर सहमति जताई।
चलते-चलते राहुल का दिल उफानो से भरा था। बाहर का तूफान उसके दिल का हाल बता रहा था, वही आसमान को चीरती बिजली कवच के दिल का हाल बया कर रहे थे जो अपने प्यार को दूसरे पुरुष की पत्नी बन उसके साथ जी रही थी, और वह बारिश; यह उन तीनों, वृषा, वृषाली और राहुल के दुखो का प्रतीक थी जो वो बया ना कर पाए।
 हर कदम के साथ राहुल को लग रहा था कि वो उस खाई की ओर जा रहा था जहाँ से वापस आना असंभव था, उसके परिवार तक पहुँचना असंभव था और कवच के लिए हर एक कदम के साथ उसकी शक्ति उससे दूर, दूर, बहुत दूर जाते हुए दिख रही था और दोंनो बस सब मज़बूरी में देख सकते थे...या शायद कुछ कर सकते थे।