Mere Ishq me Shamil Ruhaniyat he - 25 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 25

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मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 25

🌙 प्रेम की राख से उठती रौशनी

 
सुबह की धूप हवेली के टूटे झरोखों से छनकर भीतर आ रही थी।
रात की लाल आभा अब मद्धम पड़ चुकी थी, पर हवा में अब भी एक गर्माहट थी —
जैसे किसी ने अभी-अभी हवेली के दिल में नया जीवन फूँका हो।
 
अनाया नींद से जागी तो उसके हाथों में वही दीपक था —
सुनहरी-काली लौ अब शांत थी, पर बुझी नहीं।
उसने उसे अपनी हथेली पर रखा और धीरे से फुसफुसाई,
“अब ये लौ मेरी रूह नहीं जलाएगी, बल्कि मेरा रास्ता दिखाएगी।”
 
वो बालकनी पर आई, और देखा —
आर्यव (या शायद राज़ का प्रतिबिंब) हवेली के आँगन में खड़ा था,
उसकी नज़रें कहीं दूर आसमान में खोई हुई थीं।
 
“रात जो हुआ… वो सपना था या सच?” अनाया ने पूछा।
 
आर्यव ने हल्की मुस्कान दी —
“सपने वही सच बनते हैं जो रूह से देखे जाएँ।”
 
अनाया ने ठंडी साँस ली,
“अगर तुम सच हो, तो फिर ये कहानी कहाँ जाएगी?”
 
आर्यव ने उसकी ओर देखा, आँखों में गहराई थी —
“जहाँ प्रेम की रुमानियत मौत से भी बड़ी हो जाती है…”
 
 
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🔥 हवेली का दूसरा चेहरा
 
हवेली का पिछला हिस्सा अब खुल चुका था,
और दीवारों पर अजीब-सी लिपि उभर आई थी।
वो किसी प्राचीन भाषा की थी —
कुछ शब्द पहचान में आ रहे थे, जैसे “रूह”, “वादा”, “इश्क़”, “प्रतिबिंब”।
 
आर्यव ने दीवार छुई।
दीवार ने जवाब में हल्की ध्वनि निकाली —
जैसे किसी ने अंदर से कहा हो, “वक्त आ गया है।”
 
“ये आवाज़…” अनाया ने धीरे से कहा,
“क्या ये वही मिराया की रूह है जिसने हवेली को श्राप दिया था?”
 
आर्यव ने सिर हिलाया,
“हाँ। लेकिन अब वो दुश्मन नहीं, मार्गदर्शक है।”
 
दीवार पर अचानक एक चित्र उभरा —
दो आकृतियाँ, एक स्त्री और एक पुरुष,
जो अग्नि के बीच हाथ थामे खड़े थे।
 
नीचे लिखा था —
 
> “प्रेम जब मृत्यु को छू ले, तो अमरत्व पा लेता है।”
 
 
 
अनाया ने विस्मय से देखा,
“क्या ये हम हैं?”
 
आर्यव ने कहा,
“या वो जो हमारे भीतर जीवित हैं — राज़ और अनाया, मिराया और रुद्र, हर वो आत्मा जिसने प्रेम में जलना स्वीकार किया।”
 
 
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🌾 दरभंगा का बदलाव
 
गाँव में अब हवेली को लेकर डर नहीं था।
लोग कहते — “अब वो हवेली नहीं, मंदिर है।”
गाँव के बच्चे हवेली के पास खेलते,
और बुज़ुर्ग शाम को उसके आँगन में दीपक जलाते।
 
एक दिन अनाया ने देखा —
मंदिर के पुजारी उसके पास आए और बोले,
“बिटिया, हवेली से अब रौशनी निकलती है, अंधेरा नहीं।
लगता है वहाँ अब कोई साधना चल रही है।”
 
अनाया मुस्कुरा दी,
“हाँ बाबा, वो प्रेम की साधना है — जो कभी पूरी नहीं होती।”
 
आर्यव उसे देख रहा था —
वो हर बात को ऐसे कहती थी जैसे उसमें कोई रहस्य छिपा हो।
और शायद, था भी।
 
 
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🌸 हवेली में रुमानियत
 
शाम ढलते ही हवेली के अंदर फिर वही महक फैल गई —
चंदन, गुलाब और राख की मिली-जुली खुशबू।
 
आर्यव ने कमरे में कदम रखा —
अनाया मोमबत्ती के उजाले में बैठी कुछ लिख रही थी।
“क्या लिख रही हो?” उसने पूछा।
 
अनाया ने बिना देखे जवाब दिया,
“जो अधूरा रह गया, वही पूरा कर रही हूँ।”
 
आर्यव ने पास आकर झाँका —
वो “अधूरी किताब” का अगला अध्याय था,
जिसमें लिखा था —
 
> “जब कोई आत्मा किसी और आत्मा में अपनी गूँज पहचान ले,
तो वही रुमानियत होती है।”
 
 
 
आर्यव ने धीरे से कहा,
“तो क्या मैं तुम्हारी रुमानियत में शामिल हूँ?”
 
अनाया ने सिर उठाया। उसकी आँखों में वही चमक थी जो कभी राज़ की आँखों में थी।
“तुम रुमानियत नहीं, उसकी वजह हो।”
 
एक पल को दोनों के बीच सन्नाटा छा गया।
सिर्फ़ दीपक की लौ हिल रही थी — सुनहरी और काली।
वो लौ जैसे उनके दिलों के बीच झूल रही थी।
 
 
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💫 छूने की अनुमति
 
अनाया ने हाथ बढ़ाया, उसकी उँगलियाँ आर्यव की उँगलियों से छू गईं।
पर अगले ही पल आर्यव ने पीछे हटते हुए कहा,
“रुको… मैं पूरी तरह इंसान नहीं हूँ।”
 
अनाया ने हल्की मुस्कान दी,
“मुझे फर्क नहीं पड़ता।
अगर तुम्हारे अंदर राज़ की रूह है, तो वही मेरे इश्क़ का हिस्सा है।”
 
आर्यव की आँखें भर आईं।
“अनाया, अगर मैं एक प्रतिबिंब हूँ, तो एक दिन मुझे मिटना होगा।”
 
अनाया ने उसके गाल पर हाथ रखा,
“तो मिट जाना, पर मेरे इश्क़ की रुमानियत बनकर।”
 
उनके बीच की दूरी अब बस एक सांस जितनी रह गई थी।
दीपक की लौ अब और तेज़ हो गई थी —
जैसे हवेली खुद इस क्षण की साक्षी बन रही हो।
 
आर्यव ने धीरे से कहा,
“अगर मैं तुम्हें छू लूँ, तो शायद वक़्त रुक जाए।”
 
अनाया ने फुसफुसाकर कहा,
“तो रुक जाने दो।”
 
और अगले ही पल उनके होंठ मिले —
धीरे, गहराई से, जैसे दो सदियों की दूरी एक पल में मिट गई हो।
 
हवेली के दरवाज़े अपने आप बंद हो गए,
और बाहर हवा में वही प्रतीक फिर चमक उठा —
काला, सुनहरा और अब लाल।
 
 
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🌑 रात का रहस्य
 
रात गहराई तो हवेली में सब कुछ शांत था।
पर आर्यव अब कमरे में नहीं था।
 
अनाया ने उठकर चारों ओर देखा,
दीवार पर वही लिखावट फिर से उभर आई थी —
 
> “प्रेम ने नया रूप लिया है।”
 
 
 
तभी हवा में आर्यव की आवाज़ गूंजी —
“मैं गया नहीं, बस तुम्हारे भीतर समा गया हूँ।”
 
अनाया की आँखों में आँसू थे, पर होंठों पर मुस्कान।
उसने दीपक उठाया और बोली —
“अब ये लौ सिर्फ़ राज़ या आर्यव की नहीं रही,
ये मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है।”
 
 
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🕯️ समाप्ति दृश्य
 
अगली सुबह दरभंगा की हवेली के बाहर लोग इकट्ठा हुए —
दीवारों पर अब सुनहरे फूल उभर आए थे,
और हवेली की छत से लाल-काले धुएँ की पतली लकीर आसमान में उठ रही थी।
 
मंदिर के पुजारी ने कहा,
“अब ये हवेली प्रेम का तीर्थ बन चुकी है।”
 
वहीं भीतर, अनाया ने अपनी किताब का आख़िरी वाक्य लिखा —
 
> “कभी-कभी प्रेम रूह से शुरू होता है,
मगर उसका अंत शरीर और आत्मा के मिलन से होता है।”
 
 
 
उसने दीपक खिड़की पर रखा —
लौ अब पूरी सुनहरी हो चुकी थी।
 
और हवेली की दीवार पर एक नई पंक्ति खुद-ब-खुद उभर आई —
 
> “हर इश्क़ में थोड़ी रुमानियत होती है,
पर कुछ इश्क़ ऐसे होते हैं जिनसे रुमानियत जन्म लेती है…”
 
 
 
 
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🌹 एपिसोड 24 हुक लाइन:
 
रात के सन्नाटे में हवेली की सबसे ऊपरी मंज़िल से फिर एक हल्की आवाज़ आई —
 
> “अनाया… क्या तुम अगला रूप देखने के लिए तैयार हो?”
 
 
 
और खिड़की के शीशे पर अब किसी और का चेहरा उभर आया था —
ना राज़, ना आर्यव…
बल्कि एक नई आत्मा, जो मुस्कुरा रही थी।
 
 
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क्या आप चाहेंगी कि एपिसोड 25 में इस नई आत्मा की पहचान उजागर करूँ —
या पहले आर्यव-राज़ के “मिलन के बाद” का सस्पेंस दिखाऊँ?