Nafrat e Ishq - Part 25 in Hindi Love Stories by Umashankar Ji books and stories PDF | Nafrat e Ishq - Part 25

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Nafrat e Ishq - Part 25



कमरे की खिड़की से धुंधली रोशनी अंदर गिर रही थी। पंखे की धीमी गति से हवा चल रही थी, लेकिन कमरे का तापमान ठंडा नहीं था—बल्कि तनाव और डर से भरा हुआ था। लोहे की सलिंग लगी खिड़की, और सॉलिड गेट ने इस कमरे को पूरी तरह से बंद कर रखा था।

कमरे के कोने में एक लड़की बैठी थी। उसके आँसू उसकी आँखों से फिसल रहे थे, लेकिन उसने अपनी आँखें झुका रखी थीं। कमरे में एक सिंगल बेड था, एक तकिया और चादर बिखरी हुई थी। एक छोटे से बाथरूम में 20 लीटर पानी का कैम्प रखा गया था और एक गिलास पास में रखा था।

यह लड़की कोई और नहीं—मनीषा थी।

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मनीषा अपने आप से बुदबुदाई, “कितने दिनों से मैं यहाँ हूँ?… सहदेव… तुम्हारी याद हर पल मेरे साथ है। अगर तुम यहाँ होते तो शायद सब कुछ आसान लगता।”

उसने अपने हाथ जोड़े और सिर झुका लिया। कमरे के बाहर उसके ऊपर दो आदमी और एक औरत निगरानी कर रहे थे। तीनों ने काले टी-शर्ट पहने हुए थे, जैसे पेशेवर बॉडीगार्ड हों।

उनमें से एक औरत ने खड़ी होकर आदेश दिया, “तुम बेवकूफ़ हो… यह सब लड़की के छलावे में आकर किया। देखो, तुम्हारी हालत क्या हो गई। अगर मैं समय पर नहीं आती, तो वह यहाँ से भाग जाती। समझे?”

दोनों पुरुष उसके ठीक सामने खड़े थे। उनमें से एक के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी, जैसे कि वह सबक सिखाया जा रहा हो।

मनीषा ने झुककर अपने घुटनों को थाम लिया। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। “सहदेव… मुझे यहाँ से निकालो,” वह फुसफुसाई, लेकिन आवाज़ में भय साफ़ झलक रहा था।

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सहदेव अब अपने गहन सोच में था। मुकेश और बाकी गुंडों के बाद, उसके मन में यह शक और भी गहरा हो गया था कि मनीषा सचमुच किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा बन चुकी है। लेकिन वह जानता था कि किसी भी गलती की कोई जगह नहीं।

“मनीषा… मैं तुम्हें ढूँढ रहा हूँ। ये सब तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि उस आदमी के लिए है जिसने तुम्हें फंसाया है। अगर सच में तुम मजबूर हो, तो मैं तुम्हें बाहर निकालूँगा।”

विक्रम उसके पास खड़ा था। उसकी आँखों में सहदेव की सुरक्षा की चिंता साफ़ झलक रही थी।

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मनीषा ने कमरे में चारों ओर देखा। उसके पास सिर्फ़ बेड, पानी का कैम्प और थोड़े से कपड़े थे। बाहर के लोग उसकी निगरानी कर रहे थे। उसने सोचा, “यहाँ से निकलना लगभग नामुमकिन है। और सहदेव… क्या वह सच में मुझे ढूँढ पाएगा?”

वह खुद को बिस्तर पर धकेलकर बैठ गई। आँखों से आँसू बह रहे थे। उसकी सांसें तेज़ थीं, दिल तेजी से धड़क रहा था।

“अगर सहदेव आता है… अगर वह सच में आता है… मैं जीवित बच जाऊँगी,” मनीषा ने अपने आप से कहा।

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बाहर खड़े लोग, जो मनीषा की निगरानी कर रहे थे, गंभीर मुद्रा में थे।
औरत ने फिर कहा, “देखो, अब यह हाथ से न जाएगा। इसे बाहर निकलने की कोई संभावना नहीं। हमने सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। अगर कुछ हुआ, तो… सिर्फ़ हम जिम्मेदार नहीं होंगे।”

एक आदमी ने कहा, “पर क्या सच में सहदेव इसे ढूँढने के काबिल है? वह पिछले छह महीनों से गायब है, और अब वह अचानक इस इलाके में?”

दूसरा आदमी, जो मनीषा के करीब खड़ा था, हँसते हुए बोला, “अरे भाई… वही सहदेव है। उसे अगर एक बार निशाना मिल गया, तो कोई भी उसे रोक नहीं सकता। याद रखो, यह लड़का वही है जिसने अपने पीछे कई गुंडों को जाल में फंसाया था।”

औरत ने सिर हिलाया, “ठीक है। पर हमें सतर्क रहना होगा। अगर वह यहाँ आता है, तो हमें भी तैयारी रखनी होगी। कोई गलती नहीं होनी चाहिए।”

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सहदेव और विक्रम अब फ्लैट के पास खड़े थे। उन्होंने चारों गुंडों को पकड़ने के बाद इस फ्लैट का पता लगाया। सहदेव ने धीमी आवाज़ में कहा, “मनीषा… तुम्हें सुरक्षित बाहर निकालना ही मेरी पहली प्राथमिकता है। बाकी सब बाद में।”

विक्रम ने सिर हिलाया, “सहदेव, रास्ता खतरनाक है। पर मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो।”

सहदेव ने गहरी सांस ली। दर्द और चोटों को नजरअंदाज करते हुए उसने मन ही मन कहा,
“मनीषा… चाहे कुछ भी हो, मैं तुम्हें सुरक्षित बाहर निकालूँगा। और जो भी तुम्हारे साथ यह बुरा कर रहा है, उसका हिसाब मैं लूंगा।”

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मनीषा ने धीरे से फुसफुसाया, “सहदेव… अगर तुम आओगे… तो शायद मैं जीवित बच जाऊँगी।”

वह बिस्तर पर झुककर दरवाजे की ओर देख रही थी। उसकी आँखों में डर और उम्मीद दोनों झलक रहे थे।

पंखे की हल्की हवा में उसके आँसू चमक रहे थे। उसकी साँसें तेजी से चल रही थीं, लेकिन उसके दिल में एक उम्मीद की किरण थी।

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सहदेव ने विक्रम से कहा, “देखो, हमें तीनों गार्ड्स और औरत के खिलाफ चुपके से योजना बनानी होगी। एक भी आवाज़ मनीषा तक पहुँच गई, तो उसका खतरा बढ़ जाएगा। हम इस बार चालाकी से काम करेंगे।”

विक्रम ने गंभीरता से जवाब दिया, “ठीक है। मैं पीछे से उन्हें रोकता हूँ, और तुम अंदर जाओ। अगर जरूरत पड़ी, तो मैं गोलियाँ चला दूँ।”

सहदेव ने सिर हिलाया। उसकी आँखों में आग थी।
“चलो… अब वक्त नहीं है। हर पल कीमती है।”

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सहदेव ने धीरे से दरवाज़े की कुंडी खोली। कमरे की धुंधली रोशनी में उसने देखा—तीन लोग औरत के आदेश में खड़े थे। उनके हाथ में डंडे और लकड़ी की रॉड थी।

सहदेव ने धीमी आवाज़ में कहा,
“तुम लोग सोचते हो कि तुम इसे रोक सकते हो? सोचो फिर… मैं और विक्रम, दोनों यहाँ हैं। और मनीषा को लेकर जा रहे हैं। किसी ने गलती की तो परिणाम भुगतने होंगे।”

गुंडों में हल्की हलचल हुई। औरत ने ताने भरे स्वर में कहा,
“तुम सोच रहे हो कि इसे आसानी से निकालोगे? सोच लिया…?”

सहदेव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
“अब यह तुम्हारे हाथ में नहीं है। या तो शांतिपूर्वक जाओ, या मुझे मजबूर करो।”

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मनीषा ने अपने होंठों से हल्की मुस्कान निकाली। उसके दिल में सहदेव की मौजूदगी ने आशा की किरण जगा दी। उसने सोचा,
“अगर सहदेव यहाँ है… शायद मैं सचमुच सुरक्षित बाहर निकल जाऊँगी। और यह बुरे लोग अब डरेंगे।”

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To be continued…