अर्जुन का दृष्टिकोण
एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा।
मेरे पिता।
"क्यों?" मैंने फुसफुसाया, अपना गाल पकड़ते हुए।
देवराज: "बदतमीज़! क्या तुम्हें अच्छा लगता है जब लोग तुम्हारे बारे में ऐसा बोलते हैं? हमारी नाक कटवा के रख दी तुमने!"
वो अचानक ठिठक गए, मेरे हाथ में कुछ देखकर।
"रुको... क्या पकड़ रखा है? और बाहर क्यों गए थे?"
मैंने धीरे से उसे उठाया।
"ये मेरा अवॉर्ड है। मैं सिंगिंग प्रतियोगिता जीता हूँ।"
उनका चेहरा गुस्से से विकृत हो गया।
उन्होंने उसे झटके से छीनकर ज़मीन पर फेंक दिया।
तेज़ आवाज़ के साथ वो टुकड़ों में बिखर गया।
शोर सुनकर माँ रसोई से बाहर भागीं।
समीक्षा स्नेहा: "क्या हुआ? बाप-बेटे फिर से लड़ रहे हो?"
देवराज: "तुम्हारा बेटा अभी तक शर्मिंदा नहीं हुआ! वापस गया था वो अवॉर्ड लेने। फिर से भाग लिया था किसी सिंगिंग प्रतियोगिता में!"
देवराज: "और समाज? पड़ोसी? कितना सुनना पड़ता है हमें उनसे। देखो उनके बच्चे! सबके पास सरकारी नौकरियाँ हैं, इज़्ज़त है।
और ये—" उन्होंने मेरी तरफ उंगली उठाई—
"सिंगर बनने चला है, जैसे ये कोई फख्र की बात हो!"
देवराज: "निकलो! निकलो मेरे घर से। मुझे ऐसे बेटे की ज़रूरत नहीं!"
समीक्षा स्नेहा: "क्यों निकाल रहे हो उसे घर से, बस कुछ लोगों की बातों की वजह से?"
देवराज: "वो लोग बस नहीं हैं! अगर तुम्हें उससे इतना ही प्यार है, तो तुम भी जाओ।" 😡
समीक्षा स्नेहा: "जैसे आप मेरे बिना किचन में झंडे गाड़ लोगे।" 😒
देवराज: "स्नेहा, मैं मज़ाक नहीं कर रहा। ये लड़का तभी घर आएगा जब इसके पास नौकरी होगी।
वरना इस पर इतना पैसा खर्च करने का क्या फायदा? अब निकल जाओ मेरे घर से।"
मैं जड़ खड़ा रहा, मुट्ठियाँ काँप रही थीं।
अर्जुन: "ठीक है। मैं जा रहा हूँ। लेकिन सुन लीजिए—अगर मुझे नौकरी मिल भी गई, तो भी मैं इस घर में कभी वापस नहीं आऊँगा।"
उस रात, मैं एक छोटे से किराए के फ्लैट में रहने चला गया।
अगर आप पैसों के बारे में सोच रहे हैं, तो साफ़ कर दूँ—मैं पार्ट-टाइम जॉब करता हूँ जिससे मेरा खर्चा निकल आता है।
क्योंकि मुझे सिर्फ़ खुद का ध्यान रखना होता है, इसलिए ज्यादा आर्थिक दबाव नहीं है।
जॉब शिफ्ट्स के बीच, मैं अलग-अलग सिंगिंग ऑडिशन में हिस्सा लेता रहता हूँ।
म्यूज़िक ने मुझे कभी नहीं छोड़ा।
और कभी नहीं छोड़ेगा।
माँ मुझसे चोरी-छिपे कॉल करती हैं, भले ही पापा ने मना किया है।
वो सोचते हैं कि मैंने उनका अनादर किया जब मैंने कहा कि नौकरी मिलने के बाद भी मैं घर नहीं लौटूँगा।
लेकिन मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था।
सिर्फ़ घर नहीं छोड़ा मैंने...
अपना राज्य भी छोड़ दिया।
अब मैं बॉम्बे में हूँ।
और सच कहूँ तो? यहाँ की ज़िंदगी हल्की लगती है।
आसान।
जैसे अब मैं सच में साँस ले पा रहा हूँ।
वो मुझे घर लौटने के लिए मजबूर नहीं कर रहे।
और मैं भी वहाँ वापस नहीं जाना चाहता।
जहाँ कोई कलाकार की कद्र नहीं कर सकता।
चाहे वो कितना भी कोशिश कर लें, मैं अपने करियर की राह खुद तय करूँगा।
गाना मेरे दिल और मेरी ज़िंदगी का हिस्सा था, है, और हमेशा रहेगा।
और अब मुझे उन समाज के लोगों के बीच नहीं रहना।
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✨ लेखक का नोट ✨
यह कहानी पूरी तरह मेरी मूल रचना है।
सभी पात्र, संवाद, और कहानी की रूपरेखा मेरे द्वारा लिखी गई हैं।
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