First success in Hindi Fiction Stories by kaushal singh books and stories PDF | पहली सफलता

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पहली सफलता

अथर्व गाँव के बीच खडा था. सबकी नजरें उसी पर थीं, जैसे वह कोई अजीब सा तमाशा हो. बूढा आदमी, जो शायद इस छोटे से गाँव का नेता था, अब भी उसे ऐसे घूर रहा था जैसे किसी पल भाला फेंककर उसे वहीं खत्म कर देगा. अथर्व ने मन ही मन सोचा, भाई, अगर बातों से काम बनता तो कब का बना लेता, पर यहाँ तो सबको practical चाहिए। उसने गहरी साँस ली और धीरे- धीरे उस पुराने, भारी- भरकम हल की तरफ बढा. वो हल सच कहें तो औजार से कम और लकडी का टूटा- फूटा लट्ठा ज्यादा लग रहा था. उसे उठाते ही उसके हाथ हिल गए. ओह भाई, ये तो खुद ही जमीन में गड्ढा कर देगा. मिट्टी क्या ही जोतेगा! वह मन ही मन हँसा, पर चेहरे पर गंभीरता बनाए रखी. उसने हल के कुंद के किनारे पर हाथ फेरा, फिर वो पत्थर उठाया जो उसे पहले बेलें काटते वक्त मिला था. तेज, धारदार पत्थर. उसने हल को दिखाते हुए, फिर पत्थर की ओर इशारा किया और ऐसे नाटक करने लगा जैसे इसे धारदार बना रहा हो. मतलब बिना शब्दों के एकदम लाइव डेमो. गाँव वाले थोडे चौंके, थोडे हँसे, और थोडे- थोडे उत्सुक भी दिखे. उनके चेहरे ऐसे थे जैसे कह रहे हों, ये क्या कर रहा है ये अजीबोगरीब कपडे वाला आदमी? उन्हें लगा था यह कोई जादूगर होगा जो अपनी जादू से इन हाली को सही कर देगा पर ये तो लडकियों की कटाई कर रहा था।
अथर्व ने गांव वालो की तरफ देखा फिर लीवर का सिद्धांत समझाने की कोशिश की. उसने हल को उठाया, लंबाई की तरफ इशारा किया और फिर जमीन पर बैठकर डंडे से चित्र बनाए. गोल, सीधी लाइनें, तीर जैसे कोई बच्चा क्लास में बोर्ड पर डूडल बना रहा हो. लेकिन उसका मकसद साफ था“ लंबा हैंडल मतलब कम मेहनत और ज्यादा काम।
गाँव वाले अब भी चुप थे, पर उनके चेहरे पर धीरे- धीरे दिलचस्पी झलकने लगी. तभी, भीड से एक हल्की सी आवाज आई. वो एक लडकी थी. शायद सत्रह- अठारह साल की. आँखों में अजीब सी चमक, चेहरे पर आत्मविश्वास, और चाल में ऐसी साफगोई जैसे सबकुछ खुद समझ लेगी. उसका नाम था एलारा. एलारा ने बिना झिझक के आगे बढकर वही पत्थर उठाया और अथर्व की नकल करने लगी. उसकी भौंहें सिकुडी हुईं, होंठ दबे हुए, जैसे किसी पहेली को हल करने की कोशिश कर रही हो. अथर्व ने मन ही मन सोचा, ओके, अब खेल शुरू होता है।
उसने एक हल्की सी मुस्कान दी और फिर जमीन की तरफ गया. लकडी उठाई और खेत की मिट्टी पर चित्र बनाने लगा. लाइनें खींचीं, चौकोर बनाए, फिर गोल घेरा. फिर उसने उँगलियों से दिखाया कि कैसे अलग- अलग जगहों पर अलग- अलग बीज बोने से जमीन को बार- बार नई ताकत मिलती है. उसने आकाश की ओर इशारा किया, फिर जमीन की ओर — मौसम, बारिश, धूप सबको जोडने की कोशिश की.
गाँव वाले बुदबुदाने लगे. उन्हें कुछ समझ आया, कुछ नहीं. पर एलारा की आँखें चमक उठीं. उसने झुककर एक मुट्ठी मिट्टी उठाई, उसे मसलकर देखा, फिर अथर्व की तरफ देखा — जैसे पूछ रही हो, तो मतलब ये वाली मिट्टी सही है?
अथर्व ने तुरंत सिर हिलाया और उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ गई. यही पल था जब दोनों के बीच एक कनेक्शन बना. भाषा अलग थी, पर समझ एकदम साफ. बूढा आदमी अब भी घूर रहा था, पर उसकी गरज इस बार थोडी कमजोर लगी. वो जैसे सोच रहा हो, ठीक है, देख लें क्या कर सकता है ये अंजान आदमी।
अथर्व ने मौका भाँपते हुए जोर से कहा,
ज्यादा ताकत नही बल्कि ज्यादा दिमाग लगाओ”
उसने अपने सिर पर हाथ मारा, फिर हल की ओर इशारा किया. गाँव वाले एक- दूसरे की तरफ देखने लगे. किसी ने धीरे से दोहराया, दिमाग.
अब धीरे- धीरे, कुछ लोग आगे बढे. उन्होंने अपने पुराने हल उठाए और अथर्व के दिखाए तरीके से उन पर धार लगाने लगे. एलारा ने सबसे पहले कोशिश की, फिर औरतें और बच्चे भी पास आकर देखने लगे. अगले कुछ घंटों तक पूरा गाँव जैसे एक प्रयोगशाला बन गया. हल की धार लग रही थी, खेत में नई लाइनों के हिसाब से बीज बोए जा रहे थे. अथर्व हर जगह दौड- दौडकर इशारे कर रहा था, मिट्टी पर नए नए चित्र बना रहा था, और बीच- बीच में खुद कि हँसी रोक नहीं पा रहा था. ये तो मजेदार साइंस project है यार, पर लाइफ एंड डेथ वाला है।
गाँव वाले थके हुए थे, पर उनकी आँखों में उत्साह था. काम कठिन था, लेकिन अब हल ज्यादा गहराई तक जा रहे थे. मिट्टी पलटना आसान हो रहा था.
फिर आया असली टेस्ट.
कुछ दिन बीते. खेत में छोटे- छोटे हरे अंकुर उगने लगे. ये पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत और चमकदार थे. गाँव वाले हैरान थे. उनकी आँखों में हैरानी धीरे- धीरे उम्मीद में बदल रही थी. बच्चे खेतों के आसपास खेलते- खेलते अचानक उन अंकुरों की तरफ इशारा करते और हसने लगते. गाँव में हलचल शुरू हो गई. उस अन्जान आदमी का तरीका काम कर गया! किसी ने फुसफुसाया.
ये जादू नहीं करता, पर इसका तरीका असरदार है।
बूढा आदमी अब भी सख्त था, पर उसके चेहरे पर एक पल के लिए भी मुस्कान छुप नहीं पाई. एलारा ने अथर्व की तरफ देखा और हल्के से सिर हिलाया. उस सिर हिलाने में आभार भी था और दोस्ती का बीज भी. अथर्व को पहली बार लगा कि वह इस दुनिया में अकेला नहीं है. उसने जादू नहीं दिखाया था, न कोई मंत्र पढा था. उसने बस एक वैज्ञानिक तरीका बताया, एक आसान और असरदार तरीका. और यही उसकी सबसे बडी जीत थी. गाँव वाले उसे अब“ अंजान” कम और“ आविष्कारक” ज्यादा कहने लगे. और एलारा वह सिर्फ एक साथी नहीं थी, बल्कि पहली ऐसी इंसान थी जिसने सच में उसे समझने की कोशिश की.
अथर्व ने सोचा, शुरुआत हो गई है. ये रास्ता लंबा होगा, पर अब मैं अकेला नहीं हूँ। और इसी सोच के साथ, उसकी नजरें उस खेत पर टिक गईं जहाँ नई जिंदगी उग रही थी. उसे पता था कि ये सिर्फ फसल नहीं, बल्कि उसका और इस दुनिया का रिश्ता भी है — एक नया, नाजुक, लेकिन उम्मीद भरा रिश्ता.