अथर्व की जिंदगी उतनी ही साधारण थी जितनी दिल्ली की ट्रैफिक वाली road पर रोज हो जाने वाली शिकायतें. उसकी सुबह की शुरुआत coffee से होती, फिर office का शोर, और रात को laptop की रोशनी में आँखों का थक जाना, यही उसकी दिनचर्या थी.
वह खुद भी ऐसा महसूस करता था कि जैसे जिंदगी की सारी खुशी एक खाली कैनवास पर पहला रंग भरने जैसा हो, जैसे बस एक छोटा सा स्पर्श ही पूरी तस्वीर को बदल दे और सब कुछ नया और खास बना दे.
उसे किसी चीज का डर नहीं था, बस आराम की जिंदगी थी, और शायद यही आराम धीरे धीरे उसका सबसे बडा डर बन गया था, डर की कही ऐसे ही उसकी पूरी जिंदगी इन्ही ऑफिस के काम तक ही सिमट के न रह जाये.
उस रात भी कुछ अलग नहीं था, देर से office से निकलकर उसने अपनी bike start की और कुछ सोचता हुआ सडक पर निकल पडा, लेकिन मन में अभी भी वही सब चल रहा था, lists, pending tasks, किसी meeting के notes और नए काम का बोझ.
हवा ठंडी थी, सडक खाली और सडक के किनारे का streetlights का क्रम चलता हुआ दिखाई दे रहा था, उसने सोचा, रोज रोज एक ही काम कर के बोर हो गया हु अगर लाइफ में कुछ थ्रिल आ जाये तो मजा आ जाये, अभी वो कुछ दूर ही आ पाया था की तभी जैसे भगवान ने उसकी सुन ली हो, सामने से तेज रोशनी आई, टायरों की चीख सुनाई दी और एक पल में सब कुछ बदल गया, अगले ही पल एक अजीब सा सन्नाटा था, उसके मुँह पर खून का स्वाद था, एक झटके जैसा भारीपन, फिर अँधेरा.
जब आंख खुली तो हवा में मिट्टी और कुछ मीठी सी खुशबू थी, सांसों में नमी और चारों ओर एक अजीब सी आवाज गूंज रही थी, ऐसा कहा जा सकता है की वह जगह कोई आम जगह नहीं थी, ये कोई अस्पताल या रोड नहीं था, बल्कि पेडों की छाँव थी, पर ये पेड जो उसने देखे वे किसी दीवाल पर लगे फोटो के पेड नहीं थे.
पत्तियाँ नीली, बैंगनी और हरे रंग के अजीब से शेड में चमक रही थीं, कुछ पत्तियों पर हल्की सी परत सी लग रही थी जैसे किसी ने उन्हें सुबह की ओस में बहती हुई रोशनी दे दी हो, उनकी छाल पर धूप की परतें चिपकी हुई दिखती थीं और उन पेडों की ऊंचाई ऐसी थी कि वह खुद सोचने लगा कि शायद ये बादलों को छूते होंगे. उसने धीरे धीरे उठने की कोशिश की, शरीर भारी था पर दर्द इतना भी नहीं था जितना एक्सीडेंट के बाद होना चाहिए था, आदत के अनुसार हाथ तुरंत जेब में गया और उसने अपना smartphone निकाला उसने screen को unlock किया, पर screen काली रही, उसने power button दबाया, कुछ नहीं हुआ, वह मन ही मन बुदबुदाया" अरे बैटरी को भी अभी ही खत्म होना था" उसने फोन को जेब में रखा और धीरे से उठ कर चारो तरफ देखने लगा. उसने जैसे ही अपना पहला कदम आगे बढाया उसने महसूस किया की जमीन नरम थी, हर कदम पर जैसे कोई हल्की सी थरथराहट हो रही हो, उसने फिर से अगला कदम आगे बढाया और उसे ऐसा लगा मानो धरती अपनी सांस ले रही हो. चारों ओर छोटे छोटे चमकते जीव थे, जुगनू की तरह पर उससे भी सुन्दर, वे अपने पीछे छोटी छोटी रौशनी की लाइन छोडते हुए हवा में तैर रहे थे और उनके पीछे की चमक ऐसे थी जैसे किसी ने रात के आकाश में छोटे छोटे सितारे छोड दिए हों. दूर कहीं से एक धुन सी आ रही थी जो सिर्फ कानों तक नहीं बल्कि सीने में भी गूंज रही थी, उसकी हड्डियों तक कुछ कंपन पहुँच रहा था, और वह कंपन अजीब तरह का सुकून और भय दोनों दे रहा था.
ये सब देखकर वह अचंभित हुए बिना नहीं रह सका, न्यूटन की किताबें, Einstein के सिद्धांत सब कहीं पीछे छूट गए जैसे कि यहाँ उनकी वैधता समाप्त हो चुकी हो. उसने हवा में देखा और उसी समय एक छोटा सा चमकता गोला उसकी ओर तैरता हुआ आया, अंगूठे जितना गोल, हल्की सी गरमाहट छोडता हुआ, उसकी उंगलियों के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ. उसने उसे हाथ से पकडना चाहा पर वह फिसल गया, जैसे धुआँ हो और हाथ में बस एक हल्की सी गर्मी रह गई.
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है, वह मन ही मन बुदबुदाया" ये सब सच तो नहीं हो सकता, कही मैं सपना तो नहीं देख रहा हु" वो लडखडाते हुए आगे बढा, इस समय उसके साथी सिर्फ वही चमकते जीव थे, उसने जोर से कहा, कोई है? मदद करो! पर उसकी आवाज जंगल की विशालता में गुम हो गई. डर गले में अटक गया, दिल तेजी से धडक रहा था, और वह अकेलापन जो दिल्ली की भीड में कभी महसूस नहीं हुआ था, यहाँ बहुत जोर से महसूस हुआ. उसने अपने आप से कहा, शायद मैं मर गया हूँ, शायद ये कोई दूसरी दुनिया है" पर हर सांस, हर ठंडी हवा के थपेडे ने बताया कि यह सपना नहीं बल्कि हकीकत है. ऊपर आकाश में सूरज जैसा कोई गोला था पर साधारण सूरज नहीं, वह कई रंग बदल रहा था नीला, गुलाबी, सुनहरा और जैसे वह ढल रहा था उसकी रोशनी से पेडों की छाया लम्बी और अजीब रूप ले रही थीं, कभी ये छाया मानो नाच रही हों, कभी मुडकर हवा में घुल रही हों. अँधेरा धीरे धीरे बढ रहा था पर वह अँधेरा डरावना नहीं था, उसमें भी किसी तरह का संगीत छिपा था. वह सोचने लगा कि अगर यह कोई परलोक है तो शायद उसे अपने कर्मों का हिसाब देना होगा, पर उसकी जिंदगी ऐसी भी क्या थी कि उसे कोई बडा लेखा जोखा देना पडे, कभी कभी लगता था कि जैसे उसने केवल काम और meetings में ही अपनी पूरी जिंदगी बिता दी हो.
तभी हवा में से एक आवाज आई, इतनी मुलायम कि जैसे रुई का स्पर्श हो, उस आवाज ने उसके दिल की एक पुरानी बात को झकझोर दिया" किसी को तलाशना, किसी को बचाना, किसी नई चीज को समझना" इसी तरह की बाते जो उसने कभी किताबों में पढी थीं पर कभी महसूस नहीं की थीं. उसने गहरी सांस ली और खुद से कहा, ठीक है अथर्व, शांत हो जा, सोच कि अब आगे क्या करना है" पर सोचने पर भी जितना सोचता उतना ही घबराहट बढती. उसने सोचा कि यदि यह जगह विज्ञान से परे है तो वही चीजें काम कर सकती हैं जो उसने बचपन में सोची थी, जादू, पर शायद जादू का मतलब यहाँ अलग था. उसने प्रयास किया कि अपने मन की हर चीज को तार्किक रूप से देखे पर हर तार्किक जवाब यहाँ टूट कर गिर गया. जैसे ही अँधेरा और गहरा हुआ, कुछ नई आवाजें निकलीं पेडों की सरसराहट के बीच कुछ हल्की सी फुसफुसाहटें जो मानो किसी बातचीत का अंश थीं.
उसने अपने आप को संभाला और आगे चलता गया, हर कदम पर नए तरह के फूल और छोटे पौधे दिखाई दे रहे थे जिनसे रोशनी निकल रही थी, उनके पास पहुँचते ही हवा की गति बदल जाती, पलभर के लिए उसे कुछ समझ आता और फिर मिट जाता. उसकी आँखों में थकान थी पर जिज्ञासा भी उतनी ही तेज थी, वह सोचता कि यह दुनिया कितनी पुरानी है या कितनी नई, और क्या यहाँ के नियम हमारी समझ के मुताबिक ही है या यहाँ सब कुछ अलग है.
धीरे धीरे उसे महसूस हुआ कि अकेलापन थोडी कम हो रहा है, जैसे किसी अनजानी उपस्थिति की मौजूदगी उसके पास है पर दिखती नहीं. दिल में एक अजीब सा हौसला भी आया शायद यह मौका था कुछ सीखने का, कुछ समझने का, और अगर भाग्य ने उसे यहाँ भेजा है तो कोई वजह जरूर होगी. उसी वक्त वह आस पास की एक हल्की रोशनी की ओर खिंचा चला गया और उसने सोचा कि जैसे जैसे रात बढेगी, रहस्य और खुलेंगे. यही सोचकर उसने अपनी थकी साँस में थोडा साहस भरा और आगे चलते चला गया, उसके कदम संगीत की तरह जंगल में गूँज रहे थे, और वह समझ गया कि यह सिर्फ उसकी कहानी की शुरुआत है. यह शुरुआत ऐसी थी जो उसे एक नई दुनिया की भाषा सिखाएगी, नई चुनौतियाँ देगी और शायद उसे बतायेगी कि वह अपने अंदर छुपी चीजों को कैसे पहचान सकता है. साथ ही वो ये भी जानता था कि जब भी वह वापस लौटेगा, वापस वही दिल्ली होगी लेकिन कुछ बदला हुआ मिलेगा, और शायद वही बदलाव इस कहानी का असली मोड होगा. और इस तरह, बिना किसी तैयारी और बिना किसी निश्चय के, अथर्व की नई यात्रा शुरू हुई.