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स्नेहिल नमस्कार मित्रो
हर दिन प्रत्येक के जीवन में एक नई चुनौती आकर खड़ी हो जाती है, हम घबराने लगते हैं।
बदलाव आना बड़ा स्वाभाविक है। कभी हम बड़े आनंद में होते हैं तो कभीअचानक ऐसी आपत्ति आ जाती है कि हम जीवन से ऊबने लगते हैं, घबराने लगते हैं। यह बदलाव जीवन की अटल सच्चाई है। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो इससे बचने का दावा कर सके। अपनी परिस्थितियों के लिए हम लोग अपने बॉस को, जीवनसाथी को, पड़ौसी को, राजनीति को, हालात को या अपनी किस्मत को दोष दे देते हैं। यानी कभी भी अपनी मनोदशा को सुधारने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं लेना या महसूस करना है बल्कि हर किसी को दोष देने मेंं है बस। जबकि होना यह चाहिए कि हमें अपने को प्राप्त आशीर्वाद के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। ह्रदय में ईश्वर के लिए, अपने बड़ो के लिए कृतज्ञता होनी चाहिए। और अपनी जिंदगी कैसे जीनी है इसका फैसला स्वयं करना चाहिए। हम रोते हुए, बहाने बनाते हुए जीवन गुजारना चाहते हैं या हम खुश रहकर ओर स्वयं के प्रेरणास्रोत होकर जीवन जीना चाहते हैं ये चयन हमारा है। इसलिए दोषारोपण करने की जगह आभार प्रकट करें जो हमारे पास है उसके लिए और जीवन मे आगे बढ़ने का प्रयास करें।
बदलाव की प्रक्रिया कभी भी आसान नहीं रहती है। इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है, कठिन परिश्रम करना पड़ता है। लेकिन यह संघर्ष हमें मजबूत बनाता है। कभी कभी छोटे से बदलाव से भी जीवन में बड़े परिवर्तन आ सकते हैं। यह बदलाव एक चमत्कार है। बदलाव की शक्ति को समझने के लिए हमें नदी का उदाहरण देखना चाहिए। नदी लगातार बहती रहती है, नए रास्ते बनाती है, पहाड़ों को काटती है और अंत में समुद्र में मिल जाती है। अगर नदी रुक जाए तो वह दलदल बन जाएगी। इसी तरह यदि हम बदलाव से डरकर अपनी पुरानी आदतों में जकड़े रहे, तो हमारा जीवन ठहर जाएगा।
अतः चरैवेति चरैवेति!
जीवन चलने का नाम, चलते रहें सुबहो शाम!!तो हम सब चलते रहें और अपने लक्ष्य को प्राप्त करते रहें।
सभी मित्रों को स्नेहिल शुभकामनाएं!
आप सबकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती