Pratha: Ek Zindagi, kai Imtahaan - 2 in Hindi Love Stories by shrutika dhole books and stories PDF | प्रथा : एक ज़िन्दगी, कई इम्तेहान - 2

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प्रथा : एक ज़िन्दगी, कई इम्तेहान - 2

छोटी सी जॉब, बड़े सपने

10वीं की परीक्षा पास करने के बाद, प्रथा ने कॉमर्स स्ट्रीम चुना। 11वीं में उसने अपनी मेहनत और लगन के साथ स्कूल के वार्षिक कॉमर्स प्रतियोगिता में टॉप परफॉर्मर का पुरस्कार जीता। यह उसके लिए एक छोटी सी खुशी और अपने प्रयास का इनाम था।


लेकिन 12वीं के साल में, घर का माहौल और अनचाही चुनौतियों ने उसके लिए रास्ता मुश्किल बना दिया। उसके पिता, जो शराब पीने के आदी थे, एक गंभीर बीमारी से गुजर रहे थे। शराब और बीमारी दोनों ने उनकी सेहत बिगाड़ दी थी, और प्रथा को रोज़ उनका ख्याल रखना पड़ता था।

इन सभी परेशानियो से जुझते हुए उसने जैसे तैसे 12 की board परीक्षा भी उत्तिर्न कर ली उसके दोस्तो और शिक्षकों की सालाह से उसने B.com मे प्रवेश कर लिया I पहले साल उसने खुप मेहनत की और अच्छे अंको से उत्तिर्न हुई लेकिन B.Com के दूसरे साल के परीक्षा के समय, प्रथा के पिता का निधन हो गया। 

घर में पहले से ही बड़े पापा और बड़ी मम्मी का दबाव और टिप्पणियाँ — “पढ़ाई का क्या फायदा? बस घर का खर्चा ही बढ़ेगा”—उसके लिए और ज्यादा तनाव बन गई। इस दबाव और दुःख के बीच प्रथा परीक्षा फीस नहीं भर पाई और अपनी परीक्षा पूरी नहीं कर पाई।

एक शाम, माँ से बात करते हुए प्रथा ने कहा,
“माँ, मुझे लगता है कि अब सिर्फ़ भैया के और आपके भरोसे घर नही चलेगा अब मुझे भी कोई अच्छी सी job देखनी चाहिए ।”
माँ ने थकान भरी आवाज़ में कहा,
“बेटी, मुझे पता है… तुमने हमेशा सबका ख्याल रखा। अब तुम्हारे लिए सोचना भी जरूरी है।”
प्रथा ने धीरे से कहा, माँ मेरी सहेली के नज़र मे एक job है hospital मे कल interview के लिये बुलाया है अगर आपकी हा हो तो मैं चली जाऊ I

माँ ने बीना कुछ कहे बस हा मे सिर हिला दीया I अगले दिन प्रथा जल्दी से तैयार हुई और interview को चली गई प्रथा ने interview पास भी कर लिया Iफिर प्रथा ने hospital की canteen में नौकरी शुरू की। तनख्वाह भले ही बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन उसके लिए यह स्वतंत्रता और अपने सपनों की दिशा का पहला कदम था।

सुबह का रूटीन अब बदल चुका था। अब वह अपने लिए नाश्ता तैयार करती, घर के छोटे-मोटे काम निपटाती और अस्पताल के लिए निकल जाती। वहां busy canteen में orders serve करना उसके लिए चुनौती था, लेकिन उसके अंदर सपनों के लिए जुनून भी था।

प्रथा रोज़ की तरह जल्दी उठकर, माँ के हाथ की बनी चार रोटियाँ और थोड़ी सब्ज़ी डब्बे में लेकर अस्पताल के कैंटीन पहुँची थी। अभी-अभी उसकी नौकरी को दस दिन हुए थे।

लोकेशन: श्री समर्थ अस्पताल, नागपुर।
समय: सुबह के 8:15 बजे।

उस दिन, अर्जुन, जो अस्पताल के फार्मेसी डिपार्टमेंट में काम करता था, अपनी ड्यूटी शुरू करने से पहले कैंटीन से चाय लेने आया। वह middle-class परिवार से था, दिखने में average, लेकिन बातें करने में गहरी और दिल से सच्चा।
अर्जुन की नज़र पहली बार प्रथा पर पड़ी। उसने हँसते हुए पूछा,
“एक चाय मिलेगी? कम चीनी वाली।”
प्रथा ने बिना मुस्कुराए जवाब दिया,
“अभी बनी नहीं है। 5 मिनट रुकना पड़ेगा।”
फिर वह मुड़ी और अंदर चली गई।
अर्जुन को यह थोड़ा अजीब लगा।
“Naya staff है शायद,” उसने मन ही मन सोचा।

अर्जुन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
““ठीक है… मैं वहीं इंतजार करता हूँ।” वैस मैं Arjun yaadav pharmacy department मे हूँ। तुम नई हो यहाँ?”

प्रथा थोड़ी हिचकिचाई, फिर मुस्कुराई और बोली,
“हाँ… मैं Pratha Bhosle । अभी-अभी join किया है।”

अर्जुन ने सिर हिलाकर कहा,
“ठीक है, Pratha। मुझे उम्मीद है कि तुम यहाँ अच्छा काम करोगी। अगर किसी चीज़ मे मदद चाहिए हो तो मुझे बोल सक्ति हो।”

प्रथा ने धीरे से कहा,
“Thank you, Arjun

धीरे-धीरे, जैसे-जैसे दिन बीतते गए, अर्जुन और प्रथा के बीच छोटी-छोटी बातचीत होने लगी। कभी वह उससे चाय के लिए पूछता, कभी काम के दौरान मदद करता। अर्जुन शांति और maturity वाला था, ज़्यादा बोलता नहीं, पर हर बार जब वह प्रथा की मदद करता, वह भरोसा और सम्मान जताता।

प्रथा भी धीरे-धीरे उसकी सहजता और समझदारी को notice करने लगी।
“वो थोड़ा शांत है, लेकिन काम में भरोसेमंद है,” उसने अपने मन में सोचा।
और इसी तरह, दोनों के बीच हल्की दोस्ती और समझदारी की शुरूआत होने लगी।

घर का pressure, माँ की चिंता और पिता की याद, इन सबके बीच प्रथा अब अपने छोटे-छोटे कदमों के साथ अपने सपनों की ओर बढ़ रही थी। और कहीं न कहीं, अर्जुन की मौजूदगी उस रास्ते को थोड़ा आसान और हल्का बना रही थी।