Jindgi ek Safar - 2 in Hindi Thriller by niranjan barot books and stories PDF | जिंदगी एक सफऱ - 2

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जिंदगी एक सफऱ - 2

2

ज़िंदगी एक सफ़र, 

कॉफी शॉप से निकलने के बाद अभिमन्यु अपनी कार में बैठा, लेकिन उसका मन आज अपनी 'सह्याद्री फाइनान्स कंपनी के नए प्रोजेक्ट्स के बजाय अतीत में ही अटक गया था। उसने कार शुरू की और धीरे-धीरे चलाने लगा। उसके चेहरे पर एक अनोखी मुस्कान थी। उसने झंखना का नंबर अपने फोन में सेव किया। 21 साल के लंबे अंतराल के बाद, झंखना से फिर मिलने की खुशी उसके दिल को सुकून दे रही थी।
दूसरी ओर, झंखना भी घर पहुंच चुकी थी। उसका पति अभी नहीं आया था। वह सोफे पर बैठी और अपने विचारों में खो गई। अभिमन्यु से फिर मिलने से उसके जीवन में भी एक खुशी की लहर दौड़ गई थी। उसने अपना फोन खोला और अभिमन्यु का नंबर देखा।
मन के अंदर कई विचार चल रहे थे। 'फोन करूं? या न करूं? क्या बात करूंगी? इतने सालों बाद क्या कहूंगी?' दोनों के मन में एक जैसे सवाल घूम रहे थे। आखिरकार, हिम्मत करके अभिमन्यु ने फोन लगाया। फोन बजा और झंखना ने पहली ही रिंग में उठा लिया।
"हैलो... झंखना," अभिमन्यु की आवाज थोड़ी कांप रही थी।
"हां, अभि... मुझे पता था कि तुम्हारा फोन आएगा," झंखना ने धीमी आवाज में कहा।
दोनों कुछ देर चुप रहे। यह चुप्पी कोई अनजानी चुप्पी नहीं थी, बल्कि सालों पुरानी दोस्ती की भावनाओं से भरी थी।
"कैसी है? घर पहुंच गई?" अभिमन्यु ने पूछा।
"हां... बस अभी-अभी। तुम पहुंच गए?" झंखना ने जवाब दिया।
"हां... बस अभी-अभी," अभिमन्यु ने कहा। "मुझे तुझसे फिर मिलना है। इतने सालों की बातें अधूरी रह गई हैं।"
झंखना भी उत्सुक थी। "मुझे भी मिलना है। कल मिलेंगे?"
"हां... जरूर," अभिमन्यु ने कहा। "कहां और कब?"
दोनों ने अगले दिन शाम को फिर मिलने का तय किया। फोन पर बात करते-करते उन्हें कॉलेज के दिन याद आ गए।
"याद है? तुम हमेशा कहते थे कि मुझे बड़ी कंपनी खोलनी है और मैं तुम्हारे बिजनेस के लिए लीगल एडवाइस दूंगी," झंखना ने हंसते हुए कहा।
अभिमन्यु हंस पड़ा। "हां... याद है। और तूने कहा था कि तू इंग्लिश प्रोफेसर बनेगी।"
"और देख, आज तुम 'सह्याद्री फाइनांस' के मालिक हो और मैं लीगल हेड हूं," झंखना ने गर्व के साथ कहा।
बातें करते-करते रात हो गई। दोनों को लगा कि यह मुलाकात महज एक संयोग नहीं थी, बल्कि नियति थी। फोन रखने के बाद भी दोनों के मन में कई विचार चल रहे थे। अभिमन्यु ने सोचा, 'इतने सालों बाद भी भावनाएं उतनी ही ताजा हैं।' और झंखना ने सोचा, 'जीवन में जो कमी थी, वह आज पूरी होती नजर आ रही है।'
अगले दिन शाम को दोनों एक गार्डन में मिले। शांत और खुली जगह में उन्होंने पुरानी बातें और नए जीवन के बारे में बातें शुरू कीं।
खुले बगीचे में एक-दूसरे की मर्यादा बनाए रखते हुए बैठे थे... बगीचे के आसपास रहवासियों की भीड़ थी... समय बीत रहा था... लेकिन अभिमन्यु और झंखना का समय न केवल स्थिर था, बल्कि अतीत में जा रहा था..
अभिमन्यु आज फिर से कॉलेज वाला अभिमन्यु बन गया था वो बस एक ट्स झंखना की और देखे ही जा रहा था उस का मन आज जैसे कह रहा हो समय बस यही पर ठहर जाए और... मै बस तुम्हे देखता ही रहु... अचानक से झंखना ने अभिमन्यु को जैसे नींद से जगाया, अरे अभी कहा गुम हो गए? मुझे घर भी पहुंचना है, और अब तो समय निकालके मिलते रहेंगे, मै कल भी फ्री हु अगर तुम चाहो तो कल भी मिलेंगे... लेकिन अभी तो निकलना पड़ेगा, अभिमन्यु कुछ बोला नहीं सिर्फ सिर हिलाकर ok बोल के दोनों कल मिलेंगे वादे के साथ घर को निकल पड़े...

क्रमशः...