neta, amarta aur khbar in Hindi Comedy stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | नेता, अमरता और खबर

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नेता, अमरता और खबर

"नेता, अमरता और खबर"

पुरानी चाय की दुकान। बाहर टूटी-फूटी लकड़ी की बेंच, ऊपर धूल भरा पंखा। चाय वाले के रेडियो पर धीमी आवाज़ में खबरें चल रही हैं – “माननीय नेता जी ने कहा, यह फैसला ऐतिहासिक है…”

मैं और मजनू भोपाली कुल्हड़ चाय लेकर बैठे हैं। सामने ताश खेलने वाले चार पियक्कड़ और बगल में पान की पीक से सजी दीवार। राजनीति पर चर्चा का यही सही मंच है।

मैं: मजनू मियां, आजकल अख़बार पलटकर देखो तो हर जगह सिर्फ नेताओं के ही चेहरे। मुझे तो ऐसा लगता है जैसे ये लोग भगवान से भी ज्यादा नेता “अमर” हो रहें हैं।

मजनू: भाई साहब, आपने बिल्कुल सही पकड़ा। ये राजनीति कोई धर्म से कम नहीं। फर्क बस इतना है कि यहाँ पूजा वोट की होती है और प्रसाद कुर्सी का मिलता है।
और रही बात “अमरता” की, तो अब वो अमरता गीता या कुरान को पढ़ने से नहीं मिलती, पोस्टर, बैनर और न्यूज चैनलों की बहस से मिलती है।

मैं: सही कहा। इसलिए तो लोग कहते हैं – “जो नेता बना वो अमर हो गया, जो अमर न हुआ वो खबर हो गया।”

मजनू (हँसते हुए): बिल्कुल! राजनीति में या तो आप कुर्सी पर बैठे रहो और इतिहास का हिस्सा बनो, या फिर चुनाव हारकर अख़बार की दो लाइन की खबर में सिमट जाओ।

मैं: लेकिन मजनू मियां, नेता अमर कैसे होता है?

मजनू: बहुत आसान है। नेता बनने के बाद आदमी मरता तो है, लेकिन मरकर भी नहीं मरता। गली-गली उसकी मूर्तियाँ, सड़क-सड़क उसके नाम। फिर हर साल उसकी जयंती और पुण्यतिथि पर फूल चढ़ते हैं। नेता चाहे ज़िंदगी में सड़क बनवाए या न बनवाए, मरने के बाद खुद सड़क पर स्टेचू बन कर खड़ा हो जाता है।

मैं (हँसते हुए): मतलब नेता मरकर भी जनता के पैरों तले रहता है!

मजनू: अरे यही तो अमरत्व है। और फिर मीडिया का आशीर्वाद मिल जाए तो समझो “नेता जी का जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित रहा।” अब चाहे राष्ट्र ने इनके कर्मो से कुछ पाया नहीं, ये अलग बात है।

मैं: और जो अमर न हो पाया, उसका क्या?

मजनू: उसका हश्र बड़ा बुरा होता है। बेचारा पांच साल जनता की खटिया खींचता है, भाषण देता है – “हम आपके गली-मुहल्ले को सिंगापुर बना देंगे।”
पर चुनाव हारते ही अगले दिन अख़बार में एक लाइन – “फलाँ प्रत्याशी की जमानत ज़ब्त।”

मैं: और चैनल वाले उस पर हँसते हैं – “देखिए जनता ने कर दिया इन्हें बाहर।”

मजनू: हाँ, और जनता हँसकर भूल भी जाती है। हारने वाला नेता अगले पाँच साल किसी शादी-ब्याह में सिर्फ “खबर” बनकर ही चर्चा में आता है – “अरे यही है वो, जिसकी जमानत जब्त हो गई थी।”

मैं: लेकिन मजनू मियां, नेता बनने की असली योग्यता क्या है?

मजनू: योग्यता? अरे भाई, डिग्री-विग्री की यहाँ कोई जरूरत नहीं। असली डिग्री है – “बोलने की कला” और “वादे करने की ताकत।”अगर आप बिना हिचक आँखों में आँसू लाकर कह सकें – “गरीब का बेटा हूँ, जनता की सेवा ही धर्म है” – तो समझो आधी लड़ाई जीत ली।

मैं: और बाकी आधी?

मजनू: बाकी आधी में बस विरोधियों को गाली दो। अगर विरोधी कहे – “ये काम गलत है” तो आप कहो – “देशद्रोही है।” यही राजनीति की पीएचडी है।

मैं: लेकिन जनता कब तक इन वादों में फँसती रहेगी?

मजनू: जनता? अरे साहब, जनता ही तो असली अमर है। पाँच साल लाइन में पानी के लिए खड़ी रहेगी, बिजली के बिल भर-भरकर रोएगी, लेकिन चुनाव आते ही नेताओं के भाषण सुनकर सब भूल कर ताली बजाऐगी।

मैं: यानी जनता हर बार वही गलती दोहराती है?

मजनू: बिल्कुल। जनता का काम है वोट डालना और नेता के पिछले जुमलों को भूल जाना। जैसे किसी फिल्म का टिकट खरीदकर इंटरवल के बाद नींद लेना यही जनता का काम हैं।

मैं: आपने भोपाल में कभी ऐसे अमर नेताओं को देखा है?

मजनू: अरे भाई, भोपाल ही क्यों, पूरे हिंदुस्तान में भरे पड़े हैं। यहाँ एक नेता जी थे, जिन्हें लोग कहते थे – “चलती फिरती प्रतिज्ञा-पत्र।” हर चुनाव में कहते – “हर गली में सीवर डाल दूँगा।”बीस साल तक वही वादा दोहराते रहे। जनता भी सुनती रही। अब वो मर गए, मगर उनकी प्रतिमा शहर के चौक पर खड़ी है। वहाँ सीवर नहीं है, मगर नेता जी की मूर्ति हैं और जनता आज भी जन्मदिन और मरमदिन पर हार फुल चढ़ती हैं।

मैं (हँसते हुए): मतलब सीवर का वादा अमर हुआ या नेता जी?

मजनू: दोनों! फर्क बस इतना है कि सीवर अभी भी जमीन के नीचे लापता है और नेता जी जमीन के ऊपर पत्थर बनकर खड़े हैं।

मैं: पर मजनू मियां, कभी कोई नेता हारकर भी शांत बैठ गया हो?

मजनू: बहुत कम और कभी कभी, लेकिन वो नेता फिर “राजनीतिक मृतक” कहलाता है। सही मायनों में नेता वही है जो हारकर भी रोज बयान देता रहे – “अगर मुझे टिकट मिलता तो आज शहर की तस्वीर अलग होती।”बिना बयानबाजी के नेता की राजनीति वैसे ही खत्म हो जाती है जैसे बिना ऑक्सीजन के इंसान।

मैं: तो बयान बाजी ही नेताओं की ऑक्सीजन है।

मजनू: बिल्कुल। और यही बयान नेता को अमरता की राह पर रखता है।

मैं: लेकिन मजनू मियां, जनता कहाँ खड़ी है इस खेल में?

मजनू: जनता? अरे भाई, जनता सबसे बड़ी तमाशबीन है। नेता खेल रहे हैं, जनता तालियाँ बजा रही है।नेता हारता है तो जनता कहती है – “अरे इसकी जमानत जब्त हो गई।”नेता जीतता है तो जनता कहती है – “देखो कितना बड़ा आदमी हो गया।”
पर असलियत ये है कि जनता हर बार मूर्ख बन जाती है अपने कर्मो के कारण।

मैं: यानी जनता स्थायी हारने वाली है?

मजनू: हाँ, जनता ही वो खिलाड़ी है जो मैदान में उतरती ही नहीं, इस खेल में तालियाँ बजाती है और हर बार ठगी जाती है।

मैं: और इस पूरे खेल में मीडिया की क्या भूमिका है?

मजनू: मीडिया तो सबसे बड़ा पुजारी है। वही नेता को अमर बनाता है और वही हारने वाले को खबर बनाता है। नेता जीत जाए तो हेडलाइन – “देश ने उन्हें चुना, जनता का आशीर्वाद।”और हार जाए तो खबर – “नेता जी अपने ही क्षेत्र में धूल चाट गए।”

मैं: मतलब मीडिया ही असली अमृत है।

मजनू: हाँ, मीडिया का कैमरा जिधर घूम जाए, वही अमर।

मैं: तो मजनू मियां, आने वाले कल का भविष्य कैसा होगा?

मजनू: भविष्य बहुत रोशन है… नेताओं के लिए। अब तो तकनीक भी आ गई है। पहले लोग पोस्टर से अमर होते थे, अब इंस्टाग्राम रील से अमर होंगे।कभी सोचो, 2050 में बच्चे इतिहास पढ़ेंगे – “इस नेता जी ने 20 लाख लाइक्स जुटाए थे, इसलिए वो अमर हो गए।”

मैं (हँसते हुए): यानी अब अमरता वोट से नहीं, लाइक्स से तय होगी।

मजनू: हाँ, और जो लाइक्स न जुटा पाया, वो बस “खबर” बन जाएगा – “नेता जी की रील वायरल न हो पाई।”

चाय खत्म हो चुकी थी, दुकान वाला झाड़ू मारते हुए कहता है-“साहब, राजनीति की बातें छोड़ो, पैसे दो और कुर्सी खाली करो।”

हम दोनों हँसते हैं। और उठ कर खडे हो जाते हैं

मैं: मजनू मियां, अब तो साफ हो गया –
राजनीति में दो ही मंज़िल हैं। या तो अमर हो जाओ, या खबर बन जाओ।

मजनू: और तीसरी मंज़िल जनता की है – हमेशा बेवकूफ बने रहो क्योंकि नेता चाहे अमर हो या खबर, जनता की हालत कभी नहीं बदलती।

सार

राजनीति में अमरता का मतलब है – कुर्सी, पोस्टर, बयानबाजी और मीडिया की कृपा।
और खबर का मतलब है – हारने वाले की छोटी सी हेडलाइन, जो अगले दिन कोई पढ़ता भी नहीं। इस पूरे खेल में जनता हर बार वही करती है – वोट डालती है और भूल जाती है।

समाप्त 

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