love in Hindi Love Stories by ajay books and stories PDF | आख़िरी ख़त

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आख़िरी ख़त

रात की ठंडी हवा खिड़की से भीतर आ रही थी। दीपक ने अपनी पुरानी डायरी खोली, जिसके पन्नों में अनगिनत अधूरी बातें, अधूरे ख़्वाब और दबे हुए आँसू छिपे थे। आज उसने तय किया था कि वह सब कुछ लिख देगा, जो कभी कह नहीं पाया।

उसका कमरा किताबों और पुराने पत्रों से भरा हुआ था। एक मेज़ पर धूल से ढका हुआ फोटो-फ़्रेम रखा था, जिसमें मुस्कुराती हुई आर्या थी। वही आर्या, जिसकी हँसी से दीपक की ज़िंदगी रोशन हो जाती थी। लेकिन वक़्त ने दोनों को अलग कर दिया था।

दीपक ने काग़ज़ पर कलम चलाई:
"प्रिय आर्या, शायद ये मेरा आख़िरी ख़त हो। मैंने हमेशा सोचा था कि तुझसे कहूँगा, पर हिम्मत कभी नहीं जुटा पाया। तू मेरी दुनिया थी, पर मैं कभी तुझ तक पहुँच न सका।"

उसके हाथ काँप रहे थे। यादें लगातार दिल पर चोट कर रही थीं। कॉलेज के दिनों में जब दोनों पहली बार मिले थे, दीपक की किताबें गिर गई थीं और आर्या ने मुस्कुराकर उन्हें उठाने में मदद की थी। उस पल से दीपक का दिल सिर्फ़ उसके नाम का हो गया।

दिन गुज़रते गए, दोस्ती गहरी होती गई, लेकिन दिल की बात कहने की हिम्मत दीपक में कभी न आई। वह सोचता रहा—"कभी तो कहूँगा," लेकिन हर बार डर उसे रोक लेता।

आख़िरकार, पढ़ाई ख़त्म हुई और ज़िंदगी ने दोनों को अलग राहों पर भेज दिया। आर्या विदेश चली गई, और दीपक यहीं रह गया। मोबाइल पर मैसेज, कभी–कभी कॉल, बस यही सहारा था। फिर एक दिन, आर्या ने बताया कि उसकी शादी तय हो चुकी है। दीपक के दिल में जैसे किसी ने खंजर घोंप दिया। उसने मुस्कुराकर बधाई दी, लेकिन उस रात उसकी आँखों से नींद गायब हो गई।

वक़्त के साथ आर्या की ज़िंदगी अपनी राह पर चल पड़ी। दीपक ने भी अपने काम में ख़ुद को डुबो दिया, पर उसके अंदर का खालीपन कभी नहीं भरा। वह हर रात उसी की याद में लिखता, रोता और फिर ख़ुद को संभालता।

आज बरसों बाद, उसने तय किया था कि सब कुछ आख़िरी बार लिखेगा।
"आर्या, मैंने तुझे कभी खोया नहीं, क्योंकि तुझे कभी पाया ही नहीं। तू मेरी दुआओं में है, मेरी धड़कनों में है। अगर ज़िंदगी तुझे खुश रखे, तो मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"

उसने कलम रख दी और खिड़की से बाहर देखा। रात का आकाश तारों से भरा हुआ था। उसे लगा जैसे हर तारा उसी से कह रहा हो—"तूने मोहब्बत को जिया है, यही तेरी जीत है।"

दीपक ने डायरी बंद की, और दिल में हल्की-सी मुस्कान आ गई। उसे समझ आ गया कि प्यार पाने का नाम नहीं, बल्कि निभाने का नाम है।

उसका आख़िरी ख़त कभी आर्या तक नहीं पहुँचेगा, लेकिन उस ख़त में उसकी पूरी मोहब्बत कैद थी। और शायद यही उसकी सबसे बड़ी राहत थी।
रात की ठंडी हवा खिड़की से भीतर आ रही थी। दीपक ने अपनी पुरानी डायरी खोली, जिसके पन्नों में अनगिनत अधूरी बातें, अधूरे ख़्वाब और दबे हुए आँसू छिपे थे। आज उसने तय किया था कि वह सब कुछ लिख देगा, जो कभी कह नहीं पाया।

उसका कमरा किताबों और पुराने पत्रों से भरा हुआ था। एक मेज़ पर धूल से ढका हुआ फोटो-फ़्रेम रखा था, जिसमें मुस्कुराती हुई आर्या थी। वही आर्या, जिसकी हँसी से दीपक की ज़िंदगी रोशन हो जाती थी। लेकिन वक़्त ने दोनों को अलग कर दिया था।

दीपक ने काग़ज़ पर कलम चलाई:
"प्रिय आर्या, शायद ये मेरा आख़िरी ख़त हो। मैंने हमेशा सोचा था कि तुझसे कहूँगा, पर हिम्मत कभी नहीं जुटा पाया। तू मेरी दुनिया थी, पर मैं कभी तुझ तक पहुँच न सका।"

उसके हाथ काँप रहे थे। यादें लगातार दिल पर चोट कर रही थीं। कॉलेज के दिनों में जब दोनों पहली बार मिले थे, दीपक की किताबें गिर गई थीं और आर्या ने मुस्कुराकर उन्हें उठाने में मदद की थी। उस पल से दीपक का दिल सिर्फ़ उसके नाम का हो गया।

दिन गुज़रते गए, दोस्ती गहरी होती गई, लेकिन दिल की बात कहने की हिम्मत दीपक में कभी न आई। वह सोचता रहा—"कभी तो कहूँगा," लेकिन हर बार डर उसे रोक लेता।

आख़िरकार, पढ़ाई ख़त्म हुई और ज़िंदगी ने दोनों को अलग राहों पर भेज दिया। आर्या विदेश चली गई, और दीपक यहीं रह गया। मोबाइल पर मैसेज, कभी–कभी कॉल, बस यही सहारा था। फिर एक दिन, आर्या ने बताया कि उसकी शादी तय हो चुकी है। दीपक के दिल में जैसे किसी ने खंजर घोंप दिया। उसने मुस्कुराकर बधाई दी, लेकिन उस रात उसकी आँखों से नींद गायब हो गई।

वक़्त के साथ आर्या की ज़िंदगी अपनी राह पर चल पड़ी। दीपक ने भी अपने काम में ख़ुद को डुबो दिया, पर उसके अंदर का खालीपन कभी नहीं भरा। वह हर रात उसी की याद में लिखता, रोता और फिर ख़ुद को संभालता।

आज बरसों बाद, उसने तय किया था कि सब कुछ आख़िरी बार लिखेगा।
"आर्या, मैंने तुझे कभी खोया नहीं, क्योंकि तुझे कभी पाया ही नहीं। तू मेरी दुआओं में है, मेरी धड़कनों में है। अगर ज़िंदगी तुझे खुश रखे, तो मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"

उसने कलम रख दी और खिड़की से बाहर देखा। रात का आकाश तारों से भरा हुआ था। उसे लगा जैसे हर तारा उसी से कह रहा हो—"तूने मोहब्बत को जिया है, यही तेरी जीत है।"

लेकिन इस बार दीपक ने एक और क़दम उठाया। उसने डायरी को लिफ़ाफ़े में रखा और आर्या का पुराना पता ढूँढ निकाला। उसने तय किया कि चाहे वो ख़त पहुँचे या न पहुँचे, वह अब इसे दुनिया से छुपाकर नहीं रखेगा।

सुबह होते ही वह डाकघर गया। लिफ़ाफ़ा हाथ में काँप रहा था, जैसे आख़िरी उम्मीद उसमें कैद हो। उसने टिकट लगाया और ख़त डाल दिया। उस पल उसे ऐसा लगा जैसे दिल से एक भारी बोझ उतर गया हो।

वापस लौटते वक़्त, वह पहली बार हल्का महसूस कर रहा था। उसे एहसास हुआ कि सच्चा प्यार पाने में नहीं, बल्कि अपने दिल की सच्चाई को जीने में है। चाहे आर्या कभी पढ़े या न पढ़े, अब उसकी मोहब्बत अमर हो चुकी थी।

उस रात जब दीपक सोने गया, उसने आसमान की ओर देखा और मुस्कुराया। उसके दिल में शांति थी, जैसे उसने खुद से किया वादा पूरा कर दिया हो।

"कभी–कभी ख़त मंज़िल तक पहुँचते नहीं, लेकिन मोहब्बत हमेशा दिल तक पहुँच जाती है।"