🥀अनाथ का दिल🥀 अध्याय 1
प्रेम का जन्म -भाग 02
(पहली झलक, पहली धड़कन)
__________________________________________________________________________________________ रात का साया धीरे-धीरे उतर रहा था। दिल्ली विश्वविद्यालय का विशाल प्रांगण रोशनी की लड़ियों से जगमगा उठा था। परिसर की हवा में युवाओं का उत्साह, हँसी की गूँज और भविष्य के सपनों की चमक एक साथ तैर रही थी। हर तरफ रंग-बिरंगे पोस्टर लटक रहे थे — “सांस्कृतिक संध्या 20XX”। मंच पर तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं, और दर्शक दीर्घा में छात्र-छात्राएँ अपनी-अपनी जगह घेरने लगे थे।वादल भीड़ के बीच से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसने सादी सफ़ेद शर्ट और हल्की नीली जींस पहनी थी, बालों को सलीके से सँवारने की बजाय जैसे हल्की हवा ने उन्हें अस्त-व्यस्त छोड़ दिया हो। वह दिखने में साधारण था, पर उसकी आँखों में गहरी चमक थी ।— मानो किसी अनकहे गीत की धुन उनमें छिपी हो।आज वह अपने जीवन के नए मोड़ पर खड़ा था। मथुरा के अनाथालय में पले इस युवक के लिए यह क्षण अनमोल था। उसने मन ही मन सोचा —। “यह मंच मेरे लिए केवल गाने का अवसर नहीं, बल्कि जीवन से संवाद करने का जरिया है। आज मेरी आवाज़ सुनी जाएगी, चाहे कोई ताली बजाए या न बजाए… मैं अपना गीत संसार के हवाले करूँगा।” मंच की हलचलपीछे से आयोजक की आवाज़ गूँजी —“सभी प्रतिभागी ध्यान दें, पाँच मिनट बाद कार्यक्रम शुरू होगा। कृपया अपने-अपने स्थान पर रहें।”कुछ छात्र हँसते-गुनगुनाते बैकस्टेज की ओर भागे। कोई तबले की थाप मिलाने की कोशिश कर रहा था, कोई गिटार के तार कस रहा था। हवा में हल्की-सी घबराहट और रोमांच का मिश्रण तैर रहा था।वादल ने अपनी डायरी खोली। उसमें उसके हाथ से लिखे कुछ गीत थे। उसने पन्नों पर उँगलियाँ फेरीं और गहरी साँस ली।“शायद… यही मौका है अपनी पहचान बनाने का।” 🌹 वर्षा का प्रवेशउसी समय, मुख्य अतिथियों के लिए सजाई गई पहली पंक्ति में एक कार आकर रुकी। उसमें से उतरी एक युवती, जिसने हल्के गुलाबी रंग की चुन्नट वाली ड्रेस पहनी थी। उसकी चाल में संकोच और आँखों में उत्सुकता थी। यह थी — वर्षा।उसके पीछे उसके पिता, दिल्ली के मशहूर उद्योगपति, और माता भी थे। चारों तरफ कैमरों की चमक पड़ी, पर वर्षा उस भीड़ में खोई नहीं। उसकी दृष्टि मंच पर जमी रही — मानो किसी अनदेखे आकर्षण की तलाश कर रही हो। पहली झलकमंच का पर्दा उठा, उद्घाटन भाषण के बाद संचालक ने घोषणा की —। “अब प्रस्तुत कर रहे हैं — एक विशेष प्रतिभा। मथुरा से आए हुए कवि और गायक, वादल।”कालिज के उस हाॅल में सभी की निगाहें मंच पर टिक गईं।वादल ने धीरे से माइक पकड़ा। कुछ क्षणों तक चुप्पी रही। फिर उसने आँखें बंद कीं और अपनी आवाज़ में वही गहराई उतारी, जो उसके दिल में सदियों से जमा थी।उसके शब्द थे — "जीवन की पीड़ा और उम्मीद का संगम।" आवाज़ में ऐसा दर्द था जो किसी भी दिल को पिघला दे। दर्शकों में खामोशी छा गई। सब जैसे मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगे।वर्षा की आँखें फैल गईं। उसके मन में सवाल उठा —“यह लड़का कौन है? इसकी आवाज़ क्यों मेरे दिल को यूँ छू रही है?”उसके पिता, जो आमतौर पर व्यावसायिक गणना में ही खोए रहते थे, भी कुछ क्षणों के लिए ठहर गए। आँखों की मुलाक़ातगीत समाप्त होते ही सभागार तालियों की गडगड़ाहट से गूंज उठा। वादल ने झुककर सभी का अभिवादन किया। उसकी नजर अनायास दर्शकों की दीर्घा में वर्षा पर जाकर ठहर गई।वर्षा और वादल की आँखें कुछ क्षणों के लिए टकराईं।ना कोई शब्द, ना कोई परिचय — बस आँखों की खामोशी में जैसे हजारों बातें छिपी थीं।वादल के मन ने कहा —“क्या यह वही है… जिसकी तलाश मुझे बरसों से थी?”वर्षा के दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने नज़रें झुका लीं, पर मन में कोई अनजाना कंपन गूँज उठा। गरज की झलकभीड़ के बीच से एक और निगाह उस दृश्य को देख रही थी ।वह था — गरज।वह वर्षा का पुराना क्लासफेलो था। सम्पन्न परिवार का बिगड़ा बेटा। उसकी आँखों में जलन की लपटें थीं।वह मन ही मन बुदबुदाया —। “यह अनाथ लड़का ? मंच पर नाच-गा कर हीरो बनेगा और वर्षा की नजरें उस पर ठहरेंगी ? नहीं… यह मैं होने नहीं दूँगा।”उसने होंठ भींचे और अपने कदम पीछे हटा लिए। पर उसकी छाया जैसे पहले ही इस कहानी में प्रवेश कर चुकी थी। समापन की घड़ीकार्यक्रम खत्म होने के बाद छात्र-छात्राएँ वादल के पास आकर बधाई देने लगे। आयोजक ने गर्व से कहा —“आज की शाम तुम्हारे बिना अधूरी रहती।”उसी क्षण वर्षा के पिता आगे आए। उन्होंने वादल का हाथ थामा और मुस्कराते हुए कहा —। “युवक, तुम्हारी आवाज़ दिल को छू गई,अगर तुम बुरा न मानो, तो हमारे साथ डिनर पर चलो।”वादल चौंक गया। उसने वर्षा की ओर देखा।— वह हल्के-से मुस्कराई।उस पल वादल को लगा जैसे जीवन अचानक नए मोड़ पर पहुँच गया हो। क्लिफ़-हैंगर पर सवाल यह —01 क्या यह डिनर एक नई शुरुआत बनेगा, या फिर वादल के लिए किसी नए संघर्ष का दरवाज़ा खोलेगा?02 क्या वर्षा और वादल की यह पहली नज़रें कभी शब्दों का रूप लेंगी?03 और गरज, जो दूर से जलता रहा, उसकी अगली चाल क्या होगी? अगले भाग की झलक (भाग 03)डिनर टेबल पर वादल और वर्षा का पहला वास्तविक संवाद।परिवार की प्रारंभिक जिज्ञासा और हल्का-सा संदेह।वर्षा के मन में उठते अनजाने भाव।गरज का मन ही मन बनता हुआ षड्यंत्र।-----------भाग 02 समाप्त ---------------Written by h k bharadwaj