उस घर से एक किलोमीटर की दूरी पर , मंदिर में हरिकीर्तन हो रहा था । गर्मी का समय था और शाम के वक्त रह - रहकर पछुआ हवा के झोके उठ रहे थे । जब हवा का कोई तेज झोका चलता तो उसके साथ हरिकीर्तन की स्पष्ट आवाज उस घर तक भी पहुंच जाती ।
वह अस्सी वर्षीय वृद्ध था । उसकी याददाश्त बेहद कमजोर पड़ गई थी । इस वक्त वह लॉन में कुर्सी पर बैठकर , अपने - आप में खोया हुआ शायद शाम का नजारा देख रहा था । बगल की कुर्सी पर उसका जवान बेटा कोई किताब पढ़ने में मशगूल था ।
सहसा हवा की एक तेज झोका के साथ हरिकीर्तन की मधुर आवाज वृद्ध के कानो तक पहुंची । उसने बेटा से पूछा - “ बेटा , ये हरिकीर्तन की आवाज कहां से आ रही है ? " " चेनपुर वाली मंदिर से । " बेटे ने किताब पर नजरें जमाये ही जवाब दिया ।
वह पुर्ववत अपने आप में खो गया । शायद ईश्वर का स्मरण करने लगा हो।
कुछ देर बाद हवा की एक वैसा ही झोका के साथ पुनः: हरिकीर्तन की मीठी आवाज उसके कानो में पहुंची थोड़ा अकचका कर वृद्ध ने पुनः पूछा - " अरे , ये रामधुन कहां हो रही है ?
"इसबार बेटे ने किताब से नजरें हटाकर कहा " अभी - अभी आपको बताया न , रामधुन चैनपुर के मंदिर में हो रही है । " " ओह , अच्छा । मैं तो भूल ही गया था । " वृद्व ने कहा और खामोस होकर आकाश में उड़ते चिड़ियों के झुण्ड को देखने लगा ।
कुछ देर बाद अपने स्वभाव के अनुसार वह पुनः सबकुछ भूल चुका था । हरिकीर्तन की आवाज फिर सुनाई पड़ी । अतः उसने बेटे से पुनः पूछा " अरे ये कीर्तन किधर हो रहा है ? " इसबार बेटा झुंझला उठा - " आप पागल हो गये हैं क्या ? मैं तीन बार तो आपको बता चुका हूं कि चैनपुर के मंदिर में कीर्तन हो रही है । उसी की आवाज कभी - कभी यहां तक आती है । "
बेटे की झुंझलाहट से सहमे , वृद्व अपना सर पकड़ कर गहरी सोच में डूब गया ।
कुछ देर बाद मंद मुस्कान के साथ वह बोला - " सच ही कहा गया है - बालक और वृद्ध का स्वभाव बिलकुल एक समान होता है । वैसे तो मेरी यादाश्त बहुत कमजोर पड़ गई है , लेकिन जैसे पछुआ हवा की झोके के साथ कभी - कभी हरिकीर्तन की आवाज यहां तक आ जाती है वैसे ही बुढ़ापे में आदमी के हृदय में कभी - कभी पुरानी यादों के झोकें चला करते है । प्रसंगवश अभी मुझे तुम्हारी बचपन की एक घटना याद आ रही है । " बूढा जैसे अतीत में खो गया । बाप की बातें सुनकर बेटे की झुंझलाहट गायब हो गई । अभी वह जिज्ञासा भरी नेत्रो से बाप की तरफ देख रहा था ।
वृद्ध ने आगे कहा - " तुम्हारी उम्र उसवक्त मात्र ढाई या तीन साल की रही होगी । इसलिए तुम्हें तो याद नही होगा , लेकिन मुझे याद आ रही है । वह भी आज ही की तरह एक शाम थी । मैं तुम्हें गोद में लेकर बाहर टहल रहा था । उसीवक्त एक कौआ कहीं से आकर , अपने घर की मुंडेर पर बैठ गया । तुम्हारी नजर उस पर पड़ी तो तुमने अपने कोमल हाथों से इशारा करते हए , अपनी तोतली आवाज में पूछा - ' पा - पा - पा - पा - ई - की? ' ( पापा ये क्या है ) मैंने कहा - ' कौआ । तुमने उसे कुछ क्षण गौर से देखा , फिर बालसुलभ खुशी से किलकारी । मारते हुए पुनः पूछा - - ई - की ? मैने कहा - ' बेटा इसका नाम कौआ है । यह आकाश में उड़ता है । रात में पेड़ पर रहता है । '
पता नही तुम मेरी बातें समझा पाये थे या नही । पर उस कौआ को एकटक देखते हुए , तुमने कुछ क्षण बाद रट लगा दी थी । '
ई - की ? '
कौआ । '
ई - की ? '
कौआ । '
ई - की ? '
कौआ । '
मुझे ये तो याद नहीं कि उसवक्त तुमने कितने - बार पूछा था , लेकिन ये अच्छी तरह याद है कि मैंने हरबार तुम्हें प्रेम से बताया था । तुम्हें बताने में , जीवन की हरेक बातें सीखाने में मुझे बहुत खुशी मिलती थी । लेकिन आज सिर्फ तीन बार में तुम - -------------!!!
एक आहभरकर वृद्ध ने आगे कहा - “ सच , बालक और वृद्ध का स्वभाव तो एक समान होता है , मगर दोनो के परिस्थितियों में जमीन - आसमान का अंतर होता है । एक को जहां प्यार मिलता है , वही दूसरे को दुत्कार ।"
"एक गहरी सांस लेकर वृद्ध चुप हो गया । वह दूर पश्चिम की क्षितिज को देखने लगा । जहां शनैःशनैः सुरज का अस्तित्व क्षीण पड़ता जा रहा था ।
इधर बेटे के चेहरे पर ग्लानि साफ झलक रही थी। रणजीव झा भोपाल (म. प्र.)