Even if I am characterless, I am still a mother. in Hindi Classic Stories by Ranjeev Kumar Jha books and stories PDF | चरित्रहीन ही सही मां तो हूं न।

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चरित्रहीन ही सही मां तो हूं न।

चरित्रहीन ही सही मां तो हूं न।---–---------------------–--------सुबह के आठ बज गये थे,नींद तो टूट गयी थी,पर विस्तर छोडने में आलस आ रहा था, मैने करवट बदली तो बरामदे में पिंजरे में टंगा तोता चिल्ला उठा "उठ जा बेटा,आज तेरा एक्जाम है। ", मैं मुस्कुरा उठा, " ये तोते भी बडे नकलची होते हैं,कल तक मैं अपने बेटे को इनही लफ्ज़ों में उठाता था।" कल ही उसकी 12वीं की परीक्षा खत्म हुयी है,और वह अपनी मां के साथ शामवाली गाडी से नाना से मिलने गया है। उन दोनो के लौटने में कमसे कम आठ दिन तो लगेंगे ही। सोचकर मन उदाश हो गया," कैसे रहूंगा अकेले आठ दिन"!!तभी कालवेल बजी, मैने उठकर दरबाजा खोला।देखा, नौकरानी थी। उसने अंदर आते ही पूछा "दीदी (मेरी पत्नी) चली गयी?" हां, लडका भी गया" मैंने कहा।" तब तो घर में अकेले हैं आप, मैं चाय बनाकर लाती हूं" मुस्कुरा कर एक अजीब अंगडायी सी लेती हुयी, वो चाय बनाने चली गयी।" हां", मैंने.उसे गौर से दैखा,आज वह कुछ ज्यादा ही सज संवर कर आई थी।मैं सोफा पर धम्म से बैठ गया।" हे भगवान !! " तो क्या आज वह समर्पण का मूड बनाकर आई है??? लेकिन 5-6 साल पहले तो............।  5-6 साल पहले कि वह घटना मेरे जहन में ताजा हो आई।।।तब वह नयी नयी काम पर लगी थी मेरे घर में।गांव से ब्याह कर पति के साथ शहर भी नयी नयी ही आई थी। उसका पति मेरे ही आफिस में चपरासी है।मुझे याद है एक दिन मेरे केबिन में अचानक ही आकर खडा हो गया था।" बोलो श्याम, क्या बात है? "मैने पूछा।"सर, वो मैं अपनी पत्नी को गांव से ले आया हूं""तो?" मैने रूखाई से पूछा।सर...., वो मेरी तनखा थोडा.........."देखो श्याम, " मैने बात काटते हुए कहा।" मैंतुम्हें इससे ज्यादा पैमैंट नही दे सकता,जमाना बदल गया है,तुम अपनी वाईफ को भी कहीं काम पर क्यो नही लगा देते।"" लेकिन वह तो एकदमे गंवार है साहब।"तो क्या हुआ, नोकरानी का काम तो कर सकती है न, मुझे  जरूरत भी है। तुम चाहो तो कल से ही भेज दो मेरे घर।"  तभी से यह मेरे घर काम करने लगी, मगर धीरे धीरे मैं इसकी तरफ आकर्षित होने लगा।गांव की गठीली वदन मेरे आंखो को चुभने लगी।और एकदिन जब इसीतरह मेरी पत्नी.और बच्चे मायके गये हुए थे,  मैने उसका हाथ पकड लिया। वह भौचक होकर कसमसाई...." ये क्या कर रहे हो,छोडो मेरा हाथ।"" मैने बेशर्मी से कहा - "सिर्फ एकबार मान लो मेरी बात, मैं तुम्हारे पति की तनखा दोगुणी कर दूंगा, तुम्हे भी सोना चांदी, रूपैया पैसा जो चाहिये दूंगा मैं।"उसने.मुझे जोर का धक्का मारा। हाथ छूट गये उसके, और मैं सोफे पर धम्म से गिरा।वह चिल्ला पडी-" मैं किसान की बेटी हूं, दुबारा ऐसी हरकत की तो दीदी और पुलिस को तो बाद में बताऊंगी,पहले काट डालूंगी काट.........."मैं सन्न...तबतक चुपचाप बैठा रहा, जबतक वो सारा काम निपटाकर चली नही गयी।आज भी मैं उसी तरह सोच में डूबा चुपचाप ही बैठा हूं।तभी मेरी तंद्रा टूटी।" साहब चाय""ओ हां, लाओ।"उसने मुझे चाय दी, और सामने के सोफे पर बैठ गयी।मैं चाय पीने लगा।"साहब, आपकोयाद है" उसने बोलना शुरू किया, " आपने इसी जगह कयी साल पहले मेरे सामने एक बात रखा था ,और हमने मना कर दिया था।""हां।"साहब,मुझे आपका प्रस्ताव मंजूर है, बस शर्त यह है कि आप मेरे दोनो बच्चो को गोद ले लिजिये।""मतलव"?मतलव ये कि दोनो बच्चो को पढालिखाकर योग्य बनाने की जिम्मेदारी आपकी।और तुम्हारा पति?पति अपने भाग्य को अपनी जीवनसंगनी बना चूके हैं।पर मैं लडना चाहती हूं ,अब भी अपने दुर्भाग्य से.....,मैं नही चाहती मेरे बच्चे मेरे जैसा दुर्दिन देखें।मैं कुछ भी करके उनका जीवन बना दूंगी......,"पर चरित्रहीन बनकर?? जब कभी भी उनहें पता चलेगा कि मेरी मां एक चरित्रहीन महिला थी तो?" मैने कहा।" तो क्या? वे मुझे घर से निकाल देंगें, नफरत करेंगे मुझसे और क्या। सब मंजूर है मुझे, बस आप उन्हैं मुझसे नफरत के ही सही,योग्य तो बना दीजिये..........,चरित्रहीन हीन ही सही, साहब मां तो हूं, और मां होने का अधिकार कोई नही छीन सकता मुझसे........."वह सिसकने लगी।मैं चुपचाप बैठा रहा।फिर मैं धीरे से उठा..........और अस्फूट स्वर में बोला-" मैं तुम्हें गले लगाना चाहता हूं बहन,आजसे तुम्हारे दोनो बच्चे मेरे भानजे हैं,अब उन दोनो की जिम्मेदारी मेरी हुई।"वह जोर से रो पडी......।तोता चिल्ला उठा" तुमने बढिया किया... बहुत बढिया किया....पास हो गये एक्जाम में!!स्वरचित और अप्रकाशितरणजीव कुमार झा   भोपाल।