आकाश
जैसे ही विमान चंडीगढ़ की रनवे पर उतरा, शाम की धुंध आसमान पर उतरने लगी थी। मैं अपनी सीट पर पीछे झुक गया और उस छोटे से गोल खिड़की से दूर दिख रही पहाड़ियों को देखने लगा। रोशनी ढल रही थी और उनके साये गहराते जा रहे थे। कुछ देर के लिए मन को शांत करने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। सीने पर कई सवालों का बोझ था, और ज़्यादातर सवाल एक ही आदमी पर जाकर टिकते थे—रोनित।
आख़िर वो क्यों छुप रहा था जब चंडीगढ़ के बीचोंबीच उसका आलीशान होटल चमक रहा था? और मुझे ही क्यों उसका पीछा करना पड़ रहा था? हाँ, क्योंकि वो बास्टर्डे आदि तो मिस खन्ना के साथ है। मुझे समझ नहीं आता, चल क्या रहा है।
लैंडिंग के बाद हम सीधे होटल पहुँचे। बाहर से वो जगह किसी काँच के महल जैसी लग रही थी, ऊँची खिड़कियों से सोने जैसी रोशनी झर रही थी, घूमते दरवाज़े खामोशी से मेहमानों को भीतर खींच रहे थे। दरवाज़े तक जाते बगीचों से हल्की गुलाबों की ख़ुशबू आ रही थी। भीतर हर चीज़ चमचमाती थी। संगमरमर की फर्श, झूमर, और धीमी, सुसंस्कृत गुनगुनाहट। किसी और को यह नज़ारा मोहित कर देता। मुझे नहीं। मेरा दिमाग कहीं और अटका हुआ था।
चेक-इन करते ही जेब में कंपन महसूस हुई। एक मैसेज। दानिश का।
रोनित की लोकेशन ट्रेस कर रहा हूँ। विल अपडेट यू।
अच्छा है। कम से कम कोई तो काम आगे बढ़ा रहा है।
श्रेया और अपने लिए मैने एक ही कमरा बुक करवाया था। आई डिडन्ट प्रोटेस्ट। कर भी नहीं सकता था। उसका चेहरा उतरा हुआ था, जैसे उसमें से सारा रंग और जान खींच ली गई हो। फ्रेश होकर हम डिनर के लिए बैठे, लेकिन चुपचाप। खाना वैसे ही पड़ा रहा। उसे मजबूर करना बेकार था। उसके अंदर दर्द का सागर था।
मैंने उसका ठंडा काँपता हाथ पकड़ा और उसे अपनी बाँहों में खींच लिया। वो बिखरी सी लगी, जैसे अपने भीतर ताज़ा घाव ढो रही हो।
“सब ठीक होगा,” मैंने फुसफुसाते हुए उसके बालों पर अपनी चिन एडजस्ट की। “सब ठीक कर दूँगा, श्री। वादा करता हूँ।”
उसकी आवाज़ टूटी हुई थी। “क्या तुम मुझसे नफ़रत नहीं करते?”
मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “नफ़रत क्यों करूँ? और कैसे करूँ? मैं इतना बेवकूफ नहीं कि उस लड़की से नफ़रत करूँ जिसे मैंने हमेशा इज़्ज़त के साथ चाहा।”
उसने निगाह झुका ली। “आकाश… तुम जानते हो…” उसके अधूरे शब्द मेरे जीवन के सबसे बुरे दिन की याद दिला गए — जिस दिन हम अलग हुए थे।
हम दोनों बिस्तर पर साथ-साथ बैठे। उसका कंधा मेरे कंधे से छू रहा था। उसने अपने घुटनों को सीने से लगाकर चिन टिका दी, और मैं पीछे झुक गया, एक हाथ हेडबोर्ड पर फैला लेकिन उसके पास, उसे बचाने जैसा।
“मैं सुन रहा हूँ,” मैंने नरमी से कहा।
“जब प्रीति ने मुझे वो सारे मैसेज दिखाए…” उसकी आवाज़ फुसफुसाहट जैसी थी, “मैं टूट गई थी। कुछ समझ ही नहीं आया। और फिर… उनमें तुम्हारा नाम था। तुम्हारी तस्वीर थी। वही जो उस वक़्त तुम्हारे सोशल मीडिया पर थी। वही तुम थे।”
मैं चौंक गया। उसने मेरी छोटी-छोटी बातें भी नोटिस की थीं। मेरी प्रोफ़ाइल पिक्चर तक। वो चुपचाप मुझे देखती रही थी, और मैंने कभी महसूस भी नहीं किया। सीना कस गया।
“तुम्हें पता है…” वो बोली, आवाज़ काँप रही थी, “वो चैट्स कितनी गंदी थीं, मेरी बेइज़्ज़ती करने वाली। मैं सिर्फ़ सत्रह साल की थी। बहुत कुछ समझ में भी नहीं आता था। मैं याद भी नहीं करना चाहती।”
उसके गाल पर आँसू बह निकले। मैंने अनजाने में अंगूठे से पोंछ दिया। वो मेरे सीने से लग गई, कसकर पकड़ते हुए, जैसे डूबती आत्मा तिनके को थाम ले।
“मैं बिखर गई थी, आकाश,” उसने धीमे से कहा। “सब कुछ बिखर गया था। मैं घर जाने को तैयार थी। बाहर से ठीक होने का नाटक किया। भैया लेने आए। वो मुझसे बहुत प्यार करते थे। लेकिन अब…” उसकी आवाज़ टूट गई।
उसने मेरी शर्ट पकड़ ली। काँप रही थी।“प्रीति घर आई। बोली अलविदा कहना है। लेकिन वो दोस्त नहीं थी। उसने सब कुछ तोड़-मरोड़कर भैया को बता दिया। और उसने उस पर यक़ीन कर लिया। घर पहुँचे तो उसने सबके सामने मुझ पर चिल्लाया। मैं सुन्न थी। मम्मी ने रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने मेरी नहीं सुनी। फिर उसने मुझे मारा। पापा ने बात करना बंद कर दिया। मेरा दिल टूट गया।”
मैंने उसे और कस लिया। गुस्से से नसें खिंच गईं, लेकिन कर ही क्या सकता था — बस सुन सकता था।
वो रोते-रोते बोली, “मैंने गिड़गिड़ाया… कि मुझे एंट्रेंस देना है। कई दिन खाना नहीं खाया। बेहोश हो गई। तब जाकर पापा ने पूछा कि मैं चाहती क्या हूँ। मैंने कहा—बस पढ़ाई। उन्होंने मान लिया, लेकिन देर हो चुकी थी। तैयारी पूरी नहीं थी। रिज़ल्ट बिगड़ गया। मनचाहा कॉलेज नहीं मिला। करियर बिगड़ गया। ज़िंदगी बिगड़ गई। आज तक उसका असर है।”
उसके शब्दों में टूटी हुई रूह थी। मैं हर लफ़्ज़ के साथ टूट रहा था।
“उन्होंने मुझे सिर्फ़ एक शर्त पर आगे पढ़ने दिया… कि मुझे उनकी पसंद से शादी करनी होगी।” उसने मेरी तरफ़ देखा। “तुम्हारी श्री… जिसको तुमने कभी चाहा था… उस दिन मर जाएगी जिस दिन वो ऐसी शादी करेगी जो उसकी नहीं है। बस मेरा शरीर बचेगा, मेरी रूह मर जाएगी।”
उसकी बातें सुनकर मेरे अंदर कुछ टूट गया। आँखें भर आईं। मैं कैसे उसे ऐसी ज़िंदगी में धकेलने दूँ?
“मैं तुम्हारी ज़िंदगी का श्राप हूँ।” उसने फुसफुसाया।
मैंने कसकर पकड़ लिया। मेरी आवाज़ काँपी। “तुम मेरी जन्नत हो, श्रेया। दोबारा ये मत कहना।”
उसने मेरे आँसू पोंछे। “क्यों? हर बार… मैंने ही तुम्हारा सब बिगाड़ा। तुम्हारी ज़िंदगी दुखी मेरी वजह से हुई।”
मैंने उसे रोकने के लिए होंठों से उसके होंठ बंद कर दिए। डीप, सॉफ्ट किस — मानो हर ज़हरीले शब्द को मिटा देना चाहता हूँ। फिर मैंने अपना माथा उसके माथे से टिकाया।
“श्री.., सुनो,” मैंने टूटी आवाज़ में कहा। “तुम कभी श्राप नहीं हो। तुम मेरी सब कुछ हो। जब हम स्कूल में थे, तब भी मैंने तुम्हें पूरे दिल से चाहा। तुम मेरी दुआ हो। मेरी आख़िरी उम्मीद। तुम मुझे तोड़ सकती हो, रुला सकती हो, लेकिन मैं फिर भी तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँगा। लेकिन खुद को वो मत कहो। धाट किल्स मि।”
वो मेरी बाँहों में सिमट गई। उसकी साँसें धीरे-धीरे सँभलने लगीं। मैं उसके बालों को सहलाता रहा।
कुछ देर बाद माहौल हल्का करने को मैंने कहा, “चलो, उठो। अभी तुम्हारे देवर को ढूँढना है। आखिर वो तुम्हारी देवरानी के साथ है — और मुझे तो ये भी नहीं पता उसने किससे शादी की।”
तभी दानिश का नया मैसेज आया।
अ फ़ाइल।
अपने दोस्त को बोलो SOS सिस्टम ऑन करे या वो बेवक़ूफ़ी भरा सिक्योरिटी सिस्टम अनइंस्टॉल कर दे जो उसने और उनकी प्यरीे बेस्टफ्रेंड ने बनाया है। वरना… अगली बार में नहीं ढूँढगा।
मैं मुस्कुरा पड़ा। “ये दोनों से कितना चिढ़ा हुआ है।”
“कौन?” श्रेया ने पूछा।
मैंने मैसेज दिखाया। उसने हल्की हँसी छोड़ी। पहली बार उस रात मैंने उसकी पुरानी मुस्कान की झलक देखी। मैंने उसके सिर पर चुम्बन किया और उठ खड़ा हुआ।
------------------
दानिश के भेजे पते ने आकाश और श्रेया को चंडीगढ़ की एक शांत कॉलोनी तक पहुँचा दिया। हर घर एक जैसा, छोटे बगीचे, गेट्स बंद। पर जिस घर पर वे रुके, वो अलग लग रहा था। बालकनी पर बचे-खुचे लाइट्स लटक रहे थे, मुरझाए फूलों की माला दरवाज़े के पास थी। ताज़गी की जगह एक बोझिल, बीती ख़ुशबू थी।
आकाश ने इर्द-गिर्द नज़र डाली। खामोशी थी—बहुत गहरी। अगर यहाँ समारोह हुआ था, तो अब ये वीरान क्यों? कोई आवाज़ नहीं, कोई हँसी नहीं, कोई संगीत नहीं। बस सन्नाटा।
श्रेया ने फुसफुसाकर पूछा, “क्या सोच रहे हो?”
आकाश की नज़र गेट के पास लगी पीतल की नेमप्लेट पर पड़ी। “सूद्स,” उसने धीरे से कहा।
“क्या?”
उसने प्लेट पर इशारा किया। “ये घर सूद परिवार का है।”
श्रेया की आँखें फैल गईं। “ये राखी का घर नहीं हो सकता… उसने कभी नहीं बताया।”
आकाश ने सख़्ती से कहा, “ओबवियस्ली नहीं हो सकता।” और गेट खोल दिया।
घर के अंदर कदम रखते ही हर आवाज़ अनजानी गूँज सी लगी। सफ़ेद दीवारें, ऊँची खिड़कियाँ बंद, पर्दे खींचे। सन्नाटा चुभ रहा था। आकाश ने घंटी बजाई।
तीन बार घंटी के बाद दरवाज़ा खुला। एक मध्यवय स्त्री सामने थी, थकी आँखें, माथे पर चिंता की लकीरें, साधारण नाइटी में, जैसे नींद से उठी हों।
“कौन हैं आप?” उसने संदेह से पूछा।
श्रेया ने शांति से कहा, “हम किसी को ढूँढ रहे हैं।”
भीतर से पुरुष स्वर आया, “कौन है?”
स्त्री ने झिझकते हुए दरवाज़ा खोला। “आइए।”
बैठक में अब भी शादी की हल्की झलक थी। मुरझाए गेंदे, अगरबत्ती की गंध, इधर-उधर पड़े बर्तन। लेकिन भीड़ का कोई निशान नहीं।
बैठकर श्रेया ने धीरे-धीरे सब बताया। कैसे एक शादी हुई थी — पर दुल्हन बदल दी गई। और दूल्हे के चेहरे पर सेहरा होने के कारण असली पहचान छिपी रही। असली दूल्हा बाद में आया और सारा सच सामने आया, सेहरे के पीछे कोई और था। रोनित कपूर।
आकाश का सीना कस गया। यही नाम। इन्वेस्टर इन हॉस्पिटल, चालक। और अब—सूद्स से जुड़ा। टुकड़े आपस में जुड़ रहे थे।
स्त्री की आँखें झुक गईं। “हमें कुछ पता नहीं था। जब तक समझे… देर हो चुकी थी।”
आकाश ने गंभीरता से पूछा, “फिर क्या हुआ?”
उसकी आवाज़ काँपी। “असली दूल्हा ग़ुस्से में पागल था। उसने उनका पीछा किया, आपके दोस्त, कपूर साहब का। वो भाग गए। जान बचाकर भागे। हमें लगा वो लौटेंगे, पर…” उसने कोने की मेज़ की तरफ़ इशारा किया जहाँ दो बंद फ़ोन पड़े थे। “उनके फ़ोन अब भी यहीं हैं। लेकिन वो खुद… गायब।”
कमरे में और भी भारी खामोशी छा गई। श्रेया ने आकाश की बाँह कसकर पकड़ ली।
बातों-बातों में उन्हें दुल्हन का नाम पता चला, राखी।
दोनों दंग रह गए। श्रेया ने राखी की तस्वीर दिखाई। जिसे वो जानती थी। उसे यक़ीन नहीं हुआ कि वही उसकी राखी है। लेकिन सच्चाई यही थी।
अब उनके सामने बस एक ही काम था, उन्हें ढूँढना। और कोई सुराग नहीं था।
---------------------------------
Continue in the next episode....
Follow me on Instagram: _butterfly__here