बासौदा स्कूल का वार्षिकोत्सव पूरे शहर के लिए त्यौहार जैसा होता था। पूरे मैदान में रंग-बिरंगी झालरें टंगी थीं, मंच पर बड़ी सी पेंटिंग बनी थी और बच्चे रंग-बिरंगे कपड़ों में इधर-उधर भाग रहे थे। पूरा माहौल एकदम ऐसा था जैसे सारे तारे झिलमिलाते हुए बच्चों के रूप में धरती पर एक साथ उतर आए हों
ध्रुव (अपनी नाम की तरह आसमान का सबसे रोशन तारा) उस साल भी आयोजन समिति का हिस्सा था। प्रिंसिपल को उस पर पूरा भरोसा था – “ध्रुव है तो सब सही होगा।”
दूसरी तरफ़ खुशी को *डांस परफ़ॉर्मेंस* में चुना गया था।
जब ध्रुव ने पहली बार खुशी को रिहर्सल में नृत्य करते देखा, तो उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं, समय जैसे कि उसके लिए ठहर सा गया। ख़ुशी लाल और सुनहरे रंग की ड्रेस में इतनी ख़ूबसूरत लग रही थी कि ध्रुव की नज़रें हटती ही नहीं थीं।
आशु ने ध्रुव को कोहनी मारी –
“अबे शर्मा, तेरे मुँह से तो वाह-वाह की आवाज़ ही नहीं निकल रही। कहीं मंच पर चढ़कर फूल बरसाने का प्लान तो नहीं?”
ध्रुव शरमा कर बोला – “चुप कर नालायक, सबके सामने मत छेड़।”
शाम को कार्यक्रम शुरू हुआ। मेहमानों की भीड़, तालियों की गड़गड़ाहट और बच्चों की चमकती आँखें – हर तरफ़ उत्साह था।
खुशी का डांस नंबर आख़िरी में था। जब वो मंच पर आई, तो पूरा मैदान तालियों से गूँज उठा।
उसके हर स्टेप में आत्मविश्वास और मासूमियत थी।
ध्रुव की नज़रें बस उसी पर टिक गईं।
लेकिन अचानक लाइट्स में गड़बड़ हो गई। मंच अँधेरे में डूब गया। भीड़ में हलचल मच गई। खुशी बीच मंच पर खड़ी घबरा गई।
ध्रुव तुरंत कंट्रोल रूम की तरफ़ भागा, वायरिंग चेक की और पसीने में तर-बतर होते हुए बिजली वापस लाई। ध्रुव अपने हिस्से का काम कर चुका था। वह अपना सब कुछ एक करके ख़ुशी की खुशियाँ क़िस्मत से भी लड़कर वापस ले आया था। उसने नंगे तारों को छूने से पहले एक बार भी नहीं सोचा, न वह डरा और न उसे अपनी चिंता थी। वह तो बस एक ही चीज़ चाहता था — और वह थी 'ख़ुशी' के चेहरे पर ख़ुशी।
जैसे ही रोशनी दोबारा जली, खुशी ने सामने देखा – ध्रुव मंच के किनारे खड़ा था, हाँफता हुआ लेकिन मुस्कुराता हुआ।
उसकी आँखों में आभार झलक रहा था।
नृत्य पूरा हुआ और दर्शकों ने तालियों से मैदान गूँजा दिया।
कार्यक्रम के बाद जब सब बच्चे बैकस्टेज मिले, खुशी धीरे से ध्रुव के पास आई। उसकी आवाज़ धीमी थी –
“अगर तुम नहीं होते तो आज मेरा डांस अधूरा रह जाता। Thank you, Dhruv.”
ध्रुव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा –
“दोस्त हैं न, मदद करना तो बनता है।”
लेकिन भीतर ही भीतर वो चाहता था कि ये पल यहीं थम जाए।
आशु और आदर्श दूर से ये सब देख रहे थे। आदर्श ने हँसकर कहा –
“ये दोस्ती नहीं, कुछ और है। बस कहने की देर है।”
आशु बोला –
“और हमारा शर्मा जी है कि हीरो बनने के बाद भी डायलॉग बोलने से डरता है।”
ध्रुव ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया।
उसकी दुनिया अभी भी मुस्कुराती हुई खुशी के चेहरे में सिमट गई थी।
उस रात बासौदा की हवाओं में संगीत, तालियाँ और एक अनकही मोहब्बत गूँज रही थी…