बासौदा की गलियों में ध्रुव, आशु और आदर्श की दोस्ती मशहूर थी। तीनों हर सुबह एक ही साइकल पर स्कूल जाते। आगे ध्रुव पैडल मारता, बीच में आदर्श बैग सँभालता और पीछे बैठा आशु हँसी-मज़ाक करता।
आशु की शरारतें तो पूरे स्कूल में मशहूर थीं। कभी क्लास में चॉक छुपा देता, तो कभी टीचर की कुर्सी खिसका देता। सज़ा मिलने पर भी हँसकर खड़ा हो जाता और बोलता –
“सर, ये सब ध्रुव ने किया है, मैं तो मासूम हूँ।”
पूरी क्लास खिलखिलाकर हँस पड़ती और ध्रुव सिर पकड़ लेता।
आदर्श इन दोनों का बैलेंस था। वो हर बार समझाता –
“ओये आशु, अगर तूने फिर से नालायकपंती की तो इस बार हेडमास्टर तेरे पापा को बुलाएँगे।”
लेकिन आशु पर किसी की डाँट का असर कहाँ होता था।
इन्हीं हँसी-मज़ाक के बीच ध्रुव का ध्यान बार-बार एक ही जगह जाता – *खुशी बजाज*।
खुशी अक्सर पहली बेंच पर बैठती थी, उसके बालों की लंबी चोटी हवा में झूलती और जब वो हँसती तो ध्रुव को लगता जैसे पूरी क्लासरूम रोशन हो गई हो।
एक दिन मैथमेटिक्स की क्लास में टीचर ने अचानक सवाल पूछ लिया –
“खुशी, ये थ्योरम हल कर सकती हो?”
खुशी बोर्ड के सामने खड़ी हुई, लेकिन उसे स्टेप याद नहीं आ रहे थे। पूरी क्लास हँसने लगी। खुशी की आँखों में हल्का सा डर उतर आया। तभी ध्रुव ने धीरे से अपनी कॉपी उसे आगे खिसकाई, जिसमें पूरा हल लिखा था। खुशी ने नज़र झुकाकर देखा और वही बोर्ड पर लिख दिया।
टीचर ने सराहते हुए कहा – “Very good, Khushi! Keep it up.”
खुशी ने राहत की साँस ली और जाते-जाते ध्रुव की तरफ़ हल्की सी मुस्कान फेंक दी।
वो मुस्कान ध्रुव के लिए किसी इनाम से कम नहीं थी।
क्लास के बाद आदर्श ने ध्रुव को टोका –
“तू हर बार उसकी मदद क्यों करता है? कभी उससे सीधे बात भी कर ले।”
ध्रुव ने धीमे स्वर में कहा –
“नहीं यार, वो बस दोस्त की तरह समझे, इतना ही काफ़ी है।”
आशु तुरंत बीच में कूद पड़ा –
“अबे शर्मा जी, तुम तो बड़े भोले हो। लड़की तुझे देखती है, मुस्कुराती है, और तू कह रहा है दोस्त समझे! सीधे बोल दे कि दिल में घंटियाँ बज रही हैं।”
तीनों दोस्त जोर से हँसने लगे, लेकिन ध्रुव के दिल में कहीं न कहीं ये डर था कि अगर उसने अपने जज़्बात ज़ाहिर कर दिए और खुशी ने मना कर दिया, तो ये मासूम रिश्ता भी टूट जाएगा।
इसलिए ध्रुव ने अपने दिल की बात दिल तक ही रखी।
बासौदा के छोटे से स्कूल में दिन यूँ ही बीतते गए –
सुबह की प्रार्थना, क्लास की पढ़ाई, खेल का मैदान और बीच-बीच में खुशी की झलकें।
पर ध्रुव के दिल में अब साफ़ हो गया था –
वो सिर्फ़ उसे पसंद नहीं करता, बल्कि उससे बेइंतहा *प्यार* करता है। ध्रुव का प्यार उसके लिए वैसा ही था जैसे समुद्र में पानी, आसमान में बादल, सूर्य में अग्नि, चंद्रमा में चांदनी। जो सबको देखते हुए भी, महसूस होते हुए भी एकदम शांत था। जो था वह एकाएक था। खुशी उसके लिए सिर्फ़ ज़िंदगी जीने का ज़रिया नहीं, बल्कि ज़िंदगी ही हो चली थी।
और यही प्यार धीरे-धीरे उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कहानी बनने वाला था…